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Cultural Dron: Jab Misr (Egypt) ki Mallika ne Burqa utar kar Aag ke hawale kar di thi.

European Sajish ki tarikh jab Muslim Riyasat me be Pardagi ko aam kiya gaya.

क्या यूरोप सच में औरतों की आजादी की बात करता है?

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है, 

जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है.... लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

There are about 2 Billion Muslims on this planet. Why is it that our holy book is being disrespected by a small and insignificant country like Sweden?

It is because we are divided through borders. We need to unite under one khalifah. 

Muslim countries will be the main target. They will do everything to impose an LGBTQ world order on Muslims. In the past, women's rights and feminism were used to bomb and invade Muslim countries, & this is their next agenda to target Muslims. Muslims should make necessary.

Liberalism is anti Islam, European Propganda against Islam. 

इल्म के नाम पर औरत से पर्दा छीनना और बे हयायी की दलदल मे धकेलना।

जानवर को पानी पिलाने वाली औरत का वाक्या।

मुस्लिम लड़कियो पर गैर मुस्लिमो के मंडराते खतरे।

दिन की दावत के लिए सोशल मीडिया पर फेक प्रोफाईल बनाना कैसा है?

मुस्लिम लड़कियो के सर से किसने दुपट्टा हटाया है?

क्या पर्दा करना  पिछ्डेपन की निशानी है?

सबसे पहली और अहम बात यह के....

आजादी और बराबरी की तारीख (इतिहास) और मुस्लिम दुनिया पर होने वाले  अशरात (प्रभाव) पर आधारित है।

यह बात जेहन नशीं कर लेनी चाहिए के आजादी औरत और मर्द के साथ बराबर के अधिकार दिए जाने की सब से पहली आवाज यूरोपिय नसरानियत (ईसाई) की सर ज़मीं फ्रांस  में बुलंद की गई।

जिसका ख्याल था के औरत बुराइयों का जड़ (सरचशमा) है। और वह बदकारियो और गंदगियों का अड्डा है। और वह नापाक रूह है जिससे दूर भागना चाहिए। उससे सारे आमाल बेकार हो जाएंगे चाहे वह मां हो या बहन।

औरत के बारे में यूरोप के पोपो ने इस तरह के गलत ख्यालात को खूब जोर शोर से फैलाया। जबकि वह खुद नापाक जिस्म और रूह वाले है। अखलाकी जराएम के मजमूए (संग्रह) है। वह खुद छोटे बच्चो की चोरी करते है ताकि उसको कलिसाओ में तरबियत देकर एक बद दिल राहिब बनाए और अपनी तादाद बढ़ाए।
वह हुकूमत और अवाम (आम जनता) के किसी काम का न रहे।
इस घिनौनी और घटिया कामो की वजह से उनके यहाँ लोग सख्त बेचैनी और परेशानी का शिकार हो गए।

नतिज़तन् (फलस्वरूप) उनके यह दो नजरियो (विचारधारा) ने जन्म लिया।

(I) औरत की आज़ादी के नाम से आवाज़ बुलंद करना।
(II)औरत और मर्द के दरमियाँ हमजिंसीयत का मुतालबा।

इन दोनो नजरियो का मकसद था हर उस चीज का इंकार जिसका ताल्लुक कलिसा (चर्च) या उसके पादरियों से था और फिर लोगो मे ज़िद्द करना और अड़ जाना जैसे हठधर्मी वाली सोच जन्म लिया।

इस तरह उन की आवाज़ इस तरह बुलंद होने लगी के इल्म (साइंस / विज्ञान) और दिन (धर्म) दोनो का इत्तेफाक नही होगा यानी दोनो एक नही हो सकता है, धर्म अंधकार और अंधविश्वाश के तरफ ले जाता है जबकि साइंस हमे अंधेरे से रौशनी की तरफ लाता है। तर्क और बहस करने की आज़ादी देता है।

अकल् (बुद्धि) और दिन (धर्म) दोनो अलग चीजें है यह कभी आपस मे एक नही हो सकते।

इस तरह वे लोग आज़ादी के नारे लगाने मे बड़ा ज़ोर देने लगे, हर कैद व बंद, पकड़ और पाबंदी, फितरि (naturally) और दिनी (मजहबी) नियम व कानून से बिल्कुल आज़ाद हो। उनकी आज़ादी मे ज़रा सी भी कमी न हो। यानी बिना ब्रेक वाली गाड़ी जिसे एक बार स्पीड कर दिया फिर न वो स्लोअ हो सकता और नही ब्रेक लग सकता है।

