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Kerala ka wah Shakhs Jo Hajj ke liye Paidal Saudi Arab Ja raha hai? Shihab chittur

Janiye us Shakhs ke bare me Jo Hajj 2023 ke liye India se Saudi Arabia Paidal Ja raha hai? 

जानिए कौन है वह शख्स जिसने अकेले हज के लिए पैदल सफर पर निकला है

आज के दौर मे शायद आप यह जानकर चौंक जायेंगे, हैरत मे पड़ जायेंगे के क्या कोई शख्स हज्ज् के लिए इंडिया से सऊदी अरब पैदल जा सकता है? *जानिए उस शख्स के बारे मे जो केरला से पैदल मक्का जा रहे है*। 

मंजिलें बहादुरो का इस्तकबाल करती है
बुझदिलों को तो रास्तो का खौफ मार देता है।

कई बार हमसब सुनते हैं के पहले लोग घोडे, ऊँट और हथियो पर सफर करते थे और दूर दूर तक पैदल ही चलते थे क्योंके उस वक़्त न कोई रेल, जहाज़ या कोई दूसरी इलेक्ट्रॉनिक गड़ियाँ थी।

लोग हज्ज् के लिए भी इसी तरह जाया करते थे।
जब इंसान तरक्की किया तो महिनो का सफर घंटो मे बदल गया।

अब घोड़ा और ऊँट वाला दौर रहा नही यह साइंस का दौर है।

इसी इकिसवी सदी मे एक शख्स हिंदुस्तान से सऊदी अरब हज्ज् के लिए पैदल रवाना होता है।

लोग साइकल से या पैदल चलकर मीलों का सफर तय कर रिकॉर्ड कायम करते हैं। लेकिन  आज मै आपको एक ऐसे शख्स के बारे मे बताऊंगा  जिसके बारे में जानकर आप भी चौंक जायेंगे।

आज के दौर मे ऐसी बातें सिर्फ अपने बुजुर्गो से सुनने को और किताबो मे पढ़ने को मिलती है।

जब इरादे मजबूत हो तो मंजिले भी आसान हो जाती है

भारत के दक्षिणी राज्य केरला के एक शख्स ने वह काम कर दिखाया जो शायद आज के दौर मे नामुमकिन है।
बहुत से मुसलमानो की यह ख्वाहिश होती है के जिंदगी मे एक बार जरूर हज्ज् ए बैतुल्ला जाए।

इसी तरह केरल के इस शख्स की भी ख्वाहिश थी मगर इन्होंने अपने दिल की तमन्नाओ को पूरी करने के लिए कोई आम तरीका नही बल्कि एक अलग अंदाज मे मक्का जाने का फैसला किया।

भारत के दक्षिणी राज्य केरल के मलप्पुरम जिले के कोट्टक्कल के पास अठावनाड नामक इलाके के रहने वाले है शिहाब् चित्तूर मुश्किल और तकलीफो से भरे सफर पर निकले है।

भारत के कई राज्यों से गुजरते हुए पाकिस्तान, ईरान, इराक, कुवैत और आखिर में सऊदी अरब पहुचेंगे।

जब उनसे इस सफर के बारे मे पूछा गया तो उन्होंने कहा

"पैदल हज के लिए मक्का जाना मेरी बचपन से ही ख्वाहिश थी, अल्हम्दुलिल्लाह अल्लाह का शुक्र अदा करता हूं। मेरी मां की दुआओ से अल्लाह ने मेरी यह तमन्ना पूरी की और मैंने सभी फराएज़ को पूरा किया, इंशा अल्लाह मैं जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाऊंगा।”

आठ महीने बाद अगले साल  मक्का पहुंचेंगे शिहाब् चित्तूर।

इस सफर के लिए उन्हें विदेश मंत्रालय से इजाज़त लेने के लिए चक्कर काटने पड़े। मगर उनकी कोशिशो ने रंग लाई और वे अपने मकसद मे कामयाब हो गए।

वे तकरीबन आठ महीने बाद 8640 किलोमीटर तय कर अपनी मंजिल तक पहुचेंगे।

वह एक साल से हज पर जाने की तैयारी मे लगे थे।
शिहाब् चित्तूर उसी केरला के रहने वाले हैं जहाँ हिंदुस्तान की सबसे पहली मस्जिद तामीर की गयी थी।

वो कहते है

"मेरा सफर रूहानी है, मेरा मकसद पैदल हज करने का है। मुझे सलाह देने वाला कोई नहीं था। मैं सिर्फ लोगों से पैदल सफर पर जाने के बारे मे सुना था। लेकिन आज हिंदुस्तान में शायद ही कोई जिंदा मिले जो यहां से पैदल हज पर जाने के बारे मे अपना तजुर्बा बताये। "

जब उन्होंने अपने इस सफर के लिए विदेश मंत्रालय से इजाज़त मांगी तो वहाँ के कई अफसर हैरत मे पड़ गए।
उनसे जब मक्का जाने की इजाज़त मांगी गयी तो वे लोग हैरान हो गए।  वहाँ मौजूद ऑफिसर्स यह सोच कर मुश्किल मे पड़ गए के इस मसले के कैसे हल किया जाए, क्योंके इससे पहले उनलोगो को पैदल हज् पर जाने का तजुर्बा नही था।

आखिर मे उन्हे मंजिल ए मकसूद जाने के लिए इजाज़त मिल गयी।

इकस्वी सदी या फिर यूँ कहे आधुनिक युग का पहला शख्स जिसने पैदल हज् के लिए गया हो।

मोहम्मद शिहाब् आज के मॉडर्न दौर के सबसे पहले शख्स है जिन्होंने हिंदुस्तान से सऊदी अरब पैदल सफर किया हो।

कई जगहो पर उनका इस्तकबाल मशहूर शख्सियत के तौर पर किया गया है। जुमे को जब वह चलियाम पहुंचे तो हज़ारो लोगो की भीड़ उनके इस्तकबाल के लिए जमा हो गयी। उनको लोग सेलेब्रेटी के जैसा फूल बरसा रहे है। उनका  नाम शायद गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड मे भी शामिल किया जाए।

आज के इस दौर मे लोग शोहरत पाने के लिए, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए, अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए और नाम रौशन करने के लिए बे हयाई, फ़हाशि, कुफ्र और शिर्क का सहारा ले रहे है तो वही केरला के एक मुसलमान जिसने अगले साल हज का अरकान् अदा करने के लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है।

जहाँ आज का मुसलमान अपने मुहल्ले की मस्जिद मे पांच कदम चलकर नमाज अदा करने नही जाता तो वहीं शिहाब् चित्तूर पांच मुल्को का सफर कर हज के फराएज़ अदा करने जा रहे है।

मोहम्मद शिहाब् वहाँ जा रहे है जहाँ सब बराबर है। अमीर गरीब , कमज़ोर मजबूत  हर कोई बराबर है। मक्का मे की छोटा बड़ा और ऊंच नीच नही होता बल्कि वहाँ जाने वाला सब बराबर होता है।

यह एक अनोखा शुरुआत है मुसलमानो की आँखे खोलने के लिए।

मोहम्मद शिहाब् मस्जिद या मदरसे में रातें बिताना पसंद करते हैं। मोहम्मद शिहाब् का हर एक कदम अल्लाह की राह मे बढ़ रहा है।  वे अपने साथ बहुत कम सामान लेकर जा रहे है ताकि सफर आसान हो और कही कोई दिक्कत न हो।

केरला से पैदल हजयात्रा पर निकले शिहाब चित्तूर का 2023 में हज से पहले पहुँचने का इरादा है।

आप सब लोगो से शिहाब् चित्तूर के लिए दुआओ की गुजारिश है ताकि अल्लाह ताला उनके सफर को आसान फरमा दें।

या अल्ला तु ऐसे नेक इरादे वाले की हीफाजत फरमा और उन्हे उनके मकसद मे कामयाबी अता कर। अल्लाह तु उनके रास्ते मे आने वाली परेशानियों को दूर कर दे और हजर ए अस्वद का दीदार करा।
   आमीन

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Ladkiyo ki Nangi Tasweerein mangane ka riwaaz kaise badh raha hai aur Kaun maang rahe hai?

