Maujuda Aalami halat me Ummat-E-Muslema ki kya Jimmedariyan hai?
Musalmano ki Jimmedari Aaj ke daur me.
Maujuda Aalami halat me Musalmano ki jimmedariyan. (Part 02)
मौजूदा आलमी हालात मेउम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
ख़ुतबाते हरम (02)
मुहतरम भाईयों! हमारी तरक़्क़ी और खुशहाली का दौर हमारे अपने ही करतूतों के बाइस ज़वाल का शिकार हुआ, जब इस्लाम की अमली तत्बीक से हमने पहलू तही की तो हम में फ़िरक़ा वारियत, इख़्तिलाफ़ात और फ़िक्री इंहितात शुरु हुआ, फिर हमारी वहदत पारा पारा हो गई
Musalmano ki Jimmedari Aaj ke daur me.
Maujuda Aalami halat me Musalmano ki jimmedariyan. (Part 02)
मौजूदा आलमी हालात मेउम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
ख़ुतबाते हरम (02)
मुहतरम भाईयों! हमारी तरक़्क़ी और खुशहाली का दौर हमारे अपने ही करतूतों के बाइस ज़वाल का शिकार हुआ, जब इस्लाम की अमली तत्बीक से हमने पहलू तही की तो हम में फ़िरक़ा वारियत, इख़्तिलाफ़ात और फ़िक्री इंहितात शुरु हुआ, फिर हमारी वहदत पारा पारा हो गई
Maujuda Daur me Musalmano ki Jimmedariyan |
इज़्ज़त ज़िल्लत में और तरक़्क़ी पस्ती में तब्दील हो गई। दुश्मनाने इस्लाम को मौका मिल गया। इस्लामी शनाख़्त को बदनाम करने लगे, इस्लाम की जगह क़ौमी, नस्ली, इलाकाई और गिरोही नारे लगाए गए और जज़्बात भड़काए गये, उम्मते मुस्लिमा की इकाई को जुग़राफ़ियाई हुदूद की टुकड़ियों में बाँट दिया गया, फिर उनमें एक दूसरे के ख़िलाफ़ इख़्तिलाफ़ात उभारे गये और दुश्मनों को हवा दी गई, जो एक दीन के पैरुकार थे वह एक दूसरे के दुश्मन बन गए। इस्लाम पर जो हमले किये गये, उनमें एक नया हमला ग्लोबल व्हीलेज ( GLOBAL VILLAGE ) { आलमी क़र्या ) के नाम से शुरू किया गया कि यह दुनिया एक गांव के मानिंद है, गोया एक ऐसा जंगल है जिसमें खूँख़ार भेड़ियों की कसरत है जो किसी पर भी हमलावर होकर अपने पंजे गाड़ सकते हैं, इस नाम के खूबसूरत लेबल के पीछे जो मक्र व अज़ाइम हैं वह उम्मते मुस्लिमा के लिए ज़हरे क़ातिल की हैसियत रखते हैं, जिसका मक़सद आलमे इस्लाम पर मग़रिबी कुव्वत (western power) का ग़लबा व तसल्लुत है। इस इस्तिलाह के बहाने ताक़तवर साम्राज्य कमज़ोर लोगों के अक़ाइद, नज़रियात और तहज़ीब को मिटा कर अपने अक़ाइद नज़रियात और तहज़ीब ठूँसना चाहता है, यह वह तहज़ीब है जिसके कड़वे कसीले फलों की ज़हरनाकी से कोई महफूज नही रह सकेंगा। वह खुद बदतरीन क़िस्म के ताअस्सुब और तरफ़दारी का शिकार हैं। यह इंसाफ़ की हक़ीक़ी रुह के मुन्किर हैं, खुसूसन जब भी उनकी मईशत को किसी क़िस्म का कोई ख़तरा लाहिक होगा वह अपने मफ़ादात के लिए कुछ भी कर गुज़रेंगे वर्ना मुसलमानों से बढ़ कर आलमी इत्तिहाद का अलमबरदार भला कौन हो सकता है जिन्होंने पूरे कुर्रहये अर्ज़ को अदल और इन्साफ और सलामती का गहवारा बना दिया था।
*"ऐ नबी सल्ल०! हमने आपको तमाम अहले आलम के लिए रहमत बना कर भेजा है।"* ( कुरआनः अल अंबिया: 21/107 )
*"ऐ नबी सल्ल०! हमने आपको तमाम अहले आलम के लिए रहमत बना कर भेजा है।"* ( कुरआनः अल अंबिया: 21/107 )
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