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Mai kaun hoo : Satya Sanatam Dharm ko Manane wala (Part 59)

Mai Kaun Hoo Ek Satya Sanatam ko manne wala.
Islam Hi Satya Sanatam Dharm hai.
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
*अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु*

*पार्ट:- 59
*मैं कौन हूँ:-एक सत्य सनातन धर्म*
      *🌷🌹🌷इस्लाम🌷🌹🌷*
लेखक की आपसे विनती
*पोस्ट को पढ़ने वाले सभी भाइयों ओर बहनो के लिए ये पोस्ट बनाकर उम्मीद की जाती है कि आप वास्तविक रूप से समस्त मानव सनातन व शाश्वत धर्म को जानने के अभिलाषी हैं,।*

*जिसमें वास्तविक जाति का कल्याण छुपा हुआ है और जिसमें हर एक का कल्याण छुपा हुआ है और जिसका एक हिस्सा आप स्वयं भी है।*

*मान्यवर, इन सभी पोस्ट के साथ आपको यह आमन्त्रण भी दिया जाता है कि आप समस्त मानव जाति के उद्धारक के रूप में अवतरित हज़रत मुहम्मद साहब के ऊपर नाजिल की गयी क़ुरआन का अवश्य अध्ययन करें।*

*यह कुरआन वो पुस्तक है जो,आपको अपने पैदा होने के असली मकसद से रूबरू करवाता है,*

*आपको पुनर्जन्म व बहुदेववाद के कचकों से निकालकर मुक्ति का एक ही सीधा व सच्चा मार्ग दिखती है।*

*आपको अच्छे व बुरे कर्मों के द्वारा अर्जित स्वर्ग या नर्क की वास्तविक व्याख्या व रूपरेखाओं से परिचित कराती है।*

*इसलिये, प्रियवरों, आपके व हमारे एक ही सच्चे ईश्वर जिसका सर्वोतम नाम अल्लाह है, द्वारा अवतरित पुस्तक पवित्र क़ुरआन से अपने मुक्ति के मार्ग को तलाशिये।*

*विश्वास किजीये, इसके अध्ययन के बाद आपकी दुनिया ही बदल जाएगी, आप इसको पढ़ने के बाद अपने आपको गौरान्वित महसूस करेंगे और साथ ही अपने व अपने वास्तविक रचियता के बीच एक जीवंत व अटूट सम्बन्ध महसूस करेंगे।*

*पवित्र क़ुरआन की (सूरः: युसूफ-आयत-40) अल्लाह का फरमान है:-*
•                                  *जिन चीज़ों को तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो, वे सिर्फ नाम हैं, जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा (पूर्वजों) ने रख लिये हैं। अल्लाह ने उनकी कोई दलील (प्रमाण) नाज़िल (प्रस्तावित ) नहीं की।(सुन रखो कि) अल्लाह के सिवा किसी की हुकूमत नहीं है। उसने इर्शाद (कथन) फ़रमाया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो। यही सीधा रास्ता है, लेकिन अकसर लोग नहीं जानते।*

*पवित्र क़ुआन की इस आयत द्वारा सच्चा पालनहार अल्लाह समस्त मानवजाति को सम्बोधित करते हुए यही बात कह रहा है कि आज समस्त मानव मात्र जिस तरह से अलग-अलग व अपने ही द्वारा रचित पूज्यों को अपना ईश्वर या आराध्य बना बैठे हैं, दसअसल वो मनुष्य के खुद के द्वारा रचित सिर्फ नाम हैं।*

*जिनकी कोई वास्तविकता नहीं है, तथाकथित व महिमा मंडित ईश्वर-देव या अन्य तरह के आराध्य अपने आप में किसी भी तरह की सामर्थ्य नहीं रखते।*

*भाइयो, अगर अल्लाह की भेजी हुई इस किताब, पवित्र कुरआन का हम सच्चे मन व साफ हृदय से अध्ययन करें तो निश्चित रूप से इसी नतीजे व निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि आज हम एक अल्लाह को छोड़कर जो अनेक देवताओं व ईश्वरों की आराधनाओं में उलझे हुए हैं हक़ीक़त में हम स्वयं अपने पैदा होने के औचित्य पर ही नही है।*
*पोस्ट जारी है.......*
*HMARI DUAA*⬇️⬇️⬇️

taken from
THE WAY OF JANNAH INSTITUTE 

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Hindu Bhaiyon ke 12 Sawalat: Allah Farishton se Madad leta hai.

Hindu Bhaiyon ke Jariye Islam par lagaye gaye 12 iljamon ka jawab.

Islam me Jeew Hatya hai jabke Sanatan Dharm me janwaro se pyar karna Sikhaya gaya hai.
Allah Aasaman pe baitha hai jabke Bhagwan Sab kuchh janane wala hai use kisi ki Jarurat nahi, Allah ko Farishte ki jarurat hai.












