Qatar Ke Fifa World Cup ka Boycott kyu kiya ja raha hai?
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क़तर मे होने वाले फीफा वर्ल्ड कप का वेस्टर्न परस्त क्यों बॉयकॉट कर रहे है?
वो जुमले जिसको सुनकर वेस्टर्न पाखंडी, यूरोपीय कट्टरपंथी, लेफ्टिस्ट, देशी लिबरल्स, फिरंगी परस्त के होश उड़ गएलोगो ने पहले क़तर का मजाक उराया था, उसको कट्टरपंथी, रूढ़िवादी और दकियानुसी कहने मे कोई कसर नही छोड़ा था।
जब क़तर को फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप की मेजबानी अवार्ड हुआ तो लोगों ने खूब मजाक बनाया कि कतर के पास स्टेडियम, क्लब वगैरह कुछ भी नहीं है, कैसे कराएगा वर्ल्ड कप?
सच बताऊँ तो ये सब ना मुमकिन था लेकीन क़तर ने कर दिखाया, #लूसैल नाम का आज एक शहर है वह रेगिस्तान था, आज स्मार्ट_सिटी है।
#फीफा_वर्ल्डकप_2022 की मेजबानी कर रहे क़तर ने बे मिशाल काम कर दिखाया, उसके हौसले व् जज़्बे को आज दुनिया सलाम कर रही है.. वो अपनी रवायतों से समझौता करने को कतई तैयार नहीं हैं, भले ही इस मेगा इवेंट के लिए रिकॉर्ड $220 बिलियन की भारी रकम खर्च कर रहा है, मगर समझौते को तैयार नही।
क़तर हुकूमत का कुछ ऐसा अंदाज रहा ।
जब आप किसी के घर मेहमान बन कर जायेंगे तो उस घर के क़ानून और कायदे आपको मानना पड़ेंगे।
क़तर ने दुनिया को सिखाया मेहमां नवाजी...
मेजबानी कैसे होती है?
फीफा वर्ल्ड मैच के पहले दिन अल बैत स्टेडियम मे मेहमनो, खेलड़ियो और देखने वालो को मशक्, ऊद और अतर फ्री मे तोहफा दिया गया , खास बात यह है के इतनी महंगे तोहफे और वह भी बगैर बादशाह की तस्वीर के.... लोकतंत्र के राजनेता कुछ भी करने से पहले सोते जागते जनता को लालच देकर वोट लेता है.. वैसा ही जैसे गोद मे पड़े बच्चे को खिलौने देकर बहला दिया जाता है... और सरकार बनंने के बाद अवाम को अपने पैरो के आगे झुकाता है।
कही कही जम्हूरियत मे तो वादा करके वोट लेने के बाद वादा खिलाफ़ी होती है।
क़तर ने रचा इतिहास / दुनिया को क्या पैगाम दिया है?
क़तर ने इतिहास रच दिया, एशिया का पहला देश जो अकेले ही विश्वकप का आयोजन करवा रहा है… मैच देखने वाले हर आम व खास मेहमानों/दर्शकों को मुश्क व ऊद जैसे महंगे इत्र, टीशर्ट, आदि जैसे गिफ्ट से भरा थैला दिया…
लेकिन ये क्या?
किसी लोकतांत्रिक देशो के राजनेताओ व हुक्मरानो के जैसे
इतने महंगे गिफ्ट पर क़तर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी का तो फोटो तक नहीं है?
इसके साथ साथ
फुटबॉल विश्व कप का उद्घाटन करने वाले विकलांग #गनीम_अल_मुफ़्ताह है..
इस उद्घाटन समारोह को दुनिया के 500 प्रमुख चैनलों पर एक साथ दिखाया गया.
इतिहास में पहली बार वर्ल्ड कप की शुरुआत क़तर ने एक विकलांग द्वारा उद्घाटन करा कर दुनिया भर को एक अहम पैगाम दिया है, जो उन लोगो पर तमाचा जो अरब मुमालिक को कट्टरपंथी कहते है।
आखिर यह क्यों कहा जा रहा है क़तर का बॉयकॉट करो?
