Insan aur Muashare Par Gunahon ke Muhallik asraat. (Part 06 last)
Musalmano ko Apni kaun kaun si Jimmedari ka khas khyal rakhna chahiye?
इन्सान और मुआशरे पर गुनाहों के मुहलिक असरात
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*ख़ुतबाते हरम (6)
*"और बेशक तुम्हारा रब घात लगाए हुए है।"*(कुरआनः अलफ़ज्रः89/14 )
यह अफ़सोसनाक हालात इस बात के मुतक़ाज़ी है कि हुक्काम, क़ाइदीन, उलमा, दाइयाने दीन और दानिशवराने मिल्लते इस्लामिया को मिल बैठ कर सोचना चाहिए कि गुनाहों के इस सैलाब के आगे बंद किस तरह बाँधा जाए। बअज़ लोगो की इस्लाह पसंदाना कोशिशों के मुस्बत नताइज देखने मे आ रहे हैं और आलमे इस्लाम में बेदारी की ठंडी हवाओं के झोंके चलने लगे हैं, जिनसे इन्शा अल्लाह आलमे इस्लामी मुस्तफ़ीद हो सकता है।
*"यह बात अल्लाह के लिए भारी नहीं।"*(कुरआनः इब्राहिमः 14/20, व फ़ातिरः 35/17 )
लोगों! अल्लाह का तक़वा इख़्तियार करो और जान लो कि जब किसी इलाके में गुनाहों की कसरत होती है वह बरबाद हो जाता है, जिस दिल में बुराइयाँ घर कर लेती हैं वह मुर्दा हो जाता है, जिस जिस्म में उनको जगह मिलती है वह नाकारा हो जाता है, जिस क़ौम में यह आम होती है उसे ज़लील कर कर देती हैं और जिस सोसायटी में फैलती हैं उसे उजाड़ देती हैं। बुराईयों के बढ़ते हुए सैलाब को रोकने की जिम्मेदारी कलिमा गो मुसलमानों पर आइद होती है, रसूले अकरम सल्ल० का इर्शादे गिरामी है: *"तुम में से हर एक ज़िम्मादार है और हर एक से उसकी ज़िम्मादारी के मुतअल्लिक पूछा जाएगा।"* (सही बुख़ारी: 893, व सही मुस्लीमः 1829 )
हर शख़्स अपनी ज़िम्मादारी पूरी करे। अपनी, अपने घर की और औलाद की तरबियत पर खुसूसी तवज्जोह दे उनमे ख़ैर का जज़्बा रासिख़ हो, मुन्करात से नफ़रत हो और अपनी ताक़त के मुताबिक मुआशरे को पाक करने की जुस्तजू हो क्योंकि जब भी कोई बला और आफ़त होती है वह गुनाह के सबब से होती है और तौबा के ज़रीए दूर होती है। अल्लाह तआला का फ़रमान है: *"कह दीजिये, ऐ मेरे बन्दों! जिन्होंने अपने आप पर ज़्यादती की है, तुम अल्लाह की रहमत से मायूस न होना, बेशक अल्लाह तआला तमाम गुनाहों को मुआफ़ करने वाला है, यक़ीनन वह ग़फूर और रहीम है।"* (अज़् ज़ुमरः 39/53 )
दरुद व सलाम पढ़िये जनाब ख़ैरुल वरा रसूले मुज्तबा मुहम्मद सल्ल० पर।
*आख़री पोस्ट*
(कल से इन्शा अल्लाह "मौजूदा आलमी हालात में *उम्मते मुस्लिमा की ज़िम्मादारीयाँ* )
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