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Kerala ka wah Shakhs Jo Hajj ke liye Paidal Saudi Arab Ja raha hai? Shihab chittur

Janiye us Shakhs ke bare me Jo Hajj 2023 ke liye India se Saudi Arabia Paidal Ja raha hai? 

जानिए कौन है वह शख्स जिसने अकेले हज के लिए पैदल सफर पर निकला है

आज के दौर मे शायद आप यह जानकर चौंक जायेंगे, हैरत मे पड़ जायेंगे के क्या कोई शख्स हज्ज् के लिए इंडिया से सऊदी अरब पैदल जा सकता है? *जानिए उस शख्स के बारे मे जो केरला से पैदल मक्का जा रहे है*। 

मंजिलें बहादुरो का इस्तकबाल करती है
बुझदिलों को तो रास्तो का खौफ मार देता है।

कई बार हमसब सुनते हैं के पहले लोग घोडे, ऊँट और हथियो पर सफर करते थे और दूर दूर तक पैदल ही चलते थे क्योंके उस वक़्त न कोई रेल, जहाज़ या कोई दूसरी इलेक्ट्रॉनिक गड़ियाँ थी।

लोग हज्ज् के लिए भी इसी तरह जाया करते थे।
जब इंसान तरक्की किया तो महिनो का सफर घंटो मे बदल गया।

अब घोड़ा और ऊँट वाला दौर रहा नही यह साइंस का दौर है।

इसी इकिसवी सदी मे एक शख्स हिंदुस्तान से सऊदी अरब हज्ज् के लिए पैदल रवाना होता है।

लोग साइकल से या पैदल चलकर मीलों का सफर तय कर रिकॉर्ड कायम करते हैं। लेकिन  आज मै आपको एक ऐसे शख्स के बारे मे बताऊंगा  जिसके बारे में जानकर आप भी चौंक जायेंगे।

आज के दौर मे ऐसी बातें सिर्फ अपने बुजुर्गो से सुनने को और किताबो मे पढ़ने को मिलती है।

जब इरादे मजबूत हो तो मंजिले भी आसान हो जाती है

भारत के दक्षिणी राज्य केरला के एक शख्स ने वह काम कर दिखाया जो शायद आज के दौर मे नामुमकिन है।
बहुत से मुसलमानो की यह ख्वाहिश होती है के जिंदगी मे एक बार जरूर हज्ज् ए बैतुल्ला जाए।

इसी तरह केरल के इस शख्स की भी ख्वाहिश थी मगर इन्होंने अपने दिल की तमन्नाओ को पूरी करने के लिए कोई आम तरीका नही बल्कि एक अलग अंदाज मे मक्का जाने का फैसला किया।

भारत के दक्षिणी राज्य केरल के मलप्पुरम जिले के कोट्टक्कल के पास अठावनाड नामक इलाके के रहने वाले है शिहाब् चित्तूर मुश्किल और तकलीफो से भरे सफर पर निकले है।

भारत के कई राज्यों से गुजरते हुए पाकिस्तान, ईरान, इराक, कुवैत और आखिर में सऊदी अरब पहुचेंगे।

जब उनसे इस सफर के बारे मे पूछा गया तो उन्होंने कहा

"पैदल हज के लिए मक्का जाना मेरी बचपन से ही ख्वाहिश थी, अल्हम्दुलिल्लाह अल्लाह का शुक्र अदा करता हूं। मेरी मां की दुआओ से अल्लाह ने मेरी यह तमन्ना पूरी की और मैंने सभी फराएज़ को पूरा किया, इंशा अल्लाह मैं जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाऊंगा।”

आठ महीने बाद अगले साल  मक्का पहुंचेंगे शिहाब् चित्तूर।

इस सफर के लिए उन्हें विदेश मंत्रालय से इजाज़त लेने के लिए चक्कर काटने पड़े। मगर उनकी कोशिशो ने रंग लाई और वे अपने मकसद मे कामयाब हो गए।

वे तकरीबन आठ महीने बाद 8640 किलोमीटर तय कर अपनी मंजिल तक पहुचेंगे।

वह एक साल से हज पर जाने की तैयारी मे लगे थे।
शिहाब् चित्तूर उसी केरला के रहने वाले हैं जहाँ हिंदुस्तान की सबसे पहली मस्जिद तामीर की गयी थी।

वो कहते है

"मेरा सफर रूहानी है, मेरा मकसद पैदल हज करने का है। मुझे सलाह देने वाला कोई नहीं था। मैं सिर्फ लोगों से पैदल सफर पर जाने के बारे मे सुना था। लेकिन आज हिंदुस्तान में शायद ही कोई जिंदा मिले जो यहां से पैदल हज पर जाने के बारे मे अपना तजुर्बा बताये। "

जब उन्होंने अपने इस सफर के लिए विदेश मंत्रालय से इजाज़त मांगी तो वहाँ के कई अफसर हैरत मे पड़ गए।
उनसे जब मक्का जाने की इजाज़त मांगी गयी तो वे लोग हैरान हो गए।  वहाँ मौजूद ऑफिसर्स यह सोच कर मुश्किल मे पड़ गए के इस मसले के कैसे हल किया जाए, क्योंके इससे पहले उनलोगो को पैदल हज् पर जाने का तजुर्बा नही था।

आखिर मे उन्हे मंजिल ए मकसूद जाने के लिए इजाज़त मिल गयी।

इकस्वी सदी या फिर यूँ कहे आधुनिक युग का पहला शख्स जिसने पैदल हज् के लिए गया हो।

मोहम्मद शिहाब् आज के मॉडर्न दौर के सबसे पहले शख्स है जिन्होंने हिंदुस्तान से सऊदी अरब पैदल सफर किया हो।

कई जगहो पर उनका इस्तकबाल मशहूर शख्सियत के तौर पर किया गया है। जुमे को जब वह चलियाम पहुंचे तो हज़ारो लोगो की भीड़ उनके इस्तकबाल के लिए जमा हो गयी। उनको लोग सेलेब्रेटी के जैसा फूल बरसा रहे है। उनका  नाम शायद गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड मे भी शामिल किया जाए।

आज के इस दौर मे लोग शोहरत पाने के लिए, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए, अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए और नाम रौशन करने के लिए बे हयाई, फ़हाशि, कुफ्र और शिर्क का सहारा ले रहे है तो वही केरला के एक मुसलमान जिसने अगले साल हज का अरकान् अदा करने के लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है।

जहाँ आज का मुसलमान अपने मुहल्ले की मस्जिद मे पांच कदम चलकर नमाज अदा करने नही जाता तो वहीं शिहाब् चित्तूर पांच मुल्को का सफर कर हज के फराएज़ अदा करने जा रहे है।

मोहम्मद शिहाब् वहाँ जा रहे है जहाँ सब बराबर है। अमीर गरीब , कमज़ोर मजबूत  हर कोई बराबर है। मक्का मे की छोटा बड़ा और ऊंच नीच नही होता बल्कि वहाँ जाने वाला सब बराबर होता है।

यह एक अनोखा शुरुआत है मुसलमानो की आँखे खोलने के लिए।

मोहम्मद शिहाब् मस्जिद या मदरसे में रातें बिताना पसंद करते हैं। मोहम्मद शिहाब् का हर एक कदम अल्लाह की राह मे बढ़ रहा है।  वे अपने साथ बहुत कम सामान लेकर जा रहे है ताकि सफर आसान हो और कही कोई दिक्कत न हो।

केरला से पैदल हजयात्रा पर निकले शिहाब चित्तूर का 2023 में हज से पहले पहुँचने का इरादा है।

आप सब लोगो से शिहाब् चित्तूर के लिए दुआओ की गुजारिश है ताकि अल्लाह ताला उनके सफर को आसान फरमा दें।

या अल्ला तु ऐसे नेक इरादे वाले की हीफाजत फरमा और उन्हे उनके मकसद मे कामयाबी अता कर। अल्लाह तु उनके रास्ते मे आने वाली परेशानियों को दूर कर दे और हजर ए अस्वद का दीदार करा।
   आमीन

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Waise Kam (Deeds) Jiske karne se Hajj aur Umra ka Sawab milta hai.