आज से 12 साल पहले क़तर को फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए नामजद किया गया था।
इतने दिनों मे नये नये फाइव स्टार्स होटेल्स, एरपोर्ट, मेट्रो लाइंस, स्टेडियम, क्लब, रिहायशी इलाके और फन ज़ोन जैसे इंफ्रेस्ट्रॅक्चर बनवाये, इन सब पर 220 बिलियन डॉलर्स तक खर्च किया जो के अब तक का सबसे महंगा वर्ल्ड कप है।
इससे पहले
- रूस 2018 - $11.6 बिलियन (b)
- ब्राज़ील 2014- $15b
- साउथ अफ्रीका 2010- $3.6b
- ज़र्मनी 2006 - $4.3b
- जापान 2002 - $7b
- फ्रांस 1998 - $2.3b
- अमेरिका 1994 - $0.5 b
इस रिपोर्ट से यह साबित होता है के क़तर फीफा वर्ल्ड कप पर 220 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करके पहले पायदान पर आ गया है।
इन दिनो क़तर एरपोर्ट दुनिया का सबसे व्यस्त एरपोर्ट होंगे, जहाँ रोज 900 से ज्यादा यात्री विमान उतरेंगे और एक आंकड़े के मुताबिक रोज 12 लाख लोगो विजिट करेंगे।
क़तर इन आने वाले मेहमानो के लिए क्लब, अजाएबघर, उनके स्थानीय खाने पीने के होटेल्स, विदेशी मेहमानो के रहने और उनके मौशिकी के इंतेजामात् कराये, गरज हर चीज क़तर हुकूमत मुहैय्या कराई है।
इन सब के लिए 8 स्टेडियम, 1 एरपोर्ट, एक मेट्रो लाइंस और कई होटेल्स और क्लब बनवाये गए है। यह मैच 28 दिनों तक चलेगा, फीफा वर्ल्ड कप चार साल होता है।
इतने महंगे और शानदार मेहमान नवाजी के बाद भी यूरोपीय मीडिया, इंटरनेशनल सोशल मिडिया क़तर हुकूमत का बॉयकॉट कर रहे वह इसलिए के क़तर सरकार ने मेहमानो से गुजारिश की के
"बराये मेहरबानी हमारे रिवायत, शरीयत और तहजीब का एहतेराम करे। "
इतने सालों से महंगे इंतेजाम और शानदार तैयारी के बावजूद क़तर की हुकूमत को सिर्फ इसलिए टार्गेट किया जा रहा है की उसने विदेशी मेहमानो से एक इल्तिजा की थी।
हमारे यहाँ शराब, बीयर, हमजिंसीयत (समलैंगिक) , नंगापन और बे पर्दगी, छोटे कपड़े और बंद कमरे मे होने वाले कामो को सड़को पर करने की पाबंदी है।
इतनी सी इल्तिजा पर वेस्टर्न परस्त और फिरंगियों के मानसिक गुलाम साढ़े तीन लाख की आबादी वाले एक छोटे से देश क़तर का बॉयकॉट करने लगे।
उनके इस गुजारिश से मागरिबि परस्त भेड़िये, नाम निहाद इंसानी हुकूक की तंजीमे, लिबरल्स, लेफ्टिस्ट और अहले यूरोप मे एक तूफान उठ खडा हो गया के यह भेदभाव और कदामात् पसंद मुल्क मे फीफा वर्ल्ड कप नही हो सकता है, इसका बॉयकॉट किया जाए।
इस छोटे से अरब इस्लामी मुल्क को चारो तरफ से शैतानी कुव्वतें घेरने लगे, टिकेट का बॉयकॉट होने लगा ताकि वहाँ की हुकूमत से अपनी मनमानी कराया जा सके।
पिछले महीने से शुरू हुआ यह तमाशा तब और जोर पकड़ लिया जब एक इंग्लिश रिपोर्टर ने सवाल किया तो क़तर के फीफा के अध्यक्ष ने साफ साफ लफ्जो मे जवाब दिया।
