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An Australian Teacher Accepted Islam in Afghanistan Under Taliban Rule.

An Australian Teacher Accepted Islam in Afghanistan.

An Unexpected Spiritual Transformation in the Heart of Afghanistan.
From Classroom to Faith: An Australian Teacher’s Journey to Islam in Afghanistan.
Discover how an Australian educator embraced Islam during his time in Afghanistan — a powerful story of faith, culture, and personal awakening.
ब्रिटिश पत्रकार Yvonne Ridley की कहानी.
Yvonne Ridley का इस्लाम धर्म स्वीकार करना.
Yvonne Ridley अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा पकड़ी गई.
 जानिये क्यों एक ऑस्ट्रेलियन शिक्षक ने तालिबान के कैद में रहने के बाद इस्लाम कुबूल कर लिया? ऑस्ट्रेलियन नागरिक की आपबीती.
Yvonne Ridley एक ब्रिटिश पत्रकार हैं जिन्हें 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान ने पकड़ लिया था। इस अनुभव ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया और उन्होंने 2003 में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उनकी कहानी साहस, आत्मचिंतन और सच्चाई की खोज का प्रतीक है।
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इस्लाम अपनाने वाली पश्चिमी महिला पत्रकार.
आपको यह जानकर हैरानी होगी के जिस तरह से आज सारी दुनिया इस्लामी को कट्टरपंथी, चरमपंथी, आतंकवाद, रूढ़िवादी, दकियानूसी, पुराने ख्यालों वाला , 1400 साल पीछे धकेलने वाला, औरतों की आजादी खतम करने और औरतों को कैद करके रखने वाला मजहब के तौर पर पेश कर रही है इसी दौर में अफगानिस्तान में तालिबान की कैद में रहने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई टीचर जो काबुल में अफगान फौजियों को अंग्रेजी सिखाने आए थे उन्होंने दिन ए इस्लाम कुबूल कर लिया।
इतना ही नहीं इससे पहले भी इंग्लैंड की एक लेडी रिपोर्टर ने इस्लाम कुबूल कर लिया था और अब वह दूसरे लोगो को दीन की दावत दे रहीं हैं। उनका नाम है युवान रिडले.
Yvonne Ridley 

She became the headlines when she was captured by the ruling Taliban in 2001 after sneaking into Afghanistan wearing the all-enveloping blue burkha ahead of the US-led war. Two days into an undercover mission for Express Newspapers, she was arrested as a suspected American spy by the Taliban. Few expected her to survive the ordeal, but she emerged unscathed 11 days later after being released on humanitarian grounds.

जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स)
तकरीबन साढ़े तीन साल तक तालिबान की क़ैद में रहने वाले और धर्म-परिवर्तन कर मुसलमान बनने वाले टिमोथी वीक्स ( जो अब इस्लाम कुबूल कर चुके है उनका नया नाम जिब्राइल उमर है ), अब एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान जाना चाहते हैं.
जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) को तालिबान ने अगस्त 2016 में काबुल की अमेरिकन यूनिवर्सिटी के मैन गेट से अगवा कर लिया था. और साढ़े तीन साल तक तालिबान की क़ैद में रहने के बाद, दोहा समझौते के तहत साल 2019 में हक़्क़ानी सहित तीन मशहूर तालिबान कमांडरों के बदले में उनकी रिहाई हुई थी.
वह काबुल की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के शिक्षक थे. वह अफगान फौजियों को अंग्रेजी सिखाने के लिए काबुल आए हुए थे।
जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) जुलाई 2016 में अफ़ग़ानिस्तान पहुंचे थे और अभी तक उन्होंने इस सिलेबस की तैयारी पर काम शुरू भी नहीं किया था, कि अगले महीने 9 अगस्त को तालिबान ने उन्हें उनके एक करीबी दोस्त केविन किंग के साथ यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार से गन पॉइंट पर अगवा कर लिया था.
उन दोनों को तलाश करने के लिए अमेरिकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में कई ऑपरेशन किए.
एक या दो मौक़ों पर, ऐसा भी हुआ कि अमेरिकी सेना के कमांडर उन ठिकानों तक भी पहुंच गए, जहां उन दोनों को क़ैद में रखा गया था.
वो कहते हैं, "मैं भाग्यशाली हूं कि अपहरण की इस बुराई में मुझे अच्छाई की एक किरण दिखाई दी है, अब मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मैं अपने अफ़ग़ान बहन-भाइयों की मदद करने के लिए पूरी तरह से तैयार हूं."