आगे चलकर औरतों की आज़ादी, औरत (निस्वनियत) और मर्द मे जो फर्क (Difference) है उसे खत्म कर देने की मांग  उठने लगी। चाहे वह दिनी हो या सामाजिक ।

हर मर्द और औरत बिल्कुल आज़ाद हो, जो चाहे कर ले, न धर्म, समाज या किसी मुल्क के कानून की पाबंदी, ना अदब व अखलाक और न किसी का नियंत्रण होगा। बिल्कुल आज़ाद।

यह मांग सारी दुनिया मे फैलती गयी यहाँ तक के अमेरिका यूरोप जैसे ना फरमान मुल्को मे आम हो गयी।

लड़कियो की इज़्ज़त नीलाम होने लगी, दौलत से औरतों की इज़्ज़त की कीमत लगाई जाने लगी। चारो तरफ बेहयाई, बदअखलाकि और बुराई फैल गयी।
शराफत ए जिंदगी खतरे मे पड़ गयी। बद फेलि की वबा ( किड़ा) हर तरफ कोहराम मचाने लगी।

यह सारे घटिया हरकतें, औरतों की आज़ादी के जराशिम मगरीबी पसंद लोगो ने इस्लामी दुनिया (मुस्लिम वर्ल्ड) मे फैलाये।

इस नापाक हरकत की शुरुआत की, उसकी क्या तारीख (इतिहास) होगी जिसमे सारे आलम ए इस्लाम की काया पलट दी। जो मुसलमान अपनी औरतों को पर्दे की पाबंदी करवाते है, उनकी हीफाजत किया करते थे, उनकी हुकूक और ज़िम्मेदरिया अदा करते थे उसी तरह औरतें भी हुकूक (अधिकार) व अहबबात की अदायेगी मे कोई कोताही नही बरतते थे अचानक उनमे बद अखलाकि, बे हयायी और बे पर्दगी वाली आज़ादी की दीमक लग गयी।

आप को बता दे के नबी सल्लाहु अलैहे वसल्लम के दौर से चौदहविं सदी (1400 ईसवी) तक  मुसलमान औरतें पर्दे की पाबंद थी। अपना चेहरा और बाल खुले नही रखती थी, जिस्मो से कपड़े नही हटते थे, उस दौर की मुसलमान खवातीन अपनी जेब व ज़ीनत, हुस्न व जमाल का जलवा किसी गैर मर्द के सामने नही बिखेरती थी। उस वक़्त मेहरम् और ना मेहरम्  मे फर्क होता था और इसी बुनियाद पर औरतें किसी से बात करती थी।

चौदहविं सदी के बाद इस्लामी सलतनत (हुकूमत) का पतन (ज़वाल) शुरू हुआ, वह अलग अलग टुकड़ो मे बँट गयी। उसके बाद मुस्लिम दुनिया (कंट्री) को नाफरमान यूरोपीय साज़िश ने अपने पंजे से जकड़ लिया।

फिर अवाम (जनता) का दिल व दिमाग इस्लामी शयार् से कुफ्र व फसाद और बदअखलाकि व फ़हाशि की तरफ तब्दील हो गया।

मुसलमानो के तबाही व बर्बादी की पहली चिंगारी उनके औरतो के चेहरे से नकाब हटाना था।

इस काम की शुरुआत सबसे पहले कनाना की सरज़मीं मिस्र (इजिप्ट) से हुआ। 
उस वक़्त जबकि हाकिम ए मिस्र मोहम्मद अली बाशा ने अपनी कुछ ज़मातो को तालीम (शिक्षा) के लिए फ्रांस भेजा और उन इल्मी काफिलो के बीच एक शख्स
राफतुल् राफे तहतालवि थे जिनकी वफ़ात 1290 मे हुई।

