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Islam ke khatir Sana khan ne Bollywood ko alwida boli.

Kya Sana khan bhi ab Purane khyalon wali banne ja rahi hai?

Aakhir Sana Khan ne bollywood ko kyu kaha Alwida? 
Why did Sana Khan quit Bollywood?
The Turning Point in Sana Khan’s Life.
Embracing Faith Over Fame: Sana Khan
Life After Bollywood – Marriage and Motherhood.
Sana Khan Opens Up About Leaving Bollywood for Spiritual Awakening.
Former actress Sana Khan in hijab, smiling peacefully after quitting Bollywood to pursue a spiritual path.
जितना इस्लाम को बदनाम करने मे मेहनत किया गया उतना मुसलमानो ने इस्लामी तालीम को दुसरो तक नही पहुचाया। 
दिन ए इस्लाम को हमेशा आतंकवाद और महिला विरोधी कह कर प्रचार किया गया, मतलब इस्लाम के मानने वाले ने इस्लाम को नही अपनाया लेकिन गैरो ने मुसलमानो को बदनाम करने के लिए इस्लाम को दहशतगर्द कहा। इसी दौर मे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की हेरोइन सना खान फिल्म की दुनिया छोड़कर इस्लाम के रास्ते पर चलने को तैयार हुई। 
जानिए ज़ायेरा वसीम के बाद सना खान क्यों छोडी बॉलीवुड? 

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सना खान ने क्यों फिल्मी दुनिया छोड़ा?
आज सोशल मीडिया के दौर में हम दुनिया के कोने कोने की खबर जान जाते है। ऐसे ही कुछ दिनों पहले बॉलीवुड अदाकारा सना खान ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पे एक चौंकाने वाली तस्वीर अपलोड की और फिर देखते ही देखते सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल्स पर यह खबरें छा गई।
हुआ कुछ यूं के सना खान ने अपने इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक पे उर्दू, रोमन उर्दू और अंग्रेजी में लिखी पोस्ट की एक तस्वीर डाली जो कुछ इस तरह से था जिसमें वह अपनी बात बिस्मिल्लाह ( ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ) से शुरू करती है। आप इसे पढ़ सकते है, फोटो में भी देख सकते है।
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ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

भाइयों और बहनों
आज मै अपने ज़िन्दगी के एक अहम मोड़ पर आपसे बात कर रही हू। मै सालो से शोबिज़ ( फिल्म इंडस्ट्री ) की ज़िन्दगी गुज़ार रही हू और,  इस अरसे में मुझे हर तरह की शोहरत, इज्जत और दौलत अपने चाहने वालो की तरफ से नसीब हुई। जिस के लिए मै उनकी शुक्र गुज़ार हूं लेकिन अब कुछ दिन से मुझ पर यह एहसास कब्ज़ा जमाए हुए है के इंसान के दुनिया में आने का मकसद क्या सिर्फ यह है के वह दौलत और शोहरत कमाए?
क्या उसपे यह फ़र्ज़ आयद नहीं होता के वह अपनी ज़िन्दगी यूं लोगो की खिदमत में गुजारे जो बे आसरा और बे सहारा है
क्या इंसान को यह नहीं सोचना चाहिए के उसे किसी भी वक़्त मौत आ सकती है?
और मरने के बाद उसका क्या बनने वाला है?
इन दो सवालों का जवाब मै मुद्दत से तलाश कर रही हूं खास तौर पर इस दूसरे सवाल का जवाब के मरने के बाद मेरा क्या बनेगा?
इस सवाल का जवाब जब मैंने अपने मजहब में तलाश किया तो मुझे पता चला के दुनिया की यह ज़िन्दगी असल में मरने के बाद की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए है। और वह इसी सूरत में बेहतर होगी जब बंदा अपने पैदा करने वाले के हुक्म के मुताबिक अपनी ज़िन्दगी गुजारे , और सिर्फ दौलत और शोहरत को अपना मकसद ना बनाए बल्कि गुनाह की ज़िन्दगी से बच कर इंसानियत की खिदमत करे और अपने पैदा करने वाले के बताए हुए तरीको पे चले। इसलिए मै आज यह ऐलान करती हू के आज से मै अपने शोबिज़ ( फिल्म इंडस्ट्री ) की ज़िन्दगी छोड़कर इंसानियत की खिदमत और अपने पैदा करने वाले के हुक्म पर चलने का पक्का इरादा करती हूं।
तमाम भाइयों और बहनों से दरख़्वास्त है के आप मेरे लिए दुआ फरमाए के अल्लाह ताला मेरी तौबा को क़ुबूल फरमाए। इसी तरह आइंदा के मेरे अज़म यानी अपने खालिक के हुक्म के मुताबिक और इंसानियत की खिदमत करते हुए ज़िन्दगी गुजारने की तौफीक अता फरमाए और उसपर इस्ताकामत नसीब फरमाए।

