Insan aur Muashare (Society) par Gunahon ke Muhallik asraat.
इन्सान और मुआशरे पर गुनाहों के मुहलिक असरात
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ख़ुतबाते हरम (1)
लोगों! अल्लाह से डरो, उसकी इताअत करो और नाफ़रमानी से बचो। अल्लाह तआला का एहसाने अज़ीम है कि उसने इस उम्मत को राहें हक़ का पेशवा और इमाम बनाया, ख़ातिमुल अंबिया वर्रुसुल की बेअसत के लिए इस उम्मत का इंतिख़ाब फ़रमाया, उनकी रहनुमाई के लिए बेहतरीन किताब नाज़िल फ़रमाई। जब तक वह इस दीन से वाबस्ता रहें, उनके लिए शर्फ़ व मर्तबा और नुसरत व मदद का वादा फ़रमाया, चुनाँचे एक तवील अर्से तक फ़रज़ंदाने मिल्लते इस्लामिया दुनिया की इमामत व क़यादत करते रहे, फिर उनकी अज़मत ज़िल्लत से और शौकत निकबत से बदल गई, मुख़्तलिफ़ क़ौमे उन पर टूट पड़ीं, चारो तरफ से उन पर हमले होने लगे, हर तरफ़ उनको शिकस्त और पस्पाई होने लगी। यहाँ सवाल पैदा होता है कि वह कौनसे अवामिल थे जिनकी वजह से हमने अपना मक़ाम खो दिया, हमारी इज़्ज़त ज़िल्लत मे तबदील हुई। इसका तज्ज़िया किया जाए तो इसका अहम सबब गुनाहों से आलूदा हमारी ज़िन्दगी और अल्लाह तआला की नाफ़रमानी है क्योंकि यह क़ानूने इलाही है जिसे कोई फ़र्द या जमाअत बदल नहीं सकती कि जब तक कोई क़ौम अपने रब के हुक्म और नबी के रास्ते पर गामज़न होगी वह तरक़्क़ी की मंज़िले तय करती जाएगी और इसके लिए अल्लाह की नुसरत आती रहेगी लेकिन अगर कोई क़ौम अपने ख़ालिक़ से बग़ावत करे और नबी का रास्ता छोड़ दे तो फिर अल्लाह तआला का कानून रंग व नस्ल और ख़ानदान को नहीं देखता बल्कि उसका इन्साफ सब के लिए बराबर और कानून हर एक के लिए यक्साँ है, फिर वह उस बाग़ी क़ौम के खिलाफ हरकत में आ जाता है और उसे मक़ामे बुलंद से उठा कर पस्तियों में फैंक देता है, चुनाँचे फ़रमाने बारी तआला है: *"बेशक अल्लाह तआला किसी क़ौम की हालत उस वक़्त तक नहीं बदलता जब तक वह खुद अपने आप को बदल न डाले।"*(अर् रअदः 13/11 )
एक और मक़ाम पर फ़रमाया: *"और जो कुछ तुम्हें मुसीबत पहुँचती है, वह तुम्हारे आमाल का नतीजा है और बहुत सी चीज़ों को वह मुआफ़ कर देता है।"
(अश् शूरा: 42/30 )
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