【 सनातन धर्मीयों के द्वारा इस्लाम पर लागये गए 12 आक्षेपों का उत्तर】

*१) ईश्वर सर्वव्यापक है। जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।*

उत्त्तर:  सर्व्यापक का अर्थ है कि वह हर वस्तु में विधमान है और कण कण में है। अगर वह हर वस्तू में विद्यमान है तो उसने आकार ले लिया और फिर ईश्वर निराकर कैसे रहा? तो इसलिए उसके सर्व्यापक होने का सनातनी मत गलत प्रमाणित हो जाता है।  जबकि  इस्लाम तो इसके उलट बात करता है की वह निराकर है और वह कण कण में नही, बल्कि कण कण उसके अधिकार में है, उसकी देख रेख में है।

अल्लाह सातवे आसमान है, इसका प्रमाण क़ुरान से दिजीए पहले? वैसे किसी भी आम हिन्दू भाई से पूछ लो की ईश्वर कंहा है वो आकाश की तरफ इशारा करेगा। तो इसका अर्थ क्या है? क्या ईश्वर वंहा विराजमान है या उसका अस्तित्व आकाश के पार है? निस्संदेह उसका अस्तित्व सबसे ऊपर है जिसका स्वरूप निराकार है और उसका पूर्ण अस्तित्व हमारी समझ के बाहर है। जैसे ऋग्वेद (10:81:2) कहता है की ईश्वर समस्त जगत का दृष्टा है, तो क्या इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर की आंखें है? बल्कि अगला मंत्र तो ये बताता है कि ईश्वर तो सब दिशाओं की और मुख, बाह और पाँव वाला है।

*२) ईश्वर कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता। जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर आत्मा और प्रकृति के द्वारा रचना करता है। वो इनकी सहायता क्यों लेता है?  सनातन धर्म ने तो अपने हर एक काम के लिए एक देवी देवता बना रखे है। वर्षा का, सूर्य का, वायु का, जल का, विद्या का आदि आदि। 33 करोड़ है।  यंहा तक कि सृष्टि बनाने, चलाने, नष्ट करने वाले भगवान भी अलग अलग है। क्या ईश्वर इन पर निर्भर है?
इसके उलट अल्लाह किसी की सहायता नहीं लेता। सिर्फ आदेश देता है। फ़रिश्ते उसकी बनायी सृष्टि है जो उसके आदशों के अनुसार कार्य करती है और इसलिए उसके ही अधीन है। जिन्न, इंसान, ब्रह्मांड, प्रकृति सब अल्लाह के अधीन है। सृष्टि का निर्माण, संचालन, संहार सब उसके अधीन है। उसे किसी की आवश्यकता नहीं। ये ब्रह्माण्ड उसकी मशीन है और फ़रिश्ते आदि पुर्ज़े।
जैसे ब्रह्मांड बनने में खरबों वर्ष लगे। अल्लाह चाहता तो इसे एक झटके में बना देता। पर उसके काम करने का एक विशेष तरीका है जो सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए कोई कहे कि अल्लाह ने समय का सहारा लिया ब्रह्मांड बनाने में, ये एक कुतर्क होगा।

*३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है।  जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं।

उत्तर:  ईश्वर अगर नित्य न्याय करता है तो स्वर्ग नर्क किसके लिए बनाया है? नित्य न्याय करता है तो धरती पर अधिकतर लोग जीवन भर पाप करते है और आराम का जीवन बीता कर मर जाते है, बिना किसी दंड को भोगे या थोड़ा सा दंड भोग कर। जैसे भ्रष्ट नेता, अपराधी, बलत्कारी, खूनी। तो फिर ईश्वर ने न्याय कंहा किया? और हमारे साथ नित्य न्याय हुआ है पहले भी, कैसे मान ले, जबकि हमारे पुर्नजन्म के दोष, पाप, योनी तक हमें नहीं बताई गई है।

इसके उलट इस्लाम के अनुसार अल्लाह कुछ कर्मों फल और दंड यंही देता है, कुछ थोड़ा यंहा थोड़ा वंहा और बाकी बचे अधिकतर कर्मो का मरने के बाद, स्वर्ग और नर्क के रूप में। यह बिलकुल झूट है कि वह सिर्फ कब्रो में दफनाए लोगो के कर्मो का हिसाब करेगा क्योंकि इसका कोई प्रमाण ही नहीं है। बल्कि सबका करेगा।

*४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड भी अवश्य देता है अर्थात् न्यायकारी है। जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है अर्थात् मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।*

उत्त्तर: ऊपर लिखा है कि ईश्वर क्षमाशील नही है। अगर ईश्वर क्षमाशील नहीं है तो फिर वह ईश्वर ही कैसे हुआ? ऐसा ईश्वर, वैदिक या सनातनी ईश्वर ही हो सकता है जिसमे करुणा न हो। अल्लाह तो सबसे अधिक करुणा वाला है। रही बात पाप माफ होने की तो गंगा स्नान करके कौन पाप मुक्त होते है? तीर्थ पर जाकर किसके पाप क्षमा होते है? पिंड दान करके किसके पाप माफ करवाये जाते है? भंडारा खिला कर किसके पापों का प्राश्चित होता है?
इस्लाम कहता है कि जिसका किसी ने ज़रा भी हक़ मारा या अहित किया या नुकसान पहुंचाया है, उसका बदला या दंड वह स्वयं लेगा या माफ करेगा मरने के बाद। यही असली न्याय है। दिल से माफी सच्ची मांगने पर अल्लाह सिर्फ वही पाप माफ करता है जो उसके अपनी उपासना और अस्तित्व से संबंधित है। न कि मनुष्य के मनुष्य से संबंधित।

*५) ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों" मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् - ऋग्वेद 10.53.6. जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों*

उत्त्तर:  जिनसे कहा गया कि मनुष्य बनो, तो पहले क्या मनुष्य नहीं थे या मनुष्य से हीन थे? उपरोत्त मंत्र आगे ये कहता है कि मनुष्य बन कर उस ईश्वर की उपासना करो। अर्थात जो उस ईश्वर से अलग किसी भी अन्य की उपासन करता है वो मनुष्य नही है। परन्तु आज तो लगभग सभी हिन्दू भाई उस एक ईश्वर को छोड़ कर हर किसी की उपासना कर रहा है। तो वेद अनुसार क्या वो मनुष्य हुए?
सम्पूर्ण जीवन चरित्र और ऋग्वेदिक भाष्य भूमिका में स्वामी दयानन्द कहते है कि जो एक ईश्ववर के सिवा किसी दूसरे को पूजे वो पशु है और नरकगामी है।
इंसानियत और मुस्लमानियत एक ही सिक्के दो पहलू है। बिना इंसानियत के मुसलमान नहीं हो सकते। मुसलामन का अर्थ होता है जिसका पूर्ण ईमान अल्लाह पर हो। न कि किसी ऐसी चीज़ पर जो स्वयं ईश्वर के अधीन है। अर्थात मुसलामन का अर्थ उस एक निराकार ईश्वर का आस्तिक बनना है, जिसे अल्लाह, God, यहोवा, परमेश्वर भी कहते है और अन्य भाषाओं में भी अलग अलग नामों से पुकारते है। सच्ची आस्तिकता के विस्तृत क्षेत्र में इंसानियत रहती है। इस्लाम तो ये कहता है कि तुम सब एक ही जोड़ें से पैदा किये गए इंसान हो पूरी दुनिया अल्लाह का परिवार है।

शतपथ ब्राह्मण, मनुस्मृति और ऋग्वेदिक भाष्य भूमिका में बताया गया है कि जो असत्य का आचरण करे वो मनुष्य है और जो सत्य का आचरण करे वो देवता है। इस व्याख्या के अनुसार क्या मनुष्य बनने के लिए पहले असत्य व्यवहार करना पड़ेगा?

*६) ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है। जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?*

उत्तर:  अल्लाह सर्वज्ञ है, उसे पता है कि कौन क्या करेगा।  पर उसने सबको उसके कर्म करने की छूट दी है महाप्रलय तक ताकि सब अपने कर्म लाइव देख कर उसके सामने पहुंचे और ये न कह सके कि मैंने तो ऐसे कर्म किए ही नहीं।  शैतान कोई व्यक्ति विशेष आदि नहीं बल्कि विशेष मानसिकता या विशेष सोच वाले का नाम है जो इंसान भी हो सकते है। यानी ऐसी मानसिकता जो नेकी की उलट है।
क्या ईश्वर को नहीं पता था कि 'कली' (सनातन धर्म में शैतान जैसा एक अस्तित्व) उसकी आज्ञा नहीं मानेगा अन्यथा उसे जन्म ही क्यों दिया जो मनुष्य को धरती पर भटकाता व बहकाता फिरता है? देवी, देवताओं, भगवानों से लाखों सालों से असुरों, राक्षसों, दैत्यों, दानवों, पिशाचों, चांडालों आदि का युद्ध चल रहा है, क्या ईश्वर, भगवान को नहीं पता था कि ये उसके आदशों के विरुद्ध युध्द करेंगे तो इन्हें क्यों बनाया? यंहा तक कि देवी देवताओं की आपस में भी टशन चलती रहती है। तो इन्हें भी क्यो बनाया? क्या पता नहीं था ये देवासुर संग्राम, घमासान करेंगे?