आखिर में तमाम भाइयों और बहनों से दरख़्वास्त है के वह अब मुझे शोबिज़ ( फिल्म इंडस्ट्री ) के किसी काम के लिए दावत ना दे बहुत बहुत शुक्रिया।

Sana Khan   ثنا خان
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ताज्जुब की बात यह है के एक तरफ जहां इसलाम को आतंकवाद और महिला विरोधी बताया जाता है तो दूसरी तरफ बॉलीवुड की अदाकारा जायरा वसीम तो कभी सना खान फिल्मी दुनिया छोड़कर अल्लाह के हुक्म पे चलने को तैयार है ।

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यूरोपीय देशों में और फिर पूरी दुनिया में जिस तरह इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दिया गया उसकी वजह से मुसलमानों को हर जगह परेशानीयो का सामना करना पड़ा , इन्हे प्रताड़ित किया गया । मीडिया ने इसलाम की छवि को बिगाड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
कभी रूढ़िवादी कहकर, आतंकवाद से जोड़कर इसलाम को बदनाम किया गया, चाहे वह विदेशी मीडिया हो या फिर इलाकाई मीडिया सभी ने इसमें अपना अहम किरदार अदा किया।
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इसी तरह भारत में तीन तलाक़ और हलाला का मामला आया, जिस को लेकर बहुत सारी औरतें मुजाहिरा करने के लिए सड़को पे उतर आई और फिर शुरू हुआ मीडिया का तमाशा।
बस इसे यूं समझे के मीडिया ने मदारी और सरकार ने डुगडुगी का काम किया।

बगैर जाने समझे के इसलाम ने वाकई तीन तलाक़ ( तलाक़, तलाक़, तलाक़ ) और हलाला को जायज तरीका बताया?
क्या इसलाम इसकी इजाज़त देता है?
क़ुरआन व हदीस इसके बारे में क्या कहता है?
कभी इन सारी बातों पे कोई ध्यान दिया?
इन लोगो को कितनी क़ुरआन कि सुरतें और अहादीस याद है?

मीडिया ने इसे इस तरह पेश किया के लोग यह समझने लगे के इसलाम हमेशा महिला विरोधी बातें करता है।
अब कुछ नारीवादी सोच वाली औरतें आती है और सोशल मीडिया पे अपनी बातें रखती है और इसलाम के बारे में गलत मैसेज लोगो को देती है और यह हुई उनकी अभिव्यक्ति की आजादी।

मगर अब सना खान ने ऐसे लोगो को तमाचा लगाया है जो इसलाम के तरीके को रूढ़िवादी, 1400 साल पहले वाला सोच, संकीर्ण और विकृत मानसिकता, पुराने ख़यालो वाला , जो अपने समाज में कभी तब्दीली चाहते ही नहीं है    वाला बताते है।

जो इसलाम को आधुनिकता का विरोधी के तौर पे पेश करते है।
जो इसलाम को तरक्की की राह में रुकावट समझते है।
जो इसलाम को अलगाववाद और कट्टरपंथ से जोड़ते है।
ऐसे लोग सिर्फ अपनी जाहिलियत का सर्टिफिकेट पेश करते है, कर रहे है और करते रहेंगे।
मीडिया डिबेट में यह चंद पैसे लेकर इसलाम के खिलाफ जहर उगलते नहीं थकते यही इनका रोजगार है।

