find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

Salam Ka Sahi Tarika Aur Sahi Istemal Kaise Kare?

Salam Kaise Kare Aur kin kin Logo Ko Karna Chahiye?

مسئلہ نمبر (126)
"सलाम करना", उसका तरीक़ा, आदाब, मकरूहात और मम्नूआत"

سوال: سلام کرنا اور سلام کا جواب دینا سنت ہے یا واجب ...؟

نیز= سلام کس کس کو کیا جائے ..؟
جواب: سلام کے لغوی معنی ہیں طاعت و فرمانبرداری، عیوب و نقائص سے پاک اور بری ہونا، کسی عیب یا آفت سے نجات پانا۔ سلام کے ایک معنی صلح کے بھی ہیں۔
سلام اسماء الحسنی یعنی اللہ تعالٰی کے صفاتی ناموں میں سے ہے،
اور شریعت کی اصطلاح میں سلام سے مراد دو یا دو سے زیادہ مسلمانوں کی آپس میں ملاقات کے وقت کی دعا یعنی السلام علیکم اور جواب میں وعلیکم السلام کہنا ہے۔
اصل جواب:
سلام کرنا سنت ہے،
اورجواب دینا واجب ہے،
ویسے تو واجب کا ثواب سنت سے زیادہ ہوتاہے، لیکن اس سلام کرنے کی سنت کا ثواب جواب دینے کے واجب سے زیادہ ہے۔(مرقاة المفاتیح ۸/۴۲۱ باب السلام)
جب کسی مسلمان کو سلام کیا جائے تو اس کے ذمہ جواب دینا واجب ہے، اگربغیر کسی عذر شرعی کے جواب نہ دے تو گنہگار ہوگا،
البتہ جواب دینے میں دو باتوں کا اختیار ہے، ایک یہ کہ جن الفاظ میں سلام کیا گیا ہے ان سے بہتر الفاظ میں جواب دیا جائے، دوسرے یہ کہ بعینہ انھیں الفاظ سے جواب دے دیا جائے۔ (معارف القرآن ۲/۵۰۴)
اللہ تعالی کا ارشاد ہے :
“وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٍ۬ فَحَيُّواْ بِأَحۡسَنَ مِنۡہَآ أَوۡ رُدُّوهَآ‌ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىۡءٍ حَسِيبًا“(سورة النِّسَاء86)
"اور جب تم کو کوئی دعا (سلام) دے تو (جواب میں) تم اس سے بہتر (کلمے) سے (اسے) دعا دو یا انہیں لفظوں سے دعا دو، بےشک خدا ہر چیز کا حساب لینے والا ہے"
حدیث: حضرت ابوہریرہ رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشاد فرمایا مسلمان کے پانچ حق ایسے ہیں جو اس کے بھائی پر واجب ہیں ..(۱)سلام کا جواب دینا،
(۲) چھینکنے والے کے جواب میں یَرحَمُکَ اللہ کہنا،
(۳) دعوت قبول کرنا،
(۴) مریض کی عیادت کرنا،
(۵) اور جنازوں کے ساتھ جانا۔ (صحیح مسلم:جلد سوم:حدیث نمبر 1153)
سلام کرنے کی تاکید حدیث میں ...
(۱) افشوا السلام بینکم، ترجمہ: آپس میں سلام کو خوب عام کرو
(۲) افشو السلام تسلموا، یعنی ایک دوسرے کو سلام کرتے رہو اللہ کی حفاظت میں رہوگے،
(۳) نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا :
“سوار پیدل چلنے والے کو سلام کہے اور چلنے والا بیٹھنے والے کواور کے تعداد والے بڑی جماعت کو سلام کریں“ (صحیح بخاری و مسلم)
(۴) "پہچاننے والے اور نہ پہچاننے والے سب کو سلام کرو“
(صحیح بخاری و مسلم)
ایک اور جگہ ارشاد فرمایا:
(۵) جو دو مسلمان ملتے ہیں اور مصحافہ کرتے ہیں تو ان کے جدا ہونے سے پہلے انہیں معاف کر دیا جاتا ہے “
(رواہ ابوداؤد، ابن ماجہ و ترمزی)
(۶) جو شخص سلام سے پہلے کلام شروع کر دے ، اس کا جواب نہ دو ،جب تک کہ وہ سلام کے ساتھ ابتدا نہ کرے “(رواہ الطبرانی و ابونعیم)
سلام کے الفاظ
(۱) السلام علیکم
(۲) السلام علیکم ورحمة اللہ
(۳) السلام علیکم ورحمة اللہ وبرکاتہ
ان تینوں طریقے سے سلام کرسکتے ہیں، مگر آخری والا یعنی پورا سلام کرنا افضل ہے جیساکہ حدیث میں ... حضرت عمران بن حصین فرماتے ہیں: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی خدمت میں ایک شخص حاضر ہوئے اور السلام علیکم کہا، آپ علیہ السلام نے سلام کا جواب دیا، اور وہ شخص بیٹھ گئے، آپ علیہ السلام نے ارشاد فرمایا: دس نیکیاں، کچھ دیر بعد ایک دوسرے آدمی حاضر خدمت ہوئے اور السلام علیکم ورحمة اللہ کہا، آپ علیہ السلام نے جواب دیا اور وہ آدمی بیٹھ گئے اور آپ علیہ السلام نے ارشاد فرمایا: بیس نیکیاں، کچھ دیر بعد ایک تیسرے شخص حاضر خدمت ہوئے اور عرض کیا، السلام علیکم ورحمة اللہ وبرکاتہ، آپ علیہ الصلوٰة والسلام نے ارشاد فرمایا: تیس نیکیاں۔(ترمذی ۲/۹۸، ابوداؤد۲/۷۰۶)
معلوم ہوا کہ مکمل سلام کرنے کا ثواب زیادہ ہے،
پورا سلام اس طرح کرے ...
“السلام علیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ“
“ تم پر سلامتی ہو اور اللہ کی رحمت اور برکت ہو“
اور جوابی الفاط یہ ہیں :
“وعلیکم السلام ورحمتہ اللہ وبرکاتہ“
“اور تم پر بھی سلامتی اور اللہ کی رحت اور برکت ہو