उसने मिस्र वापस आकर औरत की आज़ादी  का पहला बिज सरज़मीं मिस्र मे बोया और यह काम बहुत से तहज़ीब, यूरोप के गंदे मंसूबे और बिगड़ी हुई अकल वालो ने किया।
यहूद व नसारा ने भी यह काम खूब जोश खरोश से किया। जिनका नाम कुछ इस तरह से है।

(I) यहूद नसरानी मर्क़स् फहमी (वफ़ात 1374) जिसने मशरीक़ि खातून के नाम से एक किताब लिखी जिसका मकसद पर्दे को खत्म कर देना, मुस्लिम मुआशरे मे फहाशि (अश्लीलता) और बद फेली फैलाना और औरतों का तन्हाई मे अजनबी मर्दो से मेल जोल बढ़ाना था।

(II) अहमद लतीफ सैयद (वफ़ात 1382) यह पहला शख्स है जिसने मिस्र मे जवान लड़कियो को तालीम के लिए लड़को के साथ मखलुत् तालीम (सह शिक्षा) का बिज डाला। यह मिस्र का पहला वाक्या था। इसको फ़िरोग् (प्रचार व प्रसार) देने मे यूरोपियत का सरगना हुसैन (वफ़ात 1393) ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

इस फितने की बागडोर बेपर्दगी के प्रचार व प्रसारक् क़ासिम अमिन (वफ़ात 1326) ने संभाली जिसने इस सिलसिले मे तहरीर उल मरात् ( आज़ादी औरत ) के नाम से एक किताब लिखी जिसके खिलाफ उस वक़्त के उलेमा ए किराम के ऐतराजआत की बौछार हो गयी।

इतना ही नही शाम, इराक और मिस्र के उलेमा ने उसे मूर्तद्द होने का भी फतवा दे दिया।  हालात की तब्दीली के बाद उसने एक और किताब लिखी जिसका उनवान था "मरातुल् ज़दीद" यानी "नई औरत" । इस किताब के जरिये अवाम और खास कर औरतों को  यूरोप के जैसा बनाने की कोशिश की गयी। औरतें बिकनी पहने, नंगी रहे और खुलेआम सड़को, होटलो, कॉलेजों, पार्को और समुंदर के किनारे गैर मर्दो से मिले ज़ुले और सेक्स करे। उसका मकसद मुस्लिम समाज मे जीना को बढ़ावा देना था।

इस मामले मे बलात की मल्लिका नाजलि अब्दुल रहीम सबरी ने इस किताब के लेखक कासिम अमिन का साथ दिया और नसरानी (ईसाई) मज़हब कुबूल कर ली और इस्लाम से खारिज हो गयी।

उसके बाद इस नजरिया (विचारधारा) को अपनाने और लागू करने के लिए कासिम अमिन और बेपर्दगी को फ़िरोग् देने वाला साद जग्लोल (1346) और उसका सगा भाई फतेह जग्लोल (1332) है।

फिर औरत की आज़ादी के नाम से 1919 मे हादी शाहरावि (1367) की सरबाराहि मे औरतों की तहरीक और मुजाहरे ने सर उठाया।

इस सिलसिले मे उनका पहला इजतेमा 1920 मे मिस्र के मर्कसिया के कलीसे मे मोनाकिद (आयोजित) हुआ।
उसी इजतेमा मे मिस्र की पहली औरत मुस्मात् हादी शाहरावि थी जिसने अपना पर्दा बिल्कुल खतम कर दिया।

यहाँ एक वाक्या का ज़िक्र करना जरूरी है जिससे दिल गमगीन और हसरत जद्दा हो जायेगा।

साद जग्लोल जब इंग्लैंड से इस्लाम को खतम करने और समाज मे बेहयाई, बदकारी और फ़हाशि फैलाने के तमाम हथकंडे सिख कर आया तो उसके इस्तकबाल (स्वागत) के लिए दो खेमे तैयार की गई। एक औरत की और एक मर्द की। जब वह हवाई जहाज़ से उतरा तो वह सीधे औरतों वाले खेमे की तरफ गया जिसमे बापर्दा औरते थी।  हादी शाहरावि ने पर्दे के अंदर से उसका इस्तकबाल किया ताकि वह (साद जग्लोल) उसका (हादी शाहरवि) बुर्का निकाल दे और बिल्कुल नंगी हो जाए।

