Aaj kal Social Media pe har taraf Ertugrul Gaji ka hi charcha kyu hai?
Yah Ertugrul Gaji hai kya?
Ertugrul Gaji Episode itna Mashhoor kaise ho gaya.
Yah drama kaisa hai aur isse kya sikh sakte hai ham?
Is Drame ka Tarikh (History) Se koi Talluq hai ya sirf Imagine hai?
आखिर अर्तरुल गजी सीरियल इतना लोकप्रिय क्यों हो रहा है?
अर्तरुल गाजी क्या है? यह सीरियल पूरी दुनिया में क्यों इतना लोकप्रिय है?
अर्तरुल गाजी भारत में ही नही बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हो गया है। भारत के साथ तकरीबन 71 देशों में यह देखा जा रहा है। नेटफ्लिक्स और यूट्यूब पर भी यह सीरीज़ मौजूद है।
यह ड्रामा ऐतिहासिक किरदारों और घटनाओं पर आधारित है।
ड्रामे के शुरुआत में कुछ इस तरह बताया गया है।
अर्तरूल गाजी तेरहवीं सदी के अनातोलिया (तुर्की) की तारीख से माखूज एक अजीमुश्शान दास्तान है। ईमान, इंसाफ और मुहब्बत की रौशनाई से लिखी एक बहादुर जंगजू की कहानी जिसने अपनी साबित कदमी और जुर्रात से ना सिर्फ अपने काबिले बल्कि तमाम आलम ए इसलाम की तकदीर बदल डाली। अोगोज तुर्को के खाना बदोश काई काबिले को एक ऐसे वतन कि तलाश थी जहा उनकी नस्लें परवान चढ़ सके। काई काबिले के सरदार सुलेमान शाह के बेटे अर्तरूल गाजी ने इसलाम की सर बुलंदी की खातिर अपनी जान व माल और अज़ीज़ व अकारीब को खतरे में डाल कर अपने जंगजुंओं के साथ मुख्तलिफ अद्वार में सलेबियो, मंगोलों , सलजूक सल्तनत में मौजूद गद्दारों और दीगर इस्लामी दुश्मन अनासिर को शिकस्त दी।
1280 में अर्तरूल के वफात के बाद उनके बेटे उस्मान ने अज़ीम सल्तनत उस्मानिया की दाग बेल डाली और यूं खानाबदोशों के इस काबिले ने तीन बर्रे आजमो पर छः सौ साल (600) तक हुकूमत की।
यह ड्रामा सीरियल तारीखी किरदारों और वाकयात से माख़ूज है।
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अर्तरुल गाजी मुस्लिम दुनिया मे एक महान योद्धा के रूप में जाने जाते है जिनकी मंगोलों और सलेबियो के साथ जंग और कश्मकश की हाकिकी कहानी है।
नेटफ्लिक्स पर भी यह मौजूद है और तकरीबन 440+ एपिसोड्स है और हर एक एपिसोड करीब 40 मिनट का है। इस सीरीज के 5 सीज़न हैं, इसे आप यूट्यूब पे भी देख सकते है।
इसमें तुर्क मुस्लिमो के गौरवशाली इतिहास का वर्णन है कि कैसे ऑटोमन साम्राज्य (उस्मानिया सलतनत) का विस्तार किया और कैसे ज़ालिम मंगोलो और सलेबियो से लड़ाइयां लड़ी और उन्हें हराया। यह सीरियल एक काबिले (काई कबीला) के इर्दगिर्द घूमती है। इस काबिले की जनसंख्या महज 3000 थी लेकिन जंगी तरबियत और कालीन बनाने में वे पारंगत थे। आखिर कैसे यह इतना छोटा सा कबीला अज़ीम सल्तनत की नींव रखता है उसी का वर्णन किया गया है इस सीरियल में।
क्यों इतना लोकप्रिय है यह सीरियल?
