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Muslim ladkiyaan Hijab ke liye Kyu Protest kar rahi hai, Kyu log nahi chahate ke Muslim Auratein Hijab nahi kare?

Kyu Liberal tola wale Muslim Khawateen Ka Hijab hatane me lage hue hai?

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आखिर क्या है मामला कर्नाटक यूनिवर्सिटी का ?

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कर्नाटक के उडुप्पी में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहन कर यूनिवर्सिटी में आने से मना कर दिया गया था।

इससे दर्जनों मुस्लिम लड़कियों ने इसके विरोध में एहतेजाज किया, और कानूनी तरीके से लड़ाई जारी रखने को कहा है।

जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की बीवी ने सरेआम हिजाब की और दूसरी ईसाई औरतों से भी ऐसा करने को कहा।

क्या कहा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कर्नाटक के मुस्लिम छात्रा के हिजाब पहनने पर?

कुछ दिनों पहले जब एक मुस्लिम तलबा (छात्रा) ने हिजाब में स्कूटी से यूनिवर्सिटी में दाखिल हुई तो कई स्टूडेंट्स भगवा कपड़े में उस लड़की को घेरने की कोशिश किया और फिर कुछ मजहबी नारे भी लगाए जिसके जवाब में हिजाब पहनी लड़की ने भी अल्लाह हू अकबर का नारा लगाई।

भगवा कपड़े में रंगे उन छात्रों ने लड़की को परेशान भी किया क्योंकि वह मुस्लिम छात्रा हिजाब में थी।

इससे आप अंदाजा लगा सकते है के कुछ लोगो को मुस्लिम लड़कियों के हिजाब या नकाब पहनने से कितनी दिक्कत है?

यह सिर्फ कर्नाटक का हो मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार हिंदुस्तान में हिजाब और नकाब बैन करने यानी नकाब पहनने पर पाबंदी लगाने पर जोर दिया गया था।

जब श्रीलंका में नकाब पर बैन लगा दिया तो एक बहुत बड़ा तबका भारत में भी नकाब पर पाबंदी लगाने पर जोर देने लगा।

कुछ लोगो का कहना था के यह महिलाओ के अधिकारों को कम कर देता है और उसकी आजादी इससे खतम हो जाती है।
कुछ का कहना था के यह रूढ़िवादी तरीका है जिससे मुस्लिम लड़कियों पर थोपा जा रहा है।

एक धारणा यह भी बनी के यह मर्दों की गुलामी का नतीजा है जिसकी वजह से औरतें नकाब यानी पर्दा करती है।

लेकिन उन लोगो को यह सोच लेना चाहिए के यह नहीं मर्दों की गुलामी का नतीजा है, ना रूढ़िवादी, पुराने ख्यालों वाला और नही जबरदस्ती थोपा गया यह रस्म वा रिवाज है।

जिस तरह इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दिया गया और दूसिया भर के मीडिया , टीवी चैनलों ने इस्लाम को आतंकवाद, सिद्दत पसंद, इंतहा पसंद और दकियानूसी  सोच वाला मजहब साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसी तरह हिजाबोफोबिया को भी बढ़ावा दिया गया।

एक आम मुसलमान जो सिर्फ नमाज पढ़ना, रोजे रखना और टोपी पहनने तक को ही इस्लाम समझता है उसके लिए यह  आजमाइश की घड़ी है।

शायद वह समझ भी नही सकता के इसके पीछे कितनी बड़ी साजिशें की जा रही है।

हमेशा एक ही सवाल उठाया जाता है के मुस्लिम औरतें क्यों पर्दा करती है? इसकी वजह क्या है?
और जब यह सवाल उठता है जो कुछ नामनिहाद स्कॉलर या लिबरल तबके के लोग इसे पिछड़ेपन, अशिक्षा और रूढ़िवादी होने को वजह बताते है।

मगर ऐसे लोगो को यह नही मालूम के किसी मुसलमान के लिए जिसने अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाया है उसके लिए शरीयत की कितनी अहमियत है?

वह कितना अपने रसूल और सहाबा, सल्फ सलेहीन से मुहब्बत करता है।
इसी तरह एक मोमिना औरत के लिए उसके रसूल का हुक्म कितना मायने रखता है।

इस्लाम ने औरतों और मर्दों दोनो को पर्दे का हुक्म दिया है इसलिए वह लोग इस हुक्म पर अमल करते है।

दुनिया में सिर्फ मुस्लिम औरतें ही हिजाब नही करती है बल्कि हर धर्म में पर्दा यानी हिजाब करने को कहा गया है।
यहूदी , ईसाई हो या हिंदू धर्म सब धर्म की औरतें हिजाब करती है

मगर सिर्फ रूढ़िवादी और पुराने ख्यालों वाला सिर्फ मुसलमानों को ही कहा जाता है।

हिंदुस्तान में हर मजहब वालो को अपने धर्म के मुताबिक जीने का हक़ है चाहे वह तादाद में ज्यादा हो या कम।

जब भी कभी नामनिहाद विद्वानों को अपने ज्ञान की विधुत्ता दिखाना होता है तो वह मुसलमानों को ही निशाने पर लेते है।
दुनिया भर से तर्को को उठाकर मुसलमानों के जेबों में डालना शुरू कर देते है  मगर खुद का ठिकाना नहीं।
अल्लाह ऐसे लोगो को हिदायत दे।

अगर किसी को परेशानी है तो वह मुस्लिम औरतों के हिजाब से है।

जबकि हिजाब पहनना  सभी धर्मो में कहा गया है।

ईसाई, यहूदी और हिन्दू धर्मों में भी इस्लाम कि तरह हिजाब  करने के का हुक्म है
ईसाइयों (क्रिश्चन) के यहां उनकी नन आज भी हिजाब करती है भले ही यूरोप में बेहयाई आम है मगर चर्चों में हमेशा ईसाई लड़कियां हिजाब में ही जाती है।

यहूदी औरतें भी हिजाब पहनती हैं, चाहे कोई कितना भी लिबरल होने के आड़ में मुसलमानों को रूढ़िवादी होने का सर्टिफिकेट पेश करे और जलील करने की नाकाम कोशिश करे मगर दुनिया के सभी धर्मो ने किसी न किसी शक्ल में पर्दा करने को कहा है।

इसी तरह हिंदुस्तान के गांव में हिन्दू महिलाएं  भी हिजाब करती हैं जिसे आमलोग घूंघट कहते है।

मगर हिजाब और पर्दे के ताल्लुक से सिर्फ मुस्लिम खवातीन पर ही निशाना लगाया जाता है।
यह सवाल के मुस्लिम महिलाएं हिजाब क्यों  करती हैं या तो अनभियता पर आधारित है या फिर दुर्भावना से प्रेरित।

हिजाब के ताल्लुक से अगर कुछ कहा जा सकता है तो वह यह की मुस्लिम औरतें अपने दीन के ज्यादा करीब है, वह शरीयत के हुक्म पर अमल करती है। अल्लाह ने उनके दिलों में ईमान की शम्मा रौशन कर दिया है, उनके पास ईमान की दौलत है यानी वह धार्मिक आदर्शों  से ज़्यादा क़रीब हैं।

जबकि दूसरे धर्म की औरतों ने अपने धर्म के आदर्शों का मजाक बनाया और त्याग दिया है।
इसलिए वह लोग भी यही चाहते है के मुस्लिम औरतों को भी बुराई के दलदल में धकेल दें, जिस तरह वे लोग शैतान की साजिशो में पड़ कर गुमराह हो गए उसी तरह वह मुस्लिम कौम को भी गुमराह करके जहुन्नुमी बनाना चाहते है इसलिए उन लोगो ने इस कौम की बेटियों को ही निशाना बनाना शुरू  कर दिया क्योंकि किसी भी कौम की बुनियाद उस कौम की औरतें ही होती है।

ऐसे में "मुस्लिम औरतों के पर्दा" के ताल्लुक से जुड़े सवाल यह साबित करता है के लोग चाहते हैं की उन्हीं की तरह मुस्लिम महिलाएं भी धर्म को त्याग कर दूसरों जैसी हो जाएं।

किसी को यह अधिकार किसने दे दिया कि वह दूसरों को भी अपने स्तर पर गिरा लाने की कोशिश करे।

जिसको अपने दीन, ईमान या धर्म की बिल्कुल भी परवाह नहीं है वह आज़ाद हैं अपनी मर्जी चलाने के लिए चाहे तो उसे कूड़ेदान में डाल दें, लेकिन दूसरों से भी ऐसा ही उम्मीद रखना और उसपर अपनी गंदी सोच का कीचड़ फेंकने का अधिकार आपको नही है।
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अल्लाह तमाम मुसलमानों को सीरत ए मुस्तेकिम पर चला, उम्मत ए मुहम्मदिया को शैतानों के शर से महफूज रख और दुश्मनों के साजिशो को नाकाम कर।
या अल्लाह इस कौम की बेटियों की हिफाजत कर और उसे फातिमा राजियाल्लाहू अनाहू जैसी बा पर्दा और बा हया बना।    आमीन

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