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Hindu Bhaiyon ke 12 Sawalat: Allah Farishton se Madad leta hai.

Hindu Bhaiyon ke Jariye Islam par lagaye gaye 12 iljamon ka jawab.

Islam me Jeew Hatya hai jabke Sanatan Dharm me janwaro se pyar karna Sikhaya gaya hai.
Allah Aasaman pe baitha hai jabke Bhagwan Sab kuchh janane wala hai use kisi ki Jarurat nahi, Allah ko Farishte ki jarurat hai.












【 सनातन धर्मीयों के द्वारा इस्लाम पर लागये गए 12 आक्षेपों का उत्तर】

*१) ईश्वर सर्वव्यापक है। जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।*

उत्त्तर:  सर्व्यापक का अर्थ है कि वह हर वस्तु में विधमान है और कण कण में है। अगर वह हर वस्तू में विद्यमान है तो उसने आकार ले लिया और फिर ईश्वर निराकर कैसे रहा? तो इसलिए उसके सर्व्यापक होने का सनातनी मत गलत प्रमाणित हो जाता है।  जबकि  इस्लाम तो इसके उलट बात करता है की वह निराकर है और वह कण कण में नही, बल्कि कण कण उसके अधिकार में है, उसकी देख रेख में है।

अल्लाह सातवे आसमान है, इसका प्रमाण क़ुरान से दिजीए पहले? वैसे किसी भी आम हिन्दू भाई से पूछ लो की ईश्वर कंहा है वो आकाश की तरफ इशारा करेगा। तो इसका अर्थ क्या है? क्या ईश्वर वंहा विराजमान है या उसका अस्तित्व आकाश के पार है? निस्संदेह उसका अस्तित्व सबसे ऊपर है जिसका स्वरूप निराकार है और उसका पूर्ण अस्तित्व हमारी समझ के बाहर है। जैसे ऋग्वेद (10:81:2) कहता है की ईश्वर समस्त जगत का दृष्टा है, तो क्या इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर की आंखें है? बल्कि अगला मंत्र तो ये बताता है कि ईश्वर तो सब दिशाओं की और मुख, बाह और पाँव वाला है।

*२) ईश्वर कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता। जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर आत्मा और प्रकृति के द्वारा रचना करता है। वो इनकी सहायता क्यों लेता है?  सनातन धर्म ने तो अपने हर एक काम के लिए एक देवी देवता बना रखे है। वर्षा का, सूर्य का, वायु का, जल का, विद्या का आदि आदि। 33 करोड़ है।  यंहा तक कि सृष्टि बनाने, चलाने, नष्ट करने वाले भगवान भी अलग अलग है। क्या ईश्वर इन पर निर्भर है?
इसके उलट अल्लाह किसी की सहायता नहीं लेता। सिर्फ आदेश देता है। फ़रिश्ते उसकी बनायी सृष्टि है जो उसके आदशों के अनुसार कार्य करती है और इसलिए उसके ही अधीन है। जिन्न, इंसान, ब्रह्मांड, प्रकृति सब अल्लाह के अधीन है। सृष्टि का निर्माण, संचालन, संहार सब उसके अधीन है। उसे किसी की आवश्यकता नहीं। ये ब्रह्माण्ड उसकी मशीन है और फ़रिश्ते आदि पुर्ज़े।
जैसे ब्रह्मांड बनने में खरबों वर्ष लगे। अल्लाह चाहता तो इसे एक झटके में बना देता। पर उसके काम करने का एक विशेष तरीका है जो सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए कोई कहे कि अल्लाह ने समय का सहारा लिया ब्रह्मांड बनाने में, ये एक कुतर्क होगा।

*३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है।  जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं।

उत्तर:  ईश्वर अगर नित्य न्याय करता है तो स्वर्ग नर्क किसके लिए बनाया है? नित्य न्याय करता है तो धरती पर अधिकतर लोग जीवन भर पाप करते है और आराम का जीवन बीता कर मर जाते है, बिना किसी दंड को भोगे या थोड़ा सा दंड भोग कर। जैसे भ्रष्ट नेता, अपराधी, बलत्कारी, खूनी। तो फिर ईश्वर ने न्याय कंहा किया? और हमारे साथ नित्य न्याय हुआ है पहले भी, कैसे मान ले, जबकि हमारे पुर्नजन्म के दोष, पाप, योनी तक हमें नहीं बताई गई है।