Nangi Tasweerein (Nude Pictures) mangane ka Muashare me Rasm.

Aaj ke ladke' Ladkiyo se Nude Pictures kyu maang rahe hai?

"Hairat Is bat ki nahi ke Ladke Kisi Ladki ki tasweer maangate hai balki hairat isme hai ke wah de bhi deti hai"

ना मेहरम्  कितना भी आला अखलाक और आला किरदार वाला क्यों न हो , होता तो ना मेहरम् ही है। इसलिए किसी ना मेहरम् के लिए अपने दिल के और घर के दरवाजे खोलना मुसीबत का सबब बन सकती है।


وقت و حالات کی وجہ سے میرے الفاظ بہت سخت ہوتےہیں، میں کوشش کرونگا اچھے الفاظ کے ساتھ اس تحریر کو لکھوں،آج سے 15 سال پہلے یوروپین ممالک میں لڑکیوں کا اپنی برہنہ تصاویر یعنی بنا کپڑوں والی تصاویر بنانے کا کلچر عام ہونا شروع ہوا۔وہاں حیا کا کوئی کلچڑ نہیں اس لیے ان کی نظر میں یہ غلط نہیں، 16 سال سے لے کر 40 سال کی خواتین اپنی برہنہ تصاویر اپنے شوہر + عاشق کو بھیجا کرتی تھی تاکہ وہ آنکھوں کی گندی لذت حاصل کر سکیں۔۔۔

یہاں سے یہ گھٹیا کلچر ہندوستان میں پھیل گیا، آج سے دس سال پہلے جب Android موبائل عام ہونا شروع ہوئے تو اس کے فڑنٹ کیمرے کی مدد سے وہاں کی لڑکیاں اپنے عاشقون کے لیے اپنی بڑہنہ تصاویر لینے لگ گئی، وہاں اسے غلط ضرور سمجھا جاتا ہے پر وہ غیر مسلم ہیں اور ان میں بھی کافی ایسے پائے جاتے ہیں جنہیں غلط، غلط نہیں لگتا، اس میں انہیں آزادئ نظر آتی ہے۔

اور پھر یہ گھٹیا کلچر، یہ گندگی ہمارے مسلم دنیا میں بھی پھیلنا شروع ہوا. :،یہ بات سچ ہے کہ یہاں بھی اکثر ایسی لڑکیاں ہیں جنہوں نے اپنے عاشق کے کہنے پر، یا اس کے مجبور کرنے پر اپنی برہنہ تصاویر بھیجی ہیں ، اور کافی بلیک میل بھی کی گئیں۔۔۔کافی ایسی جنہوں نے مجبوری میں دی ، کافی ایسی جنہوں نے بدنام ہوجانے یا بدنامی کے ڈر سے خودکشی بھی کی ، اور کافی ایسی جو اپنے عاشق کی مانگ پوری کر رہی ہے اور آگے بھی کرتی رہینگی۔۔۔

میرے بھائی بہنوں، یہ فون جس نے بنایا ہے اس نے انسانوں کی آسانی کے لیے بنایا یے، اور آج موبائل فون ہر گھر میں ہر فرد کے پاس موجود ہے، اور آج تقریبن اکثر لڑکیاں نکاح سے پہلے ہی کسی کو دل دے بیٹھتی ہیں۔۔۔

اس کے بعد تصاویر کی مانگ آجاتی، لڑکا کیسے بھی کر کے لڑکی سے اس کے چہرے کی تصویر مانگتا، پھر مکمل تصویر، پھر جب اس کا نفس اس پر حاوی ہو تو، ملاقاتیں، یا فر ایسی برہنہ تصاویر، اور حیرت کی بات ،لڑکیاں دے بھی دیتی ہیں، نا خوف، نا ڈر، نا بلیک میلنگ کا، نا اس بات کا ڈر کے موبائل اور کیمرہ اور کافی ایپس بنانے والی کمپنیاں وہ تصاویر دیکھ سکتیں樂樂樂۔۔۔  اس بات کا بھی خوف نہیں کے انہیں کوئی بلیک میل کر کے زندگی برباد کرسکتا۔

樂樂樂اس بات کا خوف بھی نہیں کے کل کو بدنام ہوسکتیں樂樂樂،لڑکے کا موبائل گم ہو سکتا樂،چوری ہوسکتا樂،ان کا اہنا موبائل جس م یہ دیٹا ہے موجود وہ دیٹا وہ تصاویر واپس لائی جاسکتیں樂،لیکن ایسی اندھی ہوچکی ہوتی ہیں عاشق کے پیچھے کہ بنا خوف کے اتنا بڑا رسک لے لیتی ہیں۔۔۔

ہوسکتا ہے آپ سب کے ذہن میں آرہا ہو کے ہماری مائین بہنیں بیٹیاں ایسی نہیں پر کیا پتا آپ کی ہی کسی بہن بیٹی کے ساتھ یہ سب ہوچکا ہو.

樂 آپ کو معلوم بھی نا ہو؟

樂 کیا پتہ کل کو ہوجائے؟

樂樂 جن کے ساتھ ہوا،وہ بھی کسی کی بہن بیٹیاں ہی تھی 
۔۔۔بہن بیٹیوں کو موبائل دینے س پہلے سکول کالج مدرسہ بھیجنے سے پہلے،کھلی چھوڈ دینے سے پہلے اگر آپ دس منٹ بیٹھ کر ان کو سمجھا دینگے کہ اس کے یہ یہ نقصانات ہیں تو شاید وہ ایسے قدم نا اٹھائیں۔۔۔یقینن آپ سب کو معلوم ہوگا کہ صرف چہرے کی تصویر کسی کو بھیج دی جائے۔۔۔تو اس چہرے کے ساتھ کسی برہنہ لڑکی کا جسم لگانا کوئہ بڑی بات نہیں ہے۔۔۔اور ایسا ہو بھی رہا ہے۔۔۔

اس سے یہ ثابت ہوا کے کسی کو مکمل لباس میں چہرے کی تصویر بھیجنا بھی جان لیوا ثابت یوسکتا 樂樂۔۔۔یہ جسم اللہ نے آپ کو دیا میری بہنوں۔۔۔۔اس پر صرف آپ کے شوہر کا حق ہے۔۔۔اور آپ ایسے کیسے کسی پر اعتبار کر کے اپنے والدین کی عزتیں۔ نیلام کرسکتی؟

صرف اس لیے کہ آپ کا منگیتر، آپ کا عاشق،آپ کا بوائے فڑنڈ ناراض نا ہوجائے؟

وہ کریگا بلیک میل،ایموشنلی،پر میری بہن۔۔۔یقین کرو ایک بیوی کے لیے بھی یہ رسک۔جائز نہیں کہ وہ اپنے شوہر کو برہنہ تصاویر بھیجے،کیوں؟

کیونکہ موبائل چوری ہوسکتا، گم سکتا، دیٹا نکالا جاسکتا۔۔۔عزتیں نیلام ہوسکتیں۔۔۔اور جو ایپس آپ لوگ یوز کرتے، وٹس ایپ، فیسبک،انباکس،کیمرہ سب کو ان تصاویر تک رسائی ہوتی۔۔۔۔پھر ایسا قدم کیوں؟

یہ ٹاپک بہت ضروری تھا،یہاں گروپ میں میری مائین بہنیں بیٹیاں موجود ہیں۔۔۔ہوسکتا ہے ان کے باپ بھائی نے ان سب باتوں کی Awareness نا سی ہو مگر میں دونگا۔۔
۔اس لیے یہ جو برہنہ تصاویر، Nude pics کی نحوست ہے جو ہمارے معاشرے میں عام ہورہی،اسے روکنے کے لیے میں اپنا قردار ادا کر دیا۔۔۔اب آپ لوگ شئیر کر کے اہنا فرض ادا کریں۔۔۔❤

ایک جگہ لکھا ہوا پڑھا تھا۔۔۔

کہ حیرت کی بات یہ نہیں کے لڑکے بنا لباس والی تصاویر مانگتے ہیں بلکہ حیران کن بات یہ ہے کہ لڑکیاں دے بھی دیتی ہیں۔۔۔افسوس

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"Minimalism" Wali soch se Kya aap bhi Pareshan hai, logo ki Khushiya sirf Samanom me chhipi hai.