"हम अपने यहाँ आने वाले सभी मेहमानो का इस्तकबाल करते है, मगर उन्हे हमारी रिवायत, दीन और तहजीब का एहतेराम करना होगा, हम 28 दिनों के लिए अपना मजहब नही छोड़ सकते है। "
"मेरा जिस्म मेरी मर्जी" का नारा इजाद करने वाले
"मेरा मुल्क मेरी मर्जी" का नारा भूल गए।
यह मामला इतना बड़ा हो गया के इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है के फीफा अध्यक्ष इनफैंटाइनो को 1:30 घंटे तक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी।
जिसका खुलासा यह निकला के 'अगर आपको आना है तो आओ नही तो भांड मे जाओ। '
इन्फैटिनो ने यूरोप को पाखंडी बताया और कहा के यूरोप ने जो पिछले तीन हजार सालों से किया है उसे अगले 3000 सालों तक दुनिया से माफी मांगनी चाहिए, नैतिकता का ज्ञान देने से पहले। यूरोप को अपने यहाँ उन मजदुरो को रोजगार देना चाहिए जो क़तर मे काम कर रहे है।
अगर यह वर्ल्ड कप शराब, बेहयाई, ट्रांसजेंडर और सेक्यूरिटी की आड़ मे कैंसिल कर दिया जाता तो इतने सालों की मेहनत और बिलियन डॉलर बर्बाद हो जाते।
लेकिन इतना बड़ा खतरा मोल लेने के बावज़ूद इतने छोटे से मुल्क ने अपने दिन व शरीयत और रिवायत के लिए झूका नही, बद तहजीब, नंगापन, फ़हाशि और हैंजिन्सियात् से समझौता नही किया। वाकई ये काबिल ए तारीफ है।
जब अमेरिका ने वियतनाम मे लोगो को मौत के घाट उतार दिया, औरतो का बलात्कार किया और वहाँ के लोगो पर एजेंट ऑरेंज जैसे दवाओं का इस्तेमाल किया ताकि वहाँ के पेड़ पौधे सुख जाए और पानीयो मे जहर फैल जाए, इराक मे लाखो लोगो को बम्बारी करके एक मुहिम के तहत मारा गया और करोडो बेघर हुए उन लोगो का क्या, फिलिस्तिनियो पर इसराइल हमेशा बमबारी करता है, मिसाइल मारता है, अमेरिका के दिये हुए हथियारो और पैसे से फिलिस्तिनियो का खून बहाता है मगर उससे सवाल क्यों नही किया जाता?
अफगानिस्तान मे 20 सालों से हवाई हमले किये, आर्मी के जरिये लाखो को मारा गया मगर उसके बारे मे अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और दूसरे यूरोपीय मुमालिक से कौन सवाल करेगा?
यूरोप दुसरो पर मनवाधिकार के उल्लघं की बात करता है मगर उसे कभी इस बारे मे सवाल किया गया ?
कभी UNHRC ने अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों से सवाल किया है?
किसी की हिम्मत नही .....
दूसरे देशो मे आकर नैतिकता और इंसानियत का पाठ पढाना बंद करना चाहिए यूरोप को, यह उसका लोकतंत्र और इंसानी हुकुक के नाम पर सियासत है, भु राजनीतिक है जो हमेशा दुसरो को दबाता रहता है।
यह यूरोप का ढोंग है मानवाधिकार के नाम पर।
यूरोपीय श्रेष्टथा इसी लोकतंत्र , मानवाधिकार और औरतों की आज़ादी के ढोंग पर टीका हुआ है जो दूसरे को नसीहत करता है, दबाता है। जिसका हाथ लाखो मासूमो के खून से रंगा हुआ है वो दुसरो को मानवाधिकार की नसीहत करता है।