इसके उलट इस्लाम के अनुसार अल्लाह कुछ कर्मों फल और दंड यंही देता है, कुछ थोड़ा यंहा थोड़ा वंहा और बाकी बचे अधिकतर कर्मो का मरने के बाद, स्वर्ग और नर्क के रूप में। यह बिलकुल झूट है कि वह सिर्फ कब्रो में दफनाए लोगो के कर्मो का हिसाब करेगा क्योंकि इसका कोई प्रमाण ही नहीं है। बल्कि सबका करेगा।

*४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड भी अवश्य देता है अर्थात् न्यायकारी है। जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है अर्थात् मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।*

उत्त्तर: ऊपर लिखा है कि ईश्वर क्षमाशील नही है। अगर ईश्वर क्षमाशील नहीं है तो फिर वह ईश्वर ही कैसे हुआ? ऐसा ईश्वर, वैदिक या सनातनी ईश्वर ही हो सकता है जिसमे करुणा न हो। अल्लाह तो सबसे अधिक करुणा वाला है। रही बात पाप माफ होने की तो गंगा स्नान करके कौन पाप मुक्त होते है? तीर्थ पर जाकर किसके पाप क्षमा होते है? पिंड दान करके किसके पाप माफ करवाये जाते है? भंडारा खिला कर किसके पापों का प्राश्चित होता है?
इस्लाम कहता है कि जिसका किसी ने ज़रा भी हक़ मारा या अहित किया या नुकसान पहुंचाया है, उसका बदला या दंड वह स्वयं लेगा या माफ करेगा मरने के बाद। यही असली न्याय है। दिल से माफी सच्ची मांगने पर अल्लाह सिर्फ वही पाप माफ करता है जो उसके अपनी उपासना और अस्तित्व से संबंधित है। न कि मनुष्य के मनुष्य से संबंधित।

*५) ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों" मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् - ऋग्वेद 10.53.6. जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों*

उत्त्तर:  जिनसे कहा गया कि मनुष्य बनो, तो पहले क्या मनुष्य नहीं थे या मनुष्य से हीन थे? उपरोत्त मंत्र आगे ये कहता है कि मनुष्य बन कर उस ईश्वर की उपासना करो। अर्थात जो उस ईश्वर से अलग किसी भी अन्य की उपासन करता है वो मनुष्य नही है। परन्तु आज तो लगभग सभी हिन्दू भाई उस एक ईश्वर को छोड़ कर हर किसी की उपासना कर रहा है। तो वेद अनुसार क्या वो मनुष्य हुए?
सम्पूर्ण जीवन चरित्र और ऋग्वेदिक भाष्य भूमिका में स्वामी दयानन्द कहते है कि जो एक ईश्ववर के सिवा किसी दूसरे को पूजे वो पशु है और नरकगामी है।
इंसानियत और मुस्लमानियत एक ही सिक्के दो पहलू है। बिना इंसानियत के मुसलमान नहीं हो सकते। मुसलामन का अर्थ होता है जिसका पूर्ण ईमान अल्लाह पर हो। न कि किसी ऐसी चीज़ पर जो स्वयं ईश्वर के अधीन है। अर्थात मुसलामन का अर्थ उस एक निराकार ईश्वर का आस्तिक बनना है, जिसे अल्लाह, God, यहोवा, परमेश्वर भी कहते है और अन्य भाषाओं में भी अलग अलग नामों से पुकारते है। सच्ची आस्तिकता के विस्तृत क्षेत्र में इंसानियत रहती है। इस्लाम तो ये कहता है कि तुम सब एक ही जोड़ें से पैदा किये गए इंसान हो पूरी दुनिया अल्लाह का परिवार है।

शतपथ ब्राह्मण, मनुस्मृति और ऋग्वेदिक भाष्य भूमिका में बताया गया है कि जो असत्य का आचरण करे वो मनुष्य है और जो सत्य का आचरण करे वो देवता है। इस व्याख्या के अनुसार क्या मनुष्य बनने के लिए पहले असत्य व्यवहार करना पड़ेगा?