उन्होंने कहा कि "मुझे अब तालिबान के हाथों कैद किए जाने का कोई अफ़सोस नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो मैं इस्लाम की सच्चाई के बारे में नहीं जान पाता. अब मुझे अफ़ग़ानिस्तान, यहां की तहजीब  और वहां के लोगों से प्यार है जो मेरे अपने हैं और मैं उनके लिए काम करना चाहता हूं.

जिब्राइल ने कहा, "मुझे अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामी अमीरात के बड़े नेताओं पर पूरा भरोसा है, क्योंकि मैं अपनी आज़ादी के बाद से लगातार उनके साथ बातचीत में शामिल रहा हूं.

पिछले साल के शुरू में अमेरिका और तालिबान के बीच क़तर में हुए समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के अवसर पर मुझे दोहा आने के लिए दावतनामा मिला था."

उन्होंने इस इंटरव्यू में अपने अपहरण, तालिबान की हिरासत में बिताये गए समय और तालिबान के प्रमुख नेता अनस हक़्क़ानी के बदले में, अपनी रिहाई के बारे में तफसील से बात की.

उन्होंने बताया कि उन्हें हिरासत में लिए जाने के कुछ वक्त  बाद तालिबान के एक कमांडर ने उन्हें बताया था कि उन्हें बहुत जल्द रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन उन्हें ये बाद में पता चला कि अमेरिका की तरह ऑस्ट्रेलिया की भी ये नीति नहीं थी कि वह अग़वा होने वाले आपने लोगों की रिहाई के लिए फिरौती की रक़म अदा करे.
इसलिए, तालिबान की क़ैद में उनके रहने के लिए दिन  बढ़ते हुए हफ़्तों से महीनों और महीनों से सालों तक पहुँच गई.
इस्लाम धर्म कैसे अपनाया मैने
जिब्राइल उमर बताते हैं कि क़ैद में रहने के दौरान जब तालिबान की तरफ़ से प्रताड़ना कम हुई, और हालात ठीक होने लगे तो उनकी पढ़ने में रुचि हो गई.

"जब मैंने तालिबान से कुछ किताबें मांगी, तो उन्होंने उर्दू बाज़ार कराची से प्रकाशित कुछ किताबें और अंग्रेज़ी में क़ुरान की तफ़्सीर (व्याख्या) लाकर दी."

"इन किताबों और क़ुरान को पढ़ने के बाद, मैं धीरे-धीरे इस्लाम की ओर आकर्षित होने लगा. मेरे अंदर इस्लाम के लिए एक अजीब मुहब्बत रौशन होने लगी।
आख़िरकार 5 मई, 2018 को मैंने इस्लाम धर्म अपना लिया और वुज़ू और नमाज़ की प्रेक्टिस शुरू कर दी."
वो कहते हैं, "जब तालिबान को मेरे इस्लाम अपनाने के बारे में पता चला, तो उन्होंने ख़ुश होने के बजाय मुझे जान से मारने की धमकी देना शुरू कर दिया."
जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की क़ैद के दौरान इस्लाम अपनाने वाले दूसरे शख्स है।
आप को बता दे के  उनसे पहले भी  युवान रिडले, एक ब्रिटिश महिला पत्रकार, भी ऐसा कर चुकी हैं और अब युवान रिडले इस्लाम की दावत वो तबलीग का काम कर रहीं है।
युवान रिडले को अफ़ग़ान तालिबान ने साल 2001 में अग़वा किया था.
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Yvonne Ridley का इस्लाम धर्म स्वीकार करना.
मुझे ऑस्ट्रेलिया में कुत्ता कहा जाता था, मुझ पर थूका जाता था'
जिब्राइल उमर कहते हैं, ''मैं अक्सर महसूस करता हूं कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध को इस्लाम के ख़िलाफ़ युद्ध के तौर पर पेश किया जाता है.''
"मैं ऐसा अफ़ग़ानिस्तान के संदर्भ में नहीं बल्कि एक नव-मुस्लिम के तौर पर समझता हूँ.
मैं अपने देश ऑस्ट्रेलिया में मुझे पहुंचाई गई यातनाओं के आधार पर ऐसा समझता हूँ, जहां गलियों में मुझ पर थूका गया था, मुझे कुत्ता कहा गया यहां तक कि एक पूर्व ऑस्ट्रेलियाई सैनिक ने नमाज़ के लिए पहनी जाने वाली पख़्तून टोपी सिर पर रखने पर मुझ पर हमला तक किया. और यह सब ऐसे देश में होता रहा, जहां किसी के साथ भेदभाव करना क़ानून के ख़िलाफ़ है."
उनका कहना है कि दुर्भाग्य से पश्चिमी दुनिया इस्लामोफोबिया से पीड़ित है.
"लोग स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित होने का ताना देते थे."

