Agar Mushrik Marte waqt Islam Qubool kar le to kya uski bakshish ho jayegi?
Kya Mushrik ke Liye Dua kiya ja sakta hai?
Kafir agar maut ke waqt iman layega to kya uski bakshish ho sakti hai?
*सहीह बुखारी शरीफ
*किताबुल जनाइज़*
*जनाजे के बयान में*
*हदीस नंबर 1360*
*बाब:--- अगर मुश्रिक मरते वक्त कलमा-ए-तौहीद कह दे तो (क्या उसकी बख्शिश हो सकती है?)
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*मुसय्यब बिन हज्न रजि. से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब अबू तालिब मरने लगा तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके पास तशरीफ लाये, वहां उस वक्त अबू जहल बिन हिशाम और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या बिन मुगीरा भी थे , रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू तालिब से कहा, ऐ चचा! कलमा तौहीद "ला इलाहा इल्लल्लाह" कह दे तो मैं अल्लाह के यहां तुम्हारी गवाही दूंगा। अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या बोले, ऐ तालिब! क्या तुम अपने बाप अब्दुल मुत्तलिब के तरीके से फिरते हो ?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो बार बार उसे कलमा -ए-तौहीद की तलकीन करते रहे और वह दोनों भी अपनी बात बराबर दोहराते रहे, यहां तक कि अबू तालिब ने आखिर में कहा कि वह अब्दुल मुत्तलिब के तरीके पर हैं और "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहने से इनकार कर दिया। जिस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अब मैं तुम्हारे लिए अल्लाह तआला से उस वक्त तक मगफिरत की दुआ करता रहूंगा, जब तक मुझे उससे मना न कर दिया जाये, इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाजिल फरमायी कि "नबी के लिए यह जाइज नहीं कि वह मुश्रिक के लिए बख्शिश की दुआ करें, चाहे वह करीबी रिश्तेदार ही क्यों हो।"
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वजाहत :-- *अगर मौत की निशानियाँ जाहिर न हो और न ही मौत का यकीन हो तो मौत के वक्त ईमान लाना फायदा दे सकता है, मुमकिन है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू तालिब को मरने की हालत से पहले ईमान लाने की दावत दी हो।
(औनुलबारी, 2/351)
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