सवाल: सलाम करना और सलाम का जवाब देना सुन्नत है या वाजिब ...?

और = सलाम किस किसको किया ..?
जवाब: सलाम के मायना लुगत में ताअत, व फरमॉबरदारी, और ऐब व कमी से पाक और बरी होना, किसी परेशानी और तकलीफ से निजात पाना। सलाम के एक मायने सुलह़ करने के भी हैं।
“सलाम" अस्मा उल-हसना यानी अल्लाह ताला के नामों में से है,
और शरीयते इसलाम में सलाम का मतलब है ...
मुसलमानों का आपस में मुलाकात के समय सलाम करना, यानी अस्सलामु अलैकुम
और जवाब में व-अलेकुम अस्सलाम कहना है।
सलाम करना सुन्नत है,
और जवाब देना वाजिब है.
वैसे तो वाजिब का सवाब, सुन्नत से ज्यादा होता है, लेकिन इस सलाम करने की सुन्नत का सवाब, जवाब देने के वाजिब से ज्यादा है.
जब किसी मुसलमान को सलाम किया जाए तो उसके जिम्मे जवाब देना वाजिब है,
यानी अगर बगैर किसी शरई उज्र और बहाने के जवाब न दिया तो वह गुनेहगार होगा.
फायदा: जवाब देने में दो बातों का इख्तियार है: 1-
जिन शब्दों में सलाम किया गया है उनसे बेहतर शब्दों में जवाब दिया जाए,
2- उन्हीं शब्दों से जवाब दे दिया जाए.
कुरान: जब तुम्हें कोई दुआ (सलाम) दे तो (जवाब में) तुम उस से बेहतर कलिमे से उसे दुआ दो या उन्हीं शब्दों से दुआ दो, बेशक अल्लाह हर चीज का हिसाब लेने वाला है, सूरह-निसा 86)
हदीस: मुसलमान के पांच हक ऐसे हैं जो उसके भाई पर वाजिब हैं:
1- सलाम का जवाब देना,
2- छींकने वाले के जवाब में यर्हमुकल्लाह कहना,
3- दावत कबूल करना,
4- बीमार के पास जाकर, उसका हाल पूछना,
5- जनाजे के साथ जाना.
सलाम करने की ताकीद हदीस में ...
(1) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
आपस में सलाम को खूब आम करो,
(2) एक दूसरे को सलाम करो अल्लाह की पनाह में रहोगे,
(3) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
"सवार पैदल चलने वाले को सलाम कहे और चलने वाला बैठने वाले को और की संख्या वाले बड़े दल को सलाम करें"
(4) "पहचानने वाले और न पहचानने वाले सभी सलाम करो"
एक और जगह इरशाद फरमाया:
(5) जो दो मुसलमान मिलते हैं और मुसाफह करते हैं तो उनके जुदा होने से पहले उन्हें माफ कर दिया जाता है "
(6) जो आदमी सलाम से पहले बात-चीत शुरू कर दे, उसको जवाब न दो, जब तक वे सलाम के साथ शुरू न करे "
सलाम के शब्द यानी अल्फाज:
1- अस्सलामु-अलयैकुम
2- अस्सलामु-अलयैकुम व-रह्-मतुल्लाह
3- अस्सलामु-अलयैकुम व रह्-मतुल्लाहि व ब-र-कातुह.
.
इन तीनों तरीकों से सलाम कर सकते हैं, वैसे आखिर वाला यानी पूरा सलाम करना अफजल है.
हदीस: आप सल्लल्लाहु-अलयैहि व सल्लम के पास एक आदमी ने आकर सलाम किया: अस्सलामु-अलयैकुम"
आप ने जवाब देकर फरमाया: दस नेकियाँ,
कुछ देर बाद किसी दूसरे ने आकर सलाम किया: अस्सलामु-अलयैकुम व रह्-मतुल्लाह"