बर्बादी हो ऐसे लोगो पर...... उसने अपना हाथ बढ़ाया और उसके चेहरे से नकाब हटा दिया तो सब औरतों ने खुशी से तालियां बजाई और अपना अपना बुर्का निकाल डाला।

दूसरे दिन का वाक्या है के साद जग्लोल की बीवी सोफिया बिन मुस्तफा फहमी जिसका नाम शादी के बाद सोफिया हानम साद जग्लोल पड़ गया यानी Sofiya wife of Saad Jaglol बिल्कुल अहले यूरोप के रसम की तरह उनकी बीवीया शौहरो की तरफ मंसूब होती है।

यह खातून काहिरा मे कसर नैल (Nail Palace) के सामने एहतेजाज व मुजाहिरे मे पर्दे से बेजार   पर्दे उतारने वालियो के साथ मिलकर  उसने अपना पर्दा उतार दिया और सब ने मिलकर अपने बुर्क़े को कदमो तले रौंद डाले और उन्हें जला डाला उसी दिन से उस मैदान का नाम मैदान उल तहरीर यानी आज़ादी का मैदान नाम पड़ा।

इसी तरह इस काम को आगे बढ़ाया कनाना के कुछ नापाक लोगो ने जिसका नाम कुछ इस तरह से है।

हुसैन
एहसान अब्दुल कुदुस्
मुस्तफा अमीन
नजीब महफूज़
वगैरह ने और नसरानियों मे शिब्लि शमैल् और फराह उल नतुन ने।

इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ इस प्रोपगैंडा और मकर व फरेब को फैलाने मे सहाफ़त (पत्रकारिता) ने खूब साथ दिया। इस फितने की नसर् व असात् का पहला जरिया यही है।

1900 मे मज़लत उल सुफुर् (बे पर्दगी) नाम से मैगज़ीन निकाला गया। जिसमे लोगो की जेहंन साजि की गयी।

उसके दिल व दिमाग को यूरोप के मुताबिक अच्छा और बुरा का सबक सिखाया गया, शराफत दिनदारी का मजाक बनाया गया और जो लोग दिन पे चलते थे उन्हें पिछड़े हुआ, कदामत पसंद (रूढ़ीवादी) और इंतेहा पसंद (कट्टरपंथी) कहा जाने लगा। दीनदारी और शराफत पर जबरदस्त हमले किये गए और लोगो के दिलों मे इसके ताल्लुक़ से नफरत बैठाया गया।

औरत की बेपर्दा और नंगी तस्वीरें, बात चित मे शहवत वाले जुमले, औरत मर्द को एक साथ दिखाना, औरत मर्द की शरीक हयात है इसलिए बराबरी वाला मामला, औरत पर मर्द के हुकूक को हिमाकत का दर्जा देना, छोटे कपड़े, मॉडर्न दौर के तौर तरीके को फ़िरोग् दिया जाने लगा।

निस्वानी स्विमिंग पूल बनाये जाने लगे जिसमे औरत और मर्द एक साथ बरहना नहाने लगे।

औरत और मर्द के मिले ज़ुले हम्माम (शौचालय) बनाये जाने लगे। क्लब, पार्क, बे हया वाक्यात् यह सब वज़ूद मे आने लगा।

बे हया नंगी औरतो के गाने, मुजरा करने वाली तवाइफ् जिसे एक्टरेस कहा जाने लगा। ऐसे लोगो को बड़ा मर्तबा दिया जाने लगा।

इन कामो को दो तरीको से फैलाया गया।

(I )उन की अंदरूनी कमजोरी- उनके खिलाफ जुबान व कलम से इसलाह करने वाले की कमजोरी, उनकी गंदगियो पर खामोशी, नंगी तस्वीरो को फैलाना, दिन की दावत देने वाले को चुप कराना और इस्लाही तहरिरो को नही छापने देना। उनके कामो मे रोड़े लगाना, इंतेहापसंद वगैरह के तोहमत लगाना।

(II) अमानतदार, बा सलाहियत्, दनिशवर, दीनदार और ताकतवर मुसलमानो को नजर अंदाज़ करके ना अहल, यूरोपीय मुखबिर, गद्दार और बद किरदार लोगो को ओहदे और मनसब पर बैठाना।

