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Maujuda Daur me Musalmano ki Jimmedariyan. (Part 03)

Kya Islam Tarakki ki rah me Diwar banta hai?
Kya Ham Islam ke tarike Pe Chalkar Tarakki nahi kar sakte?
Maujuda Aalami halat me Musalmano ki jimmedariyan (Part 03)
मौजूदा आलमी हालात में उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
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Maujuda Daur me Musalmano ki Jimmedariyan
                   ख़ुतबाते हरम (03)
    यहाँ अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारी सफ़ों मे कुछ ऐसे शिकस्त खुर्दा लोग भी है जो मग़रिबी तहज़ीब (western culture) की चमक दमक से मरऊब हैं।
वह अपनी बेबसी के बाइस यह समझते हैं कि मुसलमानों के ज़वाल और तरक़्क़ी की दौड़ मे पीछे रहने  की वजह उनकी दीन पसंदी और दीन से वाबस्तगी है, अल्लाह ही उन्हें समझ अता फ़रमाए। बल्कि अल्लाह की शरीयत के मुकाबले में खुद साख़्ता कवानीन को अहमियत दी गई हैं। यह सब कुछ हमारे ही लोगों के हाथो कराया गया है जिनकी तरबियत दुश्मनाने की गोद में हुई, जिनके फ़िक्र और नज़र को शुरु से मस्मूम किया गया और मीडिया ने इस जलती पर तेल झिड़कते हुए ऐसे प्रोग्राम पेश किये जिनसे दीन बेज़ारी में इज़ाफ़ा हुआ, ग़ैर इस्लामी अफ़कार और दीन की नफ़ी करने वाली आदत को बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया , गुमराहकुन नारे इतनी चालाकी से लगाए गये कि बहुत से लोग यह समझने लगे कि हमारे ज़वाल का सबब हमारा दीन ही है क्योंकि दीन तरक़्क़ी की राह मे रुकावट है।
   क्या हम अब भी बेदार नहीं होंगे?
क्या हम अब भी हमारी ज़िम्मादारीयाँ पूरी करने के लिए आगे नहीं बढ़ेंगे?
आइये! हम सब मिलकर मुहासिने इस्लाम को दुनिया के सामने पेश करें और तमाम इन्सानों को अपने अमल दीने हनीफ़ का खुबसूरत मन्ज़र दिखालाएँ, यह हम सब की मुशतर्का ज़िम्मादारी है क्योंकि हमने दावतें दीन की वह ज़िम्मादारी क़बूल की है जिससे ज़मीन व आसमान और पहाड़ भी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इज़हार कर रहे थे, दीन की दावत इल्म, बसीरत और इस्लाही जज़्बे के साथ होनी चाहिए। वाबस्तगाने दीन के लिए ज़रुरी है कि वह अपने अंदर यह ग़ैर मुतज़लज़ल यक़ीन पैदा करें कि दीन हर तरफ फैल कर रहेगा, इसके बढ़ते हुए क़दमों को ग़लत प्रोपेगंडे के बलबूते पर दुनिया की कोई ताक़त रोक नहीं सकती। आइये! हम सब इन्सानों को बताएँ कि दुनिया मे पाई जानेवाली बेचैनी और अफ़रा तफ़री का हल सिर्फ़ और सिर्फ़ दीने इस्लाम करता है। हमारा दीन ख़ालिस अक़ीदए तौहीद और किताब व सुन्नत की तालीमात का मुरक़्क़ा है।
कुरआन व सुन्नत को सलफ़े सालिहीन के तरीके के मुताबिक समझना चाहिए। कलामे इलाही में बता दिया गया है: *"यह अल्लाह का वादा है और अल्लाह अपने वादे की ख़िलाफ़ वर्ज़ी नहीं करता लेकिन अक्सर लोग इस हक़ीक़त को नहीं जानते, वह दूनियावी ज़िन्दगी की ज़ाहिरी चीज़ों से बाख़बर हैं लेकिन आख़िरत से वह ग़ाफ़िल है।"   (अर् रुमः 30/6, 7 )
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