Allah Kisi pe zulm nahi karta balki Wah Shakhs khud pe Zulm karta hai.
insan aur Muashare Par Gunahon ke Muhallik asraat. (Part 04)
इन्सान और मुआशरे पर गुनाहों के मुहलिक असरात
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*ख़ुतबाते हरम* (4)
मआसी के मज़ीद नुक़सानात कभी अक्ल व खुर्द की बरबादी की सुरत में दिखाई देते है और कभी पस्त हिम्मती, बेज़मीरी, बेग़ैरती, ज़वाले निअमत, जिल्लत की मार, ख़ौफ़ व रोअब, परेशानी, बसीरत किल्लत, बारिश की कमी व मुख़्तलिफ़ क़िस्म की परेशानियों की शक्ल में दुनिया में, क़ब्र में और आख़िर में ज़ाहिर होते है, ग़र्ज़ गुनाहों का हर नुकसान एक दूसरे से बड़ा और हर तबाही दूसरी तबाही से ज़्यादा इबरतनाक सूरत में ज़ाहिर होती है। कुरआन मजीद और अहादीस में इसकी सराहत इस क़दर साफ़ साफ़ कर दी गई है कि शक व शुबहा की अदना सी गुंजाइश भी बाक़ी नहीं रहती।
*"बिला शुब्हा इबरत है इसमे उनके लिए जो होशमंदी का मुज़ाहिरा करें, बात तवज्जोह से सुनें और हाज़िर हों।"*(कुरआनःक़ाफ़ः50/37 )
अल्लाह तआला ने फ़रमाया: *"हर शख़्स अपने गुनाह के बदले गिरफ़्त मे लिया गया, इनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें सख़्त आँधी से ख़त्म किया गया, कुछ ख़ौफ़नाक चिंघाड़ के जरिए और बअज़ को ज़मीन में धँसा दिया गया और कुछ को ग़र्क़े आब किया गया, यक़ीनन तुम्हारे रब ने इनमें से किसी पर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वह खुद अपने आप पर जुल्म कर रहे थे।"
(अल अन्कबूतः 29/40 )
शाइर ने क्या खूब कहाः " अगर तुम्हें किसी निअमत से सरफ़राज़ किया गया है तो उसकी हिफ़ाज़त करो क्योंकि गुनाह ज़वाले निअमत का सबब हैं। निअमत को अल्लाह के शुक्र के जरिए बाकी रखा जा सकता है और शुक़्रे इलाही से अल्लाह का ग़ैज़ व ग़ज़ब भी टल जाता है।"
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