Islam Ko Aman wala Deen Kaise Kah Sakte Hai?
सवाल : इस्लाम को शान्ति का धर्म कैसे कहा जा सकता है जबकि यह तलवार से फैला है? (Part 07)
इस आयत में बताया गया है कि जो गैर-मुस्लिम क़ौम शान्ति समझौता करके तोड़ दें, अपनी कसमें न निभाएं, दीने-इस्लाम का अपमान करें तो ऐसे लोगों से लड़ना चाहिये।
'और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में उन बेबस मर्द, औरतों और बच्चों की खातिर जंग नहीं करते जो कमज़ोर पाकर दबा लिये गये हैं, जो फ़रियाद कर रहे हैं कि ऐ हमारे रब! हमें इस बस्ती से निकाल जिसके बाशिन्दे ज़ालिम हैं और अपनी तरफ़ से किसी को हमारा हिमायती बना और अपने पास से हमारा कोई मददगार खड़ा कर। (अन निसा:75)
जिन मर्दो, औरतों और बच्चों को कोई ज़ालिम क़ौम दबा ले और उन पर जुल्म करे तो ऐसे मजबूर, बेबस और बेसहारा लोगों के लिये लड़ने की मुस्लिम को इजाज़त दी गई है।
‘और जिन्होंने अपने ऊपर जुल्म होने के बाद बदला लिया उन पर कोई इल्ज़ाम नहीं। इल्ज़ाम तो उन पर है जो लोगों पर जुल्म करते हैं और ज़मीन पर नाहक सरकशी करते हैं। ऐसे लोगों के लिये दुख देने वाला अजाब है।'. (अश्शूराः 41-42)
यह आयत साफ़ लफ़्ज़ों में वज़ाहत कर रही है कि जिन लोगों पर अत्याचार हुआ हो वे लोग बदला ले सकते हैं फिर भी इन्साफ़ ज़रूरी है।
'ऐ ईमानवालों! अल्लाह की ख़ातिर उठ खड़े होने वाले और इंसाफ़ के गवाह बनो। और किसी क़ौम की दुश्मनी इस बात पर न उभारे कि इंसाफ़ से फिर जाओ। इंसाफ़ करो कि यह तक़वा के क़रीब है। और अल्लाह से डरो।'* (अल माइदह : 8)
यह है इस्लाम की अज़्मत (महानता) कि जाइज़ हालात में मुस्लिमों को बदला लेने और जंग करने की इजाज़त देकर उन्हें इस बात के लिये पाबन्द भी करता है कि वे इंसाफ़ करने वाले बनें । इन्साफ़ की गवाही दें। मुस्लिम कौम को इस बात से सख्ती से हुक्म दिया गया है कि वे अपने दुश्मनों के साथ भी नाइन्साफ़ी न करें। यहाँ तक कि इन्साफ़ करने को तक़वा (ईश-परायणता) के क़रीब भी बताते हुए अल्लाह से डरने की ताक़ीद की है।।
TO BE CONTINUE Insha'Allah
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