Kya ham sab apne liye jite hai ya Fashion ke liye?
Modern Daur me Ham khud ko dusro ke mukable kamtar kyu samajhte hai?

"Minimalism"

اگر آپکو کبھی کسی نے براہ راست یہ کہنے کی جرات کی ہے کہ "یہ سوٹ تم نے فلاں جگہ بھی پہنا تھا تم پر کافی جچتا ہے". یا
پھر کسی دوست، رشتہ دار نے آپکو اس خاص نظر سے دیکھا ہو جو چیخ چیخ کر کہے "تمہارے پاس اور کپڑے نہیں ہیں جب دیکھو منہ اٹھا کر یہی پہن آتے ہو"
تو یقیناً آپ صحیح راہ پر گامزن ہیں، خود کو خوش قسمت گردانیے کیونکہ آپ consumer-zombie نہیں ہیں.

بحیثیت عورت مجھ پر ہمیشہ یہ دباؤ رہا کہ ایک تو مجھے خوبصورت دکھنا ہے اور دوسرا کوئی ڈریس کسی رشتہ دار کے گھر یا کسی تقریب میں جاتے ہوئے repeat نہیں کرنا (جہالت سے بھرے رسم و رواج صدیوں سے repeat ہورہے ہیں لیکن کپڑے ہر گز نہیں ہو سکتے).

چونکہ minimalism اور sustainability گوروں کے چونچلے ہیں، ہمارے یہاں اس پر کوئی بات نہیں کرتا. کیا مسلم ممالک میں ان نظریات کو زیرِ بحث لانے کی ضرورت ہے؟؟؟

میں پچھلے دو سال سے Minimalism نامی نظریے کے اصولوں پر چل رہی ہوں (خواتین کے لیے یہ قطعاً آسان نہیں) جس کا مقصد آپکو ضرورت اور خواہش میں فرق بتانا ہے. میری اس پوسٹ میں غریب طبقہ زیرِ بحث نہیں ہے جو اپنے روز مرہ کے معاملات کو پورا نہیں کر پاتا وہ consume کہاں سے کرے گا. نہ ہی ایلیٹ کلاس جن کی تعداد بہت کم ہے. میرا اشارہ اس مڈل کلاس کی جانب ہے جس نے اس خرید و فروخت کی ریس میں نمبر ون پوزیشن حاصل کرنے کی دوڑ لگا رکھی ہے.

کسی دور میں لفظ consume کو تباہی یا کھانے پینے کی اشیاء کے ساتھ منسوب کرنے کا رواج عام تھا لیکن کپڑے، جوتے، سجاوٹ و آرائش کی اشیاء اور برقی آلات وغیرہ کو بھی consume کیا جائے گا، وہ بھی اس قدر extreme level پر، اسکا اندازہ تو اس تباہ کن نظام کے بنانے والوں کو بھی نہیں ہوا ہوگا.

اربوں روپے advertisements پر خرچ کرنے والی کمپنیاں خوب محنت کرکے ہمیں صبح شام اس بات پر رضامند کرتی ہیں اگر فلاں برانڈ کی فلاں چیز خرید لیں تو اس سے آپکی زندگی بدل جائے گی وگرنہ آپ یونہی ذلیل وخوار ہوتے رہیں گے، آپکی اپنی حقیقی شخصیت کی دراصل کوئی اہمیت نہیں.

انسانی دماغ (جو آج کل اپنے ہی نفع اور نقصان میں تمیز کرنے سے قاصر ہے) dopamine نامی ایک neuro hormone خارج کرتا ہے، یوں تو اس hormone کے سر کئی ذمہ داریاں سونپی گئی ہیں لیکن اسکا ایک کام ہمیں "خوشی" کا احساس دلانا بھی ہے، یہ ساری industries اسی کا فائدہ اٹھاتی ہیں. شاپنگ کرکے ہمیں خوشی کا جو احساس ہوتا ہے وہ اسی dopamine کی بدولت ہی ہے(retail therapy اسکی مثال ہے).

سائنٹفک ریسرچ کے مطابق چیزوں کی زیادہ خرید و فروخت (یعنی زیادہ dopamine کو خارج کرنا) لت (addiction) میں مبتلا کرتا ہے، آپ اس نہ ختم ہونے والے سلسلے کا حصہ بن جاتے ہیں اور اپنے ارد گرد اشیاء کا ڈھیر لگاتے جاتے ہیں.

ایک Minimalist ہونے کا یہ ہرگز مطلب نہیں کہ دنیا سے کنارہ کشی کر کے سنیاس لے لیا جائے. دراصل اس طرزِ زندگی کا مقصد آپکو ایک معیاری زندگی سے روشناس کرانا ہے. جب خواتین گھنٹوں صرف یہ سوچنے میں گزار دیتی ہیں کہ انہیں کیا پہننا اور کیسا نظر آنا ہے، دراصل یہ بھی غلامی کی ہی ایک شکل ہے. اچھے سے اچھا دکھنے کی یہ دوڑ ہمیں احساس کمتری اور ذہنی دباؤ میں مبتلا کرتی ہے، ساتھ ہی ساتھ ہمیں حقیقت سے دور کردیتی ہے کیونکہ حقیقت میں آپ ہر وقت خوبصورت نہیں دِکھ سکتے.

کم چیزیں خریدنا اور انہیں زیادہ عرصے تک استعمال کرنا آزادی کا احساس دلاتا ہے، احساس کمتری اور ہر وقت پرفیکٹ دکھنے اور کچھ نیا پہننے کی ذمہ داری سے آزادی....... وقت اور پیسوں کی بچت الگ.

جس دنیا میں لوگوں کا رویہ اور سلوک آپکے status اور پیسوں پر مبنی ہو وہاں ایک t-shirt یا dress کو کئی مواقع پر زیب تن کرنے پر لوگ آپکو جج کر سکتے ہیں.

مہنگے تحائف کا تبادلہ نہ کرنے پر رشتہ دار اور دوست degrade بھی کر سکتے ہیں. خوبصورت گھر یا گھر میں خوبصورت آرائشی سامان نہ ہونے پر اکثر آپکو حقارت کی نظر سے بھی دیکھا جائے گا. مہنگا موبائل ہاتھ میں نہ ہونے پر دوستوں کا آپکو غریب اور low standard خیال کرنا بھی ممکن ہے، اب ایسے میں ایک minimalist بن کر رہنا ہرگز آسان نہیں لیکن ناممکن بھی نہیں.

اپنی خوشی کو محض اشیاء سے جوڑ کر رکھنا اپنی ہی ذات کی توہین کرنے کے مترادف ہے. موجودہ وقت میں ہم نے اپنی اور اپنے بچوں کی خوشیوں کو محض اشیاء سے باندھ رکھا ہے. آج کل اچھے والدین وہی ہیں جو بچوں کو اچھے برینڈز لے کر دیتے ہیں، وقت دیں نہ دیں کوئی فرق نہیں پڑتا. یہاں میں والدین کو ایک چھوٹی سی suggestion دینا چاہوں گی.

*آپ جب بھی کام سے گھر واپس آئیں تو بچوں کے لیے تحائف یا کوئی بھی چیز لانے سے گرہیز کریں(اگر لائیں بھی تو گھر میں انٹر ہوتے وقت کبھی نہ دیں) ، گھر آکر انہیں ایک hug دیں اور اس بات کا احساس دلائیں آپکا وقت اور آپکی محبت سے قیمتی کوئی چیز نہیں اس دنیا میں. بچوں کا dopamine اشیاء کو گفٹ کرنے کی بجائے انکو وقت دے کر release کرائیں."

بے جا کی خرید و فروخت نہ صرف ہمارے ذہنوں کے لیے مضر ہے بلکہ ہمارے گھر یعنی Planet Earth کے لیے بھی شدید نقصان کا باعث ہے.

ندا اسحاق

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Eid Ki Namaj Sunnat, Farz hai ya Wazib hai? Quran o Sunnat ki Raushani me bataye.

Eid ki Namaj kya hai Sunnat ya farz?

Eid Ul Azaha ya Eid Ul Fitr ki Namaj Sunnat hai ya Wazib ya farz?

Sawal: Eid ki Namaj Sunnat hai ya farz? Dalail se wazahat kare....? Kya Eid ki Namaj Chhorne (Qaza) karne wala Gunahgaar hoga?

कुर्बानी का गोश्त कितने दिनों तक रख कर खा सकते है, क्या ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल करने से कुर्बानी जाएज़ नही होता?

अगर किसी की ईद की नमाज क़ज़ा हो जाए तो वह उसे कैसे अदा करेगा?

ईद की नमाज पढ़ने का सही तरीका?

ऐब्दार जानवरो की कुर्बानी जाएज़ है या नही?

" मै इतने पैसे लगाकर कुर्बानी नही करूँगा बल्कि इसी पैसे से किसी गरीब की मदद कर दूंगा"

गाय और ऊंट मे कितने बच्चो का अकिका हो सकता है?
गाय और ऊँट की कुर्बानी मे कितने लोग शामिल हो सकते है?

"سلسلہ سوال و جواب نمبر-249"
سوال_عیدین کی نماز سنت ہے یا فرض ؟ دلائل سے وضاحت کریں...؟ کیا عید کی نماز چھوڑنے والا گناہگار ہو گا؟

Published Date: 4-6-2019

جواب..!
الحمدللہ..!

*اس مسئلہ میں علماء کا اختلاف ہے مگر راجح بات یہی ہے کہ عید کی نماز تمام مسلمانوں پر فرض ہے کسی مجبوری کے بنا عید کی نماز چھوڑنا گناہ ہو گا*

نماز عيدين كے حكم ميں علماء كرام كے تين قول ہيں:

پہلا قول:
يہ سنت مؤكدہ ہے، امام مالك اور امام شافعى كا مسلک يہى ہے.

دوسرا قول:
يہ فرض كفايہ ہے، یعنی کچھ لوگ ادا کر لیں تو باقیوں سے حکم ساقط ہو جاتا ہے، امام احمد رحمہ اللہ كا مسلک يہى ہے.

تيسرا قول:
يہ ہر مسلمان پر واجب ہے، لہذا ہر مرد پر واجب ہے، اور بغير كسى عذر كے ترک كرنے پر گنہگار ہو گا، امام ابو حنيفہ رحمہ اللہ تعالى كا مسلک يہى ہے، اور امام احمد سے ايك روايت، اور شيخ الاسلام ابن تيميہ اور شوكانى رحمہما اللہ نے اسى قول كو اختيار كيا ہے.اور امام ابن قیم ،امام الصنعانی رحمھما اللہ،
شیخ ابن باز اور شیخ ابن عثیمین رحمھما اللہ وغیرہ کا بھی یہی مؤقف ہے کہ عید کی نماز واجب ہے،
(ديكھيں: المجموع ( 5 / 5 )
( المغنى ( 3 / 253 )
(الانصاف ( 5 / 316 )
( الاختيارات ( 82 )

*ہمارے علم کے مطابق بھی تيسرے قول والوں یعنی امام ابو حنیفہ رحمہ اللہ وغیرھم  کا مؤقف درست ہے کہ عید کی نماز واجب ہے اور وہ اس پر کئی ایک دلائل پیش کرتے ہیں جن میں سے چند ایک دلائل درج ذیل ہیں*

*پہلی دلیل*

📚 ارشاد بارى تعالى ہے:
اپنے رب كے ليے نماز ادا كرو، اور قربانى كرو
(سورہ الكوثر - 2 )

📚ابن قدامہ رحمہ اللہ تعالى " المغنى " ميں كہتے ہيں:
اس كى تفسير ميں مشہور يہ ہے كہ: اس سے مراد نماز عيد ہے.

اور بعض علماء كرام كا كہنا ہے كہ: اس آيت سے مراد عمومى نماز مراد ہے، نہ كہ يہ نماز عيد كے ساتھ خاص ہے،
ديكھيں: تفسير ابن جرير ( 12 / 724 )
اور تفسير ابن كثير ( 8 / 502 )

لیکن ہمارے علم کے مطابق اس آيت ميں نماز عيد كے وجوب پر كوئى خاص دليل نہيں پائى جاتى اور نا ہی یہ آئیت عید کی نماز ساتھ خاص ہے،

*دوسری دلیل*

نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے نماز عيد كے ليے عيدگاہ كى طرف نكلنے كا حكم ديا ہے، حتى كہ عورتوں كو بھى وہاں جانے كا حكم ديا.

📚ام عطیہ رضی اللہ تعالیٰ عنہا بیان کرتی ہیں،
کہ ( نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے زمانہ ) میں ہمیں عید کے دن عیدگاہ میں جانے کا حکم تھا۔ کنواری لڑکیاں اور حائضہ عورتیں بھی پردہ میں باہر آتی تھیں۔ یہ سب مردوں کے پیچھے پردہ میں رہتیں۔ جب مرد تکبیر کہتے تو یہ بھی کہتیں اور جب وہ دعا کرتے تو یہ بھی کرتیں۔ اس دن کی برکت اور پاکیزگی حاصل کرنے کی امید رکھتیں،
(صحیح بخاری،حدیث نمبر-971)

📚امام بخارى اور امام مسلم رحمہما اللہ نے ام عطيہ رضى اللہ تعالى عنہا سے روايت كيا ہے كہ:
ہميں رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے عيد الفطر اور عيد الاضحى ميں ( عيد گاہ كى طرف ) نكلنے كا حكم ديا، اور قريب البلوغ اور حائضہ اور كنوارى عورتوں سب كو، ليكن حائضہ عورتيں نماز سے عليحدہ رہيں، اور وہ خير اور مسلمانوں كے ساتھ دعا ميں شريك ہوں, وہ كہتى ہيں ميں نے عرض كيا: اے اللہ تعالى كے رسول صلى اللہ عليہ وسلم: اگر ہم ميں سے كسى ايك كے پاس اوڑھنى نہ ہو تو ؟
رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے فرمايا: اسے اس كى بہن اپنى اوڑھنى دے
(یعنی اپنی پڑوسن وغیرہ سے ادھار مانگ لے)
حفصہ کہتی ہیں، میں نے پوچھا کیا حائضہ بھی؟ تو انہوں نے فرمایا کہ وہ عرفات میں اور فلاں فلاں جگہ نہیں جاتی۔ یعنی جب وہ ان جملہ مقدس مقامات میں جاتی ہیں تو پھر عیدگاہ کیوں نہ جائیں۔۔؟
(صحيح بخارى حديث نمبر_ 324 )
(صحيح مسلم حديث نمبر_ 890 )

العواتق: عاتق كى جمع ہے، اور اس كا معنى وہ لڑكى ہے جو قريب البلوغ ہو يا بالغ ہو چكى ہو، يا پھر شادى كے قابل ہو.
ذوات الخدور: كنوارى لڑكيوں كو كہتے ہيں.