*६) ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है। जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?*

उत्तर:  अल्लाह सर्वज्ञ है, उसे पता है कि कौन क्या करेगा।  पर उसने सबको उसके कर्म करने की छूट दी है महाप्रलय तक ताकि सब अपने कर्म लाइव देख कर उसके सामने पहुंचे और ये न कह सके कि मैंने तो ऐसे कर्म किए ही नहीं।  शैतान कोई व्यक्ति विशेष आदि नहीं बल्कि विशेष मानसिकता या विशेष सोच वाले का नाम है जो इंसान भी हो सकते है। यानी ऐसी मानसिकता जो नेकी की उलट है।
क्या ईश्वर को नहीं पता था कि 'कली' (सनातन धर्म में शैतान जैसा एक अस्तित्व) उसकी आज्ञा नहीं मानेगा अन्यथा उसे जन्म ही क्यों दिया जो मनुष्य को धरती पर भटकाता व बहकाता फिरता है? देवी, देवताओं, भगवानों से लाखों सालों से असुरों, राक्षसों, दैत्यों, दानवों, पिशाचों, चांडालों आदि का युद्ध चल रहा है, क्या ईश्वर, भगवान को नहीं पता था कि ये उसके आदशों के विरुद्ध युध्द करेंगे तो इन्हें क्यों बनाया? यंहा तक कि देवी देवताओं की आपस में भी टशन चलती रहती है। तो इन्हें भी क्यो बनाया? क्या पता नहीं था ये देवासुर संग्राम, घमासान करेंगे?

*७) ईश्वर निराकार होने से शरीर रहित है।  जबकि अल्लाह शरीर वाला है और एक आँख से देखता है।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर निराकर है तो कण कण में कैसे है? निराकर है तो अवतार बनके आकार में कैसे आता है? और मृत्यु के बाद शरीर यंही क्यों छोड़ जाता है? अथर्वेद (4:1:6) कहता है कि जगत उत्पत्ति से पहके ईश्वर सोया हुआ सा था। प्रश्न उठता है कि बेड पर या सोफा पर?  इसके उलट अल्लाह निराकर है जिसको न हाथ, पांव, नाक, आदि कुछ भी नहीं है बल्कि उसका जैसा कुछ भी नहीं।

*८) ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं। ''अल्लाह 'काफिर' लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता''।*

उत्तर:  ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सबके लिए दिया है तो वो कौन है जिन्होंने वर्षों तक इसको केवल एक जाति ने याद रखा, लिखने नहीं दिया, शुद्रो को इसको सुनने नही दिया, इसका  जाप भी नही करने दिया, किसी को संस्कृत तक नहीं सीखने दी? ऐसा करने वालो की जिह्वा खींचने और कानों में पिघला सीसा डालने का आदेश दिया? शुद्रो के ताड़न का आदेश क्यो? ईश्वर ने सबके लिए भेजा था तो 19वी सदी से पहले इसका अनुवाद अन्य भाषाओं में क्यों न हो पाया, दुनिया पढ़ तक न पायी, यंहा तक कि देख भी न पाई? जबकि क़ुरान पूरी दुनिया और और सभी लोगो के लिए आया है जो चाहे पढ़े, सीखें, अपनाए।

काफिर का मतलब गैर मुस्लिम नहीं बल्कि नास्तिक होता है और वो भी वो विशेष नास्तिक जिन्होंने क़ुरान के अवतरण के समय ईश्वर के एक होने का इनकार किया,  बार बार समझाए जाने के बाद भी। बल्कि वर्षो तक ईश्वर के एक मानने वालों को लूटा, सताया, मारा, हत्या की,अत्याचार किया, प्रताड़ित किया, ये जानते हुए की वो सज्जन लोग है। और इस पर भी बस न चला तो आस्तिकों के विरुद्ध हमेशा षड्यंत्र करते गए और कई बार युद्ध छेड़ दिया। जब ये हठधर्मी न माने तब ऐसे लोगो को कहा गया है कि ये लोग काफिर (उस समय के नास्तिक) हो गए, यानी ये नहीं सुधरेंगे इसलिए इनको अल्लाह मार्ग नही दिखाता।

ईश्वर, भगवान राम को मार्ग दिखयेगा या रावण को, जवाब दो? अपने भक्तो को दिखयेगा या दृष्टो को? क्या अधर्मी, कपटीयों, पाखंडियों, ढोंगियों, अत्याचारियों, दमनकारियों को ईश्वर मार्ग दिखयेगा? ईश्वर असत्यवादी लोगो को मार्ग दिखता है या सत्यवादियों को?

*९) ईश्वर कहता है, हे मनुष्यो ! मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्ण विद्वान, ज्ञानीजन, सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं, वैसे ही तुम भी किया करो। जबकि कुरान का अल्लाह कहता है ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और उन्हे चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।''.*

उत्तर:  इस्लाम भी यही कहता है की साथ मिलकर रहो और साथ मिलकर खाओ और पियो (हदीस). और जैसा ऊपर बताया गया कि उस परमेश्वर के विरुद्ध हुए हथी निर्दयी दुश्मन नास्तिकों को काफ़िर कहा गया है, न कि गैर मुसलमानों को (जैसा कि ऊपर प्रशन्न में झूठ लिखा गया है)। और जब उनसे युद्ध हुआ तो तब ये कहा गया कि युध्द में उनसे सख्ती से लड़ो। ये युद्ध में दिए आदेश है। वरना युद्ध में क्या शत्रुओं को अतिथि मान कर आवभगत की जाती?

