The Last Meesanger Of Islam Mohammad SAllahu Alaihe wasallam in Hinduism.
हज़रत मुहम्मद ﷺ और भारतीय धर्म-ग्रन्थ
Mohammad Saw and Hinduism Scriptures in Hindi
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अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है। इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है ये सभी विशेषताएँ मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन में मिलती है। तथा अंतिम बुद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डा. उपाध्याय द्वारा इस विषय में प्रस्तुत तथ्य यहाँ ज्यों के त्यों प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
‘कुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि ‘तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया।’ मुहम्मद साहब ऋषि पद प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे। (‘व-व-ज-द-क- आ-इलन फ़-अग़्ना’) (और तुमको निर्धन पाया, बाद में तुमको धनी कर दिया) मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध ऊंटनी ‘अल-कुसवा’ थी, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल-बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊंटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास सात बकरियां थीं, तो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसे नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसे नहीं होती। (Life of Mohomet-Sir William Muir ‘Cambridge, Edition P. 545-54) उनकी सात बाग़ें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं।
मुहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुएं भी थे। इतना स्मरणीय है कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती थी, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मुहम्मद साहब की 12 पत्नियां, चार लड़कियां और तीन लड़के थे। बुद्ध के अंतर्गत पत्नी और संतान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाम मात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था। (Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) P. 547)
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उनपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत् था। (The fare of the desert seemed most congenial to hi, even when he was sovereign of Arabia.)
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।
मुहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। (Mohammad and Mohammadenism by Bosworth smith, P. 98)
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में कुरआन में दूसरी सूरा में उल्लेख है-
‘‘ऐ आस्तिको! (मुसलमानों) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उसपर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इसमाईल और याकूब पर और उनकी संतान (ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई, उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते हैं, और हम उसी एक ईश्वर के माननेवाले हैं।’’ (कुरआन, सूरा-2, आयत 236)
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा। (कुरआन, सूरा-22, आयत 4)
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने आमरण उनका संग नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो। संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी।
मुहम्मद साहब का कोई भी गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें, ‘उम्मी’ भी कहा जाता है।
ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अंतःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष है (According to some of the modern Buddhist Scholars the Bo-tree of the Buddha Maierya is the Iron wood-tree (Mohammad in the Buddhist scriptures. P. 64) ।
हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रेय’ का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ. 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है। (वमा अर्सल्ना-क-इल्ला रहमतल्लिल आलमीन) (कुरआन, सूरा-11, आयत 107) (ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।) जिसका अर्थ है-‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे एक घुड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता (In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade in hundred years.(Mohammad in the Buddhist Scriptures, Page 79)। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आँख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे (If the turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (Ther Life of Mahommad by William Muir, Page 511, 512)। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
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:fountain:⚖ डा. एम. ए. श्रीवास्तव ⚖:fountain:
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हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रेय’ का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ. 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है। (वमा अर्सल्ना-क-इल्ला रहमतल्लिल आलमीन) (कुरआन, सूरा-11, आयत 107) (ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।) जिसका अर्थ है-‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे एक घुड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता (In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade in hundred years.(Mohammad in the Buddhist Scriptures, Page 79)। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आँख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे (If the turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (Ther Life of Mahommad by William Muir, Page 511, 512)। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
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