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Insan aur Muashare Par Gunahon ke Asraat. (Part 05)

Wah log jo Din rat burai me lage rahate hai aur apne Rab ko bhul baithe hai.
Beshak Hamara Rab bahut karam karne wala aur Meharban hai.
Insan aur Muashare Par Gunahon ke Muhallik asraat. (Part 05)
इन्सान और मुआशरे पर*
           *गुनाहों के मुहलिक असरात*
🚨🚨🚨🚨🚨🚨🚨🚨🚨🚨
                     *ख़ुतबाते हरम*
                              *(5)*
    हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० फ़रमाते है: *"नेकी से चेहरे पर रौनक, दिल में नूर, रिज़्क़ में वुसअत, बदन में कुव्वत और मख़लूक के दिलों में मुहब्बत पैदा होती है और गुनाह से चेहरा पज़मुर्दा, क़ल्ब और क़ब्र की तारीकी, जिस्म में कमजोरी, रिज़्क़ में क़िल्लत और लोगों के दिलों में नफ़रत पैदा होती है।"*( अलजवाबुल काफ़ी,स०78 )
     हज़रत हसन बसरी रह० ने फ़रमाया: *"अल्लाह के नाफ़रमान चाहे सख़्त जान ख़च्चरों पर सवार हो जाएँ या सुबक रफ़्तार घोड़ो पर, उन्हें हक़ीक़ी इज़्ज़त व सरफ़राज़ी हासिल नहीं हो सकती, इसलिए कि गुनाहों का बोझ उनके दिलों की राहत छीन लेगा, अल्लाह तआला का फ़ैसला है कि उसके नाफ़रमानों का सर नीचा हो जाए।"*(अलजवाबुल काफ़ी: स०84)
    अज़ीज़ाने गिरामी! क्या अभी वक़्त नहीं आया कि हम अपने गुनाहों की संगीनी का जाइज़ा लें और यह हक़ीक़त समझ लें कि हमारी ज़िल्लत और पस्ती का बुनियादी सबब खुद हमारी बदआमालियाँ है। हमें चाहिये कि अपनी इस्लाह की तरफ़ तवज्जोह दें, इस्लाह तर्के मआसी और गुनाहों के तौबा के जरिए होती है, नीज़ दानिशवरों को भी ग़ौर करना चाहिए कि इस वक़्त जो हर तरफ़ बदअम्नी और फ़ित्ना व फ़साद का दौर दौरा है, ख़ाना जंगीयों की कसरत है, लूटमार और क़्त्ल व ग़ारतगारी का बाज़ार गर्म है, नित नई बीमारियों की वबा फैल रही है, कहीं यह सब कुछ हमारे ही करतूतों का नतीजा तो नही? क्योंकि फ़रमाया गया है: *"जो अल्लाह के ज़िक्र से एअराज़ करेगा उस पर सख़्त अज़ाब मुसल्लत किया जाएगा।"* (कुरआनः अल जिन्नः 72/17 )
   मज़ीद फ़रमाया: *"क्या वह लोग जिन्होंने बुराईयाँ कीं इस बात से बेख़ौफ़ हो गये कि अल्लाह तआला उन्हें ज़मीन में धँसा दे या उन पर इस तरह अज़ाब ले आए जिसे वह महसूस ही न कर सकें या उस वक़्त उन्हें अपनी लपेट में ले जब वह सो रहे हों, वह अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते या उन्हें हालते ख़ौफ़े आ दबोचे, बेशक तुम्हारा रब बहुत करम करने वाला और मेहरबान है।" ( अन् नहलः 16/45--47 )

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