*७) ईश्वर निराकार होने से शरीर रहित है।  जबकि अल्लाह शरीर वाला है और एक आँख से देखता है।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर निराकर है तो कण कण में कैसे है? निराकर है तो अवतार बनके आकार में कैसे आता है? और मृत्यु के बाद शरीर यंही क्यों छोड़ जाता है? अथर्वेद (4:1:6) कहता है कि जगत उत्पत्ति से पहके ईश्वर सोया हुआ सा था। प्रश्न उठता है कि बेड पर या सोफा पर?  इसके उलट अल्लाह निराकर है जिसको न हाथ, पांव, नाक, आदि कुछ भी नहीं है बल्कि उसका जैसा कुछ भी नहीं।

*८) ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं। ''अल्लाह 'काफिर' लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता''।*

उत्तर:  ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सबके लिए दिया है तो वो कौन है जिन्होंने वर्षों तक इसको केवल एक जाति ने याद रखा, लिखने नहीं दिया, शुद्रो को इसको सुनने नही दिया, इसका  जाप भी नही करने दिया, किसी को संस्कृत तक नहीं सीखने दी? ऐसा करने वालो की जिह्वा खींचने और कानों में पिघला सीसा डालने का आदेश दिया? शुद्रो के ताड़न का आदेश क्यो? ईश्वर ने सबके लिए भेजा था तो 19वी सदी से पहले इसका अनुवाद अन्य भाषाओं में क्यों न हो पाया, दुनिया पढ़ तक न पायी, यंहा तक कि देख भी न पाई? जबकि क़ुरान पूरी दुनिया और और सभी लोगो के लिए आया है जो चाहे पढ़े, सीखें, अपनाए।

काफिर का मतलब गैर मुस्लिम नहीं बल्कि नास्तिक होता है और वो भी वो विशेष नास्तिक जिन्होंने क़ुरान के अवतरण के समय ईश्वर के एक होने का इनकार किया,  बार बार समझाए जाने के बाद भी। बल्कि वर्षो तक ईश्वर के एक मानने वालों को लूटा, सताया, मारा, हत्या की,अत्याचार किया, प्रताड़ित किया, ये जानते हुए की वो सज्जन लोग है। और इस पर भी बस न चला तो आस्तिकों के विरुद्ध हमेशा षड्यंत्र करते गए और कई बार युद्ध छेड़ दिया। जब ये हठधर्मी न माने तब ऐसे लोगो को कहा गया है कि ये लोग काफिर (उस समय के नास्तिक) हो गए, यानी ये नहीं सुधरेंगे इसलिए इनको अल्लाह मार्ग नही दिखाता।

ईश्वर, भगवान राम को मार्ग दिखयेगा या रावण को, जवाब दो? अपने भक्तो को दिखयेगा या दृष्टो को? क्या अधर्मी, कपटीयों, पाखंडियों, ढोंगियों, अत्याचारियों, दमनकारियों को ईश्वर मार्ग दिखयेगा? ईश्वर असत्यवादी लोगो को मार्ग दिखता है या सत्यवादियों को?

*९) ईश्वर कहता है, हे मनुष्यो ! मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्ण विद्वान, ज्ञानीजन, सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं, वैसे ही तुम भी किया करो। जबकि कुरान का अल्लाह कहता है ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और उन्हे चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।''.*

उत्तर:  इस्लाम भी यही कहता है की साथ मिलकर रहो और साथ मिलकर खाओ और पियो (हदीस). और जैसा ऊपर बताया गया कि उस परमेश्वर के विरुद्ध हुए हथी निर्दयी दुश्मन नास्तिकों को काफ़िर कहा गया है, न कि गैर मुसलमानों को (जैसा कि ऊपर प्रशन्न में झूठ लिखा गया है)। और जब उनसे युद्ध हुआ तो तब ये कहा गया कि युध्द में उनसे सख्ती से लड़ो। ये युद्ध में दिए आदेश है। वरना युद्ध में क्या शत्रुओं को अतिथि मान कर आवभगत की जाती?

गीता में अर्जुन कहता है कि मैं अपने बड़ो, गुरुओ और भाइयो को कैसे मार सकता हूँ। तो श्री कृष्ण कहते है कि क्या तुम नपुंसक हो गए है, ये रणभूमि है, वह सब दुश्मन है। कोई भी हो सामने, उन्हें मार डालो, हथियार उठाओ अर्जुन, चाहे वीरगती ही हो। अब बताओ ये कैसे आदेश है? युद्ध के है न। बाकी अथर्वेद (12:5:62/7) क्या कहता है ऐसे लोगो को वो भी देख लो: दुश्मन-वेद निंदक को काट डाल, चीर डाल, फाड़ डाल, जला दे, फूंक दे, भस्म कर दे। वेद आदि ग्रंथों में ऐसे बहुत से मंत्र और श्लोक  है।

वेदों में अनार्यो, मलेच्छ, दस्युओं, ब्रह्मद्विष, वेद निंदकों आदि (ये वैदिक काल के नास्तिक थे) के साथ क्या क्या उत्पीड़न आदि करने के आदेश है, पढ़ लीजिये।

*१०) ऋग्वेद में ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा। तुम सब समान हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो। जबकि ''हे 'ईमान' लाने वालो (केवल एक अल्लाह को मानने वालो) 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28) कहता है।*

उत्तर:  इस्लाम कहता है कि कोई किसी से बड़ा छोटा नहीं है। हज और नमाज़ भाईचारे की मिसाल है जिन्हें सब एक साथ मिलकर अदा करते है। नापाक उन्हें कहा गया है जो एक निराकार ईश्वर को ईश्वर न मान कर, अन्यो को ईश्वर मानने लगे या उनकी मूर्ति बनाके उन्हें पूजने लगे जबकि उनका मन इस बात की स्वीकृति दे चुका हो कि परमेश्वर है तो केवल एक ही।
प्रश्न करने वाला खुद पहले प्रश्न में कह रहा है कि ईश्वर निराकर है तो फिर ये सवाल ही उसके दोहरे चरित्र का प्रमाण है कि निराकर की मूर्ति कैसे हो सकती है?
 
और उसकी मूर्ति नही है तो उसकी मूर्ति को बनाया या पूजा भी कैसे जा सकता है? अगर फिर भी ऐसा कोई करता है तो उसकी पूजा भी अशुद्ध और अपवित्र हुई या नहीं?
वेद के साथ साथ, मनुस्मृति (2:11) भी कहती है कि वेद न मानने वाले और नास्तिकों का बहिष्कार करो। वेद तो उन्हें मारने काटने के आदेश देता है। वेद आदि ग्रन्थ, यंहा तक कि स्मृति शास्त्र तो शूद्रों को अपवित्र, हीन बताते है और सारे मनुष्यों को 4 वर्णों में बाँटते है।  स्वामी विवेकानंद और डॉक्टर अम्बेडकर इस पर बहुत कुछ लीख कर गए है। इसलिए ही वंचित समुदाय मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन करते आये है।

*११) क़ुरान का अल्लाह अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं।  जबकि वेद का ईश्वर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर परीक्षा नहीं ले रहा है तो नरक स्वर्ग, प्रलय आदि क्यों बनाया है। इस धरती पर जीवन क्यो चल रहा है। ईश्वर सर्वज्ञ है तो बिना जीवन दिए ही लोगो के कर्मो को जांच लेता! ऐसा क्यों न किया?
अल्लाह सर्वज्ञ है पर ये जीवन इसलिए दिया है कि हमें इसका स्वयं अनुभव हो, हम स्वयं जी कर देख ले, स्वयं अपने लिए साक्षी बन जाये कि हमने सच में जीवन जी कर देखा है और फला फला कर्म भी किए है।  वरना अल्लाह को तो पता है कि कौन, कब, क्या, कैसे कर्म करेगा। ये सिस्टम हमारी संतुष्टि के लिए है।

रही बात क़ुरबानी की तो ईश्वर क्यों भक्तो से बलि मांग कर परीक्षा लेता है? बलि शब्द संस्कृत का ही है जिसका अर्थ जीवहत्या है। अश्मेधयज्ञ में मेध का अर्थ ही बलि है।  नरबलि हिन्दू धर्म की ही कुप्रथा थी। काली मां और इष्टदेवों को प्रसन्न करने के लिए ही बलि दी जाती है। ग्रंथो से पता लगता है कि यज्ञों में बलि का प्रावधान था। बलि और मांसाहार का उल्लेख मनुस्मृति, महाभारत, रामायण और वेदों आदि में मिलता है, सनातन धर्म में मांसहार तब बंद हुआ जब बौद्ध और जैन धर्म ने अहिंसा का प्रचार प्रसार शुरू किया। स्वामी विवेकानन्द ने स्पष्ट कहा है कि वैदिक काल मे मांसहार और बीफ तक प्रचलन में था। बाबा साहब अम्बेडकर भी लिख कर गए है की मांसहार, वैदिक काल में ब्राह्मणों की दिनचर्या का अंग था। भारत, नेपाल में ही सेकड़ो मंदिरों में बलि का प्रचलन है। पिछड़ी जातियों के देवी आदि के मंन्दिरों में बलि प्रथा का प्रचलन है।  बंगाल में दुर्गा पूजा में मांस ही प्रसाद होता है। नेपाल में हर वर्ष विश्व का सबसे बड़ा पशुबलि त्योहार मनाया जाता है। आज भी बंगाली, पहाड़ी और दक्षिण भारत क्षेत्र के ब्राहमण भी मांसाहारी होते है।
वैसे शिवजी ने अपने पुत्र गणेश का सिर क्यों काटा था? परशुराम ने अपनी मां का गला क्यों काटा था?

