find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

इस्लाम अगर आतंकवाद फैलाता तो ,,,,,, माइकल जैक्सन जैसे लोग क्यू इस्लाम कबूल करते?

Ager Islam DahshatGard Ki Taleem Deta Aur Talwar Se Failaya Gya Hota To Michal Jackson Aur A.R Rehman Jaise Logo Ke Pas Kaun Talwar Lekar Gya Tha?

इस्लाम अगर आतंकवाद फैलाता तो इतने लोग दुनिया में जो मुसलमान है वो क्यू इसे कबूल करते?
इस्लाम आतंक या आदर्श
इस्लाम का अर्थ है सलामती वाला धर्म जो आतंकवाद का खात्मा करने की शिक्षा देता है भाग-1
Michal Jackson Accept Islam

शुरुआत कुछ इस तरह हुई कि सहित दुनिया में यदि कहीं विस्फोट हो या किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों कि हत्या हो और उस घटना में संयोगवश मुस्लमान शामिल हो तो उसे इस्लामिक आतंकवाद कहा गया।
थोड़े ही समय में मिडिया सहित कुछ लोगों ने अपने-अपने निजी फ़ायदे के लिए इसे सुनियोजित तरीके से इस्लामिक आतंकवाद कि परिभाषा में बदल दिया। इस सुनियोजित प्रचार का परिणाम यह हुआ कि आज कहीं भी विस्फ़ोट हो जाए उसे तुरंत इस्लामिक आतंकवाद घटना मानकर ही चला जाता है ।
इसी माहौल में पूरीदुनिया में जनता के बीच मिडिया के माध्यम से और पश्चिमी दुनिया सहित कई अलग-अलग देशों में अलग-अलग भाषाओँ में सैंकड़ों किताबें लिख-लिख कर यह प्रचारित किया गया कि दुनिया में आतंकवाद की जड़ इस्लाम है।
इस दुष्प्रचार में यह प्रामाणित किया गया कि क़ुरआन में अल्लाह कि आयतें मुसलमानों को आदेश देती हैं कि-वे, अन्य धर्म को मानने वाले काफ़िरों से लड़ें उनकी बेरहमी से हत्या करें या उन्हें आतंकित ज़बरदस्ती मुस्लमान बनाएं , उनके पूजास्थलों को नष्ट करें- यह जिहाद है और इस जिहाद करने वाले को अल्लाह जन्नत देगा। इस तरह योजनाबद्ध तरीक़े से इस्लाम को बदनाम करने के लिये उसे निर्दोषों कि हत्या करने वाला आतंकवादी धर्म घोषित कर दिया गया और जिहाद का मतलब आतंकवाद बताया गया ।
सच्चाई क्या है? यह जानने के लिये हम वही तरीक़ा अपनायेंगे जिस तरीक़े से हमें सच्चाई का ज्ञान हुआ था। मेरे द्वारा शुद्ध मन से किये गये इस पवित्र प्रयास में यदि अनजाने मे कोई ग़लती हो गयी हो तो उसके लिए पाठक मुझे क्षमा करेंगे ।
इस्लाम के बारे में कुछ भी प्रमाणित करने के लिए यहाँ हम तीन कसौटियों को लेंगे ।
1-क़ुरआन मजीद में अल्लाह के आदेश
2-पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की जीवनी
3-हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की कथनी यानी हदीस
इन तीन कसौटियों से अब हम देखते हैं कि:
[ क्या वास्तव में इस्लाम निर्दोषों से लड़ने और उनकी हत्या करने व हिंसा फैलाने का आदेश देता है?
[ क्या वास्तव में इस्लाम दूसरों के पूजाघरों को तोड़ने का आदेश देता है?
[ क्या वास्तव में इस्लाम लोगों को ज़बरदस्ती मुस्लमान बनाने का आदेश देता है?
[ क्या वास्तव में हमला करने, निर्दोषों की हत्या करने व आतंक फैलाने का नाम जिहाद है?
[ क्या वास्तव में इस्लाम एक आतंकवाद धर्म है?
सर्वप्रथम यह बताना आवश्यक है कि हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) अल्लाह के महत्वपूर्ण एवं अंतिम पैग़म्बर हैं । अल्लाह ने आसमान से क़ुरआन को आप पर ही उतारा। अल्लाह के रसूल होने के बाद जीवन पर्यन्त 23 सालों तक आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने जो किया, वह क़ुरआन के अनुसार ही किया ।
दूसरे शब्दों में हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के जीवन के यह 23 साल क़ुरान या इस्लाम का व्यावहारिक रूप हैं। अत: क़ुरआन या इस्लाम को जानने का सबसे महत्वपूर्ण और आसान तरीका हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की पवित्र जीवनी है, यह मेरा स्वयं का अनुभव है। आपकी जीवनी और क़ुरआन मजिद पढ़कर पाठक स्वयंनिर्णय कर सकते हैं कि इस्लाम एक आतंक है? या आदर्श ।
उलमा-ए-सियर ( यानि पवित्र जीवनी लिखने वाले विद्वान ) लिखते हैं कि- पैग़म्बर मुहम्मद सल्लालाहु अलैहि व सल्लम का जन्म मक्का के क़ुरैश क़बीले के सरदार अब्दुल मुत्तलिब के बेटे अब्दुल्लाह के घर सन् 570 ई० में हुआ । मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) के जन्म से पहले ही उनके पिता अब्दुल्लाह का निधन हो गया था । आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) जब 6 साल के हुए, तो उनकी मां आमिना भी चल बसीं । 8 साल की उम्र में दादा अब्दुल मुत्तलिब का भी देहांत हो गया तो चाचा अबू-तालिब के सरंक्षण में आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) पले-बढ़े।
24 वर्ष की आयु में में आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) का विवाह ख़दीजा से हुआ। ख़दीजा मक्का के एक बहुत ही स्मृध्शाली व सम्मानित परिवार की विधवा महिला थीं ।
उस समय मक्का के लोग काबा की 360 मूर्तियों की उपासना करते थे । मक्का में मूर्ती का प्रचलन साम ( सीरिया ) से आया । वहाँ सबसे पहले जो मूर्ती स्थापित की गयी वह 'हूबल' नाम के देवता की थी, जो सीरिया से लाई गयी थी । इसके बाद ' इसाफ' और ' नाइला ' की मूर्तियाँ ज़मज़म नाम के कुँए पर स्थापित की गयीं । फिर हर क़बीले नेअपनी-अपनी अलग-अलग मूर्तियाँ स्थापित कीं। जैसे क़ुरैश क़बीले ने ' उज्ज़ा' की । ताइफ़ के क़बीले सकीफ़ ने ' लात ' की । मदीने के औस और खजरज़ क़बीलों ने ' मनात ' की । ऐसे ही वद, सुआव, यगुस, सौउफ़ , नसर , आदि प्रमुख मूर्तियाँ थीं । इसके अलावा हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल , हज़रत ईसा आदि की तस्वीरें व मूर्तियाँ खाना काबा में मौजूद थीं ।
ऐसी परिस्तिथियों में 40 वर्ष की आयु में आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) को प्रथम बार रमज़ान के महीने में मक्का से 6 मील की दूरी पर 'गारे हिरा' नामक गुफ़ा में एक फ़रिश्ता जिबरील से अल्लाह का सन्देश प्राप्त हुआ । इसके बाद अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) को समय-समय पर अल्लाह के आदेश मिलते रहे ।अल्लाह के यही आदेश,क़ुरआन है ।
आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) लोगों को अल्लाह का पैग़ाम देने लगे कि ' अल्लाह एक है उसका कोई शरीक नहीं । केवल वही पूजा के योग्य है । सब लोग उसी कि इबादत करो । अल्लाह ने मुझे नबी बनाया है । मुझ पर अपनी आयतें उतारी हैं ताकि मैं लोगों को सत्य बताऊँ, सीधी सत्य कि राह दिखाऊँ ।' जो लोग मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के पैग़ाम पर ईमान ( यानी विश्वास ) लाये, वे मुस्लिम अथार्त मुस्लमान कहलाये ।
बीवी खदीजा ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) आप पर विश्वास लाकर पहली मुस्लमान बनीं । उसके बाद चचा अबू-तालिब के बेटे अली ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) और मुंह बोले बेटे ज़ैद व आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के गहरे दोस्त ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) ने मुस्लमान बनने के लिये "अश्हदु अल्ला इल्लाल्लाहू व अश्हदु अन्न मुहम्मदुरसुलुल्लाह "
यानि "मैं गवाही देता हूँ , अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) अल्लाह के रसूल हैं ।" कहकर इस्लाम क़ुबूल किया ।
मक्का के अन्य लोग भी ईमान ( यानि विश्वास ) लाकर मुस्लमान बनने लगे । कुछ समय बाद ही क़ुरैश के सरदारों को मालूम हो गया कि आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) अपने बाप-दादा के धर्म बहु देववाद और मूर्तिपूजा के स्थान पर किसी नए धर्म का प्रचार कर रहे हैं और बाप-दादा के दीन को समाप्त कर रहे हैं । यह जानकार आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के अपने ही क़बीले क़ुरैश के लोग बहुत क्रोधित हो गये । मक्का के सारे बहुईश्वरवादी काफ़िर सरदार इकट्ठे होकर मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) कि शिकायत लेकर आप के चाचा अबू-तालिब के पास गये । अबू-तालिब ने मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) को बुलवाया और कहा-"मुहम्मद ये अपने क़ुरैश क़बीले के सरदार हैं. ये चाहते हैं कि तुम यह प्रचार न करो कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और अपने बाप-दादा के धर्म पर क़ायम रहो ।"
मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने ' ला इला-ह इल्लल्लाह ' ( अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है ) इस सत्य का प्रचार छोड़ने से इंकार कर दिया । क़ुरैश सरदार क्रोधित होकर चले गये ।इसके बाद इन क़ुरैश सरदारों ने तय किया कि अब हम मुहम्मद को हर प्रकार से कुचल देंगे । और उनके साथियों को बेरहमी के साथ तरह-तरह स्व सताते, अपमानित करते और उन पर पत्थर बरसाते ।
इसके बाद आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने उनकी दुष्टता का जवाब सदैव सज्जनता और सद्व्यवहार से ही दिया ।
मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) व आपके साथी मुसलमानों के विरोध में क़ुरैश का साथ देने के लिए अरब के और बहुत क़बीले थे । जिन्होंने आपस में यह समझौता कर लिया था कि कोई क़बीला किसी मुस्लमान को पनाह नहीं देगा । प्रत्येक क़बीले कि ज़िम्मेदारी थी, जहाँ कहीं मुस्लमान मिल जाएँ उनको ख़ूब मारें-पीटें और हर तरह से अपमानित करें, जिससे कि वे अपने बाप-दादा के धर्म कि ओर लौट आने को मजबूर हो जाएँ ।
दिन प्रतिदन उन के अत्यचार बढ़ते गये । उन्होंने निर्दोष असहाय मुसलमानों को क़ैद किया, मारा-पीटा, भूखा-प्यासा रखा । मक्के कि तपती रेत पर नंगा लिटाया , लोहे की गर्म छड़ों से दाग़ा और तरह-तरह के अत्याचार किये ।
उदाहरण के लिए हज़रतयासिर ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) और बीवी हज़रत सुमय्या ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) तथा उनके पुत्र हज़रत अम्मार ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) मक्के के ग़रीब लोग थे और इस्लाम क़ुबूल कर मुस्लमान बन गये थे । उनके मुस्लमान बनने से नाराज़ मक्के के काफ़िर उन्हें सज़ा देने के लिए जब कड़ी दोपहर हो जाती, तो उनके कपड़े उतार उन्हें तपती रेत लिटा देते ।
हज़रत यासिर ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) ने इन ज़ुल्मों को सहते हुए तड़प-तड़प कर जान दे दी । मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) व मुसलमानों के सबसे बड़ा विरोधी अबू ज़हल बड़ी बेदर्दी से सुमय्या ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) के पीछे पड़ा रहता । एक दिन उन्होंने अबू-जहल को बददुआ दे दी जिससे नाराज़ होकर अबू-जहल ने भाला मार कर हज़रत सुमय्या ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) का क़त्ल कर दिया । इस तरह इस्लाम में हज़रत सुमय्या ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) ही सबसे पहले सत्य की रक्षा के लिए शहीद बनीं ।
दुष्ट क़ुरैश, हज़रत अम्मार ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) को लोहे का कवच पहना कर धूप में लिटा देते । लिटाने के बाद मारते-मारते बेहोश कर देते ।
इस्लाम क़ुबूल कर मुस्लमान बने हज़रत बिलाल ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ), कुरैश सरदार उमैय्या के ग़ुलाम थे। उमैय्या ने यह जानकर कि बिलाल मुस्लमान बन गये हैं, उनका खाना पीना बंद कर दिया। ठीक दोपहर में भूखे-प्यासे ही वह उन्हें बाहर पत्थर पर लिटा देता और छाती पर बहुत भारी पत्थर रखवा कर कहता -" लो मुसलमान बनने का मज़ा चखो।"
उस समय जितने भी ग़ुलाम,  मुसलमान बन गये थे इन पर इसी तरह अत्याचार हो रहे थे। हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के जिगरी दोस्त अबू-बक्र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ) ने उन सब को ख़रीद-ख़रीद कर ग़ुलामी से आज़ाद कर दिया।
काफ़िर कुरैश यदि किसी मुस्लमान को क़ुरान की आयतें पढ़ते सुन लेते या नमाज़ पढ़ते देख लेते, तो पहले उसकी बहुत हंसी उड़ाते फिर उसे बहुत सताते। इस डर के कारण मुसलमानों को नमाज़ पढ़नी होती छिपकर पढ़ते और क़ुरान पढ़ना होता तो धीमी आवाज़ से पढ़ते।
एक दिन क़ुरैश काबा में बैठे हुए थे। अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) काबा के पास नमाज़ पढने लगे, तो वहां बैठे सारे काफ़िर क़ुरैश उन पर टूट पड़े और उन्होंने अब्दुल्लाह को मारते-मारते बे-दम कर दिया।
जब मक्का में काफ़िरों के अत्याचारों के कारण मुसलमानों का जीना मुश्किल हो गया तो मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने उनसे कहा: " हबशा चले जाओ"
हबशा का बादशाह नाज्जाशी ईसाई था। अल्लाह के रसूल का हुक्म पाते ही बहुत से मुसलमान हबशा चले गये। जब क़ुरैश को पता चला, तो उन्होंने अपने दो आदमियों को दूत बना कर हबशा के बादशाह के यहां भेज कर कहलवाया कि " हमारे यहाँ के कुछ मुजरिमों ने भाग कर आपके यहाँ शरण ली है। इन्होंने हमारे धर्म से बग़ावत की है और आपका ईसाई धर्म भी नहीं स्वीकारा, फिर भी आपके यहाँ रह रहे हैं। ये अपने बाप-दादा के धर्म से बग़ावत कर एक नया धर्म लेकर चल रहे हैं, जिसे न हम जानते हैं और न आप। इनको लेने हम आए हैं।
बादशाह नाज्जाशी ने मुसलमानों से पुछा: " तुम लोग कौन सा ऐसा नया धर्म लेकर चल रहे हो, जिसे हम नहीं जानते?"