हमेशा आतंकवाद से जोड़े जाने वाले मुस्लिम युवाओं को एक गर्व करने वाला इतिहास हाथ लगा है। यह वैसा ही है जैसे महाराणा प्रताप को देखकर युवाओ का सीना चौड़ा हो जाता है। पश्चिमी देश हमेशा से मुस्लिम शासकों को आक्रामक, असभ्य बताते आए है लेकिन उसके विपरीत अर्तरुल गाजी एक निर्भीक, इंसाफ करने वाले और जांबाज योद्धा थे।
# प्रत्येक एपिसोड बहुत ही दिलचस्प है जिसमें दर्शकों में प्रति सेकंड बाद इस चीज का इंतेज़ार होता है के अब आगे क्या होगा?
# अर्तरूल गाजी कुल मिलाकर एक शक्तिशाली संदेश है। इससे हमे यह सबक मिलता है के कभी भी किसी इंसान को हालात से जल्द घबराकर मायूस नहीं होना चाहिए, मुश्किल वक़्त में उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए, हमेशा अल्लाह से दुआ करनी चाहिए क्यों के तकदीर लिखने वाला हमारा रब है और मायूसी कुफ्र है।
पूरी श्रृंखला अच्छाई बनाम बुराई की लड़ाई पर आधारित है। पूरी कहानी के दौरान, कुरान और इस्लामी शिक्षाओं के बहुत सारे संदर्भ हैं। इस नाटक का एक शैक्षिक मूल्य है और यह आपके दिमाग को खोलता है। आप सीखते हैं और वह भी कहानी से मनोरंजन करते हुए। इस श्रृंखला का मुख्य संदेश यह है कि वास्तव में अपने विश्वास को पकड़ना और आखिर में बुराई पर अच्छी जीत के लिए महत्वपूर्ण है। इसका एक पैग़ाम यह भी मिलता है के किसी बुरे से बुरे (ज़ालिम) शख्स से सामना करने पर भी हुस्ने सुलूक से पेश आना चाहिए।
# सभी क़िरदारों का दमदार होना।
मैंने अभी तक 34 एपिसोड्स देखे हैं और सभी पार्ट बहुत ही दिलचस्प थे और नाजरीन (दर्शकों) को बांधे रखते है।
मैंने अभी तक इस सीरीज से क्या क्या बाते सीखी-
बुराई हम पर हावी हो सकती है लेकिन हम पर फतह कभी नहीं पा सकती
किसी को सच्चे मन से चाहो और आपकी मोहब्बत पाक हो तो कोई भी ताकत आपको एक होने से नहीं रोक सकती बस दिल का इरादा साफ होना चाहिए।
अच्छाई से ही हम किसी को अपना मुरीद बना सकते है ना कि तलवार के दम पर।
हमारे साथ उठने बैठने वाले भी हमारे हितेषी नहीं हो सकते और दुश्मनों के साथ रहने वाले सभी हमारे दुश्मन नहीं होते। (जैसा के इसमें दिखाया गया है काई काबिले के सरदार सुलेमान शाह का भाई और उनके बरे बेटे की होने वाली बीवी सलजान हमेशा सरदार के खिलाफ साजिश ही रचती रहती है, हलेप के बादशाह अल अज़ीज़ की कनिज आस्मा जिसे सलेबी अपना जासूस बनाकर अल अज़ीज़ के पास भेज देता है और वह वाहा जाकर नासिर को अपने साथ लेकर दोनों अल अज़ीज़ के सल्तनत को खतम करने पे लगी होती है और उसके हर एक हरकत पे नज़र रखती, पेट्रिशियो को एक एक बात पहुंचाती रहती है जबकि आसमा का असल नाम अर्तालिया रहती है और यह अपनी हुस्न, दिलकश अदाओं से बादशाह के दिलो की मलका बनी रहती है।
किसी भी मुसीबत के आने पर मायूस होकर बैठना नहीं चाहिए।
जो आंसू हम बहाते हैं, वो हमारे दिल के बगीचे को सींचते हैं।
अपने वतन से मुहब्बत करना आपके ईमान का हिस्सा है।
अगर हमें जो हासिल है हम उसमें शुक्र मना लें, तो हमारे दिल में सुकून रहेगा।
इंसान की मंज़िल उसकी कोशिशों पर निर्भर करती है।
इंसान मायूस और परेशान उस वक़्त होता है जब अपने रब को राज़ी करने के बजाए लोगो को राज़ी करने की फिक्र में लग जाता है।
किसी के लिए गलत अंदाजा कभी मत लगाए। बहुत सी ना पसंडिदगिया और नफरतें गलतफहमियों और गलत अंदाजो का नतीजा भी हो सकती है।
कभी कभी इंसान बहुत मायूस हो जाता है ऐसा लगता है के सबकुछ ख़तम हो गया, ज़िन्दगी से जुड़ी सारी खुशियां फना हो गई लेकिन फिर अल्लाह ऐसा रास्ता निकाल देता है के इंसान हैरान रह जाता है... बेशक वह बड़ी हिकमत वाला है।
और भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है, इसे देखने के बाद हमे अपना तारीख याद आता है।
मगर यह एक तारीखी वक्यात पे बनी हुई सीरियल है जिसका इसलाम से कोई ताल्लुक नहीं, इस्लामी ऐतेबार से इस ड्रामे में बहुत सारी चीज़ें गलत भी है।
ईमान और हया का कोई लिहाज ही नहीं, शादी से पहले इश्क़ व आशिक़ी में मुब्तिला रहते है ना मेहरमो से मिलना और उससे तन्हाई में इश्क़ फरमाना आम है, पर्दे की कोई अहमियत ही नहीं, मेहरम और ना मेहरम में कोई फर्क ही नहीं। फहासी आम है इस सीरियल में।
इस ड्रामे में शादी से पहले इश्क़ मौशिकी दिखाई गई है, हमारी माएं बहने इस ड्रामे को देख कर यही ख्याल करेंगी के इसलाम में इश्क़ व मौशीकी हलाल अमल है जो इस ड्रामे में इश्क़ व मौशिकि को एक इबादत के जैसा पेश किया गया है। ड्रामे का हीरो अरतरुल गाजी और हीरोइन हलीमा सुल्तान के किरदार का जायजा ले सकते है उसी तरह हालेप का अल अज़ीज़ की महबूबा आसमा (जासूस अरतालिया)।
इब्न उल अरबी का किरदार भी शिर्क से भरा हुआ है, जबके उसे एक पक्का सच्चा आलिम ए दीन के तौर पे पेश किया गया है, लोग इसे देख कर इसलाम का हिस्सा समझेंगे और बखूबी मजहबी फरिजा के तौर पर अपनाने लगेंगे। इसके अलावा और भी बहुत सारी शिर्किया अमल को इसलाम का हिस्सा बताया गया है।
यह कहना के इस ड्रामे को देखने से ईमान मजबूत होता है बिल्कुल ग़लत है, फिल्म फिल्म ही होता है उससे सीखने के बजाए आप इसलामी तारीख की किताबें पढ़ सकते है, फिल्म देख कर कोई सच्चा मोमीन नहीं बन सकता है बस यह एक बनी बनाई साजिश है और हम तो ऐसे भी हमेशा मूवी/सीरियल देखते ही है फिर आज तो यह कह कर निकल जाएंगे के इस्लामिक सीरियल है यह इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अगर फिल्म देखने से ही सबकुछ सीख सकते तो फिर लायब्रेरी की जरूरत ही नहीं है, अगर तारीख के बारे में जानना है तो किताबें पढ़िए ना के ड्रामा देखिए और
यह के इस्लामी तारीख पे बना है तो जायज ही होगा ऐसा कुछ भी नहीं है।
जिस दिन हम यह कहना छोर देंगे के "हर कोई तो ऐसा ही कर रहा है तो हम करेंगे तो क्या होगा" उस दिन से हमे सबकुछ समझ आ जाएगा, ईमान के फाइल से मस्लेहत के फोल्डर को डिलीट कीजिए तब जाकर हमारा ईमान मुकम्मल होगा, जो बुराई पे चलने का आदी हो चुका है वहीं मस्लेहात वाली बातें करता है।
अपनी गुनाहों पे पर्दा डालने के लिए मसलेहत का सहारा लेता है।
आज कल तन्हाई में मिलने का मॉडर्न तरीका सोशल मीडिया है, फोन कॉल सब इसी में शुमार होता है।