Aeise aamal (Deeds) jinhe karne se hame Hajj aur Umra ka Sawab milta hai?

Sawal: Baraye meharbani Sahee Hadees se kuchh aeise aamal bataye jinke karne se hame Hajj aur Umra ka Sawab mil jate?

سوال- برائے مہربانی صحیح احادیث سے کچھ ایسے اعمال کے بارے بتائیں جنکے کرنے سے ہمیں حج و عمرہ کا ثواب مل جائے.؟

Published Date: 24-5-2022

جواب..!
الحمدللہ...!

*اللہ کے بہت سے بندے ایسے ہیں جنہیں بیت اللہ کا سفرکرنے کی توفیق مل جاتی ہے وہ تو بڑے خوش نصیب لوگ ہیں، تاہم بعض ایسے بھی بندے جو رات و دن زیارت حرمین کی تمنا کرتے ہیں، روتے ہیں ، رب سے دعائیں کرتے ہیں ، تھوڑے بہت پیسے بھی جمع کرتے ہیں اور دیگر اسباب اپنانے کی کوشش بھی کرتے ہیں مگر اللہ کی مرضی کے سامنے کسی کی مرضی نہیں چلتی جسے اللہ کے گھر سے بلاوا آتا ہے بس وہی اس کے گھر کا دیدار کرسکتا ہے ، پیسہ ہوتے ہوئے بھی رب کی مرضی کے سامنےآدمی بے بس ولاچار ہے، بہت سے لوگوں کو غربت و افلاس کی بناپر حج بیت اللہ اور زیارت مسجدنبوی نصیب نہیں ہو پاتی ۔بسا اوقات فقراء ومساکین احساس کمتری میں مبتلا ہوجاتے ہیں کہ اللہ نے ہمیں آج دولت دی ہوتی تو فلاں فلاں کی طرح ہم بھی حج کرتے، ہمیں بھی لوگ حاجی کہتے اور ہمارا بھی نام ہوتا۔ایسے بندوں کو میں یہ نصیحت کرتا ہوں کہ حج شہرت وناموری کا ذریعہ نہیں ہے ، اگر مالدار بھی شہرت کی خاطر حج کرے تو اس سے بہتر ہے کہ وہ غریب ہوتا اور اسے حج کرنے کا موقع نہیں ملتا کیونکہ عبادت میں شہرت و ناموری اعمال کی بربادی کا ذریعہ ہے اور جہنم میں لے جانے کا سبب بھی ہے ۔ہاں جو لوگ اللہ کی رضا کے لئے حج مبرور کرتے ہیں ایسے لوگ اللہ کے محبوب بندے ہیں ، اسی طرح جو غریب و مسکین لوگ اللہ کی رضا کے لئے حج کرنا چاہتے ہیں مگر غربت و افلاس کے سبب ان کی یہ آرزو پوری نہیں ہوتی ایسے بندوں کو بھی اللہ کی رحمت سے مایوس نہیں ہونی چاہئے ، اللہ نے اپنے بندوں کو مایوسی سے منع کیا ہے ۔ اس احکم الحاکمین نے کسی کے ساتھ زیادتی نہیں کی ، حج کے معاملہ میں بھی اس نے سب کے ساتھ انصاف کیا ۔ اگر کسی کواللہ نے مالدار بنایاہے تو کل قیامت میں اس سے پوچھا جائے گا کہ تونے مال کیسے کمایا اور کہاں خرچ کیا۔اور یہ بڑا کٹھن سوال ہوگا۔ جسے اللہ نے زیادہ مال نہیں دیا اس کے لئے آخرت میں آسانی ہی آسانی ہے کیونکہ مال کی آزمائش بہت سخت ہے۔مالداری اور غریبی دونوں میں رب کی حکمت پوشیدہ ہے۔*

*آئیے دیکھتے ہیں کہ اللہ رب العالمین نے حج و عمرہ میں سب کے ساتھ کیسے انصاف کیاچنانچہ اس نے اپنے محبوب پیغمبر محمدﷺ کے ذریعہ ہمیں ایسے اعمال کی خبر دی جو کرنے کے اعتبار سے معمولی ہیں مگر اجروثواب کے اعتبار سے میزان میں حج وعمرہ کے برابر ہیں چنانچہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کے فرامین کی روشنی میں نیچے بعض وہ اعمال ذکر کئے جاتے ہیں جن کی انجام دہی سے غریب وامیرسب کو حج وعمرہ کے برابر ثواب ملتاہے*

*(1)فجرکی نمازکے بعد سے طلوع شمس تک مسجد ہی میں ٹھہرنا اور پھر دو رکعت نماز پڑھنا:*
📚انس بن مالک رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے :من صلى الغداة في جماعة، ثم قعد يذكر الله حتى تطلع الشمس، ثم صلى ركعتين كانت له كأجر حجة وعمرة تامة تامة تامة۔(صحيح الترمذي: 586)
ترجمہ :
جس نے جماعت سے فجرکی نماز پڑھی پھر اللہ کے ذکر میں مشغول رہا یہاں تک کہ سورج طلوع ہوگیا پھر دو رکعت نماز پڑھی ، تو اس کے لئے مکمل حج اور عمرے کے برابرثواب ہے،

یہی حدیث الفاظ کی معمولی تبدیلی کے ساتھ اس طرح بھی وارد ہے،

📚من صلَّى صلاةَ الصبحِ في جماعةٍ ، ثم ثبت حتى يسبحَ للهِ سُبحةَ الضُّحى ، كان له كأجرِ حاجٍّ و معتمرٍ ، تامًّا له حجتُه و عمرتُه
(صحيح الترغيب:469)
ترجمہ: جس نے جماعت سے فجر کی نماز پڑھی اور (اسی جگہ) ٹھہرا رہا یہاں تک کہ اس نے چاشت کی نماز پڑھ لی تو اس کے لئے حج کرنے والے اور عمرہ کرنے والے کے برابر ثواب ہے یعنی مکمل حج اور مکمل عمرے کا ثواب ۔

*(2)جماعت سے نمازپڑھنے جانا اور نفل پڑھنےجانا:*
📚ابوامامہ رضی اللہ سے روایت ہے کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے :من مشي إلى صلاة مكتوبة في الجماعة فهى كحجة، ومن مشي إلى صلاة تطوعـ في رواية أبي داود ـ أي صلاة الضحى ـ فهي كعمرة تامة.
ترجمہ : جو آدمی جماعت سے فرض نمازپڑھنے نکلتاہے تو اس کاثواب حج کے برابرہے اورجو نفلی نماز کے لئے نکلتاہے ، ابوداؤد کی روایت میں ہے چاشت کی نماز کے لئے نکلتاہے تواسے مکمل عمرہ کا ثواب ملتاہے ۔
(الألباني صحيح الجامع 6556 •  حسن)
( أخرجه أبو داود (٥٥٨)، وأحمد (٢٢٣٠٤) بنحوه، والطبراني (٨/١٤٩) (٧٥٧٨) واللفظ له.

*(3)مسجدوں کے علمی مجالس میں شریک ہونا*
📚آپ صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے :
من غدا إلى المسجد لا يريد إلا أن يتعلم خيراً أو يُعَلِّمه، كان له كأجر حاج تاماً حجته۔
ترجمہ : جو مسجدکی طرف علم حاصل کرنے یاعلم سکھلانےکے لئے نکلتاہےتواسے مکمل حج کے برابر ثواب ملتا ہے،
(الهيثمي مجمع الزوائد ١‏/١٢٨  •  رجاله موثقون كلهم)(أخرجه ابن حبان في«المجروحين» ٢/١٥٦) (والطبراني _٨/١١١) (٧٤٧٣)،
(الألباني صحيح الترغيب 86 • حسن صحيح)

*(4)نمازکے بعد ذکرواذکار کرنا*
📚حضرت ابوھریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے انہوں نے کہا :
جاء الفقراء إلى النبي صلى الله عليه وسلم فقالوا: ذهب أهل الدثور بالدرجات العُلى والنعيم المقيم، يصلون كما نصلي ويصومون كما نصوم، ولهم فَضْلٌ من أموال يحجون بها ويعتمرون ويجاهدون ويتصدقون، قال: ألا أحدثكم بأمر إن أخذتم به أدركتم من سبقكم ولم يدرككم أحد بعدكم، وكنتم خير من أنتم بين ظهرانيه إلا من عمل مثله: تسبحون وتحمدون وتكبرون خلف كل صلاة ثلاثاً وثلاثين.(صحیح البخاری: 843)
ترجمہ : کچھ مسکین لوگ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آئے اور بولے کہ مال والے تو بلند مقام اورجنت لے گئے ۔ وہ ہماری ہی طرح نماز پڑھتے ہیں اور روزہ رکھتے ہیں ۔ اور ان کے لئے مال کی وجہ سے فضیلت ہے ، مال سے حج کرتے ہیں، اور عمرہ کرتے ہیں، اور جہاد کرتے ہیں، اور صدقہ دیتے ہیں ۔تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ کیا میں تمہیں ایسی بات نہ بتاؤں جس کی وجہ سے تم پہلے والوں کے درجہ پا سکو اور کوئی تمہیں تمہارے بعد نہ پاسکے اورتم اپنے بیچ سب سے اچھے بن جاؤ سوائے ان کے جو ایسا عمل کرے ۔ وہ یہ ہے کہ ہرنمازکے بعد تم تینتیس بار(33) سبحان اللہ تینتیس بار(33) الحمدللہ اورتینتیس بار(33) اللہ اکبرکہو۔

*(5) رمضان میں عمرہ کرنا :*
رمضان میں عمرہ کرنا حج کے برابر ہے یعنی حج کی طرح ثواب ملتا ہے ۔
📚نبی ﷺ نے ایک انصاریہ عورت سے فرمایا تھا:
فإذا جاء رمضانُ فاعتمِري . فإنَّ عُمرةً فيه تعدِلُ حجَّةً (صحيح مسلم:1256)
ترجمہ: جب رمضان آئے تو تم عمرہ کرلینا کیونکہ اس (رمضان ) میں عمرہ کرنا حج کے برابر ہے ۔
دوسری صحیح روایات میں ذکر میں ہے کہ رمضان میں عمرہ کرنا نبی ﷺ کے ساتھ حج کرنے کے برابرہے ۔
📚صحیح ابن خزیمہ اور ابوداؤد وغیرہ میں مروی ہے،
عبداللہ بن عباس ؓ کہتے ہیں کہ  رسول اللہ  ﷺ  نے حج کا ارادہ کیا، ایک عورت نے اپنے خاوند سے کہا: مجھے بھی اپنے اونٹ پر رسول اللہ  ﷺ  کے ساتھ حج کرائیں، انہوں نے کہا: میرے پاس تو کوئی ایسی چیز نہیں جس پر میں تمہیں حج کراؤں، وہ کہنے لگی: مجھے اپنے فلاں اونٹ پر حج کراؤ، تو انہوں نے کہا: وہ اونٹ تو اللہ کی راہ میں وقف ہے، پھر وہ رسول اللہ  ﷺ  کے پاس آئے، اور کہنے لگے: اللہ کے رسول! میری بیوی آپ کو سلام کہتی ہے، اس نے آپ کے ساتھ حج کرنے کی مجھ سے خواہش کی ہے، اور کہا ہے: مجھے رسول اللہ  ﷺ  کے ساتھ حج کرائیں، میں نے اس سے کہا: میرے پاس کوئی ایسی چیز نہیں جس پر میں تمہیں حج کراؤں، اس نے کہا: مجھے اپنے فلاں اونٹ پر حج کرائیں، میں نے اس سے کہا: وہ تو اللہ کی راہ میں وقف ہے، آپ  ﷺ  نے فرمایا:  سنو اگر تم اسے اس اونٹ پر حج کرا دیتے تو وہ بھی اللہ کی راہ میں ہوتا ۔
وإنَّها أمرَتْني أن أسألَك ما يعدِلُ حجَّةً معَكَ فقالَ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ أقرِئها السَّلامَ ورحمةَ اللَّهِ وبرَكاتِه وأخبِرْها أنَّها تعدِلُ حجَّةً معي يَعني عُمرةً في رَمضانَ
اس نے کہا: اس نے مجھے یہ بھی آپ سے دریافت کرنے کے لیے کہا ہے کہ کون سی چیز آپ  ﷺ  کے ساتھ حج کرنے کے برابر ہے؟ رسول اللہ  ﷺ  نے فرمایا:  اسے سلام کہو اور بتاؤ کہ رمضان میں عمرہ کرلینا میرے ساتھ حج کرلینے کے برابر ہے ۔
(سنن ابن ماجہ _1990)  صحیح
تخریج دارالدعوہ: 
تفرد بہ أبو داود ( تحفة الأشراف: ٥٣٧٤)، وقد أخرجہ: (صحیح البخاری/العمرة ٤(١٧٨٢)، صحیح مسلم/الحج ٣٦ (٢٢١) بدون ذکر: " أن الحج في سبیل اللہ "۔  (حسن صحیح  )

