Maujoda Daur me Musalmano ka halat.
Aaj Duniya Musalmano ko khatam karne ke liye kis tarah ki sajishen kar rahi hai?
Maujoda Aalami halat me Musalmano ki jimmedariyan (Part 01)
मौजूदा आलमी हालात में उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
Aaj Duniya Musalmano ko khatam karne ke liye kis tarah ki sajishen kar rahi hai?
Maujoda Aalami halat me Musalmano ki jimmedariyan (Part 01)
मौजूदा आलमी हालात में उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ
Maujuda Daur me Musalmano ki Jimmedariyan |
ख़ुतबाते हरम (01)
बिरादराने इस्लाम! हक़ व बातिल और ख़ैर व शर के मावैन मअरका आराई हमारी ज़िन्दगी का एक हिस्सा है, इंसानी तारीख़ इस तरह की मअरका आराईयों से भरी पड़ी है, लेकिन यह बात हतमी है कि फ़तह और कामयाबी हमेशा हक़ को नसीब होती है, जीत हमेशा सच्चाई की होतीं है, यह वादए इलाही है: *"झाग बे मसरफ़ होकर उड़ जाता है और जो लोगों के लिए नफ़ा बख़्श चीज़ है वह ज़मीन पर बाक़ी रहती है।"* ( अर् रअदः 13/17 )
यह अल्लाह तआला का फ़ज़्ल व करम है कि वह उम्मत में ऐसे गुयूर रिजाले ख़ैर को पैदा फ़रमाता रहता है जो आँधियों में चिराग़ जलाते हैं और सख़्त तूफ़ान में मर्दाना वार आगे बढ़ते है। यह लोग दीने इस्लाम के अमीन है, जो दीनी ज़िम्मादारीयोँ से किसी दौर में ग़ाफ़िल नहीं होते क्यों यह वादए रब्बानी है: *"अल्लाह तआला इंकार करता है मगर यह कि वह दीन की रौशनी को पूरा करके रहेगा, चाहे काफ़िर नाखुश हो।"* (अत् तौबा: 9/32 )
जब दुनिया जाहिलियत की तारीकी में डूबी हुई थी, शिर्क और बुत परस्ती का दौर दौरा था, अल्लाह अज़्ज़ व जल ने अपने ख़ास फ़ज़ल से रसूले अकरम हज़रत मुहम्मद सल्ल० को तमाम उम्मत के लिए अपना नबी बनाकर भेजा, फिर आप सल्ल० के बाद आपके जाँनिसार सहाबए किराम दीन का झंडा अपने हाथों मे थामे आगे बढ़ते रहे, इस्लाम का क़ाफ़िला आगे ही बढ़ता गया, लगता है कि हम एक मर्तबा फिर कश्तिये तूफ़ान में है। लेकिन इस्लाम और माद्दियत की इस कशमकश में अब लोग खुसूसन हक़ पसंद अफ़राद यह गवाही देने लगे हैं कि माद्दी खुशहाली के दावे खोखले थे, खुशहाली की बातें बेवजन थीं, इस हज़ीमत के बाद अब हमें एक ऐसे उसूल और ठोस सच्चाई की तरफ़ रुजूअ करने की ज़रुरत है, जो लोगों के मुर्दा ज़मीरों को झिंझोड़े और आला अख़लाक व मुरव्वत की तालीम दे। अलहम्दु लिल्लाह! ज़िन्दगी बसर करने के मुहज़्ज़ब आदाब और उसूल सिर्फ दीने इस्लाम ही ने पेश किये हैं और फिर से आलमी पैमानी पर इस्लाम की तालीमात की बाज़ गश्त सुनाई देने लगी है। चारों तरफ़ से इस्लाम में लोगों की गहरी दिलचस्पी की ख़बरें आ रही हैं, आए दिन इस्लामी मराकिज़ की तामीर और तालीमी इदारों की कसरत इस बात की बेहतरीन दलील है। हमे चौकन्ना रहने की भी अशद ज़रुरत है क्योंकि इस बरबाद शुदा तहज़ीब के दिलदादा आज भी अपनी अक़्लों पर पर्दे डाले चमगादड़ों की तरह इस ज़वाल याफ़ता तहज़ीब को संभाला देने की कोशिश में लगे हुए हैं और अपने पुरकशिश बयानात के ज़रीए इसे मुज़य्यन करके लोगों के सामने पेश कर रहे हैं, इस सूरते हाल में हक़परस्तों के लिए ज़रुरी है कि वह आगे बढ़ें और इन गुमराहकुन पर्दों को चाक करें ताकि दुनिया हक़ाइक़ का नज़ारा कर सके और पुरफ़रेब दावों की हक़ीक़त जान सके।