*१२) अल्लाह जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है।  लेकिन वेद का ईश्वर मानव मात्र व जीवों पर सेवा, भलाई, दया करने से खुश होता है।*

उत्तर:  ये प्रश्न भी झूट हैं की अल्लाह किसी के प्राण लेकर खुश होता। अल्लाह, वेद की तरह चीरने फाड़ने का आदश नहीं देता। बल्कि जीवो के साथ भलाई के आदेश देता है। जैसे ज़्यादा बोझा न डालों, चारा अच्छा दो, उन्हें पीटो नहीं आदि आदि। पर अल्लाह ने हर प्राणी को एक उद्देश्य के तहत बनाया है इसलिए उसने उसी के तहत कुछ आदेश भी दिए जिसके अंतर्गत मांसाहार के लिए जीव हत्या की अनुमति है। अगर ये अनुमति गलत है तो सबसे पहले सनातनी ग्रंथों को मानना बंद कर दो क्योंकि उनमें भी मांसाहार और जीवहत्या का उल्लेख है। और जीवहत्या तो दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में करता है। तभी वेस्ट में अब लोग वेजिटेरिअन नहीं बल्कि वेगन बनना चाहते है।

*इस तरह के प्रश्न बना कर लोग अपनी नफरत और भड़ास बाहर निकालते है, बिना अपने धर्मग्रंथ देखे या गिरेबान में झांके। इसके लिए ये लोग अपने दोहरेपन, पक्षपातपूर्ण चारित्र, पूर्वाग्रह और झूठ का सहारा लेते है। एक उंगली उठाने से चार अपनी तरफ उठती है।*
[वसीम वसर]
_________________________
हर आदमी को चाहिए कि अपने धर्म को सही से जानने की कोशिश करे।
हमारा धर्म क्या है?
हमारे धर्म की स्थापना कैसे हुई?
वे ईश्दूत और संदेशठा कौन थे जिन्होंने यह धर्म हम तक पहुंचाया?
उनकी जीवनी और उनका इतिहास क्या है?
वे इतिहासकार कौन थे? कहीं उन्होंने कहानियां तो नहीं बनाई थी जिसे सत्य का रूप दे दिया गया?
हमारे धर्म का कोई ईश्वरिय ग्रंथ है?
उस ईश्वरिय ग्रंथ में क्या लिखा है?
जब मेरे परमेश्वर का ग्रंथ है तो वह मेरे लिए भी है।
साथियों से गुज़ारिश है कि जहां तक हो सके इस पैग़ाम को दूसरो तक पहुंचाए ताकि हमारे हिन्दू भाईयो की गलतफहमी दूर हो सके।
इसलाम के बारे में बहुत सी ग़लत बातें उड़ाई गई हैं।
तो आईए सुनी सुनाई बातों पर यकीन करने से बेहतर है कि हम ख़ुद पढ़ कर देखें।
अंधकार से उजाले की तरफ़ आईए।
ईश्वर हम सब को सत्य मार्ग दिखाए।
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Islam Ke Paigamber Mohammad ﷺ. (Part 07)

Mohammad Sahab Ke Character Ke Bare me Mashhoor Scholars kya Kahte Hai?
Aap Sallahu Alaihe Wasallam Apne Sathiyo Ke Sath Kaise Suluk Karte they?

ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: आसानी पैदा करो, तंगी ना पैदा करो, लोगों को तसल्ली और तश्फ़ी (सुकून) दो नफ़रत ना दिलाओ।
Bukhari sharif: jild 8, kitab Al-Adab 78, hadith no. 6125

(07)
*इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्‍ल.)*
                      ★अध्याय .३★ ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙

विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन) सुनहरे साधन

इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवसथा से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहाँ तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इंसान के आचार व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। “प्रोफ़सर मेसिंगनन” के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्मान का -जो कि सभ्यता की बुनियाद है- सदैव ध्यान में रखता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, ज़ख़ीरा अन्दोज़ी ;भ्वंतकपदहद्ध बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोशित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमख़ाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया। कहा जाता है कि यतीमख़ानों की स्थापना का आरम्भ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमख़ानों की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद यतीम था। “कारलायल” पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाइयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’

*एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-

1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?
2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से उँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?
3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?

इस सूचि को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है। इन तीन कसौटियों में पहली है, “क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरणवाला पाया था?”

*बेदाग़ आचरण*

ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे-इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे- ‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैग़मम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्राड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते या आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।  इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देने वाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता या अनैतिकता पाते? (बिलकुल नहीं)…

                 जारी है………
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प्रोफ़ेसर के.एस.रामा कृष्णा राव
भूतपूर्व अध्यक्ष, दर्शण-शास्त्र विभाग राजकीय कन्या विद्यालय,मैसूर (कर्नाटक)

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Islam Ke Paigamber Mohammad ﷺ. (Part 06)

The Married women's Act Of England and Islam
The Married women's Act and Islam
Islam Ne Auraton kya Kya Huqooq diya hai?
Islam me Khawateen Ka Kya Muqam Hai?

𖣔╼ ⃟ ⃟╼(06)╼ ⃟ ⃟  ╼𖣔
*इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्‍ल.)*
                      ★अध्याय .२★ ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙

*महान परिवर्तन*

इस प्रकार पैग़म्बरे-इस्लाम हृदयों में ऐसा ज़बरदस्त परिवर्तन करने में सफल हो गए कि सबसे पवित्र और सम्मानित समझे जानेवाले अरब ख़ानदानों के लोगों ने भी इस नीग्रो गुलाम की जीवन-संगिनी बनाने के लिए अपनी बेटियों से विवाह करने का प्रस्ताव किया।

इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा और मुसलमानों के अमीर (सरदार) जो इतिहास में उमर महान (फ़ारूक़े आज़म) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इस नीग्रो को देखते ही तुरन्त खड़े हो जाते और इन शब्दों में उनका स्वागत करते, ‘‘हमारे बड़े, हमारे सरदार आ गए।’’ धरती पर उस समय की सबसे अधिक स्वाभिमानी क़ौम, अरबों में क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद ने कितना महान परिवर्तन कर दिया था। यही कारण है कि जर्मनी के एक बहुत बड़े शायर गोयटे ने पवित्र क़ुरआन के बारे में अपने उद्गार प्रकट करते हुए एलान किया है- ‘‘यह पुस्तक हर युग में लोगों पर अपना अत्यधिक प्रभाव डालती रहेगी।’’ इसी कारण “जॉर्ज बर्नाड शॉ” का भी कहना है- ‘‘अगर अगले सौ सालों में इंग्लैंड ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप पर किसी धर्म के शासन करने की संभावना है तो वह इस्लाम है।’’

*इस्लाम: नारी-उद्धारक*

इसलाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता है कि उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आज़ादी दिलाई। “सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन” ने कहा है- ‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती है कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’

*स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार*

अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक क़ानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैग़म्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चूके थे- ‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’ ‘‘ इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’…

                              जारी है………

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प्रोफ़ेसर के.एस.रामा कृष्णा राव
भूतपूर्व अध्यक्ष, दर्शण-शास्त्र विभाग राजकीय कन्या विद्यालय,मैसूर (कर्नाटक)

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Islam Ke Paigamber Mohammad ﷺ. (Part 05)

Islam Ne kaisa Insaniyat Ka Sabak Diya hai?
Allah ke Nabi Mohammad Sallahu Alaihe Wasallam Duniya walo ke liye Rahmat Kaise hai?
Part (05)
इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्‍ल.)
                      ★अध्याय .२★ ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙

*हज: मानव-समानता का एक जीवन्त प्रमाण*

दुनिया हर साल हज के मौक़े पर रंग, नस्ल और जाति आदि के भेदभाव से मुक्त इस्लाम के चमत्कारपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय भव्य प्रदर्शन को देखती है। यूरोपवासी ही नहीं, बल्कि अफ्ऱीक़ी, फ़ारसी, भारतीय, चीनी आदि सभी मक्का में एक ही दिव्य परिवार के सदस्यों के रूप में एकत्र होते हैं, सभी का लिबास एक जैसा होता है। हर आदमी बिना सिली दो सफ़ेद चादरों में होता है, एक कमर पर बंधी होती है तथा दूसरी कंधों पर पड़ी हुई। सब के सिर खुले हुए होते हैं। किसी दिखावे या बनावट का प्रदर्शन नहीं होता। लोगों की ज़ुबान पर ये शब्द होते हैं- ‘‘मैं हाज़िर हूँ, ऐ ख़ुदा मैं तेरी आज्ञा के पालन के लिए हाज़िर हूँ, तू एक है और तेरा कोई शरीक नहीं।’’ इस प्रकार कोई ऐसी चीज़ बाक़ी नहीं रहती, जिसके कारण किसी को बड़ा कहा जाए, किसी को छोटा। और हर हाजी इस्लाम के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का प्रभाव लिए घर वापस लौटता है।
“प्रोफ़सर हर्गरोन्ज” (Hurgronje) के शब्दों में- ‘‘पैग़म्बरे-इस्लाम द्वारा स्थापित राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय एकता और मानव भ्रातृत्व के नियमों को ऐसे सार्वभौमिक आधारों पर स्थापित किया है जो अन्य राष्ट्रों को मार्ग दिखाते रहेंगे।’’ वह आगे लिखता है- ‘‘वास्तविकता यह है कि राष्ट्रसंघ की धारणा को वास्तविक रूप देने के लिए इस्लाम का जो कारनामा है, कोई भी अन्य राष्ट्र उसकी मिसाल पेश नहीं कर सकता।’’