*(6) والدین کے ساتھ حسن سلوک کرنا :*
📚انس بن مالک رضی اللہ عنہ سے روایت ہے:
أن رجلاً جاء إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم وقال: إني أشتهي الجهاد ولا أقدر عليه، قال: هل بقي من والديك أحد؟ قال: أمي، قال: قابل الله في برها، فإن فعلت فأنت حاج ومعتمر ومجاهد.
ترجمہ : ایک آدمی رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور کہا میں جہاد کی خواہش رکھتاہوں مگر اس کی طاقت نہیں ۔ تو آپ نے پوچھا کہ تمہارے والدین میں سے کوئی باحیات ہیں ؟ تو اس نے کہا کہ ہاں میری ماں تو آپ نے بتایا کہ جاؤ ان کی خدمت کرو،تم حاجی ، معتمر اور مجاہد کہلاؤ گے ۔
(المنذري (ت ٦٥٦)، الترغيب والترهيب ٣‏/٢٩٢  •  إسناده جيد)
(العراقي (ت ٨٠٦)، تخريج الإحياء ٢‏/٢٧٠ • إسناده حسن)
(ابن عثيمين (ت ١٤٢١)، الضياء اللامع ٥٠١ • إسناده جيد)
📙بوصیری نے کہا کہ ابویعلی اور طبرانی نے اسے جید سند کے ساتھ روایت کیاہے۔(اتحاف الخیرہ:5/474) عراقی نے تخریج الاحیاء میں حسن اور منذری نے الترغیب والترہیب میں جید کہاہے۔

*(7) مسجد قبا میں نمازپڑھنا:*
جوشخص مسجد نبوی ﷺکی زیارت کرے،اس کے لئے مسنون ہے کہ وہ مسجد قبا کی بھی زیارت کرے اور اس میں بھی دورکعت نماز پڑھے کیونکہ نبی کریمﷺہر ہفتے قباکی زیارت کیا کرتے اور اس میں دو رکعت نماز ادا فرمایا کرتے تھے اور آپﷺ نے ارشادفرمایاہے کہ جو شخص اپنے گھر وضو کرے اورخوب اچھے طریقے سےوضو کرے اورپھر مسجد قبامیں آکر نماز پڑھے تواسے عمرہ کے برابر ثواب ملتا ہے ۔
،📚حدیث کے الفاظ یہ ہیں :
من تطَهَّرَ في بيتِهِ , ثمَّ أتى مسجدَ قباءٍ ، فصلَّى فيهِ صلاةً ، كانَ لَهُ كأجرِ عمرةٍ.
(سنن ابن ماجه:1412)
(الألباني صحيح الترغيب 1181 •  صحيح   )
ترجمہ: جو شخص اپنے گھر میں وضو کرے پھر مسجدِ قبا آئے اور اس میں نماز ادا کرے، تو اس کو عمرہ کے برابر ثواب ملے گا۔

📚مختصر الفاظ کے ساتھ روایت اس طرح بھی آئی ہے ۔ الصَّلاةُ في مسجدِ قُباءَ كعُمرةٍ
(صحيح الترمذي:324)
ترجمہ: مسجد قبا میں نماز پڑھنا عمرہ کے برابر ہے ۔
*نوٹ:*
یہاں یہ بات یاد رہے کہ دوسرے ممالک سےصرف مسجد قبا کے لئے زیارت کرکے آنے کا حکم نہیں ہے بلکہ یہ ان لوگوں کے لئے ہے جو مدینہ طیبہ میں رہتے ہوں یا سعودی عرب یا سعودی عرب سے باہر سے آنے والے مسجد نبوی کی زیارت پہ آئے ہوں۔
دور دراز سے سفر کر کے سپیشل مسجد قباء کی زیارت کیلئے آنا درست نہیں،
(اسکی مزید تفصیل کیلیے دیکھیے سلسلہ نمبر-367)

*(8) حاجی کا سامان سفر تیار کرنا یا ان کے گھروالوں کی خبرگیری کرنا:*
📚نبی ﷺ کا فرمان ہے :
من جهَّز غازيًا ، أو جهزحاجًّا ، أوخلَفه في أهلِه ، أوفطَّر صائمًا ؛ كان له مثلُ أجورِهم ، من غير أن ينقصَ من أجورِهم شيءٌ
(صحيح الترغيب:1078)
ترجمہ: جس نے مجاہد کا سامان سفر تیار کیا یا حاجی کا سامان سفر تیار کیا یا ان کے گھر والوں کی خبرگیری کی یا کسی روزے دار کو افطار کیا تو اس کے لئے ان ہی کے برابر اجر ہے اور ان کے یعنی غازی یا حاجی یا روزہ دار کے اجر میں ذرہ برابر کمی نہیں کی جائے گی۔

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*حج و عمرہ کے برابر ثواب سے متعلق ضعیف و موضوع روایات*

قارئین کرام ! یہ بات جان لیں کہ ہم نے اوپر جو احادیث بیان کی ہیں وہ ساری صحیح ہیں، ان پر عمل کرسکتے ہیں اور اللہ تعالی سے حج وعمرہ کے برابر اجروثواب کی امید کرسکتے ہیں ، نیز یہ بات بھی جان لیں کہ حج وعمرہ کے برابر ثواب سے متعلق بہت ساری دیگر روایات بھی آئی ہیں جو یا تو ضعیف ہیں یا موضوع جنہیں ہم طوالت کے خوف سے یہاں ذکر نہیں کر رہے،
تاہم چنداحادیث کی طرف اشارے کئے دیتے ہیں،
مثلا جمعہ والی مسجد میں فرض پڑھنا حج مبرور اور نفل پڑھنا حج مقبول ہے، مسجد نبوی میں نماز ادا کرنا حج کے برابر ہے، ماں کی قبر کی زیارت کرنا عمرہ کے برابرہے، رمضان میں دس دنوں کا اعتکاف دوحج اور دوعمروں کے برابرہے، جس نے مسجد کو صاف کیا اسے چارسوحج کا ثواب ہے، جو صبح وشام سو مرتبہ تسبیح بیان کرے اسے سوحج کا ثواب ہے،جو اپنے بھائی کی مدد کرے اس کے لئے حج وعمرہ کا ثواب ہے، جس نے فجر کی نماز جماعت سے پڑھی گویا اس نے آدم علیہ السلام کے ساتھ پچاس دفعہ حج کیا، عرفہ کے دن جمعہ ہونا سترحج سے افضل ہے، پیدل والوں کے لئے ستر حج اور سوار کے لئے تیس حج کا ثواب ہے، اللہ کی راہ میں ایک لمحہ پچاس یا ستر حج سے افضل ہے، اہل بیت کی قبروں کی زیارت کا ثواب ستر حج کے برابرہے، والدین کے چہرے کی طرف نظر رحمت سے دیکھنا حج مقبول ومبرور کے برابرہے، سورہ حج کی تلاوت حاجیوں کی تعداد کے برابر ثواب ہے، مغرب کے بعد چار رکعت نماز ادا کرنا حج کے برابر ہے، جو حج کے راستے میں مرگیا اسے ہرسال حج کا ثواب ملتا ہے، جس نے سورہ یسین پڑھی اسے بیس حج کا ثواب ہے،جس نے مغرب کی نماز جماعت سے پڑھی اسے حج مبرور اور عمرہ مقبول کا ثواب ہے ۔ اس قسم کی اور بھی بہت سی روایات ہیں جن میں بعض ضعیف اور بعض موضوع ہیں ۔
اے اللہ ! جنہیں تونے حج وعمرہ کی سعادت سے نوازا ان کی عبادتوں کو قبول فرما اور جنہیں حج وعمرہ کی سعادت نصیب نہیں ہوئی انہیں اس کے برابر اجروثواب سے نواز دے ۔آمین