"अल्लाह का अटल फ़ैसला है वह काफ़िरों के अलीयुल रग़म अपने नूर को ग़ालिब करके रहेगा।"
( कुरआनः अत् तौबा: 9/32 )
बिरादराने इस्लाम! हक़ व बातिल और ख़ैर व शर के मावैन मअरका आराई हमारी ज़िन्दगी का एक हिस्सा है, इंसानी तारीख़ इस तरह की मअरका आराईयों से भरी पड़ी है, लेकिन यह बात हतमी है कि फ़तह और कामयाबी हमेशा हक़ को नसीब होती है, जीत हमेशा सच्चाई की होतीं है, यह वादए इलाही है: *"झाग बे मसरफ़ होकर उड़ जाता है और जो लोगों के लिए नफ़ा बख़्श चीज़ है वह ज़मीन पर बाक़ी रहती है।"* ( अर् रअदः 13/17 )
यह अल्लाह तआला का फ़ज़्ल व करम है कि वह उम्मत में ऐसे गुयूर रिजाले ख़ैर को पैदा फ़रमाता रहता है जो आँधियों में चिराग़ जलाते हैं और सख़्त तूफ़ान में मर्दाना वार आगे बढ़ते है। यह लोग दीने इस्लाम के अमीन है, जो दीनी ज़िम्मादारीयोँ से किसी दौर में ग़ाफ़िल नहीं होते क्यों यह वादए रब्बानी है: *"अल्लाह तआला इंकार करता है मगर यह कि वह दीन की रौशनी को पूरा करके रहेगा, चाहे काफ़िर नाखुश हो।"* (अत् तौबा: 9/32 )
जब दुनिया जाहिलियत की तारीकी में डूबी हुई थी, शिर्क और बुत परस्ती का दौर दौरा था, अल्लाह अज़्ज़ व जल ने अपने ख़ास फ़ज़ल से रसूले अकरम हज़रत मुहम्मद सल्ल० को तमाम उम्मत के लिए अपना नबी बनाकर भेजा, फिर आप सल्ल० के बाद आपके जाँनिसार सहाबए किराम दीन का झंडा अपने हाथों मे थामे आगे बढ़ते रहे, इस्लाम का क़ाफ़िला आगे ही बढ़ता गया, लगता है कि हम एक मर्तबा फिर कश्तिये तूफ़ान में है। लेकिन इस्लाम और माद्दियत की इस कशमकश में अब लोग खुसूसन हक़ पसंद अफ़राद यह गवाही देने लगे हैं कि माद्दी खुशहाली के दावे खोखले थे, खुशहाली की बातें बेवजन थीं, इस हज़ीमत के बाद अब हमें एक ऐसे उसूल और ठोस सच्चाई की तरफ़ रुजूअ करने की ज़रुरत है, जो लोगों के मुर्दा ज़मीरों को झिंझोड़े और आला अख़लाक व मुरव्वत की तालीम दे। अलहम्दु लिल्लाह! ज़िन्दगी बसर करने के मुहज़्ज़ब आदाब और उसूल सिर्फ दीने इस्लाम ही ने पेश किये हैं और फिर से आलमी पैमानी पर इस्लाम की तालीमात की बाज़ गश्त सुनाई देने लगी है। चारों तरफ़ से इस्लाम में लोगों की गहरी दिलचस्पी की ख़बरें आ रही हैं, आए दिन इस्लामी मराकिज़ की तामीर और तालीमी इदारों की कसरत इस बात की बेहतरीन दलील है। हमे चौकन्ना रहने की भी अशद ज़रुरत है क्योंकि इस बरबाद शुदा तहज़ीब के दिलदादा आज भी अपनी अक़्लों पर पर्दे डाले चमगादड़ों की तरह इस ज़वाल याफ़ता तहज़ीब को संभाला देने की कोशिश में लगे हुए हैं और अपने पुरकशिश बयानात के ज़रीए इसे मुज़य्यन करके लोगों के सामने पेश कर रहे हैं, इस सूरते हाल में हक़परस्तों के लिए ज़रुरी है कि वह आगे बढ़ें और इन गुमराहकुन पर्दों को चाक करें ताकि दुनिया हक़ाइक़ का नज़ारा कर सके और पुरफ़रेब दावों की हक़ीक़त जान सके।
"अल्लाह का अटल फ़ैसला है वह काफ़िरों के अलीयुल रग़म अपने नूर को ग़ालिब करके रहेगा।"
( कुरआनः अत् तौबा: 9/32 )
No comments:
Post a Comment