इस पर मुसलमानों की ओर से हज़रत जाफ़र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) बोले-हे बादशाह! पहले हम लोग असभ्य और गंवार थे। बुतों की पूजा करते थे, गंदे काम करते थे, पड़ोसियों से व आपस में झगड़ा करते रहते थे। इस बीच अल्लाह ने हम में अपना एक रसूल भेजा।उसने हमें सत्य-धर्म इस्लाम की ओर बुलाया। उसने हमें अल्लाह का पैग़ाम देते हुए कहा:"हम केवल एक ईश्वर की पूजा करें ,बेजान बुतों की पूजा छोड़ दें, सत्य बोलें और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करें, किसी के साथ अत्याचार और अन्याय न करें, व्यभिचार और गंदे कार्यों को छोड़ दें, अनाथों का माल न खायें, पाक दामन औरतों पर तोहमत न लगाएं, नमाज पढ़ें और खैरात यानी दान दें।"
हमने उस के पैग़ाम को व उसको सच्चा जाना और उस पर ईमान यानि विश्वास लाकर मुस्लमान बन गए ।
हज़रत जाफ़र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) के जवाब से बादशाह नाज्जाशी बहुत प्रभावित हुआ। उसने दूतों को यह कह कर वापस कर दिया की यह लोग अब यहीं रहेंगे।
मक्का में ख़त्ताब के पुत्र उमर बड़े ही क्रोधी किन्तु बड़े बहादुर साहसी योद्धा थे । अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने अल्लाह से प्रार्थना की कि यदि उमर ईमान लाकर मुस्लमान बन जाएं तो इस्लाम को बड़ी मदद मिले, लेकिन उमर मुसलमानों के लिए बड़े ही निर्दयी थे। जब उन्हें मालूम हुआ की नाज्जाशी  ने मुसलमानों को अपने यहाँ शरण दे दी है तो वह बहुत क्रोधित हुए । उमर ने सोचा सारे फ़साद की जड़ मुहम्मद ही है, अब मैं उसे ही मार कर फ़साद की यह जड़ समाप्त कर दूंगा।
ऐसा सोच कर, उमर तलवार उठा कर चल दिए। रस्ते में उनकी भेंट नुएम-बिन-अब्दुल्लाह से हो गयी जो पहले ही मुस्लमान बन चुके थे, लेकिन उमर को यह पता नहीं था। बातचीत में जब नुऐम को पता चला कि उमर, अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) का क़त्ल करने जा रहे हैं तो उन्होंने उमर के इरादे का रुख़ बदलने के लिए कहा: " तुम्हारी बहन-बहनोई मुस्लमान हो गए हैं, पहले उनसे तो निबटो।"
Allah Ke Nabi Ko Makka Ke Mushrik Se Kyu Jung Karna Pra Tha?
यह सुनते ही कि उनकी बहन और बहनोई मुहम्मद का दीन इस्लाम क़ुबूल कर मुस्लमान बन चुके हैं, उमर ग़ुस्से से पागल हो गए और सीधा बहन के घर जा पहुंचे।
भीतर से कुछ पढने कि आवाज़ आ रही थी । उस समय खब्बाब ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) क़ुरान पढ़ रहे थे। उमर कि आवाज़ सुनते ही वे डर के मारे अन्दर छिप गए। क़ुरआन के जिन पन्नों को वे पढ़ रहे थे, उमर की बहन फ़ातिमा ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) ने उन्हें छिपा दिया, फिर बहनोई सईद (राज़ी0) ने दरवाज़ा खोला
उमर ने यह कहते हुए कि"क्या तुम लोग सोचते हो कि तुम्हारे मुस्लमान बनने की मुझे खबर नहीं है?" यह कहते हुए उमर ने बहन-बहनोई को मारना-पीटना शुरू कर दिया और इतना मारा कि बहन का सर फट गया । किन्तु इतना मार खाने के बाद भी बहन ने इस्लाम छोड़ने से इंकार कर दिया।
बहन के द्रढ़ संकल्प ने उमर के इरादे को हिला कर रख दिया । उन्होंने अपनी बहन से क़ुरआन के पन्ने दिखाने को कहा । क़ुरआन के उन पन्नों को पढ़ने के बाद उमर का मन भी बदल गया । अब वह मुस्लमान बनने का इरादा कर मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) से मिलने चल दिए।
उमर ने अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) से विनम्रतापूर्वक कहा: " मैं इस्लाम स्वीकार करने आया हूं। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के आलावा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) अल्लाह के रसूल हैं । अब मैं मुस्लमान हूं।"
इस तरह मुसलमानों की संख्या निरंतर बढ़ रही थी । इसे रोकने के लिए क़ुरैश ने आपस में एक समझौता किया ।इस समझौते के अनुसार क़ुरैश के सरदार आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के परिवार मुत्तलिब ख़ानदान के पास गए और कहा: : मुहम्मद को हमारे हवाले कर दो । हम उसे क़त्ल कर देंगे और इस खून के बदले हम तुमको बहुत सा धन देंगे। यदि ऐसा नहीं करोगे तो हम सब घेराव करके तुम लोगों को नज़रबंद रखेंगे । न तुमसे कभी कुछ ख़रीदेंगे,न बेचेंगे और न ही किसी प्रकार का लेन-देन करेंगे । तुम सब भूख से तड़प-तड़प कर मर जाओगे ।"
लेकिन मुत्तलिब ख़ानदान ने मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) को देने से इंकार कर दिया, जिसके कारण मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) अपने चचा अबू-तालिब और समूचे ख़ानदान के साथ एक घाटी में नज़रबंद कर दिए गए । भूख के कारण उन्हें पत्ते तक खाना पड़ा । ऐसे कठिन समय में मुसलमानों के कुछ हमदर्दों के प्रयास से यह नज़रबंदी समाप्त हुई ।इसके कुछ दिनों के बाद चाचा अबू-तालिब चल बसे। थोड़े ही दिनों के बाद बीवी ख़दीजा ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) भी नहीं रहीं।
A R Rehman  Bollywood Singer
मक्का के काफ़िरों ने बहुत कोशिश की कि मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाना छोड़ दें। चाचा अबू-तालिब कि मौत के बाद उन काफ़िरों के हौसले बहुत बढ़ गए । एक दिन आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि किसी ने औझड़ी ( गंदगी ) लाकर आपके ऊपर डाल दी, लेकिन आप ने न कुछ बुरा-भला कहा और न कोई बददुआ दी ।
इसी प्रकार एक बार आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) कहीं जा रहे थे , रस्ते में किसी ने आप के सर पर मिटटी डाल दी ।आप घर वापस लौट आए । पिता पर लगातार हो रहे अत्याचारों को सोच का बेटी फ़ातिमा आपका सर धोते हुए रोनें लगीं । आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) ने बेटी को तसल्ली देते हुए कहा:" बेटी रो मत! अल्लाह तुम्हारे बाप की मदद करेगा ।"
मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) जब क़ुरैश के ज़ुल्मों से तंग आगए और उनकी ज़्यादतियां असहनीय हो गयीं, तो आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ताइफ़ चले गए. लेकिन यहाँ किसी ने आप को ठहराना तक पसंद नहीं किया । अल्लाह के पैग़ाम को झूठा कह कर आप को अल्लाह का रसूल मानने से इंकार कर दिया ।
सक़ीफ़ क़बीले के सरदार ने ताइफ़ के गुंडों को आप के पीछे लगा दिया , जिन्होंने पत्थर मार-मार कर आप को बुरी तरह ज़ख़्मी कर दिया । किसी तरह आप ने अंगूर के एक बाग़ म मे छिप कर अपनी जान बचाई ।
मक्के के क़ुरैश को जब ताइफ़ का सारा हाल मालूम हुआ, तो वो बड़े खुश हुए और आप की खूब हंसी उड़ायी । उन्होंने आपस में तय किया कि मुहम्मद अगर वापस लौट कर मक्का आए तो उन का क़त्ल कर देंगे ।
आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ताइफ़ से मक्का के लिए रवाना हुए। हिरा नामक स्थान पर पहुंचे तो वहां पर क़ुरैश के कुछ लोग मिल गये । ये लोग आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) के हमदर्द थे उनसे मालूम हुआ कि क़ुरैश आप का क़त्ल करने को तैयार बैठे हैं ।
अल्लाह के रसूल अपनी बीवी ख़दीजा के एक रिश्तेदार अदि के बेटे मुतईम कि पनाह में मक्का में दाखिल हुए ।चूँकि मुतईम आपको पनाह दे चुके थे, इसलिए कोई कुछ न बोला लेकिन आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) जब काबा पहुंचे, तो अबू-जहल ने आप कि हंसी उड़ाई ।
आपने लगातार अबू-जहल के दुर्व्यवहार को देखते हुए पहली बार उसे सख्त चतावनी दी और साथ ही क़ुरैश सरदारों को भी अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा ।
इसके बाद अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने अरब के अन्य क़बीलों को इस्लाम कि और बुलाना शुरू किया इससे मदीना में इस्लाम फैलने लगा ।
मदीना वासियों ने अल्लाह के रसूल कि बातों पर ईमान ( यानि विश्वास ) लाने के साथ आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की सुरक्षा करने का भी प्रतिज्ञा की । मदीना वालों ने आपस में तय किया कि इस बार जब हज करने मक्का जायेंगे , अपने प्यारे रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) को मदीना आने का निमंत्रण देंगे ।
जब हज का समय आया , तो मदीने से मुसलमानों और ग़ैर मुसलमानों का एक बड़ा क़ाफ़िला हज के लिए मक्का के लिए चला । मदीना के मुसलमानों की आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) से काबा में मुलाक़ात हुई । इनमें से 75 लोगों ने जिनमें दो औरतें भी थीं पहले से तय की हुई जगह पर रात में फिर अल्लाह के रसूल से मुलाक़ात की । अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) से बातचीत करने के बाद मदीना वालों ने सत्य की और सत्य को बताने वाले अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) की रक्षा करने की बैत ( यानि प्रतिज्ञा ) की ।