इस्लाम: स्म्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ

इस्लाम के पैग़म्बर ने लाकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। ख़लीफ़ा उमर और ख़लीफ़ा अली (पैग़मम्बर इस्लाम के दामाद), ख़लीफ़ा मन्सूर, अब्बास (ख़लीफ़ा मामून के बेटे) और कई दूसरे ख़लीफ़ा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफे़द रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चैदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो “बिलाल” के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस ग़ुलाम नीग्रो को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठोंवाला नीग्रो गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्‍ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’ शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप (सल्ल.) ने एक भाषण (ख़ुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फ़रमाया- ‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया। ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डर ने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो ख़ुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’ इसी की पुष्टि क़ुरआन में इन शब्दों में की गई है- ‘‘ऐ लोगो ! हमने तमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज़्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह ख़ूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रखनेवाला है।’’ (क़ुरआन,49:13)

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प्रोफ़ेसर के.एस.रामा कृष्णा राव

भूतपूर्व अध्यक्ष, दर्शण-शास्त्र विभाग राजकीय कन्या विद्यालय,मैसूर (कर्नाटक)…

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Mohammad Sahab Aur Bhartiya Dharm Granth. (Hindi)

Allah ke Nabi Mohammad Sallahu Alaihe Wasallam aur Bhartiya Mazhabi Kitaben.
Prophet Mohammad and Indian Religious Book.
मोहम्मद साहब और भारतीय धर्म ग्रंथ।
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       💠✿► *हज़रत मुहम्‍मद ﷺ* ◄✿💠
                 *और भारतीय धर्म-ग्रन्थ*
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                           {   16    }
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अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है। इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है ये सभी विशेषताएँ मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन में मिलती है। तथा अंतिम बुद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डा. उपाध्याय द्वारा इस विषय में प्रस्तुत तथ्य यहाँ ज्यों के त्यों प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
‘कुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि ‘तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया।’ मुहम्मद साहब ऋषि पद प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे। (‘व-व-ज-द-क- आ-इलन फ़-अग़्ना’) (और तुमको निर्धन पाया, बाद में तुमको धनी कर दिया) मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध ऊंटनी ‘अल-कुसवा’ थी, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल-बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊंटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास सात बकरियां थीं, तो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसे नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसे नहीं होती। (Life of Mohomet-Sir William Muir ‘Cambridge, Edition P. 545-54) उनकी सात बाग़ें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं।
मुहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुएं भी थे। इतना स्मरणीय है कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती थी, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मुहम्मद साहब की 12 पत्नियां, चार लड़कियां और तीन लड़के थे। बुद्ध के अंतर्गत पत्नी और संतान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाम मात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था। (Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) P. 547)
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उनपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत् था। (The fare of the desert seemed most congenial to hi, even when he was sovereign of Arabia.)
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।
मुहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। (Mohammad and Mohammadenism by Bosworth smith, P. 98)
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में कुरआन में दूसरी सूरा में उल्लेख है-
‘‘ऐ आस्तिको! (मुसलमानों) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उसपर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इसमाईल और याकूब पर और उनकी संतान (ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई, उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते हैं, और हम उसी एक ईश्वर के माननेवाले हैं।’’ (कुरआन, सूरा-2, आयत 236)
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा। (कुरआन, सूरा-22, आयत 4)
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने आमरण उनका संग नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो। संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी।
मुहम्मद साहब का कोई भी गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें, ‘उम्मी’ भी कहा जाता है।

ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अंतःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष है (According to some of the modern Buddhist Scholars the Bo-tree of the Buddha Maierya is the Iron wood-tree (Mohammad in the Buddhist scriptures. P. 64) ।
हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रेय’ का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ. 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है। (वमा अर्सल्ना-क-इल्ला रहमतल्लिल आलमीन) (कुरआन, सूरा-11, आयत 107) (ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।) जिसका अर्थ है-‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे एक घुड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता (In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade in hundred years.(Mohammad in the Buddhist Scriptures, Page 79)। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आँख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे (If the turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (Ther Life of Mahommad by William Muir, Page 511, 512)। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
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               डा. एम. ए. श्रीवास्तव
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