Tauba Karne Se Allah maaf kar deta hai.
*तौबा राहें नजात
*ख़ुतबाते हरम*
*(9)*
लोगों! अपने गुनाहों के अंबार और मअसियत के हजम को न देखो बल्कि रब्बुल आलमीन के फ़्ज़्ल व करम की वुसअत को देखो, अगर कोई यह समझे कि मेरे गुनाहों की कसरत की वजह से शायद मुझे बारगाहे रब्बानी से धुतकार दिया,जाए, उसने अल्लाह की अज़मत को समझा ही नहीं। अगर बनी इसराईल के एक कातिल को जिसने (99) निन्नानवे लोगों का क़त्ल किया, फिर मायूसी और बेबसी के आलम में एक और शख़्स को क़त्ल करके पूरे (100) सौ पूरे कर दिये। इस क़दर खूंरेज़ी का मुज़ाहिरा करने के बावजूद जब इसी सफ़्फ़ाक क़ातिल (Serial Killer) ने सच्ची तौबा की तो अल्लाह तआला ने उसे भी मुआफ़ फ़रमा दिया। " *(सही बुख़ारी: 3470, व सही मुस्लीम : 2766)*
लेकिन इसका कोई यह ग़लत मतलब न निकाले कि गुनाह पर गुनाह किये जाओ
, बुराई पर बुराई करते रहो क्योंकि अल्लाह तो मुआफ़ करने वाला है, बड़ा ग़फूरुर्रहीम है, लिहाजा मुआफ़ फ़रमा देगा। ऐसा सोचना और करना बड़ी बेहयाई, ढिठाई और रुसवाई की बात है। ऐसा क़दम क़त्अन ग़लत होगा क्योंकि कोई नही जानता कि आनेवाली सुबह उसके लिए क्या पैगाम लेकर नुमुदार होगी? बल्कि जब ज़िन्दगी का एक लम्हा भी गुज़रता है तो इसके के बाद के लम्हात की कुछ ख़बर नही होती कि वह अपने दामन में क्या ला रहे हैं? साँस की डोरी का क्या ऐतिबार, न जाने कब टूट जाए? दम का क्या भरोसा, कौन जाने कब दम निकल जाए? इसलिए लाज़िम है कि गुनाह आज और अभी हमेशा के लिए तर्के कर दिया जाए और फ़ौरी तौर पर बिला ताख़ीर सच्ची तौबा की जाए। तर्के मआसी और तौबा में उज्लत मोमिन की पहचान है। फ़रमाने रब्बानी है: *"अल्लाह तआला सिर्फ़ उन्ही लोगो की तौबा क़बूल फ़रमाता है जो बावजह नादानी कोई बुराई कर गुज़रें, फिर उससे जल्द बाज़ आ जाएँ और तौबा कर लें तो अल्लाह भी उनकी तौबा क़बूल करता है, वह बड़े इल्म वाला और हिकमत वाला है वह उनकी तौबा क़बूल नहीं फ़रमाता जो बुराईयाँ करते चले जाएँ यहाँ तक कि उनमें किसी की मौत का वक़्त आ जाए तो कहने लगे कि मैंने तौबा की, उनकी तौबा भी क़बूल नहीं जो कुफ़्र पर मर जाएँ, यही लोग हैं जिनके लिए अलमनाक अज़ाब तैयार है।"*(अन् निसा: 4/17, 18 )
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