Makka Ke Mushriko Se Kyu Jung Ki Musalmano Ne.
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
#क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।
पार्ट नंबर 33
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
हज़रत अली ने मशुरिकों से कह दिया कि“यह अल्लाह का फ़रमान है अब समझौता टूट चुका है और यह तुम्हारे द्वारा तोड़ा गया है इसलिए अब इज़्ज़त के चार महीने बीतने के बाद तुमसे जंग (यानी युद्ध) है।”
समझौता तोड़कर हमला करने वालों पर जवाबी हमला कर उन्हें कुचल देना मुसलमानों का हक़ बनता था, वह भी मक्का के उन मुश्रिकों के विरुद्ध जो मुसलमानों के लिए सदैव से अत्याचारी व आक्रमणकारी थे। इसी लिए सर्वोच्च न्यायकर्ता अल्लाह ने पांचवीं आयत का फ़रमान भेजा।
इस पांचवीं आयत से पहले वाली चौथी आयत है।
अलबत्ता, जिन मुश्रिकों के साथ तुमने अहद किया हो, और उन्होंने तुम्हारा किसी तरह का कुसूर न किया हो और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो, तो जिस मुद्दत तक उनके साथ अहद किया हो, उसे पूरा करो (कि) खुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है।(कुरआन, सूरा-9, आयत-4)
इससे स्पष्ट है कि जंग का यह एलान उन मुश्रिकों के विरुद्ध था जिन्होंने युद्ध के लिए उकसाया, मजबूर किया, उन मुश्रिकों के विरुद्ध नहीं जिन्होंने ऐसा नहीं किया। युद्ध का यह एलान आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए था।
अतः अन्यायियों, अत्याचारियों द्वारा ज़बरदस्ती थोपे गए युद्ध से अपने बचाव के लिए किए जानेवाले किसी भी प्रकार के प्रयास को किसी भी तरह। झगड़ा कराने वाला नहीं कहा जा सकता। अत्याचारियों और अन्यायियों से अपनी व अपने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना और युद्ध के लिए सैनिकों को उत्साहित करना धर्मसम्मत है।.
HAMARI DUAA⬇⬇⬇
इस पोस्ट को हमारे सभी गैर मुस्लिम भाइयो ओर दोस्तो की इस्लाह ओर आपसी भाईचारे के लिए शेयर करे ताकि हमारे भाइयो को जो गलतफहमियां है उनको दूर किया जा सके अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
WAY OF JANNAH INSTITUTE RAJSTHAN
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पार्ट नंबर 33
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
हज़रत अली ने मशुरिकों से कह दिया कि“यह अल्लाह का फ़रमान है अब समझौता टूट चुका है और यह तुम्हारे द्वारा तोड़ा गया है इसलिए अब इज़्ज़त के चार महीने बीतने के बाद तुमसे जंग (यानी युद्ध) है।”
समझौता तोड़कर हमला करने वालों पर जवाबी हमला कर उन्हें कुचल देना मुसलमानों का हक़ बनता था, वह भी मक्का के उन मुश्रिकों के विरुद्ध जो मुसलमानों के लिए सदैव से अत्याचारी व आक्रमणकारी थे। इसी लिए सर्वोच्च न्यायकर्ता अल्लाह ने पांचवीं आयत का फ़रमान भेजा।
इस पांचवीं आयत से पहले वाली चौथी आयत है।
अलबत्ता, जिन मुश्रिकों के साथ तुमने अहद किया हो, और उन्होंने तुम्हारा किसी तरह का कुसूर न किया हो और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो, तो जिस मुद्दत तक उनके साथ अहद किया हो, उसे पूरा करो (कि) खुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है।(कुरआन, सूरा-9, आयत-4)
इससे स्पष्ट है कि जंग का यह एलान उन मुश्रिकों के विरुद्ध था जिन्होंने युद्ध के लिए उकसाया, मजबूर किया, उन मुश्रिकों के विरुद्ध नहीं जिन्होंने ऐसा नहीं किया। युद्ध का यह एलान आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए था।
अतः अन्यायियों, अत्याचारियों द्वारा ज़बरदस्ती थोपे गए युद्ध से अपने बचाव के लिए किए जानेवाले किसी भी प्रकार के प्रयास को किसी भी तरह। झगड़ा कराने वाला नहीं कहा जा सकता। अत्याचारियों और अन्यायियों से अपनी व अपने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना और युद्ध के लिए सैनिकों को उत्साहित करना धर्मसम्मत है।.
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