Kya Quran Me Kafir aur Mushriko Ko Marne ka hukm hai ke jaha dekho Waha inhe maro aur Allah Bahut hi Raham Karne wala hai?
#क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है
सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।
पार्ट नंबर 29
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
अब हम देखेंगे कि क्या इस पैम्फलेट की ये 24 आयतें वास्तव में विभिन्न वर्गों के बीच घृणा फैलाने व झगड़ा कराने वाली हैं?
पैम्फलेट में लिखी पहले क्रम की आयत है:
1. फिर, जब हराम के महीने बीत जाएं, तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा कर लें नमाज़ क़ायम करें और, ज़कात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो नि:सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करनेवाला है।"(कुरआन, सूरा- 9, आयत- 5)
इस आयत के संदर्भ में जैसा कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से स्पष्ट है कि मक्का में और मदीना जाने के बाद भी मुशरिक काफ़िर कुरैश, अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के पीछे पड़े थे। वे मुहम्मद (सल्ल0) को और सत्य-धर्म इस्लाम को समाप्त करने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहते ।
काफ़िर कुरैश ने अल्लाह के रसूल को कभी चैन से बैठने नहीं दिया। वे उनको सदैव सताते ही रहे। इसके लिए वे सदैव लड़ाई की साज़िश रचते रहते।
अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के हिजरत के छठवें साल ज़ीक़ादा महीने (अरबी महीना) में आप (सल्ल0) सैकड़ों मुसलमानों के साथ हज के लिए मदीना से मक्का रवाना हुए। लेकिन मुनाफ़िकों (यानी कपटाचारियों) ने इसकी ख़बर कुरैश को दे दी।
कुरैश पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने न देते। इस बार भी वे घात लगाकर रास्ते में बैठ गए। इसकी ख़बर मुहम्मद (सल्ल0) को लग गई। आपने रास्ता बदल दिया और मक्का के पास हुदैबिया कुएं के पास पड़ाव डाला।.
HAMARI DUAA⬇⬇⬇
*इस पोस्ट को हमारे सभी गैर मुस्लिम भाइयो ओर दोस्तो की इस्लाह ओर आपसी भाईचारे के लिए शेयर करे ताकि हमारे भाइयो को जो गलतफहमियां है उनको दूर किया जा सके अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
WAY OF JANNAH INSTITUTE RAJSTHAN
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पैम्फलेट में लिखी पहले क्रम की आयत है:
1. फिर, जब हराम के महीने बीत जाएं, तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा कर लें नमाज़ क़ायम करें और, ज़कात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो नि:सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करनेवाला है।"(कुरआन, सूरा- 9, आयत- 5)
इस आयत के संदर्भ में जैसा कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से स्पष्ट है कि मक्का में और मदीना जाने के बाद भी मुशरिक काफ़िर कुरैश, अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के पीछे पड़े थे। वे मुहम्मद (सल्ल0) को और सत्य-धर्म इस्लाम को समाप्त करने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहते ।
काफ़िर कुरैश ने अल्लाह के रसूल को कभी चैन से बैठने नहीं दिया। वे उनको सदैव सताते ही रहे। इसके लिए वे सदैव लड़ाई की साज़िश रचते रहते।
अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के हिजरत के छठवें साल ज़ीक़ादा महीने (अरबी महीना) में आप (सल्ल0) सैकड़ों मुसलमानों के साथ हज के लिए मदीना से मक्का रवाना हुए। लेकिन मुनाफ़िकों (यानी कपटाचारियों) ने इसकी ख़बर कुरैश को दे दी।
कुरैश पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने न देते। इस बार भी वे घात लगाकर रास्ते में बैठ गए। इसकी ख़बर मुहम्मद (सल्ल0) को लग गई। आपने रास्ता बदल दिया और मक्का के पास हुदैबिया कुएं के पास पड़ाव डाला।.
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