आप ने जवाब देकर फरमाया: बीस नेकियाँ,
फिर कुछ देर बाद एक तीसरे आदमी आए और सलाम किया: अस्सलामु-अलयैकुम व रह्-मतुल्लाहि व ब-र-कातुह"
आप ने जवाब दिया, और फरमाया: तीस नेकियाँ.
सलाम करने के आदाब:
(1) सलाम में पहल करे, क्योंकि सलाम में पहल करने से आदमी के अंदर आजिज़ी तवाजोअ पैदा होता है, और अल्लाह तआला का अपने बन्दे की आजिज़ी बहुत पसनद है।
हदीस: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
लोगों में अल्लाह के कुरब और उसकी रेहमत का जियादा हकदार वह बंदा है जो सलाम में पहल करने वाला हो।
एक दूसरी रिवायत में है कि सलाम में पहल करने वाला तकब्बुर और बुड़ाई से बरी होता है।
(2) सलाम करने वाला और सलाम का जवाब देने वाला "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुह"ٴ जमा का सीगा इसतिमाल करें, चाहे वह अकेला ही क्यों न हो जिसको सलाम किया जाए।
(3) सलाम इतनी जोर से करे कि सलाम किए जाने वाले को आसानी से आवाज़ पहुंच जाए वरना वह जवाब का हकदार न होगा, इसी तरह जवाब देने वाला भी इतनी जोर से जवाब दे, वरना तो जवाब की जिम्मेदारी अदा न होगी।
(4) जब कोई सलाम करे तो बेहतर ढंग से जवाब दे, वरना तो कम से कम वैसे ही अलफाज़ से जवाब दे।
अल्लाह का इरशाद है: जब तुम्हें सलाम किया जाए तो तुम सलाम से बेहतर अलफाज़ से जवाब दो, या उसी के जैसा जवाब दो। (सूरह निसा: 86)
(5) रिशतेदार, दोस्त, छोटे, बड़े, जाने पहचाने और अनजाने सबको सलाम करे।
(6) छोटी जमात बड़ी जमात को सलाम करे।
(7) सवार पैदल चलने वाले को सलाम करे।
(8) पैदल चलने वाला बैठे हुए आदमी को सलाम करे।
(9) छोटे बड़ो को सलाम करे।
(10) अपने मेहरम को सलाम करे।
(11) जब घर या मस्जिद में दाखिल हो, और उसके अलावा कोई न हो तो इन शब्दों से सलाम करे, अस्सलामु अलेना व अला इबादिल्लाहि-स्सालिहीन,
(12) यदि कोई गायब आदमी किसी दूसरी जगह से सलाम पहुंचाए तो इस तरह जवाब दे,
अलेका व अलेहिस्सलाम,
(13) यदि एक आदमी एक जमात को सलाम करे तो जमात में से एक आदमी का जवाब देना पर्याप्त है, और सभी दर्शकों का जवाब देना बेहतर है।
(14) और अगर सलाम करने वाली एक जमात हो तो सिर्फ एक आदमी का जवाब दे देना काफी है, और अगर सब जवाब दें तो जियादा अछ्छा है,
(15) और अगर मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम सब एक जगह जमा हों तो मुसलमानों के इरादे से सलाम करे।
(16) जब किसी से मुलाकात खत्म कर के जाने लगे तो सलामे विदा (रुखसती का सलाम) करे, यह भी सुन्नत है।
(17) जब किसी के पास कोई खत-MSG लिखे तो अस्सलामु अलैकुम से बात शुरू करे।
(18) और अगर मुसलमान दो हों,  यी बहरा हो तो हाथ से इशारा भी करे और जुबान से सलाम के अलफाज़ भी कहे, केवल इशारे पर इकतफा न करे,
(19) सलाम या सलाम के जवाब में अस्सलामु अलेकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुह ही कहे, इसमें और दूसरे अलफाज़ शामिल न करे, जो हदीस से साबित नही हैं,
(20) अगर किसी ग़ैर मुस्लिम के पास खत लिखे तो "अस्सलामु अला मनित्तबा-अल हुदा" लिखे,
जिन लोगों को सलाम करना मकरूह है?
(1) बेईमान को सलाम करना मकरूह तेहरीमी है, और अगर वह शुरुआत
सलाम करे तो सिर्फ “अलेक" कहे,
(2) ज़िनदीक को सलाम करना,
(3) जो आदमी खुल्लम खुल्ला गुनाह बुरे काम करता हो, उस व्यक्ति को सलाम करना मकरूह है।
(4) जवान अजनबी औरतों को, और औरतों का अजनबी मर्दों को सलाम करना मकरूह है, अगर अजनबी बहुत बूढ़ा या बूढ़ी हो तो सलाम करना जायज़ है।
(5) बिदअती को सलाम करना।
फायदा: बेईमान काफिर व गैर मुस्लिम  को किसी जरूरत की वजह से सलाम करना यानी आम बोल-चाल के अलफाज़ इसतिमाल करना जैसे सुबह बखैर, आदाब, वगैरा कहने की गुनजाइश है, उनका धार्मिक लफज़ "नमस्ते" कहना जायज़ नहीं,
नीचे लिखे गए मोकों पर सलाम न करे:
(1) नमाज़ पढ़ने वाले को,
(2) तिलावत करने वाले को,
(3) दीनी बातों (कुरान, हदीस, फिक़ह वगैरा) के बयान करने वाले को,
(4) जिक्र करने वाले को,
(5) अज़ान देने वाले को,
(6) इक़ामत कहने वाले को,
(7) जुमा और ईद वगैरा का खुतबा देने वालों को,
यानी उनके दिनी मामलों में मसरुफ होने की वजह से उनको सलाम करना मकरूह है।
(8) अज़ान, इक़ामत और खुतबे के दौरान सलाम करना मकरूह है, अगर कोई इन अवसरों में सलाम करे तो जवाब का हकदार नहीं।
(9) खाने वाले को सलाम करना।
(10) पैशाब-पखाना करने वाले आदमी को सलाम करना।
(11) बीवी से हम्बिसतरी करने वाले आदमी को सलाम करना।
(12) जिस आदमी का सत्तर खुला हुआ हो उसे सलाम करना मकरूह है,
फायदा: कुछ हालतों में सलाम का जवाब देना वाजिब नहीं, लेकिन कुछ हालतों में काम रोक कर सलाम का जवाब दे सकता है, और कुछ हालतों में जवाब देने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं है।
पूरा सलाम इस तरह करे ...
“अस्सलामु-अलयैकुम व रह्-मतुल्लाहि व ब-र-कातुह"
"तुम पर सलामती हो, और अल्लाह की रेहमत और बर्कत हो"
और जवाबी अलफीज़ ये हैं:
“वअलयैकुम अस्सलामु-व रह्-मतुल्लाहि व ब-र-कातुह"
"और तुम भी सलामती और अल्लाह रेहमत और बर्कत हो"
مفتی معمور-بدر مظاہری، قاسمی (اعظم-پوری)
Share:

3 comments:

  1. बहुत उम्दा पोस्ट

    ReplyDelete
  2. Mai kabrstan me ek jinda aadmi ko salam kiya to ek sakhs ne mujhe toka ki kabrstan me salam karna mana hai kya yah sahi hai hadis ki roshni me jawab dene ki mehrbani katen email me

    ReplyDelete

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS