*फिरकाबंदी का खात्मा और हक की दावत*
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*किस्त-1⃣*
शुरु करता हु मैं अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और बहुत रहेम करने वाला है
🔴 *फिरकाबंदी क्या है?*
फिरकाबंदी का मतलब है कि किसीकी सोच, राय, बात या आमाल कि बुनियाद पर सबसे अलग होकर अपना एक गिरोह या जमात बना लेना.
आजके इस माहोल में अगर आप नजर करे तो आपको मुस्लिम उम्मह में बहोत सारे फिरके मिलेंगे. कोई अपने आपको सुन्नी कहता है, कोई हनफ़ी, हम्बली, मालिकी, शाफई, देवबंदी, बरेलवी, कादरियाह, चिश्तियाह, अहमदिया, जाफरियाह, वगैरह वगैरह. हर एक फिरका एक दूसरे से मुहं मोड़कर अपना अपना मझहब बना लिया है. जबके उनके मझहब के सिद्धांत और आमाल देखे तो वह एक दूसरे से बिलकुल अलग है फिरभी अपने आपको मुसलमान कहते है. हर एक ने अपने अपने इमाम, किताबें, मस्जिदे, मदरसे, और मुसल्ली (नमाजी) बाँट लिए है और यहाँ तक कि अपनी पहेचान के लिए पहनावेमें कुछ ना कुछ खास बातें रख ली है जिसकी बुनियाद पर वह फिरका लोगो से अलग पहेचान लिया जाए. बड़े हैरत कि बात यह है कि हर एक फिरका अपने आपको सिराते मुस्तकीम (सीधे रास्ते) पर जनता है और कहेता है. उनके पास जो इस्लामी सोच है उससे वह खुश है. इस बात को अल्लाहताला ने कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है,
“जिन्हों ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरको) में बंट गए, हर गिरोह (फिरका) उसीसे खुश है जो उसके पास है”
📗(सुरह अर् रूम:32)
हर फिरका दूसरे को गुमराह मानता है और अपने आपको सीधे रह पर जानता है. येही बात यहूद और नसारा में भी थी जिसे अल्लाहताला ने कुरआन में बताया है,
“यहूद ने कहा ‘नसारा किसी बुनियाद पर नहीं’ और नसारा ने कहा ‘यहूद किसी बुनियाद पर नहीं’ हालाकि वे दोनों अल्लाहताला कि किताब पढते है”
📗(सुरह बकरह:113)
दूसरे किस्त में फिरकाबंदी की वजह जानेगें इन्शा अल्लाह
मुसलसल---------