Kya Islam Me Janwaro ko Marne ka hukm hai?
Kya Sirf Islam me hi janwaro ki qurbani dena hai?Hindu Dharm ki Mazhabi kitabo me Janwaro ki qurbani ka Zikr.
*हिन्दू धर्मग्रंथों में जानवरों की क़ुर्बानी का ज़िक्र*
ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) के मौके पर अक्सर बहुत से पशु प्रेमी उपदेश देना शुरू कर देते हैं।
उनमें बहुत से हमारे हिन्दू भाई अपने धर्म से अज्ञानता के कारण क़ुर्बानी को पूरी तरह से गलत ठहराते हैं। जबकि इस्लाम से कहीं ज़्यादा हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में क़ुर्बानी का ज़िक्र है।
इसके बारे में अल्लाह ने क़ुरआन में यूं कहा-
*"और प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुरबानी का विधान किया, ताकि वे उन जानवरों अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनाने वालों को शुभ सूचना दे दो।"
(क़ुरआन 22:34)
*"और प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुरबानी का विधान किया, ताकि वे उन जानवरों अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनाने वालों को शुभ सूचना दे दो।"
(क़ुरआन 22:34)
क़ुरआन की ये आयत साफ बयान कर रही है कि अल्लाह ने हर समुदाय में क़ुर्बानी का विधान रखा है।
*हिन्दू धर्म के अनुसार पशु बलि प्रथा-*
यज्ञ में कई जानवरों की बलि देना-
*जो इस संसार में बहुत पशुवाला होम करके हुतशेष का भोक्ता (यज्ञ करने से बची सामग्री को खाने वाला) वेदवित और सत्य क्रिया का कर्त्ता मनुष्य होवे सो प्रशंसा को प्राप्त होता है।*
(यजुर्वेद, अध्याय 19, मंत्र 20)
पशु के साथ इन चीज़ों से भी यज्ञ होता था-
*"अपूपों (मालपुओं) व मांस वाले चरु को वेदि पर लाओ, जिस में से हमें देवों को भाग देना है।"*
(अथर्ववेद 18/4/20)
*"अपूपों (मालपुओं) व मांस वाले चरु को वेदि पर लाओ, जिस में से हमें देवों को भाग देना है।"*
(अथर्ववेद 18/4/20)
*"तेरे लिए जिस मक्खन, भात, और मांस को देता हूँ, वह तुम्हारे लिए स्वधा वाला, मधुरता से पूर्ण और घी से परिपूर्ण होवे।"*
(अथर्ववेद 18/4/42)
(अथर्ववेद 18/4/42)
इंद्रदेव अपनी महिमा खुद करते हुए कहते है,
*"मेरे लिए इंद्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता लोग 15-20 बैल मार कर पकाते हैं, जिन्हें खा कर मैं मोटा होता हूँ, वे मेरी कुक्षियों को सोम से भी भरते हैं।"*
(ऋग्वेद, मंडल 10, सूक्त 86, मंत्र 14)
*"मेरे लिए इंद्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता लोग 15-20 बैल मार कर पकाते हैं, जिन्हें खा कर मैं मोटा होता हूँ, वे मेरी कुक्षियों को सोम से भी भरते हैं।"*
(ऋग्वेद, मंडल 10, सूक्त 86, मंत्र 14)
मनु महाराज के बनाये नियमों के अनुसार-
*“प्रजापति ने यज्ञार्थ पशु रचे हैं, अतः यज्ञों में पशु वध करने पर हत्या का दोष नहीं लगता।"*
(मनुस्मृति, अध्याय 5, मंत्र 39)
*“प्रजापति ने यज्ञार्थ पशु रचे हैं, अतः यज्ञों में पशु वध करने पर हत्या का दोष नहीं लगता।"*
(मनुस्मृति, अध्याय 5, मंत्र 39)
*"मांस खाने में कोई दोष नहीं, इस में प्राणियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।"*
(मनुस्मृति, अध्याय 5, मंत्र 56)
(मनुस्मृति, अध्याय 5, मंत्र 56)
*हिंदू तहज़ीब वालो की तरफ से इस ईद को 'बकरा ईद' कहा है, कोई बता दे मुझे कि 'इंडिया' के अलावा पूरी दुनिया में इस ईद को कोई 'बकरा ईद' कहता हो|
*यह कमाल सिर्फ 'हुनूद' की तहज़ीब का है,जिस के रंग मे हम रंगते चले गए|*
*यह कमाल सिर्फ 'हुनूद' की तहज़ीब का है,जिस के रंग मे हम रंगते चले गए|*
*इस्लाम मे इस ईद को "ईद-उल-अदहा" कहा गया है|*
*'ईद' के मायने है मुसलमानों के जश़न का दिन और 'अदहा ' के मायने है चाश़्त का वक्त|*
*लेकिन आवाम मे 'ईद-उल-अदहा' के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर है|*
*फिर भी लौग 'क़ुरबानी की ईद' ना कहते हुए सीधे 'बकरा ईद' कह देते है,*
*जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते हें तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है।
*'ईद' के मायने है मुसलमानों के जश़न का दिन और 'अदहा ' के मायने है चाश़्त का वक्त|*
*लेकिन आवाम मे 'ईद-उल-अदहा' के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर है|*
*फिर भी लौग 'क़ुरबानी की ईद' ना कहते हुए सीधे 'बकरा ईद' कह देते है,*
*जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते हें तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है।
*तुम्हारी तहज़ीब को तो तुमने ही बिगाड़ा है|*
*बहुत से इस्लामी केलेंडरों में भी बेधड़क आज भी 'बकरा ईद' लिखा जा रहा है|*
*जब इस्लाम की तारीख़ मे इस ईद को "ईद-उल-अदहा" कहा गया है फिर इसे 'बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?*
*किसी भी बुज़ुर्ग ने इस ईद को 'बकरा ईद' नही कहा है|*
*बराए करम ये अहद करें के आज से हम इस ईद को सिर्फ और सिर्फ "ईद-उल-अजदहा" ही कहेंगे और ये पैग़ाम सभी मुसलमान भाईयों तक पहुँचायेंगे|*
*बहुत से इस्लामी केलेंडरों में भी बेधड़क आज भी 'बकरा ईद' लिखा जा रहा है|*
*जब इस्लाम की तारीख़ मे इस ईद को "ईद-उल-अदहा" कहा गया है फिर इसे 'बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?*
*किसी भी बुज़ुर्ग ने इस ईद को 'बकरा ईद' नही कहा है|*
*बराए करम ये अहद करें के आज से हम इस ईद को सिर्फ और सिर्फ "ईद-उल-अजदहा" ही कहेंगे और ये पैग़ाम सभी मुसलमान भाईयों तक पहुँचायेंगे|*
Jiw hatya par updesh dene wale apni kitabo ko nahi padhte shayed, inhe jaruri hai ke dharm granth padhne ki
ReplyDeleteSare dharm me qurbani aur Parda karna hai, magar yahan to islam se dushmani ke wazah se musalmano ko target kiya jata hai
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