जिब्राइल उमर का कहना है कि जब वह साढ़े तीन साल जेल में रहने के बाद घर लौटे, और उनके परिवार के सदस्यों को पता चला कि मैं तो अपने 'दुश्मन', यानी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार का समर्थन करता हूँ, तो उनके लिए इस बात को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो रहा था.

जिब्राइल उमर कहते हैं, "मेरे बारे में इस तरह की सोच का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था,"
वह बताते हैं कि वह स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित नहीं हैं, क्योंकि उन्हें हिरासत के दौरान बहुत मार साहनी पड़ी है, लेकिन वह इस सच्चाई को जान चुके हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार अपनी पूर्ववर्ती हर सरकार से बेहतर है क्योंकि इनके नेता किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में शामिल नहीं हैं.
"बहुत सारे लोग मुझ पर ताना कसते थे कि मैं स्टॉकहोम सिंड्रोम नामक बीमारी से पीड़ित हूँ."
स्टॉकहोम बीमारी क्या है?
ध्यान रहे कि स्टॉकहोम सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज ख़ुद को अपहरणकर्ताओं से आज़ाद कराये जाने की उम्मीद खो देते हैं, तो उनमें से कुछ की शारीरिक और मानसिक यातना से बचाने वाला मनोवैज्ञानिक रक्षा सिस्टम, ख़ुद-ब-ख़ुद अपहरणकर्ताओं का समर्थक होने लगता है.
इस तरह प्रताड़ित किया जाने वाला व्यक्ति यातना देने वाले का बचाव करने लगता है.
अफ़ग़ानिस्तान और पख़्तूनों के बारे में किताब

अपने भविष्य के इरादों के बारे में जिब्राइल उमर ने कहा कि वह इसे लेकर बहुत फिक्रमंद और ख्वाहिशमंद है
उन्होंने अपनी किताब पर काम करना शुरू कर दिया है. इस किताब के माध्यम से मैं दुनिया को अफ़ग़ानिस्तान और ख़ासकर पख़्तूनों के बारे में बताना अपना फर्ज समझता हूं।

इस किताब को प्रकाशित करने के लिए दुनिया के मशहूर प्रकाशक 'हार्पर कॉलिन्स' के साथ उनका डील हो चुका है, और अगले साल की शुरुआत में इस किताब के पूरा होने की उम्मीद है.
वो कहते हैं, "फिलहाल, दुनिया भर में शरणार्थी, कैदियों की तरह बहुत सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें उनके हिस्से के अधिकार दिए जाएंगे.
उनका कहना है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद विकसित देशों, ख़ासकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार का फ़र्ज़ है कि वह इस मुश्किल वक्त में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करे और अगर वे अफ़ग़ानिस्तान की मदद नहीं करता है तो वहां होने वाले किसी भी नुक़सान के लिए ये देश ज़िम्मेदार होंगे.
हिदायत देना अल्लाह का काम है , अल्लाह चाहे जिसे हिदायत दे दे।

नूर ए हक शम्मा इलाही को बुझा सकता है कौन?
जिसका हामी हो खुदा उसको मिटा सकता है कौन?

अल्लाह हम सबको नेक रास्ते पर चला, हमे सच सुनने और सच बोलने की तौफीक अता फरमा। या अल्लाह मुसलमानों को सीरत ए मुस्तकीम पर चला , मुसलमान को गुमराही से बचा और मुस्लिम मुआशरे को फहाशी जैसे लानत से महफूज रख।  आमीन सुम्मा आमीन
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