इस उम्मत मे बेपर्दगी की नामुनासिब शुरुआत चेहरे से नकाब हटाने से शुरू हुई। जिसकी मजीद तफ़्सील उस्ताद अहमद फ़र्ज़ की किताब "मुसलमान औरतों के खिलाफ साजिश" मे दर्ज है।

दूसरी किताब "पर्दे की वापसी" मे दर्ज है जिसके मुसनिफ् (लेखक) शेख मोहम्मद इब्न अहमद इस्माइल् है।

यहाँ से यह हरकत शुरू होकर जल्द ही पूरे आलम ए इस्लाम मे आग की तरह धधकती हुई फैल गयी।

यहाँ तक के बेपर्दगी की पाबंदी और इसको कायम रखने के लिए कानून बनाये गए और यह सब किसी गैर मुस्लिम मुमालिक मे नही बल्कि मुस्लिम मुमालिक मे मुस्लिम हुक्मरानो के जरिये हुआ।

तुर्किसतां (तुर्की) मे यूरोपीय एजेंट और फिरंगी गुलाम  कमाल पाशा अतातुर्क ने 1920 मे पर्दा खतम करने का कानून लाया जिसके तहत वहाँ आज भी बुर्का, नकाब यह सब पहनने पर पाबंदी है।

ईरान मे 1926 मे एक राफजी रज़ा बहलवि ने पर्दे को खैराबाद करने का हुक्म जारी किया। मगर बाद मे ईरान की क्रांति मे बहलवि का तख्तापलट हुआ और वहाँ शिया तौर तरीको से हुकूमत की जाने लगी और बुर्के से पाबंदी हटा ली गई। जिसे इस्लामी क्रांति कहते है।

अफगानिस्तान मे मोहम्मद अमान नाम के शख्स ने पर्दे को बैन करने के लिए कानून बनाया।

इसी तरह अल्बानिया मे अहमद जोगवा ने किया।

ट्युनिसिया मे अबू रकीबिया (वफ़ात 1431) ने पर्दा न करने और एक से ज्यादा शादी करने के जुर्म  की सज़ा मुकर्रर किया। ऐसा करने वाले को एक साल की सज़ा और माली ज़ुर्माना रखा गया।

इस हरकत की सरबरहि उसने और ताहिर हद्दाद ने की जो 1317 को पैदा हुआ और 1353 को वफ़ात पाया।

जिसने 1920 और 1930 के बीच एक किताब लिखा " हमारी औरत शरीयत इस्लामी और सोसाइटी के आईने मे "
जिसमे औरत को बेहयाई, बे पर्दगी और उरियानियत की तरफ दावत दी गयी। इस किताब के बारे मे यह कहा गया है के यह नसरानी पोप मुसम्म उल इस्लाम का लिखा हुआ है जिसको बाद मे ताहिर हद्दाद ने अपना लिया है।
इस किताब के आखिर मे 12 सवालात दर्ज है जिसके जवाब चंद मुफ्तियो ने दिये है।

दो मालकि मुफ्तियो ने उसे दिन से खारिज होने का फतवा भी दिया है।

इसी वज़ह से क्लियत उल हुकूक (Law College) के इम्तिहाँ मे हिस्सा लेने से सरकार ने मना कर दिया। फिर उसने किनाराकशी इख़्तियार कर लिया, लोगो ने उससे अपना ताल्लुक खतम कर लिया और वह 1353 मे इंतकाल कर गया।
उसके जनाज़े मे भी उसके घरवाले और चंद दोस्तो के  अलावा और किसी ने जाना गवारा ना किया। उसे गाने बजाने का खूब शौक था, होटलो और कहवे खाने पर हमेशा आता जाता था। कंमुनिज्म (Communism) की तरफ फ़ख़्र से अपना निस्बत करता था।

उसकी किताबो की हौलनाकियाँ अखबारों मे छपने लगी। यहाँ तक के ट्युनिसिया बेपर्दगी और नंगापन मे अव्वल दर्जे मे आने लगा।  पाकबाजी और पर्दे के खिलाफ जंग  पर लिखी गयी 400 सहफो की किताब देखे जिससे आपका दिल रो उठेगा।

अब इराक की बारी थी।  उसने भी पर्दे के खिलाफ कानून बनाया और उसकी सरबराही अल जहावि और अल साफि ने किया।