एक साल पहले जब जायेरा वसीम ने भी यही फैसला लिया था तब उस वक़्त कुछ लोगो ने उनके फैसले की मुखालिफत ( विरोध ) किया था ।
ऐसे लोग यह सोचते है के कहां इसलाम का 1400 साल पहले वाला तरीका और कहां आज साइंस का दौर।
     जहां आज इंसान चांद पे पहुंच चुका है   वह क्यों जाएगा 1400 साल पहले के दौर में?
मगर हिदायत देना अल्लाह का काम है, वहीं इस दुनिया का मालिक है, वहीं हमे पैदा करता है और मारता भी है। वहीं सूरज और चांद को निकालता है, वह एक है, उसका कोई शरीक नहीं, वह हर चीज पे कादिर है।

जो हमे ज़िन्दगी और मौत दोनों देता है हम उसी के हुक्म पे चलते है, हम उसी के फरमान को मानते है। क्यों के हमे कल मौत आनी है फिर हमारा अंजाम क्या होगा?
सिर्फ यह 60 - 70 साल की कामयाबी ही सब कुछ नहीं है।
अगर इसलाम औरतों को जंजीर में ज़कर कर रखता, तरक्की की राह में रुकावट होता, महिला विरोधी होता तो क्यों इतने पैसे वाली तालीम याफ्ता बॉलीवुड अदाकारा सना खान , ज़ायरा वसीम इतने दौलत, शोहरत, इज्जत और लोगो की हिमायत छोर कर अल्लाह के हुक्म को मानती?

अगर वाकई इसलाम औरतों को गुलाम बनाकर रखता, उसकी आजादी छिनता, उसपे बंदिशें लगाता, अपनी मर्जी से जीने नहीं देता और तरह तरह की पाबंदियां आयेद  करता तो फिर सशक्त, आत्मनिर्भर, बेबाक, बहादुर , शिक्षित, माल व दौलत, शोहरत, इज्जत और ऐश व आराम की सारी चीजें मौजूद होने के बावजूद अदाकारा जायरा वसीम और सना खान क्यों बेहयाई, बेशर्मी और फहाशि की दुनिया को छोर दीन ए इसलाम के रास्ते को अपनाती?

कौन इनको तलवार के बल पे ऐसे फैसले लेने को मजबूर किया है?
यहां कौन सा तालिबान, आईएसआईएस, अल कायदा जैसे कट्टरपंथी और चरमपंथी संगठनों का दबाव था इन पर?

यहां कौन इब्राहिम लोदी, बाबर, तैमूर जैसा ज़ालिम, लुटेरा ( काफिरों की जुबान में ) बादशाहों ने तलवार की ताकत से इनको मजबूर किया?
बात साफ है.
            हमे मालूम है जन्नत की हकीकत
   मगर दिल को खुश रखने को गालिब ख्याल अच्छा है

काफिरों और मुशरिको का तो शुरू से ही यह मंसूबा रहा है के इसलाम के खिलाफ अफवाह फैलाकर मुस्लिमो और गैर मुस्लिमो के दिलो में नफ़रत पैदा कर दिया जाए। मगर इससे भी खतरनाक है हमारे बीच बैठे हुए मुनाफिकों की जमात। जो हर वक़्त मुसलमानों को गुमराह करने के लिए हसीन ख्वाबों की खूबसूरत ताबीर  बताते है, कभी आजादी के नाम पर तो कभी तरक्की के नाम पर, जबकि असल बात तो यह है के यह हमारी तरक्की चाहते ही नहीं है बल्कि यह हमे अल्लाह के रास्ते से गुमराह कर इब्लिस के रास्ते पे चलाना चाहते है जो हमे ना मंजूर है।
दीन से दूर रहकर पैसे कम लेना, लोगो की हिमायत हासिल कर लेना कोई बहुत बड़ी कामयाबी नहीं है बल्कि यह दुनिया की हवस और लालच है।
आप का ज्यादा वक़्त नहीं लेते हुए अपनी बात अलामा एकबाल के इस शेर से खतम करता हूं।

अल्लाह से करे दूर, तो तालीम भी फितना
इमलाक भी औलाद भी जागीर भी फितना
नाहक के लिए उठे तो शमशिर भी फीतना

शमशीर ही क्या नार ए तकबीर भी फितना.

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