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب ))

( مآخذ: محدث فورم
از مقبول احمد سلفی حفظہ اللہ )

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📚سوال- کسی خاص مسجد یا مقدس مقام کو متبرک سمجھنا یا وہاں نماز پڑھنے کیلئے دور دراز کا سفر کرنا کیسا ہے؟ اور کیا حج و عمرہ کیلئے جاتے ہوئے روضہ رسول، غار حرا، غار ثور وغیرہ کی زیارت کی نیت کر سکتے ہیں؟ نیز صحابہ کرام یا اولیائے کرام کی قبروں/مزاروں کی زیارت کیلئے جانا اور وہاں نوافل پڑھنا کیسا ہے؟

(جواب کیلئے دیکھیں سلسلہ نمبر-367)

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Shauhar Biwi (Husband wife) ko Umara Kaise karna chahiye?

Shauhar Biwi kaise Umara kare?
Umara Kaise kiya jata hai?
Assalamu alaikum wa rehmatullahi wa barkatahu
Umra Karne Ka tarika kya hai Jab Shauhar biwi umra Karne KO jate hai to kis tarha umra ada karenge..?
सवाल: उमरा करने का तारीक क्या है? जब शौहर बीवी उमरा करने जायेंगे तो किस तरह उमरा अदा करेंगे?
*جواب تحریری

*حج و عمرہ کا مسنون طریقہ قرآن اور حدیث کی روشنی میں* :

{وَ لِلّٰہِ عَلَی النَّاسِ حِجُّ الْبَیْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیْہِ سَبِیْلًا وَ مَنْ کَفَرَ فَاِنَّ اللّٰہَ غَنِیٌّ عَنِ الْعٰلَمِیْنَ}

''اللہ کے لیے ان لوگوں پر بیت اللہ کا حج کرنا فرض ہے جو اس کی طرف راستے کی استطاعت رکھتے ہوں اور جو کفر کرے تو بلاشبہ اللہ جہان والوں سے بے نیاز ہے۔''

(آل عمران:97۔)

'مَنْ حَجَّ لِلّٰہِ فَلَمْ یَرْفُثْ وَلَمْ یَفْسُقْ رَجَعَ کَیَوْمِ وَلَدَتْہُ أُمَّہٗ'

''جس نے اللہ کے لیے حج کیا، پس فحش کلامی اور اللہ کی نافرمانی سے بچا تو وہ (گناہ سے پاک ہو کر) ایسے لوٹے گا جیسے شکم مادر سے پیدا ہونے کے دن تھا۔''
(صحیح البخاري: 1521، صحیح مسلم: 1350۔)

'لَبَّیْکَ، اَللّٰہُمَّ لَبَّیْکَ، لَبَّیْکَ لاَ شَرِیکَ لَکَ، لَبَّیْکَ، إِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَۃَ لَکَ وَالْمُلْکَ، لَا شَرِیکَ لَکَ'

''میں بار بار حاضر ہوں، اے اللہ میں بار بار حاضر ہوں، میں بار بار حاضر ہوں، آپ کا کوئی شریک نہیں، میں بار بار حاضر ہوں۔ بے شک تعریف آپ ہی کے لیے ہے، نعمت آپ ہی کی ہے، بادشاہی آپ کے لیے ہے، آپ کا کوئی شریک نہیں۔''

عمرہ کے ارکان :

1 لباسِ احرام پہننے کے بعد نیت کرنا اور 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً' کہنا۔

عورت اپنے عام باپردہ لباس میں عمرہ کی نیت کرے 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً' کہے۔

2 بیت اللہ کا طواف کرنا۔ (سات چکر لگانا)

3 صفا و مروہ کی سعی کرنا۔ (بخاری و مسلم)

حج کے ارکان :

1 نیت کرنا

('حج تمتع' کرنے والا میقات سے عمرہ کی نیت کر کے 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً' کہے، پھر آٹھ ذوالحجہ کو دوبارہ مکہ میں اپنی منزل سے لباس احرام پہن کر حج کی نیت کرے اور 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ حَجًّا' کہے،

'حج اِفراد کرنے والا اگر میقات سے باہر رہتا ہے تو میقات سے حج کی نیت کر کے 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ حَجًّا' کہے۔ اور اگر میقات کے اندر رہتا ہے تو اپنی رہائش سے حج کی نیت کر کے 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ حَجًّا' کہے۔

'حج قِران کرنے والا میقات سے حج اور عمرہ دونوں کی نیت کر کے 'اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً وَّ حَجًّا' کہے۔

2 میدان عرفات میں ٹھہرنا۔

3 عورتو اور ضعیفوں کے علاوہ باقی لوگوں کے لیے نمازِ فجر مزدلفہ میں ادا کرنا۔

4 طواف زیارت کرنا۔

5 صفا اور مروہ کی سعی کرنا۔ (بخاری و مسلم)

عمرہ کے واجبات :

1 میقات سے لباسِ احرام پہن کر احرام (نیت) باندھنا۔

2 عمرہ کی تکمیل پر سارے سر کے بال چھوٹے کرانا یا سر منڈانا۔ (بخاری و مسلم)

حج کے واجبات :

1 میقات سے احرام (نیت) باندھنا۔

2 غروب آفتاب تک عرفات میں ٹھہرنا۔

3 دس ذوالحجہ (قربانی) کی رات مزدلفہ میں گزارنا۔

4 دس ذوالحجہ کو صرف بڑے جمرہ کو اللہ اکبر کہہ سات کنکریاں مارنا اور گیارہ اور بارہ ذوالحجہ کو تینوں جمرات کو بالترتیب اللہ اکبر کہہ کر سات سات کنکریاں مارنا۔

5 گیارہ اور بارہ ذوالحجہ کی رات منیٰ میں گزارنا۔

6 سارے سر کے بال چھوٹے کرانا یا سر منڈانا اور یہی افضل ہے۔
7 طوافِ وداع کرنا۔ (مسلم)

نیت اور احرام باندھنے کا طریقہ :

حج یا عمرہ کا ارادہ رکھنے والے کے لیے احرام (نیت) باندھنے سے پہلے میقات پر یا میقات سے پہلے غسل کرنا اور بدن کو خوشبو لگانا مستحب ہے اور اگر ممکن ہو تو بغلوں کے بال، زیر ناف بال بھی صاف کر لیے جائیں اور مونچھیں اور ناخن تراش لیں۔ مرد احرام کے لباس کے طور پر دو چادریں استعمال کریں افضل یہ ہے کہ یہ چادریں سفید رنگ کی ہوں۔ جبکہ عورتیں اپنے عام باپردہ لباس ہی میں حج یا عمرہ کی نیت کریں۔ دل سے اپنے حج یا عمرہ کی نیت کریں اور تلبیہ کہیں، نیز اگر کوئی آدمی کسی کی طرف سے حج کررہا ہو تو وہ نیت کرنے کے ساتھ 'اللہم لبیک حجا' کہتے ہوئے اس شخص کا نام بھی ذکر کرے۔ (بخاری، ابو داود، ترمذی)

نوٹ: اگر حج و عمرہ کے لیے جانے والے کو مکہ مکرمہ تک پہنچنے میں کسی قسم کی رکاوٹ کا خدشہ ہو تو اسے نیت کرتے وقت یہ کہنا چاہیے 'اَللّٰہُمَّ مَحِلِّي حَیْثُ حَبَسْتَنِي' پھر اگر وہ مکہ نہ پہنچ سکا تو بغیر 'دم' دیے حلال ہوجائے گا۔ (یعنی احرام کھول سکتا ہے)۔ (بخاری)

حالت احرام میں ممنوع کام اور ان کا کفارہ :

1 جسم کے کسی حصے سے بال اکھاڑنا، کاٹنا یا مونڈھنا۔

2 ناخن تراشنا۔

3 خوشبو لگانا۔

4 مرد کا سر کو ڈھانپنا۔

5 مرد کا جسمانی ڈھانچے کے مطابق بنے، یعنی سلے ہوئے کپڑے پہننا (جیسے شلوار قمیص، بنیان، کوٹ، سویٹر، پتلون، پاجامہ وغیرہ) جبکہ عورت کا دستانے اور نقاب پہننا۔(بخاری) تاہم اگر کسی کے پاس دو چادریں نہیں ہیں تو وہ شلوار قمیص وغیرہ بھی پہن سکتا ہے۔

6 جنگلی (وحشی) جانور کا شکار کرنا یا شکار کرنے میں کسی کی مدد کرنا۔

7 پیغامِ نکاح بھیجنا، نکاح کرنا یا کرانا۔ (مسلم)

8 بیوی سے بوس و کنار کرنا، شہوت کی باتیں کرنا۔

9 بیوی سے ہم بستری (جماع) کرنا۔

اگر یہ ہم بستری دس ذوالحجہ کو جمرہ کبریٰ کو کنکریاں مارنے سے پہلے تھی تو اس کا:

1 حج باطل ہوجائے گا۔

2 حج کے بقیہ کام پورے کرے گا۔

3 اگلے سال دوبارہ حج کرے گا۔

4 ایک اونٹ یا گائے حرم کی حدود میں ذبح کرکے فقرائے مکہ میں تقسیم کرے گا۔

اور اگر ہم بستری دس تاریخ کو جمرہ کبریٰ کو کنکریاں مارنے کے بعد کی ہے تو اس کا حج تو صحیح ہوگا لیکن اس کو 'دم' دینا ہوگا۔ (حاکم، بیہقی، مؤطا)

نوٹ: اگر عورت کو حالت احرام میں حیض یا نفاس شروع ہو جائے تو وہ بیت اللہ کے طواف کے سوا حج اور عمرہ کے بقیہ تمام ارکان و واجبات ادا کرے گی۔ (بخاری و مسلم)

حاجی کے آٹھ تاریخ سے پہلے کرنیوالے کام:

'حج اِفراد' کرنے والے کے کام:

1 میقات سے حج کی نیت کرنا اور 'اَللّٰہُمَّ لَبَیْکَ حَجًّا' کہنا، مکہ والے لوگ حج کے لیے میقات کی بجائے اپنی رہائش گاہ ہی سے لباسِ احرام پہن کر نیت کریں گے، چاہے ان کی رہائش مستقل ہو یا عارضی، البتہ عمرہ کے لیے انہیں حدود حرم سے نکل کر لباسِ احرام پہن کر نیت کرنی ہو گی۔

2 مکہ پہنچ کر طواف کرنا، یعنی بیت اللہ کے گرد سات چکر لگانا اس طواف کو طوافِ قدوم کہتے ہیں۔ اس طواف کے ابتدائی تین چکروں میں رَمل کرنا، یعنی کندھے ہلاتے ہوئے آہستہ آہستہ دوڑنا۔

3 صفا اور مروہ کی 'سعی' کرنا، اگر 'حج اِفراد' کرنے اولے نے 'طواف قدوم' کے قت سعی نہ کی ہو یا پھر وہ اپنے گھر سے سیدھا منیٰ کی طرف چلا گیا ہو تو اسے 'طواف زیارت' کے بعد سعی کرنا ہوگی اور وہ قربانی کے دن تک اپنے احرام میں ہی رہے گا۔ (بخاری و مسلم)

'حج قِران' کرنے والے کے کام:

1 قربانی ساتھ لے کر یا قربانی کا کوپن لے کر میقات سے لباسِ احرام پہن کر نیت کرے 'اَللّٰہُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً وَّ حَجًّا' کہے۔

2 مکہ پہنچ کر 'طواف قدوم' کرنا۔

3 صفا اور مروہ کی 'سعی' کرنا، اگر اس دن سعی نہ کرسکا تو اسے 'طواف زیارت' کے بعد بھی اسے کیا جاسکتا ہے۔

4 یہ شخص قربانی کے دن تک احرام ہی میں رہے اور احرام کے ممنوع کاموں سے بچے۔ (بخاری و مسلم)

'حج تمتع' کرنے والے کے کام :

1 میقات سے لباس احرام پہن کر نیت کر کے 'اَللّٰہُمَّ لَبَّیْکَ عُمْرَۃً' کہنا۔

2 'طواف قدوم' کرنا (یہی طواف عمرہ بھی ہے)

3 صفا اور مروہ کی سعی کرنا۔

4 سارے سر کے بال چھوٹے کرانا یا سر منڈانا۔

5 حالت احرام سے نکل جانا (بخاری و مسلم)

فائدہ1:

بیت اللہ کا 'طواف' کرتے وقت ہر چکر میں 'رکن یمانی' اور 'حجر اسود' کے درمیان یہ دعا پڑھنا مستحب ہے:

{رَبَّنَآ اٰتِنَا فِی الدُّنْیَا حَسَنَۃً وَّ فِی الْاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّ قِنَا عَذَابَ النَّارِ}

'' نیز اس کے علاوہ ہر چکر کی کوئی دعا مخصوص نہیں، جو چاہیں اللہ تعالی سے دعائیں کریں۔''

( البقرۃ 201، أبوداود)

فائدہ2:

صفاپر یہ دعا پڑھنا مستحب ہے۔

{اِنَّ الصَّفَا وَ الْمَرْوَۃَ مِنْ شَعَآئِرِ اللّٰہِ} (سورئہ بقرہ: 158)

اس کے بعد یہ الفاظ کہے:

'أبْدَأُبِمَا بَدَأَ اللّٰہُ بِہٖ'

پھر قبلہ رخ ہوکر تین مرتبہ 'اَللّٰہُ أَکْبَر' کہے،

اور تین بار یہ دعا پڑھے

'لَا إِلٰہَ إِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیکَ لَہٗ لَہٗ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ یُحْیِي وَ یُمِیتُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَيْئٍ قَدِیرٌ، لَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیکَ لَہٗ أنْجَزَ وَعْدَہٗ وَنَصَرَ عَبْدَہٗ وَھَزَمَ الْأَحْزَابَ وَحْدَہٗ'

اور ان مذکورہ دعائوں کے درمیان میں قبلہ رخ ہوکر ہاتھ اٹھا کر جو دل چاہے دعا کرے۔ اور 'مروہ' پر بھی یہی دعا تین مرتبہ 'اَللّٰہُ أَکْبَر' کہہ کر پڑھے۔ (مسلم، ابو داود، نسائی)

یاد رہے کہ مردوں کے لیے دو سبز نشانوں کے درمیان دوڑنا مستحب ہے۔ (نسائی، ابن ماجہ)

آٹھ ذوالحجہ کا دن :
منیٰ کی طرف جانا، یاد رہے کہ 'حج تمتع' کرنے اولا آٹھ تاریخ کو اپنی رہائش گاہ ہی سے لباسِ احرام پہن کر حج کی نیت کر کے یہ الفاظ کہے: 'اَللّٰہُمَّ لَبَّیْکَ حَجًّا' منیٰ میں اپنے اپنے وقت پر ظہر، عصر، مغرب، عشاء اور صبح کی نمازیں قصر کر کے دو دو رکعت ادا کرے، جبکہ مغرب کی تین رکعتیں پوری پڑھے۔ (بخاری و مسلم)

نو ذوالحجہ(عرفہ) کا دن :
1 مستحب ہے کہ سورج طلوع ہوجانے کے بعد تلبیہ اور تکبیریں کہتے ہوئے عرفات کی طرف جائیں (وہاں حجاج ایک اذان اور دو اقامتوں کے ساتھ ظہر ہی کے وقت میں ظہر اور عصر کی نماز، قصر کر کے دو دو رکعت اداکریں اور ہر نماز کے لیے الگ الگ تکبیر (اقامت) کہی جائے، پھر سورج غروب ہونے تک عرفات میں رہے اور اللہ کے ذکر، قرآن مجید کی تلاوت اور اللہ تعالیٰ سے دعا کرنے میں مشغول رہے۔ دعا میں قبلہ کی طرف منہ کرنا مستحب ہے نہ کہ جبل رحمت کی طرف، نیز حاجی کے لیے نو ذوالحجہ (یوم عرفات) کا روزہ رکھنا غیر مشروع ہے۔ 'وادیٔ عرنہ' میدان عرفات کی حدود میں داخل نہیں، لہٰذا وہاں ظہر اور عصر کی نماز کے بعد ٹھہرنا صحیح نہیں۔ اسی طرح جبل رحمت پر چڑھنا بھی مستحب نہیں)۔ اس دن یہ دعا پڑھنا سابقہ انبیاء اور آپﷺ کی سنت ہے:
'لَا إِلٰہَ إِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیکَ لَہٗ لَہُ الْمُلْکُ وَلَہٗ الْحَمْدُ یُحْیِي وَ یُمِیتُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَيْئٍ قَدِیر'
'' البتہ لیٹ ہونے والے اگر دس ذوالحجہ کی رات کو طلوع فجر سے پہلے میدان عرفات میں پہنچ جائیں اور پھر فجر کی نماز مزدلفہ میںادا کرے تو ان کا رکن بھی ادا ہوجائے گا۔''
(صحیح البخاري و صحیح مسلم ۔)
2 غروب آفتاب کے بعد مزدلفہ جانا۔ وہاں حاجی ایک اذان اور دو الگ الگ تکبیروں (اقامتوں) کے ساتھ مغرب اور عشاء کی نمازیں جمع کرکے قصر (یعنی مغرب کی تین رکعتیں، عشاء کی دو رکعتیں) ادا کرے۔ (بخاری و مسلم)
(ا) حاجی مزدلفہ میں یہ رات آرام کرتے ہوئے گزارے، وہاں فجر کی نماز ادا کرے او فجر کے بعد کثرت سے اللہ تعالیٰ کا ذکر اور دعا کرے حتیٰ کہ خوب سفیدی ہوجائے اور سورج طلوع ہونے سے پہلے منیٰ کی طرف نکل جائے۔
یاد رہے کہ مشعر حرام کے پاس ٹھہرنا اور دعا کرنا مستحب ہے۔ کمزور عورتوں، عمر رسیدہ اور معذور و ضرورت مند لوگوں کے لیے چاند کے غروب ہوجانے (آدھی رات) کے بعد بھی مزدلفہ سے منیٰ کو جانا جائز ہے۔ (بخاری ، مسلم، زاد المعاد)
(ب) بڑے جمرے کو مارنے کے لیے سات کنکریاں اگر آسانی سے مل جائیں تو مزدلفہ سے لے لے، یہ کنکریاں منیٰ کے میدان سے بھی لی جاسکتی ہیں جن کا حجم چنے کے دانے سے کچھ بڑا ہو۔ واضح رہے کہ ان کنکریوں کو دھونا بدعت ہے۔

دس ذوالحجہ کا دن :
سورج طلوع ہونے سے پہلے منیٰ کی طرف جانا۔ وہاں حاجی یہ چار کام کرے:
1 بڑے جمرہ کو ایک ایک کرکے سات کنکریاں 'اللہ اکبر' کہہ کر مارے اور اس کے بعد تلبیہ کہنا بند کردے۔
2 قربانی کرنا۔
3 سارے سر کے بال چھوٹے کرانایا منڈانا، اور یہی افضل ہے۔ (بخاری، مسلم، ابن خزیمہ)
4 'طواف زیارت' کرنا، اگرچہ اس کو مجبوری کے تحت 'طواف وداع' تک مؤخر کرنا بھی جائز ہے لیکن اگر 'طواف وداع' کے ساتھ 'طواف زیارت' کی بھی نیت کرلے، دونوں ادا ہوجائیں گے۔
وضاحت1: 'حج اِفراد' اور 'حج قران' کرنے والے نے اگر 'طواف قدوم' کے ساتھ 'سعی' نہیں کی تو وہ 'طواف زیارت' کے ساتھ 'سعی' کرے۔
وضاحت2: 'حج قران' اور 'حج تمتع' کرنے والا قربانی کرے۔
وضاحت3: مکہ کے رہائشی پر قربانی نہیں ہے کیونکہ اس کے لیے حج تمتع یا قِران نہیں ہے۔
وضاحت4: دس تاریخ کو جمرہ کبریٰ کو کنکریاں مار لینے سے حاجی پر احرام کی پابندیاں ختم ہوجاتی ہیں۔ صرف اپنی بیوی سے ہم بستری نہیں کرسکتا البتہ 'طواف زیارت' اور 'سعی' کر لینے کے بعد یہ کامل طور پر حلال ہو جائے گا اور اب اسے بیوی سے ہم بستری کرنا بھی جائز ہے۔ یاد رہے کہ دس تاریخ کے چار کاموں کی مذکرہ ترتیب مستحب ہے شرط اور فرض نہیں اور نہ ہی ترتیب چھوڑنے سے 'دم' واجب ہوتا ہے۔ (بخاری و مسلم، ابو داود، ابن خزیمہ)

گیارہ ذوالحجہ کا دن :
1 گیارہ ذوالحجہ کی رات منیٰ میں گزارنا واجب ہے لیکن چرواہوں کے لیے اور حجاج کو پانی پلانے والوں کے لیے رخصت ہے۔
2 زوال کے بعد تینوں جمرات کو اللہ اکبر کہہ کر ترتیب کے ساتھ ہر جمرے کو سات کنکریاں مارے، یاد رہے کہ صرف چھوٹے اور درمیانے جمرے کو کنکریاں مارنے کے بعد دعا کرنا مستحب ہے۔ (مسلم، ابو داود، مسند احمد، ابن خزیمہ)
نوٹ: جس حاجی کو گنتی میں شک پڑ جائے تو جس گنتی پر اسے یقین ہے اس پر اعتماد کرتے ہوئے باقی گنتی مکمل کرے۔

بارہ ذوالحجہ کا دن :
1 بارہ ذوالحجہ کی رات بھی منیٰ میں گزارنا واجب ہے لیکن چرواہوں کے لیے اور حجاج کو پانی پلانے والوں کے لیے رخصت ہے کہ وہ مکہ یا اپنے ریوڑ کے پاس جائے۔
2 گیارہ تاریخ کی طرح تینوں جمرات کو کنکریاں مارنا۔
اب اگر کوئی مکہ جانا چاہے تو وہ غروب آفتاب سے پہلے پہلے منیٰ کی حدود سے نکل جائے اور جب اپنے ملک کو واپس جانا چاہے تو 'طوافِ وداع'' کرلے، البتہ تیرہ تاریخ کی کنکریاں مارنا افضل ہے۔ (سورئہ بقرہ: 203، ابوداود، مؤطا)

تیرہ ذوالحجہ کا دن :
1 گیارہ اور بارہ ذوالحجہ کی طرح تیرہ ذوالحجہ کو بھی تینوں جمرات کو کنکریاں مارنا۔
2 مکہ چھوڑتے وقت 'طواف وداع' کرنا واجب ہے۔
نوٹ: حیض اور نفاس والی عورتوں پر 'طواف وداع' کے لیے طہارت حاصل ہونے تک انتظار کرنا لازم نہیں۔ وہ بغیر طواف وداع کیے جاسکتی ہیں۔ (بخاری، مسلم، ابو داود)
حاجی پر دم کب لازم آتا ہے؟
1 حج تمتع یا قران کرنے والے پر دم لازم آتا ہے۔
2 کسی بیماری یا تکلیف دہ چیز کی وجہ سے حاجی سر مونڈھ لے تو اس پر فدیہ لازم آتا ہے، یعنی وہ روزے رکھے یا صدقہ کرے یا خون بہائے (بکری وغیرہ ذبح کرے)
3 خشکی کے جانور کے شکار کرنے پر دم لازم آتا ہے۔
4 احرام (نیت) حج باندھنے کے بعد جب وہ کسی بیماری وغیرہ کی وجہ سے مناسک حج ادا نہ کر سکے اور نیت کرتے وقت حلال ہونے کی شرط بھی نہیں لگائی ہے تو اس پر دم دینا لازم ہے۔
5 جمرئہ کبری کی رمی سے پہلے اگر حاجی نے اپنی بیوی سے جماع کر لیا۔ تو اس پر اونٹ ذبح کرنا لازم ہے اور اس کا حج فاسد ہو گیا اور اگر جمرئہ کبری کو کنکریاں مارنے کے بعد جماع کیا تو حج اس کا درست ہے۔ لیکن ایک بکری ذبح کرنا اس پر لازم ہے۔

مدینۃ الرسولﷺ کا مبارک سفر:
یہ بات اچھی طرح ذہن نشین رہے کہ حج مکہ مکرمہ میں پورا ہوجاتا ہے، لیکن جس شخص کو اللہ تعالیٰ حج جیسی عظیم سعادت نصیب فرمائے تو وہ مسجد نبوی اور مدینہ نبویہ کی زیارت سے کیوں محروم رہے۔ یہ اللہ تعالیٰ کے پیارے رسولﷺ کی مسجد اور آپ کا شہر ہے لہٰذا حاجی اگر مدینہ نبویہ کی طرف سفر کرنا چاہے تو مسجد نبوی کی زیارت کی نیت کرے۔
'مسجد نبوی' کی زیارت: جب حاجی مسجد نبوی میں داخل ہو تو تحیۃ المسجد یعنی دو رکعتیں ادا کرے، البتہ ریاض الجنۃ میں دو نفل پڑھنا افضل ہیں۔ (بخاری و مسلم)
البتہ مدینہ نبویہ پہنچ کر اس کے لیے درج ذیل زیارتیں مشروع ہیں۔ (بخاری و مسلم)

1 'قبر رسولﷺ' کی زیارت:

حاجی آپﷺ کی قبر مبارک کے پاس جائے، انتہائی ادب احترام کے ساتھ دھیمی آواز میں اَلسَّلَامُ عَلَیْکَ یَا رَسُولَ اللّٰہِ وَرَحْمَۃُ اللّٰہِ وَبَرَکَاتہ کے الفاظ سے کہے پھر حضرت ابوبکر صدیق رضی اللہ عنہ اور حضرت عمر فاروق رضی اللہ عنہ کو بھی اَلسَّلَامُ عَلَیْکَ یَا أَبَا بَکْرٍ، اَلسَّلَام عَلَیْکَ یَا عُمَرُ کے الفاظ کہے۔ (مؤطا)
یاد رہے کہ اہل قبور کو مسنون سلام اور دعا کے الفاظ یہ ہیں:
اَلسَّلَامُ عَلٰی أَھْلِ الدِّیَارِ مِنَ الْمُؤمِنِینَ وَالْمُسْلِمینَ، وَیَرْحَمُ اللّٰہُ الْمُسْتَقْدِمِینَ مِنَّا وَالْمُسْتَأْخِرِینَ، وإنَّا إِنْ شَائَ اللّٰہُ بِکُمْ لَلَاحِقُونَ، اسی طرح یہ الفاظ بھی ثابت ہیں۔ 'اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ أَہْلَ الدِّیَارِ مِنَ الْمُؤْمِنِینَ وَ الْمُسْلِمِینَ وَإِنَّا إنْ شَائَ اللّٰہُ بِکُمْ لَلَاحِقُونَ، أسْئَالُ اللّٰہَ لَنَا وَلَکُمْ الْعَافِیَۃَ' (مسلم، ابن ماجہ)

2 'بقیع غرقد' کی زیارت:

یہ مدینہ نبویہ کا قبرستان ہے۔ حاجی وہاں جائے، صحابۂ کرام رضی اللہ عنہم اور تمام مؤمنین کے لیے استغفار اور بلندیٔ درجات کی دعا کرے۔ (مسلم)

3 'شہدائے احد' کی زیارت:

حاجی شہدائے احد کی قبروں کے پاس جائے، ان کے درجات کی بلندی کے لیے دعا کرے اور قبرستان والی دعا پڑھے۔

4 'مسجد قبا' کی زیارت:

حاجی باوضو ہوکر مسجد قبا جائے اور وہاں دو نفل ادا کرے جس کا ثواب ایک عمرہ کے برابر ہے۔
(نسائی)

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