गीता में अर्जुन कहता है कि मैं अपने बड़ो, गुरुओ और भाइयो को कैसे मार सकता हूँ। तो श्री कृष्ण कहते है कि क्या तुम नपुंसक हो गए है, ये रणभूमि है, वह सब दुश्मन है। कोई भी हो सामने, उन्हें मार डालो, हथियार उठाओ अर्जुन, चाहे वीरगती ही हो। अब बताओ ये कैसे आदेश है? युद्ध के है न। बाकी अथर्वेद (12:5:62/7) क्या कहता है ऐसे लोगो को वो भी देख लो: दुश्मन-वेद निंदक को काट डाल, चीर डाल, फाड़ डाल, जला दे, फूंक दे, भस्म कर दे। वेद आदि ग्रंथों में ऐसे बहुत से मंत्र और श्लोक  है।

वेदों में अनार्यो, मलेच्छ, दस्युओं, ब्रह्मद्विष, वेद निंदकों आदि (ये वैदिक काल के नास्तिक थे) के साथ क्या क्या उत्पीड़न आदि करने के आदेश है, पढ़ लीजिये।

*१०) ऋग्वेद में ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा। तुम सब समान हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो। जबकि ''हे 'ईमान' लाने वालो (केवल एक अल्लाह को मानने वालो) 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28) कहता है।*

उत्तर:  इस्लाम कहता है कि कोई किसी से बड़ा छोटा नहीं है। हज और नमाज़ भाईचारे की मिसाल है जिन्हें सब एक साथ मिलकर अदा करते है। नापाक उन्हें कहा गया है जो एक निराकार ईश्वर को ईश्वर न मान कर, अन्यो को ईश्वर मानने लगे या उनकी मूर्ति बनाके उन्हें पूजने लगे जबकि उनका मन इस बात की स्वीकृति दे चुका हो कि परमेश्वर है तो केवल एक ही।
प्रश्न करने वाला खुद पहले प्रश्न में कह रहा है कि ईश्वर निराकर है तो फिर ये सवाल ही उसके दोहरे चरित्र का प्रमाण है कि निराकर की मूर्ति कैसे हो सकती है?
 
और उसकी मूर्ति नही है तो उसकी मूर्ति को बनाया या पूजा भी कैसे जा सकता है? अगर फिर भी ऐसा कोई करता है तो उसकी पूजा भी अशुद्ध और अपवित्र हुई या नहीं?
वेद के साथ साथ, मनुस्मृति (2:11) भी कहती है कि वेद न मानने वाले और नास्तिकों का बहिष्कार करो। वेद तो उन्हें मारने काटने के आदेश देता है। वेद आदि ग्रन्थ, यंहा तक कि स्मृति शास्त्र तो शूद्रों को अपवित्र, हीन बताते है और सारे मनुष्यों को 4 वर्णों में बाँटते है।  स्वामी विवेकानंद और डॉक्टर अम्बेडकर इस पर बहुत कुछ लीख कर गए है। इसलिए ही वंचित समुदाय मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन करते आये है।

*११) क़ुरान का अल्लाह अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं।  जबकि वेद का ईश्वर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।*

उत्तर:  वैदिक ईश्वर परीक्षा नहीं ले रहा है तो नरक स्वर्ग, प्रलय आदि क्यों बनाया है। इस धरती पर जीवन क्यो चल रहा है। ईश्वर सर्वज्ञ है तो बिना जीवन दिए ही लोगो के कर्मो को जांच लेता! ऐसा क्यों न किया?
अल्लाह सर्वज्ञ है पर ये जीवन इसलिए दिया है कि हमें इसका स्वयं अनुभव हो, हम स्वयं जी कर देख ले, स्वयं अपने लिए साक्षी बन जाये कि हमने सच में जीवन जी कर देखा है और फला फला कर्म भी किए है।  वरना अल्लाह को तो पता है कि कौन, कब, क्या, कैसे कर्म करेगा। ये सिस्टम हमारी संतुष्टि के लिए है।