*اس حديث سے نماز عيد كے وجوب كا استدلال قوى ہے کہ جب عورتوں کو نکلنے کا حکم دیا ہے بلکہ جس کے پاس دوپٹہ نہیں وہ اپنی پڑوسن سے مانگ لے مگر عید کے لیے ضرور جائے تو مردوں کے لیے تو بالاولی حکم ہے وہ ہر صورت عید کی نماز کے لیے نکلیں*

*تیسری دلیل*

عید کی نماز پڑھنے والے کو جمعہ کی رخصت اسی وجہ سے دی گئی کہ اس نے عید کی نماز پڑھی ہے، اگر عید سنت نماز ہوتی تو کیا فرضی نماز کا حکم ساقط ہو جاتا؟

📚ایاس بن ابی رملہ شامہ کہتے ہیں،
میں معاویہ بن ابوسفیان رضی اللہ عنہ کے پاس موجود تھا اور وہ زید بن ارقم رضی اللہ عنہ سے پوچھ رہے تھے کہ کیا آپ نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ دو عیدوں میں جو ایک ہی دن آ پڑی ہوں حاضر رہے ہیں؟
تو انہوں نے کہا: ہاں،
معاویہ نے پوچھا: پھر آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے کس طرح کیا؟
انہوں نے کہا: آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے عید کی نماز پڑھی، پھر جمعہ کی رخصت دی اور فرمایا: جو جمعہ کی نماز پڑھنی چاہے پڑھے،
(سنن ابو داؤد،حدیث نمبر-1070) صحیح
(سنن ابن ماجہ،حدیث نمبر-1310) صحیح

*علماء کے فتاویٰ جات*

📚شيخ ابن عثيمين رحمہ اللہ تعالى " مجموع الفتاوى" ميں كہتے ہيں:
" ميرے خيال ميں نماز عيد فرض عين ہے، اور مردوں كے ليے اسے ترك كرنا جائز نہيں، بلكہ انہيں نماز عيد كے ليے حاضر ہونا ضرورى ہے، كيونكہ نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے قريب البلوغ اور كنوارى لڑكيوں اور باقى عورتوں كو بھى حاضر ہونے كا حكم ديا ہے، بلكہ حيض والى عورتوں كو بھى نماز عيد كے ليے نكلنے كا حكم ديا، ليكن وہ عيد گاہ سے دور رہيں گى، اور يہ اس كى تاكيد پر دلالت كرتا ہے" اھـ
(مجموع الفتاوى لابن عثيمين ( 16 / 214)

📚اور ايك دوسرى جگہ پر رقمطراز ہيں:
" دلائل سے جو ميرے نزديك راجح ہوتا ہے وہ يہ كہ نماز عيد فرض عين ہے، اور ہر مرد پر نماز عيد ميں حاضر ہونا واجب ہے، ليكن اگر كسى كے پاس عذر ہو تو پھر نہيں " اھـ
ديكھيں: مجموع الفتاوى ( 16 / 217 )

📚اور شيخ ابن باز رحمہ اللہ تعالى اس كے فرض عين ہونے كے متعلق كہتے ہيں:
دلائل ميں يہ قول ظاہر ہے، اور اقرب الى الصواب يہى ہے" اھـ
ديكھيں: مجموع الفتاوى ابن باز ( 13 / 7 )

📚امام ابن تیمیہ نے بھی صلوٰۃ عیدین کو فرض عین ہی قرار دیا ہے۔
(مجموع الفتاویٰ ص ۱۶۱ ج ۲۳)

*ان تمام احادیث اور علمائے کرام کے فتاویٰ جات سے جو بات سمجھ آئی ہے وہ یہ ہے کہ عیدین کی نماز فرض ہے*

1۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے دس سال مدینہ طیبہ میں قیام فرمایا اور دس سال پابندی کے ساتھ عیدین کی نماز پڑھتے رہے، آپ کے بعد خلفائے راشدین نے بھی عیدین کی نماز کو بڑی پابندی اور اہتمام سے ادا کیا، ایک دفعہ بھی نماز عیدین کا ترک ثابت نہیں۔

2۔ نماز عیدین سے اسلام کی شان و شوکت کا اظہار مقصود ہے، اس بناء پر صلوٰۃ جمعہ کی طرح یہ بھی واجب ہے، جو لوگ بالکل اسے ادا نہ کریں وہ گناہگار ہونگے،

3۔ نماز عید کی ادائیگی اور اس دن اجتماع عظیم میں حاضری عورتوں کیلئے بھی ضروری ہے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس دن عورتوں کو باہر کھلے میدان میں نکلنے کا حکم دیا ہے حتیٰ کہ جس کے پاس پردے کیلئے اپنی ذاتی چادر نہیں اسے بھی حاضری کا حکم دیا گیا ہے۔

4۔ اگر جمعہ اور عیدین ایک دن جمع ہو جائیں تو جمعہ کے متعلق رخصت ہے جیسا کہ اوپر حدیث بیان کی گئی، کہ جو عید کی نماز پڑھ لے وہ چاہے تو جمعہ نا پڑھے حالانکہ جمعہ واجب ہے، اگر صلوٰۃ عید فرض نہ ہوتی تو دوسرے فرض کو کیسے ساقط کر سکتی ہے؟
یہ بھی اس امر کی دلیل ہے کہ صلوٰۃ عیدین دیگر نماز پنجگانہ کی طرح فرض عین ہے، اور اسکو بلا عذر چھوڑنے والا گناہگار ہے،

*خلاصہ یہ ہے کہ عیدین کی نماز فرائض میں سے ہے اسکو بلا عذر چھوڑنا گناہ ہے*

________&_________

( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )

📚عید کی نماز کا مسنون طریقہ اور وقت اور کیا عورتیں بھی عیدگاہ میں نماز پڑھیں گی یا گھر۔۔۔؟
دیکھیں سسلسلہ نمبر-124

📚 عیدین کی نماز کی قضاء کا کیا حکم ہے؟ اگر کوئی شخص عید کی نماز سے لیٹ ہو جائے کہ امام نماز پڑھا چکا ہو یا ایک رکعت پڑھ چکا ہو تو وہ نماز کیسے مکمل کرے گا؟
دیکھیں سلسلہ نمبر-250

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Eid (Eid Ul Fitar aur Eid Ul Azaha) ki Namaj agar Qaza ho jaye to Use kaise Ada kiya ja sakta hai?

Eid ki Namaj ke Qaza ka kya hukm hai?

Sawal: Eid (Eid Ul Fitar ya Eid Ul Azaha) ki Namaj e Qaza ka kya hukm hai? Agar koi Mard aur Aurat kisi wajah se Eidgaah nahi pahuch saken, ya koi Shakhs takhir se pahuche ke uski ek ya dono Rakat qaza ho jaye aur Khutba shuru ho to wah Eid ki Namaj kaise Ada karega?

Kya Aeibdar Janwaro ki Qurbani jayez hai?

Gaye aur Oont me Kitne Baccho ka Aqeeqa ho sakta hai?

Eid ki Namaj Padhne ka sahi tarika?

" मै इतने पैसे लगाकर कुर्बानी नही करूँगा बल्कि इसी पैसे से किसी गरीब की मदद कर दूंगा "

سلسلہ سوال و جواب  نمبر-250
سوال_ عید کی نماز کی قضاء کا کیا حکم ہے؟ اگر کوئی مرد و عورت کسی عذر کی بنا پر  عیدگاہ نا پہنچ سکیں، یا کوئی شخص تاخیر سے پہنچے کہ اسکی ایک یا دونوں رکعت قضاء ہو جائیں اور خطبہ شروع ہو تو وہ عید کی نماز کیسے ادا کرے گا؟

Published Date: 11-8-2019

جواب:
الحمدللہ:

*کسی وجہ سے عیدین کی نماز قضاء ہو جائے تو اسکو چاہیے کہ باقی نمازوں کی طرح اسکی بھی قضا دے،یعنی عید کی دو رکعت نماز زائد تکبیرات کے ساتھ ادا کرے، اگر ایک سے زائد لوگ ہوں تو وہ جماعت کروا لیں،کہ پہلے جماعت سے نماز پڑھیں اور پھر خطبہ دے ایک شخص،اور اگر کوئی اکیلا شخص آئے اور خطبہ شروع ہو تو پہلے وہ خطبہ سنے اور پھر بعد میں عید کی نماز کی قضاء دے*

*یعنی جس کی نماز عید جماعت کے ساتھ فوت ہو جائے تو وہ اسکی قضائی دے گا، اور علماء کا اس میں اختلاف ہے کہ وہ قضاء کیسے دے گا،اور کہا گیا ہے کہ وہ چار رکعت ایک سلام کے ساتھ پڑھے گا یا دو سلام کے ساتھ اور راجح وہ ہے جسکی طرف جمہور علماء گئے ہیں وہ یہ ہے کہ عید کی نماز کی قضاء بھی اسی طریقے پر ادا کرے گا جس طریقے پر عید کی نماز ادا کرتے ہیں، پس وہ دو رکعت پڑھے گا پہلی رکعت سات تکبیرات کے ساتھ اور دوسری رکعت پانچ زائد تکبیرات کے ساتھ اور اسکے لیے جائز ہے کہ وہ تنہا قضاء پڑھے یا کچھ لوگ مل کر جماعت کے ساتھ قضاء پڑھ لیں،*
 
دلائل درج ذیل ہیں:

📚 عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ :    إِذَا سَمِعْتُمُ الْإِقَامَةَ فَامْشُوا إِلَى الصَّلَاةِ وَعَلَيْكُمْ بِالسَّكِينَةِ وَالْوَقَارِ وَلَا تُسْرِعُوا ، فَمَا أَدْرَكْتُمْ فَصَلُّوا ، وَمَا فَاتَكُمْ فَأَتِمُّوا،
ابو ھریرہ رض سے مروی ہے کہ
آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا تم لوگ تکبیر کی آواز سن لو تو نماز کے لیے ( معمولی چال سے ) چل پڑو۔ سکون اور وقار کو ( بہرحال ) پکڑے رکھو اور دوڑ کے مت آؤ۔ پھر نماز کا جو حصہ ملے اسے پڑھ لو، اور جو نہ مل سکے اسے بعد میں پورا کر لو۔
(صحیح بخاری حدیث نمبر-636)

یہ حدیث دلیل ہے ہر ایک نماز کے لیے،
کہ جب بھی کوئی شخص نماز باجماعت سے لیٹ ہو جائے تو جتنی نماز جماعت سے مل جائے وہ پڑھ لے اور جو رہ جائے وہ بعد میں پوری کر لے، یعنی جو شخص  عید کی نماز میں تاخیر سے پہنچے کہ ایک رکعت نکل ہو گئی تو جو وہ امام کے ساتھ پڑھے گا وہ اس کی پہلی رکعت ہو گی اور جب امام سلام پھیر دے تو وہ کھڑا ہو کر دوسری رکعت پڑھے گا، کیوں کہ یہہ صحیح ترتیب ہے اگر وہ پہلے دوسری رکعت پڑھ لے اور پھر پہلی رکعت پڑھے تو یی ترتیب غلط اور نماز نبوی کے خلاف ہو گی، اور  اگر کسی کی دونوں رکعتیں فوت ہو جائیں تو وہ بعد میں اکیلا یا با جماعت عید کی دونوں رکعت زائد تکبیرات کے ساتھ پڑھے گا،

📚قال الإمام البخاري في صحيحه
:[ باب إذا فاتته صلاة العيد يصلي ركعتين ، وكذلك النساء ومن كان في البيوت والقرى لقول النبي صلى الله عليه وسلم : هذا عيدنا أهل الإسلام وأمر أنس بن مالك
مولاه ابن أبي عتبة بالزاوية فجمع أهله وبنيه وصلى كصلاة أهل المصر وتكبيرهم . وقال عكرمة : أهل السواد يجتمعون في العيد يصلون ركعتين كما يصنع الإمام .
وقال عطاء : إذا فاته العيد صلى ركعتين]

ترجمہ:
امام بخاری صحیح بخاری میں فرماتے ہیں،
صحیح بخاری /کتاب:
عیدین کے مسائل کے بیان میں
بَابُ إِذَا فَاتَهُ الْعِيدُ يُصَلِّي رَكْعَتَيْنِ۔۔۔۔۔!
باب: اگر کسی کو جماعت سے عید کی نماز نہ ملے تو پھر دو رکعت پڑھ لے،اور عورتیں بھی ایسا ہی کریں اور وہ لوگ بھی جو گھروں اور دیہاتوں وغیرہ میں ہوں اور جماعت میں نہ آ سکیں (وہ بھی ایسا ہی کریں) کیونکہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے کہ اسلام والو! یہ ہماری عید ہے۔

📚 انس بن مالک رضی اللہ عنہ کے غلام ابن ابی عتبہ زاویہ نامی گاؤں میں رہتے تھے۔ انہیں آپ نے حکم دیا تھا کہ وہ اپنے گھر والوں اور بچوں کو جمع کر کے شہر والوں کی طرح نماز عید پڑھیں اور تکبیر کہیں۔ عکرمہ نے شہر کے قرب و جوار میں آباد لوگوں کے لیے فرمایا کہ جس طرح امام کرتا ہے یہ لوگ بھی عید کے دن جمع ہو کر دو رکعت نماز پڑھیں۔ عطاء نے کہا کہ اگر کسی کی عید کی نماز(جماعت) چھوٹ جائے تو دو رکعت (تنہا) پڑھ لے۔
(صحیح بخاری قبل الحدیث-987)
 

📚وذكر الحافظ ابن حجر أن أثر أنس المذكور قد وصله ابن أبي شيبة في المصنف وقوله الزاوية اسم موضع بالقرب من البصرة كان به لأنس قصر وأرض وكان يقيم هناك كثيراً . وقول عكرمة وعطاء وصلهما
ابن أبي شيبة أيضاً ]
(صحيح البخاري مع شرحه فتح الباري 3/127-128 )
ترجمہ:
اور حافظ ابن حجر رحمہ اللہ بیان کرتے ہیں کہ  انس رض کا اثر جو مذکور ہے بخاری میں اسکو ابن ابی شیبہ نے متصل بیان کیا ہے اپنی مصنف کے ساتھ، اور جو زاویہ کا بیان آیا یے وہ ایک جگہ کا نام ہے جو بصرہ کے قریب واقع ہے، اور وہاں انس رض کا محل تھا اور زمین تھی انکی،وہ اکثر وہاں رہا کرتے تھے اور عکرمہ اور عطاء کا جو قول ہے ان دونوں کو ابن ابی شیبہ نے متصل بیان کیا ہے اپنی مصنف میں،

 

📚وروى البيهقي بإسناده عن عبيد الله بن أبي بكر بن أنس بن مالك خادم رسول الله صلى الله عليه وسلم قال :[ كان أنس إذا فاتته صلاة العيد مع الإمام ، جمع أهله فصلى بهم مثل صلاة الإمام في العيد ]. ثم قال البيهقي :[ ويذكر عن أنس بن مالك أنه كان بمنزله بالزاوية فلم يشهد العيد بالبصرة جمع مواليه وولده ثم يأمر مولاه عبد الله بن أبي عتبة فيصلي بهم كصلاة أهل المصر ركعتين ويكبربهم كتكبيرهم].
ترجمہ:
اور بیھقی میں روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے خادم انس بن مالک رض کی جب عید کی نماز فوت ہو جاتی تو وہ اپنے گھر والوں کو جمع کرتے اور امام(جماعت) کی طرح انکے ساتھ نماز عید کی نماز پڑھتے،
بیھقی کہتے ہیں کہ انس رض اپنے گھر زاویہ نامی جگہ میں رہتے تھے جب وہ عید کی نماز کے لیے بصرہ نا جا پاتے تو اپنے غلاموں اور بچوں کو جمع کرتے اور اپنے غلام عبداللہ بن ابی عتبہ کو حکم دیتے کہ وہ انکو شہر والوں کی طرح دو رکعت عید کی نماز پڑھاتے اور انکی طرح ہی ان  میں تکبیرات کہتے
( سنن البيهقي3/305)

📚وذكر البيهقي أن عكرمة قال :
[ أهل السواد – أهل الريف – يجتمعون في العيد يصلون ركعتين كما يصنع الإمام
بیھقی نے ذکر کیا کہ عکرمہ کہتے ہیں اھل السواد سے مراد اھل الریف ہیں (کسی بستی کا نام) وہ عید کے دن جمع ہوتے اور امام کی طرح دو رکعت پڑھتے،
( سنن البيهقي3/305)

 
📚وعن محمد بن سيرين قال :
كانوا يستحبون إذا فات الرجل الصلاة في العيدين أن يمضي إلى الجبان فيصنع كما يصنع الإمام . وعن عطاء إذا فاته العيد صلى ركعتين ليس فيهما تكبيرة ]
محمد بن سیرین کہتے ہیں وہ پسند کرتے ہیں کہ جسں آدمی کی عید کی  نماز  فوت ہو جائے تو وہ کھلی جگہ کی طرف نکلے اور اسی طرح کرے جیسے امام کرتا ہے (یعنی ویسے عید کی نماز پڑھے) اور عطا کہتے ہیں کہ جب عید کی نماز فوت ہو جائے تو وہ دو رکعت پڑھے گا اور ان میں تکبیرات نہیں کہے گا،
( سنن البيهقي3/305)

📚وروى عبد الرزاق بإسناده عن قتادة قال :[ من فاتته صلاة يوم الفطر صلى كما يصلي الإمام . قال معمر : إن فاتـت إنساناً الخطبة أو الصلاة يوم فطر أو أضحى ثم حضر بعد ذلك فإنه يصلي ركعتين ]
قتادہ کہتے ہیں جسکی عید کی نماز فوت ہو جائے وہ اسی طرح نماز پڑھے جیسے امام پڑھتا ہے، معمر کہتے ہیں اگر انسان کا خطبہ فوت ہو جائے یا عیدالفطر کی نماز یا عید الاضحی کی نماز اور وہ بعد میں حاضر ہو تو وہ دو رکعت ادا کرے گا
(مصنف عبد الرزاق 3/300-301 )

📚وروى ابن أبي شيبة أيضاً بإسناده عن الحسن البصري قال :[ فيمن فاته العيد يصلي مثل صلاة الإمام.
اور ابن ابی شیبہ نے حسن بصری رحمہ اللہ سے اسی طرح نقل کیا ہے کہ جسکی عید کی نماز فوت ہو جائے تو وہ امام کی طرح نماز پڑھے گا،

 

📚وروى أيضاً عن إبراهيم النخعي قال : إذا فاتتك الصلاة مع الإمام فصل مثل صلاته ]. قال إبراهيم :[ وإذا استقبل الناس راجعين فلتدخل أدنى مسجد ثم فلتصل صلاة الإمام ومن لا يخرج إلى العيد فليصل مثل صلاة الإمام ]. وروى عن حماد في من لم يدرك الصلاة يوم العيد قال :[ يصلي مثل صلاته ويكبر مثل تكبيره ] مصنف ابن أبي شيبة 2/183-184 .
اور اسی طرح یہ روائیت کی گئی ہے امام  ابراہیم نخعی رحمہ اللہ سے کہ وہ فرماتے ہیں،جب تیری نماز امام کے ساتھ فوت ہو جائے تو تو نماز پڑھ امام کی طرح ہی، (یعنی اتنی ہی) اور ابرہیم کہتے ہیں جب وہ لوگوں کو واپس آتے دیکھتے تو وہ کہتے کہ تو قریبی مسجد میں داخل ہو اور امام کی طرح (دو رکعت عید کی) نماز پڑھ، اور جو عیدگاہ کی طرف نا جانے وہ بھی امام کی طرح عید کی نماز پڑھ لے،
اور حماد سے روایت ہے اس بارے کہ جو عید کی نماز نا پا سکے،
وہ کہتے ہیں کہ وہ انہی (امام) کی طرح نماز پڑھے اور انہیں کی طرح زائد تکبیرات کہے (عید کی نماز میں)
 

📚وبمقتضى هذه الآثار قال جمهور أهل العلم أن من فاتته صلاة العيد صلى ركعتين كما صلى الإمام مع التكبيرات الزوائد . ومن العلماء من قال : يصليها أربعاً واحتج بأثر وارد عن عبد الله بن مسعود رضي
الله عنه أنه قال : من فاته العيد فليصل أربعاً ] ولكنه منقطع كما قال الشيخ الألباني في إرواء الغليل 3/121 .
اور ان تمام آثار کا تقاضا ہے کہ جمہور اہل علم نے کہا ہے کہ جسکی عید کی نماز فوت ہو جائے تو وہ دو رکعت عید کی نماز پڑھے گا جس طرح امام زائد تکبیرات کے ساتھ دو رکعت پڑھتا ہے،
اور بعض علماء نے جو یہ کہا ہے کہ وہ چار رکعت پڑھے گا تو وہ اس دلیل کی بنا پر کہتے ہیں کہ ابن مسعود رضی اللہ عنہ نے فرمایا کہ جسکی عید کی نماز فوت ہو جائے تو وہ چار رکعت ادا کرے،
 لیکن اس روایت کی سند منقطع ہے جیسا کہ علامہ البانی رحمہ اللہ نے إرواء الغليل میں کہا ہے،

 
📚قال الشيخ ابن قدامة المقدسي:
[وإن شاء صلاها على صفة صلاة العيد بتكبير ، نقل ذلك عن أحمد إسماعيل بن سعد واختاره الجوزجاني وهذا قول النخعي ومالك والشافعي وأبي ثور وابن المنذر لما
روي عن أنس : أنه كان إذا لم يشهد العيد مع الإمام بالبصرة جمع أهله ومواليه ثم قام عبد الله بن أبي عتبة مولاه فصلى بهم ركعتين يكبر فيهما ولأنه قضاء صلاة فكان على صفتها كسائر الصلوات وهو
إن شاء صلاها وحده وإن شاء في جماعة . قيل لأبي عبد الله : أين يصلي ؟ قال : إن شاء مضى إلى المصلى وإن شاء حيث شاء ] المغني 2/290.
شیخ ابن قدامہ مقدسی کہتے ہیں
اور اگر وہ چاہتا ہے کہ وہ عید کی طرح زائد تکبیرات کے ساتھ نماز پڑھے تو وہ اسی طرح سے پڑھ لے،
نقل کیا ہے اس قول کو احمد اسماعیل بن سعد سے، اور اس قول کو اختیار کیا ہے جوزجانی نے، اور یہی امام نخعی کا قول  ہے، اور یہی قول مالک، شافعی، ابی ثور اور  ابن منذر رحمھما اللھم کا ہے،
اور انس رض سے مروی ہے کہ جب وہ بصرہ میں امام کے ساتھ عید کی نماز میں حاضر نا ہو پاتے تو وہ اپنے اہل وعیال اور غلاموں کو جمع کرتے اور پھر عبداللہ بن ابی عتبہ جو انکا غلام تھا وہ کھڑا ہوا اور انکو دو رکعتیں نماز پڑھائی، اور انکے اندر تکبیرات بھی کہیں،
اور کیونکہ یہ نماز کی قضائی ہے تو یہ اسی طریقے پر ہو گی جس طرح اصل نماز پڑھی جاتی ہے، اور اگر وہ اکیلا پڑھنا چاہے تو اکیلا پڑھ لے اور اگر چاہے تو جماعت سے پڑھ لے،
اور ابی عبداللہ کے لیے کہا گیا کہ وہ کہاں پر عید کی (قضا) نماز پڑھے؟ تو انہوں نے کہا کہ وہ چاہے تو عیدگاہ میں چلا جائے اور چاہے تو جہاں مرضی پڑھ لے،
 
📚ونقل القرافي أن مذهب الإمام مالك كما في المدونة أنه يستحب لمن فاتته صلاة العيد مع الإمام أن يصليها على هيئتها .
(الذخيرة 2/423 )
اور اسی طرح قرافی نے نقل کیا ہے کہ امام مالک کا مذھب یہ ہے جیسے کہ مدونہ میں ہے  کہ جس کی عید کی نماز امام کے ساتھ پڑھنے سے رہ جائے تو وہ اسی طرح اس کی اصل پر نماز پڑھے جیسے عید کی نماز پڑھی جاتی ہے

 
📚وقال الإمام الشافعي:
[ونحن نقول: إذا صلاها أحد صلاها كما يفعل الإمام يكبر في الأولى سبعاً وفي الآخرة خمساً قبل القراءة ]
(معرفة السنن والآثار 5/103)
ترجمہ:
اور امام شافعی کہتے ہیں کہ ہمارا قول یہ ہے کہ جب وہ اکیلا ( عید کی قضاء) نماز پڑھے گا تو تو وہ اسی طرح نماز پڑھے گا جس طرح امام پڑھتا ہے، پہلی رکعت میں سات تکبیرات کہے گا اور دوسری رکعت میں پانچ تکبیریں کہے گا قرآت سے پہلے،

📚وذكر المرداوي الحنبلي أن المذهب عند الحنابلة هو أنها تقضى على صفتها . (الإنصاف 2/433 )
ترجمہ:
اور مرداوی حنبلی نے بھی  ذکر کیا ہے کہ حنبلی مسلک بھی یہ ہے کہ وہ عید کی نماز اسی طریقے پر قضا پڑھے گا،

📒بارش کی شدت کے باعث علامہ البانی رحمہ اللہ کااپنےگھر والوں کو جمع کرکے عید پڑھتے تھے،

صلاة العلامة الألباني العيد في منزله لتعذّر الوصول إلى المصلّى.
ذكرت إحدى زوجات العلامة الألباني رحمه الله: أنه في يوم عيد كانت السماء تمطر مطراً شديداً، ولا سبيل للوصول إلى المصلّى إلا بمشقة.
*فجمع الشيخ الألباني أهلَه في البيت وصلّى ركعتين مع التكبيرات، ثم خطب بهم خطبة.*
( كناشة البيروتي (4/1943)

________&________

*سعودی فتاویٰ کمیٹی کا فتویٰ*

📚واختارت هذا القول اللجنة الدائمة للإفتاء بالسعودية برئاسة العلامة الشيخ عبد العزيز بن باز – رحمه الله –
فقد جاء في فتواها:
[ومن فاتته وأحب قضاءها استحب له ذلك فيصليها على صفتها من دون خطبة بعدها وبهذا قال الإمام مالك والشافعي وأحمد والنخعي وغيرهم من أهل العلم،
والأصل في ذلك قوله صلى الله عليه وسلم : ( إذا أتيتم الصلاة فامشوا وعليكم السكينة والوقار فما أدركتم فصلوا وما فاتكم فاقضوا ) وما روي عن أنس رضي الله عنه أنه كان إذا فاتته صلاة العيد مع الإمام جمع أهله ومواليه ثم قام عبد الله بن أبي عتبة مولاه فيصلي بهم ركعتين يكبر فيهما . ولمن حضر يوم العيد والإمام يخطب أن يسـتمع الخطبة ثم يقضي الصلاة بعد ذلك حتى يجمع بين المصلحتين ] (فتاوى اللجنة الدائمة 8/306 )
ترجمہ:
سعودی فتاویٰ کمیٹی الجنة دائمہ نے بھی اسی قول کو اختیار کیا ہے جس  کے سرپرست شیخ عبداللہ بن باز رحمہ اللہ ہیں، وہ اپنے فتویٰ میں کہتے ہیں کہ جسکی عید کی نماز رہ جائے تو وہ اسی طریقے پر پڑھے گا جس طرح عید کی نماز پڑھی جاتی ہے لیکن(تنہا کیلے) اس میں خطبہ نہیں ہو گا ، اور امام مالک، شافعی، احمد اور نخعی اور دوسروں کا قول ہے اور علماء میں سے دیگر اہل علم کا بھی یہی قول ہے،
اور اصل میں یہ قول نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کا ہے جب تم نماز كے ليے آؤ تو تم وقار اور سكون سے آؤ جو تمہيں مل جائے اسے ادا كرو، اور جو رہ جائے اس كى قضاء كرو "
اور انس رضى اللہ تعالى عنہ سے مروى ہے كہ:" جب ان كى امام كے ساتھ نماز عيد رہ جاتى تو وہ اپنے اہل و عيال اور غلاموں كو جمع كيا پھر ان كے غلام عبد اللہ بن ابى عتبہ اٹھ كر انہيں دو ركعت پڑھاتے اور ان ميں تكبريں كہتے.
جو شخص عيد كے روز آئے اور امام خطبہ دے رہا ہو وہ خطبہ سنے اور پھر اس كے بعد نماز ادا كرے تا كہ دونوں مصلحتوں كو جمع كر سكے"

اللہ تعالى ہى توفيق دينے والا ہے.
اللہ تعالى ہمارے نبى محمد صلى اللہ عليہ وسلم اور ان كى آل اور صحابہ كرام پر اپنى رحمتيں نازل فرمائے. انتہى

مستقل فتوى اينڈ علمى ريسرچ كميٹى.
الشيخ عبد العزيز بن عبد اللہ بن باز.
الشيخ عبد الرزاق عفيفى.
الشيخ عبد اللہ بن غديان.
ديكھيں: فتاوى اللجنۃ الدائمۃ للبحوث العلميۃ والافتاء ( 8 / 306 )

*ان تمام دلائل سے ثابت ہوا کہ ویسے تو عیدگاہ جا کر تمام مرد و عورت اجتماعی نماز ادا کریں، لیکن کسی عذر بارش،یا خوف وغیرہ یا کسی وجہ سے عیدگاہ نا جا سکیں یا تاخیر سے پہنچیں تو اپنے گاؤں محلے کی مسجد یا کسی کھلی جگہ یا گھر میں بھی کچھ افراد اکٹھے ہو کر عید کی نماز پڑھ سکتے ہیں، طریقہ وہی ہو گا پہلے نماز اور پھر خطبہ،اور اگر کوئی اکیلا شخص عیدگاہ نہیں پہنچ پایا یا کسی جگہ کوئی خطبہ دینے والا نہیں تو وہ بغیر خطبہ کے جماعت ساتھ یا تنہا ہی عید کی نماز دو رکعت زائد تکبیرات کے ساتھ پڑھ لیں،اور اگر کوئی اس وقت عیدگاہ پہنچے کہ نماز کی جماعت ہو رہی ہو تو وہ اسی وقت شامل ہو جائے نماز میں اور جتنی نماز رہ جائے اسکو امام کے سلام کے پھیرنے کے بعد پوری کر لے،*

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )))

📚قضائے عمری کا کیا حکم ہے؟ جس شخص کی بھول سے یا جان بوجھ کر بہت سی نمازیں رہ جائیں تو وہ انکی قضا کیسے دے گا؟
((دیکھیں سلسلہ نمبر-122))

📚(عیدین کی نماز عیدگاہ یا مسجد اور گھر میں بھی پڑھ سکتے ؟ نیز نماز عید کا مسنون طریقہ کیا ہے؟دیکھیں، سلسلہ نمبر-124)

📚(قربانی کے مسائل کے بارے مزید جاننے کیلئے دیکھیں سلسلہ نمبر-59 تا 77)

📚رمضان کے مسائل کے لیے دیکھیں سلسلہ نمبر-108 سے لیکر 126 تک)

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