रात में हुई प्रतिज्ञा की ख़बर क़ुरैश को मिल गई थी । सुबह क़ुरैश को जब पता चला की मदीना वाले निकल गए ,तो उन्होंने उनका पीछा किया पर वे पकड़ में न आये । लेकिन उनमें एक व्यक्ति सआद ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) पकड़ लिये गए । क़ुरैश उन्हें मारते-पीटते बाल पकड़ कर घसीटते हुए मक्का लाए ।
मक्का के मुसलमानों के लिये क़ुरैश के अत्याचार असहनीय हो चुके थे । इससे आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने मुसलमानों को मदीना चले जाने ( हिजरत ) के लिये कहा और हिदायत दी कि एक-एक , दो-दो करके निकलो ताकि क़ुरैश तुम्हारा इरादा भांप न सकें । मुसलमान चोरी-छिपे मदीने की ओर जाने लगे । अधिकांश मुस्लमान निकल गए लेकिन कुछ क़ुरैश की पकड़ में आ गए और क़ैद कर लिये गए । उन्हें बड़ी बेरहमी से सताया गया ताकि वे मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के बताये धर्म को छोड़ कर अपने बाप-दादा के धर्म में लौट आएं ।
अब मक्का में इन बंदी मुसलमानों के अलावा अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ), अबू-बक्र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ), और अली ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) ही बचे थे ,जिन पर काफ़िर क़ुरैश घात लगाये बैठे थे ।
मदीना के लिये मुसलमानों की हिजरत से यह हुआ कि मदीना में इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू हो गया । लोग तेज़ी से मुसलमान बनने लगे ।मुसलमानों का ज़ोर बढ़ने लगा । मदीना में मुसलमानों की बढ़ती ताक़त देखकर क़ुरैश चिंतित हुए । अत: एक दिन क़ुरैश अपने मंत्रणागृह 'दरुन्न्दवा ' में जमा हुए । यहाँ सब ऐसी तरकीब सोचने लगे जिससे मुहम्मद का ख़ात्मा हो जाये और इस्लाम का प्रवाह रुक जाये । अबू-जहल के प्रस्ताव पर सब की राय से तय हुआ कि क़बीले से एक-एक व्यक्ति को लेकर एक साथ मुहम्मद पर हमला बोलकर उन कि हत्या कर दीजाए । इससे मुहम्मद के परिवार वाले तमाम सम्मिलित क़बीलों का मुक़ाबला नहीं कर पायेंगे और समझौता करने को मजबूर हो जायेंगे ।
फिर पहले से तय कि हुई रात को काफिरों ने हत्या के लिए मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) के घर को हर तरफ से घेर लिया जिससे कि मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के बाहर निकलते ही आप कि हत्या कर दें । अल्लाह ने इस ख़तरे से आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) को सावधान कर दिया । आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने अपने चचेरे भाई अली ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) जो आपके साथ रहते थे से कहा:-
"अली ! मुझ को अल्लाह से हिजरत का आदेश मिल चुका है । काफ़िर हमारी हत्या के लिए हमारे घर को घेरे हुए हैं । मैं मदीना जा रहा हूँ तुम मेरी चादर ओढ़ कर सो जाओ , अल्लाह तुम्हारी रक्षा करेगा ,बाद में तुम भी मदीना चले आना । "
हजरत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) अपने प्रिय साथी अबू-बक्र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) के साथ मक्का से मदीना के लिए निकले । मदीना , मक्का से उत्तर दिशा की ओर है , लेकिन दुश्मनों को धोखे में रखने के लिये आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) मक्का से दक्षिण दिशा में यमन के रास्ते पर सौर की गुफ़ा में पहुंचे । तीन दिन उसी गुफ़ा में ठहरे रहे । जब आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) व हज़रत अबू-बक्र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) की तलाश बंद हो गयी तब आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) व अबू-बक्र ( ﺭﺿﯿﺎﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽ ﻋﻨﮧ ) गुफ़ा से निकल कर मदीना की ओर चल दिये ।कई दिन-रात चलने के बाद 24 सितम्बर सन 622 ई० को मदीना से पहले कुबा नाम की एक बस्ती में पहुंचे जहाँ के कई परिवार आबाद थे । यहाँ आपने एक मस्जिद की बुनियाद डाली, जो ' कुबा मस्जिद ' के नाम से प्रसिद्ध है । यहीं पर अली ( ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯿﻌﻨﮧ ) की आप से ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) से मुलाक़ात हो गई । कुछ दिन यहाँ ठरहने के बाद आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) मदीना पहुंचे । मदीना पहुँचने पर आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) का सब ओर भव्य हार्दिक स्वागत हुआ ।
अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) के मदीना पहुँचने के बाद वहां एकेश्वरवादी सत्य-धर्म इस्लाम बड़ी तेज़ी से बढ़ने लगा । हर ओर ' ला इला-हइल्लल्लाह मुहम्म्दुर्रुसूल्ल्लाह ' यानि ' अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) अल्लाह के रसूल हैं ।' की गूँज सुनाई देने लगी ।
काफ़िर क़ुरैश , मुनाफिकों ( यानि कपटाचारियों ) की मदद से मदीना की ख़बर लेते रहते । सत्यधर्म इस्लाम का प्रवाह रोकने के लिये , अब वे मदीना पर हमला करने की योजनायें बनाने लगे ।
एक तरफ़ क़ुरैश लगातार कई सालों से मुसलमानों पर हर तरह के अत्याचार करने के साथ-साथ उन्हें नष्ट करने पर उतारू थे , वहीँ दूसरी तरफ़ आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) पर विश्वास लेन वालों ( यानी मुसलमानों ) को अपना वतन छोड़ना पड़ा , अपनी दौलत , जायदाद छोड़नी पड़ी इसके बाद भी मुस्लमान सब्र का दमन थामे ही रहे । लेकिन अत्याचारियों ने मदीना में भी उनका पीछा न छोड़ा और एक बड़ी सेना के साथ मुसलमानों पर हमला कर दिया ।जब पानी सिर से ऊपर हो गया तब अल्लाह ने भी मुसलमानों को लड़ने की इजाज़त दे दी । अल्लाह का हुक्म आ पहुंचा -" जिन मुसलमानों से( खामखाह ) लड़ाई की जाती है; उन को इजाज़त है ( कि वे भी लड़ें ), क्योंकि उन पर ज़ुल्म हो रहा है और ख़ुदा ( उनकी मदद करेगा, वह ) यक़ीनन उन की मदद पर क़ुदरत रखता है ।"-कुरआन, सूरा 22, आयत 39
असत्य के लिए लड़ने वाले अत्याचारियों से युद्ध करने का आदेश अल्लाह की ओर से आ चुका था । मुसलमानों को भी सत्य-धर्म इस्लाम की रक्षा के लिए तलवार उठाने की इजाज़त मिल चुकी थी ।अब जिहाद (यानि असत्य और आतंकवाद के विरोध के लिए प्रयास ) शुरू हो गया ।
सत्य की स्थापना के लिए और अन्याय , अत्याचार तथा आतंक की समाप्ति के लिए किये गए जिहाद ( धर्मरक्षा व आत्मरक्षाके लिए युद्ध ) में अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) की विजय होती रही । मक्का व आसपास के काफ़िर मुशरिक औंधे मुंह गिरे ।
इसके बाद पैग़म्बर मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) दस हज़ार मुसलमानों की सेना के साथ मक्का में असत्य व आतंकवाद की जड़ को समाप्त करने के लिए चले । अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की सफ़लताओं और मुसलमानों की अपार शक्ति को देख मक्का के काफ़िरों ने हथियार डाल दिए । बिना किसी खून-खराबे के मक्का फ़तेह कर लिया गया । इस तरह सत्य और शांति की जीत तथा असत्य और आतंकवाद की हार हुई ।
मक्का ।वही मक्का जहाँ कल अपमान हुआ था, आज स्वागत हो रहा था । उदारता और दयालुता की मूर्ति बने अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने सभी लोगों को माफ़ कर दिया ,जिन्होनें आप और मुसलमानों पर बेदर्दी से ज़ुल्म किया तथा अपना वतन छोड़ने को मजबूर किया था । आज वे ही मक्का वाले अल्लाह के रसूल के सामने ख़ुशी से कह रहे थे -
"ला इला-ह इल्लल्लाह मुहम्म्दुर्रसूलुल्लाह"
और झुंड के झुंड प्रतिज्ञा ले रहे थे :
"अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्नमुहम्म्दुर्रसूलुल्लाह"
( मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और मैं गवाही देता हूँकि मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ) अल्लाह के रसूल हैं । )
मक्का के काफ़िर सत्य किराह में रोड़ा डालने के लिए आप को तथा आपके बताये सत्य पर चलने वाले मुसलमानों को लगातार तेरह सालों तक हर तरह से प्रताड़ित व अपमानित करते रहे । इस घोर अत्याचार के बाद भी आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने धैर्य बनाये रखा । यहाँ तक कि आप को अपना वतन छोड़ कर मदीना जाना पड़ा । लेकिन मक्का के मुशरिक कुरैश ने आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) का व मुसलमानों का पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा । जब पानी सिर से ऊपर हो गया तो अपनी व मुसलमानों कि तथा सत्य कि रक्षा के लिए मजबूर होकर आप को लड़ने पड़ा । इस तरह आप पर व मुसलमानों पर लड़ाई थोपी गई।