रही बात क़ुरबानी की तो ईश्वर क्यों भक्तो से बलि मांग कर परीक्षा लेता है? बलि शब्द संस्कृत का ही है जिसका अर्थ जीवहत्या है। अश्मेधयज्ञ में मेध का अर्थ ही बलि है।  नरबलि हिन्दू धर्म की ही कुप्रथा थी। काली मां और इष्टदेवों को प्रसन्न करने के लिए ही बलि दी जाती है। ग्रंथो से पता लगता है कि यज्ञों में बलि का प्रावधान था। बलि और मांसाहार का उल्लेख मनुस्मृति, महाभारत, रामायण और वेदों आदि में मिलता है, सनातन धर्म में मांसहार तब बंद हुआ जब बौद्ध और जैन धर्म ने अहिंसा का प्रचार प्रसार शुरू किया। स्वामी विवेकानन्द ने स्पष्ट कहा है कि वैदिक काल मे मांसहार और बीफ तक प्रचलन में था। बाबा साहब अम्बेडकर भी लिख कर गए है की मांसहार, वैदिक काल में ब्राह्मणों की दिनचर्या का अंग था। भारत, नेपाल में ही सेकड़ो मंदिरों में बलि का प्रचलन है। पिछड़ी जातियों के देवी आदि के मंन्दिरों में बलि प्रथा का प्रचलन है।  बंगाल में दुर्गा पूजा में मांस ही प्रसाद होता है। नेपाल में हर वर्ष विश्व का सबसे बड़ा पशुबलि त्योहार मनाया जाता है। आज भी बंगाली, पहाड़ी और दक्षिण भारत क्षेत्र के ब्राहमण भी मांसाहारी होते है।
वैसे शिवजी ने अपने पुत्र गणेश का सिर क्यों काटा था? परशुराम ने अपनी मां का गला क्यों काटा था?

*१२) अल्लाह जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है।  लेकिन वेद का ईश्वर मानव मात्र व जीवों पर सेवा, भलाई, दया करने से खुश होता है।*

उत्तर:  ये प्रश्न भी झूट हैं की अल्लाह किसी के प्राण लेकर खुश होता। अल्लाह, वेद की तरह चीरने फाड़ने का आदश नहीं देता। बल्कि जीवो के साथ भलाई के आदेश देता है। जैसे ज़्यादा बोझा न डालों, चारा अच्छा दो, उन्हें पीटो नहीं आदि आदि। पर अल्लाह ने हर प्राणी को एक उद्देश्य के तहत बनाया है इसलिए उसने उसी के तहत कुछ आदेश भी दिए जिसके अंतर्गत मांसाहार के लिए जीव हत्या की अनुमति है। अगर ये अनुमति गलत है तो सबसे पहले सनातनी ग्रंथों को मानना बंद कर दो क्योंकि उनमें भी मांसाहार और जीवहत्या का उल्लेख है। और जीवहत्या तो दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में करता है। तभी वेस्ट में अब लोग वेजिटेरिअन नहीं बल्कि वेगन बनना चाहते है।

*इस तरह के प्रश्न बना कर लोग अपनी नफरत और भड़ास बाहर निकालते है, बिना अपने धर्मग्रंथ देखे या गिरेबान में झांके। इसके लिए ये लोग अपने दोहरेपन, पक्षपातपूर्ण चारित्र, पूर्वाग्रह और झूठ का सहारा लेते है। एक उंगली उठाने से चार अपनी तरफ उठती है।*
[वसीम वसर]
_________________________
हर आदमी को चाहिए कि अपने धर्म को सही से जानने की कोशिश करे।
हमारा धर्म क्या है?
हमारे धर्म की स्थापना कैसे हुई?
वे ईश्दूत और संदेशठा कौन थे जिन्होंने यह धर्म हम तक पहुंचाया?
उनकी जीवनी और उनका इतिहास क्या है?
वे इतिहासकार कौन थे? कहीं उन्होंने कहानियां तो नहीं बनाई थी जिसे सत्य का रूप दे दिया गया?
हमारे धर्म का कोई ईश्वरिय ग्रंथ है?
उस ईश्वरिय ग्रंथ में क्या लिखा है?
जब मेरे परमेश्वर का ग्रंथ है तो वह मेरे लिए भी है।
साथियों से गुज़ारिश है कि जहां तक हो सके इस पैग़ाम को दूसरो तक पहुंचाए ताकि हमारे हिन्दू भाईयो की गलतफहमी दूर हो सके।
इसलाम के बारे में बहुत सी ग़लत बातें उड़ाई गई हैं।
तो आईए सुनी सुनाई बातों पर यकीन करने से बेहतर है कि हम ख़ुद पढ़ कर देखें।
अंधकार से उजाले की तरफ़ आईए।
ईश्वर हम सब को सत्य मार्ग दिखाए।
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