अल्जेरिया मे पर्दा खतम होने का दर्दनाक वाक्या " "मगरिबियत फिक्र व सियासत और एकतेसाद मे"
नामी किताब मे दर्ज है जो 13 मई 1958 को रनुमा हुआ।  इस वाक्ये से दिल के टुकड़े हो जायेंगे।

एक खुतबा जुमा के मौके पर खतीब से "परदा खतम कर देने" का ऐलान करवाया गया तो फ़ौरन एक नवजवान औरत ने माइक  के जरिये बुर्का निकाल देने का एलान किया।

सबसे पहले उसने अपना बुर्का उतारा और फेंक दिया और सब लड़कियो ने उसके इस हरकत की पैरवी की,
बेहूदा लोगो ने तालियां बजाकर हौसला अफजाई की, दूसरे मुल्को मे भी ऐसी ही वाक्ये पेश आने लगे जिसे मीडिया वालो ने खुब उछाला और बरी शोहरत दी।

इसी तरह मराक़श और शाम के चारो हिस्से लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीं और अर्दन मे फिरक़ा परस्त, कौमीयत परस्त के जरिये बे पर्दगी को आम किया गया।

मगर इन वाक्ये को मंजर ए आम पर नही लाया गया। यह बात अजीब सी लगती है के उस दौर मे ऐसे ऐसे वाक्यात पेश आये। नंगापन, हमजिंसीयत, बद फेलि, खुली आज़ादी के आतिश फसां का पहाड़ फटने का हाल किसी से छुपा ढका नही है।

अलबत्ता बर्रे सगीर की मुसलमान औरतें पर्दे के मामले मे दुसरो से बेहतर थी। 1950 मे यहाँ भी औरतों की आज़ादी और हम जिंसीयत ने सर उठाया।

कासिम अमीन की किताब मे इस बारे मे दर्ज है। सहाफ़त ने बेपर्दगी को कैसे उछाला , को एडुकेशन को शोहरत दी।
जिससे हिंदुस्तान का बुरा हाल हो गया। इसकी तफ़्सील खादिम हुसैन की किताब " बर्रे सगीर हिंद मे मुस्लिम तहज़ीब की बिगार मे यूरोप का नुमाया किरदार " के पेज 182 - 195 पर दर्ज है।

इसी तरह फितना की जड़ मर्दाना मुशाबेहत्, आज़ादी औरत के नतीजे मे मगरीबि औरत का इखतताम् हुआ और यहाँ से इस इलाके के मुसलमान औरत का आगाज हुआ। ।

एक ऑस्ट्रेलियन लेडी रिपोर्टर तालिबान से मुताशीर् होकर इस्लाम कुबूल कर ली।

आप यह सब पढ़ कर यह सोच रहे होंगे के यह पहले हुआ करता था अब ऐसा कुछ नही है तो आप को मालूम होना चाहिए के सबसे ज्यादा औरतों की आज़ादी की बात यूरोपियन मुमालिक करता है जबकि सबसे पहले बुर्का को स्विजेरलैंड मे बैन किया गया था।

वहाँ आज भी मुस्लिम औरतों से बुर्क़े की वजह से भेदभाव किया जाता है मगर यही गंदे मानसिकता वाले दुसरो को समानता का पाठ पढ़ाते है। फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, स्वीडेन, पोलेन्ड्, फिनलैंड, कनाडा वगैरह देशों मे हिजाब, बुर्का वगैरह बंद है।

सलमान रुश्दी जिसने "शैतानी आयत " नाम से किताब लिखा जिसकी वजह से मुसलमानो ने मुजाहरे किये इसलिए वह अमेरिका भाग गया और अब वह अमेरिका मे पनाह लिए हुआ है। तसलिमा नसरीन जो भारत मे रह रही है, इसने भी इस्लाम के खिलाफ किताबें लिखी, नबी की शान मे गुस्ताखी की, फ्रांस का चार्ली हेब्दो जो हमेशा नबी की शान मे गुस्ताखी करता है मगर मुस्लिम दुनिया खामोश रहती है यह सब के पीछे अमेरिका और यूरोप है जिसने हमेशा सहाफ़त की आज़ादी , इज़हार राय की आज़ादी की आड़ मे इस्लाम और मुसलमानो के ही खिलाफ काम किया है। यह यहूद व नसारा शुरू से मुसलमानो के खिलाफ साजिश रचते आया है। इसलिए यह भूल जाए के 14 वी सदी मे ही ऐसा होता था बिल्कुल भी नही यह मॉडर्न दौर मे भी इस्लाम के खिलाफ लोगो के दिलो मे नफरत बैठाने के लिए इस्लामी आतंकवाद, कट्टरपंथी, दकियानुसी, चरमपंथी जैसे अल्फ़ाज इस्तेमाल किये जाते है ताकि लोग इस्लाम से दूर भागे और मुसलमानो से नफरत करने लगे।