इन्हीं परीस्थितियों में सत्य कि रक्ष के लिए जिहाद ( आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लीयते धर्म युद्ध ) कि आयतें और अन्यायी तथा अत्याचारी काफ़िरों व मुशरिकों को दंड देने वाली आयतें अल्लाह कि ओर से आप ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪﻭﺳﻞ ) पर असमान से उतरीं ।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) द्वारा लड़ी गई लड़ाईयां आक्रमण के लिए न होकर, आक्रमण व आतंकवाद से बचाव के लिए थीं, क्योंकि अत्याचारियों के साथ ऐसा किये बिना शांति की स्थापना नहीं हो सकती थी ।
अल्लाह के रसूल ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने सत्य तथा शांति के लिये अंतिम सीमा तक धैर्य रखा और धैर्य की अंतिम सीमा से युद्ध की शुरुआत होती है । इस प्रकारका युद्ध ही धर्म युद्ध ( यानि जिहाद ) कहलाता है ।
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि कुरैश जिन्होंने आप व मुसलमानों पर भयानक अत्याचार किये थे, फ़तह मक्का ( यानि मक्का विजय ) के दिन थर-थर कांप रहे थे कि आज क्या होगा? लेकिन आप ( ﺻﻠﻞﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया ।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( ﺻﻠﻞ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻞ ) की इस पवित्र जीवनी से सिद्ध होता है किइस्लाम का अंतिम उद्देश्य दुनिया में सत्य और शांति कि स्थापना और आतंकवाद का विरोध है ।
अत: इस्लाम कि हिंसा व आतंक से जोड़ना सबसे बड़ा असत्य । यदि कोई घटना होती है तो उसको इस्लाम से या सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय से जोड़ा नहीं जा सकता ।
Ager Islam Aatankwad Ki Taleem Deta to In jaise hastiyo se Kaise Islam Qabool Kiya inko Kiska Dar tha ya Inpar kisne Talwar Mari thi?
अगर इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है
तो फिर क्यूँ नासा के कई वैज्ञानिको ने इस्लाम कुबूल किया?
क्यूँ यूसुफ योहाना व अफ्रीकन क्रिकेटर और वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा मुस्लिम बन गऐ
क्यूँ ए एस दिलीप मुसलमान होकर एआर रहमान हो गए?
क्यूँ टोनी ब्लेयर की बहन ने इस्लाम कुबूल कर लिया?
क्यूं मुहम्मद अली जिन्ना मुसलमान हो गए थे?
क्यूँ यू एस ए में 9/11 के बाद 25.67 लाख से भी ज्यादा लोगों ने इस्लाम कुबूल किया?
क्यूँ अब्राहम विलिंग्टन यूएस आर्मी में भर्ती होकर मुसलमानों को मारने
का इरादा छोड़कर मस्जिद जाकर मुसलमान हो गए?
क्यूँ गैरी मिलर जो कि कुरान के विरोधी थे कुरान पढ़कर मुसलमान हो गए?
क्यूँ कामेडी स्टार मिस्टर बीन मुसलमान हो गए?
क्यूँ माइक टायसन और माइकल जैकसन मुसलमान बन गए?
क्यूँ हिजाब की विरोधी ब्रिटेन की पुलिस अफसर जेने कैम्प इस्लामी शिक्षाएँ पढ़कर मुसलमान हो गईं?
1929 में यू एस ए में एक मस्जिद थी आज 2500 से भी ज्यादा है
और सन् 2003 तक रूस में 250 मस्जिदें थीं आज 3000 ज्यादा हैं से;
क्यूँ रूस 30% मुसलिम आबादी वाला देश बन गया?
क्यूँ यूके की संसद मे ईसाइयो के इस्लाम कुबूल ने की बढ़ती हुई तादाद के बाबत आपातकालीन
चर्चा हुई? और अगर क्वीन डायना ना मारी जाती तो अब तक पूरा यूके मुसलिम राष्ट्र घोषित हो जाता!
इंडोनेशिया और मलेशिया में 100 साल पहले
बौद्ध देश थे आज 85% मुसलिम आबादी वाले देश हैं
इस्लाम को 1500 साल भी नहीं हुए और इस्लाम पूरी दुनिया में फैल चुका है क्यूँ? कोई दुनिया की किसी भी इतिहास की किताब में यह दिखा दे कि मुसलमानों ने वहाँ कब और कौन सी जंग की?
राये है क्या आपके.
इस बात को सभी को शेयर करो ताकि सभी को पता चल जाये की इस्लाम
आतंकवाद की शिक्षा नही देता है वो तो एक दुसरे को मिलाने की, भाई चारे की, प्यार मोहबत की,
एक दुसरो के दिलो से नफरत मिटाने की शिक्षा देता है
लिखने में कोई गलती हो तो माफ करे
Share:

No comments:

Post a Comment

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS