Maujuda Daur me Musalmano ke liye TV channels ki kitni jarurat hai?
Deen ki Dawat dene ke liye hame Tv Channels ki sakht jarurat hai.
मौजूदा आलमी हालात में उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
ख़ुतबाते हरम
*(06)*
मैं इस नुक्ते को पूरी अहमियत के साथ वाज़ेह करना चाहता हूँ कि दावत व तबलीग़ का उस्लूब तग़य्युर पज़ीर है, आज के बदलते हालात में हमें टी. वी., चैनेल्स वग़ैरा की सख़्त ज़रुरत है जो इस्लामी महासिन मुनासिब उस्लूब में मुख़्तलिफ़ ज़बानों में नश् कर सकते हों क्योंकि ज़राए अबलाग़ व नशरियात का दुनिया में नुमायाँ असर है, लोगो के अफ़कार व नज़रियात पर असर होने का यह मुअस्सीर हथियार है, लिहाज़ा जो इन शोबों मे महारत रखते है वह और खुसूसन दौलतमंद अफ़राद और ज़िम्मादारान को चाहिए कि इस अहम ज़रुरत की तकमील के लिए भरपूर कोशिश करें और अलहम्दु लिल्लाह! फ़र्ज़न्दाने मिल्लत के यहाँ इम्कानात और सलाहितों की कमी नहीं, सिर्फ़ तवज्जोह देने की ज़रुरत है। क्या यह लोग अपनी ज़िम्मेदारियों को महसूस करते हुये आगे बढ़ेंगे?
क्या इस कमी की तलाफ़ी के लिए कोशिश करेंगे ताकि इस्लाम का सच्चा पैग़ाम लोगो तक पहुँच सके?
क्योंकि ज़राए अबलाग़ व नशरियात ने अभी तक इस्लाम के रौशन चेहरे को बदनुमा अंदाज में पेश किया है, इसकी पाकीज़ा तालीमात को मस्ख़ करके दिखाया है, इसकी अख़लाक़ी क़दरों को पामाल किया है और यह निहायत तल्ख़ और अलम अंगेज हक़ीक़त है कि यह बुराईयाँ हमारे ही भाईयों की निगरानी में फैलाई जा रही हैं जो हमारे ही इलाक़ों से तअल्लुक रखते है और हमारी ही ज़बान बोलने वाले हैं, हाए अफ़सोस! हमारी दीनी हमियत, ग़ैरत और इस्लामी मुहब्बत कहाँ चली गई?
अल्लाह तआला हमें हिदायत के बाद गुमराही से महफूज़ रखे।
Deen ki Dawat dene ke liye hame Tv Channels ki sakht jarurat hai.
मौजूदा आलमी हालात में उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
ख़ुतबाते हरम
*(06)*
मैं इस नुक्ते को पूरी अहमियत के साथ वाज़ेह करना चाहता हूँ कि दावत व तबलीग़ का उस्लूब तग़य्युर पज़ीर है, आज के बदलते हालात में हमें टी. वी., चैनेल्स वग़ैरा की सख़्त ज़रुरत है जो इस्लामी महासिन मुनासिब उस्लूब में मुख़्तलिफ़ ज़बानों में नश् कर सकते हों क्योंकि ज़राए अबलाग़ व नशरियात का दुनिया में नुमायाँ असर है, लोगो के अफ़कार व नज़रियात पर असर होने का यह मुअस्सीर हथियार है, लिहाज़ा जो इन शोबों मे महारत रखते है वह और खुसूसन दौलतमंद अफ़राद और ज़िम्मादारान को चाहिए कि इस अहम ज़रुरत की तकमील के लिए भरपूर कोशिश करें और अलहम्दु लिल्लाह! फ़र्ज़न्दाने मिल्लत के यहाँ इम्कानात और सलाहितों की कमी नहीं, सिर्फ़ तवज्जोह देने की ज़रुरत है। क्या यह लोग अपनी ज़िम्मेदारियों को महसूस करते हुये आगे बढ़ेंगे?
क्या इस कमी की तलाफ़ी के लिए कोशिश करेंगे ताकि इस्लाम का सच्चा पैग़ाम लोगो तक पहुँच सके?
क्योंकि ज़राए अबलाग़ व नशरियात ने अभी तक इस्लाम के रौशन चेहरे को बदनुमा अंदाज में पेश किया है, इसकी पाकीज़ा तालीमात को मस्ख़ करके दिखाया है, इसकी अख़लाक़ी क़दरों को पामाल किया है और यह निहायत तल्ख़ और अलम अंगेज हक़ीक़त है कि यह बुराईयाँ हमारे ही भाईयों की निगरानी में फैलाई जा रही हैं जो हमारे ही इलाक़ों से तअल्लुक रखते है और हमारी ही ज़बान बोलने वाले हैं, हाए अफ़सोस! हमारी दीनी हमियत, ग़ैरत और इस्लामी मुहब्बत कहाँ चली गई?
अल्लाह तआला हमें हिदायत के बाद गुमराही से महफूज़ रखे।
Maujuda Daur me Musalmano ki Jimmedariyan |
इन वाक़िआत को देखकर दिल पिघल जाता है। काश कि दिल में नूरे इस्लाम और हरारते ईमान भी होती, फ़रमाने इलाही हैः *"जो लोग हमारी राह में जिद्द व जिह्द करेंगे हम उन्हें अपनी राहें ज़रुर दिखाएंगे, बेशक अल्लाह तआला नेकूकार बन्दों के साथ है।"
( अल् अन्कबूतः 29/69 )
अल्लाह तआला कोशिश करने वालों की लग़ज़िशों को मुआफ़ फ़रमाए, ग़ैरतमंदों की मेहनतों में बरकत अता फ़रमाए ताकि दीन, उम्मत और वतन की ख़िदमत हो सके, अल्लाह तआला हमारे आमाल में इख़लास पैदा फ़रमाए और हम सब की मग़फ़िरत फ़रमाए।
( अल् अन्कबूतः 29/69 )
अल्लाह तआला कोशिश करने वालों की लग़ज़िशों को मुआफ़ फ़रमाए, ग़ैरतमंदों की मेहनतों में बरकत अता फ़रमाए ताकि दीन, उम्मत और वतन की ख़िदमत हो सके, अल्लाह तआला हमारे आमाल में इख़लास पैदा फ़रमाए और हम सब की मग़फ़िरत फ़रमाए।
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