जबकि यह लोग खुद औरतों को बुराई की जड़ आज भी समझते है

मगरीब ने औरत को जो कुछ दिया है वह औरत की हैसियत से नही बल्कि मर्द बनाकर दिया है। औरत दर हकीकत उसकी नजर मे वैसी ही जलील है जैसे जमाने जाहिलीयत मे हुआ करती थी। घर की मल्लका, शौहर की बीवी, बच्चो की माँ एक असली और हकीकी औरत के लिए अब भी मगरीब मे कोई इज्जत नही है। इज्जत है तो मर्द , मुजक्कर की जो जिस्मानी तौर पर तो औरत मगर दिमागी तौर पर मर्द हो और समाज मे मर्द के जैसा ही काम करे। ज़ाहिर है यह निस्वनियत की इज़्ज़त नही बल्कि मर्दांगी की इज्जत है। यह काम सिर्फ इस्लाम ने किया है के औरत को तहजीब और मुआश्रे मे उसके फितरी मकाम पर ही रख कर इज्जत व सर्फ बख्शा है।

मुसलमानो की हकीकी तस्वीर 

एक बादशाह ने बहुत बड़ा बर्तन बनवाया और लोगों को हुक्म दिया के हर कोई एक गिलास दूध इस बर्तन में डाले। 

लोग आते गए और अपने अपने ग्लास बर्तन में उडेलते रहे, सुबह बादशाह ने देखा बर्तन पानी से भरा हुआ है।

तहक़ीक से पता चला कि सबने ये सोच कर पानी का गिलास डाला कि बाक़ी लोग तो दूध ही डाल रहे होंगे, उसके एक ग्लास पानी का पता ही नहीं चलेगा।

लिहाज़ा पूरी आबादी ये सोच कर तबाही से बेख़बर और मस्त है कि बाक़ी लोग उम्मत को बचा लेंगे... मैं शामिल न हुआ तो क्या फर्क़ पड़ेगा।

कश्ती डूबने को है मुर्दा क़ौम सो रही है!

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16 comments:

  1. Europe Hamesha Musalmano ke khilaf kam kiya hai.

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  2. We most protest against Us and Europe for Islamophobia.

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  3. I am from Us but I am Indian , we Al Muslims should Stand against Islamophobia

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  4. After some years Europe will be automatically destroye. Let's see

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  5. I support Hijab Nakab and Burka

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  6. Hijab is the beauty of Muslim Girls and Womens

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  7. Muslim Women's most Wear burqa it is the Crown of a Muslim lady

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  8. Allah hamari maa behano ko parde ki taufiq ata farma.

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  9. Ya Allah magrib ki sajisho aur minafoqo ko barbad kar de.

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  10. Yahudi aur nasara kabhi bhi musalman ka nahi ho sakta hai, yah yahan ke rehnuma ko samajhna hoga.

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  11. Magrib ne hamesha musalmano ko bevkoof banaya hai

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  12. Liberals theory os very very dangerous

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  13. We should take strict action

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  14. Religious book is burning not freedom

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  15. Shaitan ka pahla Hamla Aurat pr hota hai taki isse pura Muashera aur ghar barbad ho jaye. Salebi aur sahyuni hmesha se Musalmano ke khilaf sajish karte aaye lekin Ajj ki nam nihad Modern kahlane wali ladkiyo ko isse koi fark nahi padta balki wah Shaitan ke chal ko kamyab kar rahi hai.

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  16. salebi aur sahyuni hamesha se Musalmano ke khilaf behyayi, fahashi aur Sajish ko anjam dete aaye hai.

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