Is Desh me Kis Tarah Musalmano Par zulm Aur Jyadti Kiye Ja Rahe Hai?
Tabrej Ansari Mob Lunching. |
देश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा का दौर जारी है। अभी हाल ही में झारखण्ड में नवविवाहित तबरेज आलम को भीड़ गुस्साई भीड़ ने महज शक के आधार पर एक मौत के मुँह में धकेल दिया। इससे भी दुखद यह हैं कि पुलिस ने मामले को दबाने के लिए एक पीड़ित व्यक्ति को उचित इलाज़ उपलब्ध नही करवाई। इस ख़बर को आप विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पढ़ सकते हैं, इसलिए मैं इसके विस्तार में नही जा रहा।
Mob Lynching In Jharkhand |
इसी बीच कुछ संघी इस लीनचिंग की घटना की आलोचना कर रहे हैं। ये बड़ी ताज्जुब की बात हैं। इस तरह की हिंसा, जिसकी आलोचना संघी कर रहे हैं, वास्तव में संघियों द्वारा ही प्रायोजित हैं। ये संघी, इसी तरह के अपराधों में लिप्त गुंडो को फूल माला पहना चुके हैं। जिससे आज लीनचिंग या गुस्साई भीड़ द्वारा हिंसा आम हो चुकी हैं। शुरुआत से ही यदि सभी वर्गो द्वारा इस तरह के उन्माद की आलोचना की गई होती, दोषियों को हतोत्साहित किया गया होता, तो आज हमें ये दिन न देखना होता। सत्तासीन भाजपा द्वारा इस तरह के गुंडागर्दी को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया गया। अभी झारखंड में विधानसभा चुनाव आसन्न हैं। भाजपा के समर्थकों द्वारा बड़े जोरसोर से ये मुद्दा उठाया जा रहा है कि इस तरह के हिंसा का विरोध करने वाले किसी हिन्दू के साथ कुछ बुरा होने पर शांत रहते हैं। वास्तव में सत्तासीन भाजपा चाहती है कि हमारा समाज धर्म के आघार पर बंट जाए, ताकि इन मानसिक दिवालिएपन के शिकार संघियों को फायदा होता रहे, सत्ता पर पकड़ बनी रहे।
अब आपके सामने एक बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है, क्या एक हिंसा को दूसरी हिंसा के आड़ में जायज ठहराया जा सकता हैं? क्या धर्म के आधार पर मतदान और राजनीति जायज हैं? क्यों विकास का मुद्दा गौण हैं?
हमे ये भी समझने की जरूरत है कि जिसने खुद के फायदे के लिए जय श्री राम के नारे को बदनाम कर दिया, जिसने अनेको जगह अपने फायदे के लिए दंगा फैला दिया, जिसने अपने फ़ायदे के लिए धर्मस्थल को ढहा दिया, जिसने नरसंहार को बढ़ावा दिया, जिसने जय श्री राम के नारे को भक्ति के नारे से हटाकर नफरत के नारे में बदल दिया, वो न राम का है, न श्याम का। वो सिर्फ चंद वोटों की खातिर धर्म को बदनाम कर रहा हैं। आइये, हम सब मिलकर, धर्म और जाति के नाम राजनीति करने वालों का पूर्ण बहिष्कार करें। आइए, हमसब धार्मिक भाईचारे को पुनः स्थापित करे, आईए हमसब मिलकर संविधान को मजबूत बनाये, आइए हमसब मिलकर अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हो। आइए हमसब फिर से भाई भाई बनकर रहे और ज़ुल्म, अत्याचार के खिलाफ एक होकर इसका विरोध करे नहीं तो यह और आगे बढ़ रहा है और बढ़ेगा इसमें शक नहीं, बस संविधान ही हमारा सबकुछ है और इसी के दायरे में रहकर हम आज से ज़ुल्म और तश्शुद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे और जो लोग ज़ुल्म ओ ज्यादती को बढ़ावा दे रहे है उसको ज्यादती करने पर उसका स्वागतम करते है ओ सब का खुलकर अपने समाज में बॉयकॉट करे और हिन्दू मुस्लिम से भाई भाई बने।
अब आपके सामने एक बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है, क्या एक हिंसा को दूसरी हिंसा के आड़ में जायज ठहराया जा सकता हैं? क्या धर्म के आधार पर मतदान और राजनीति जायज हैं? क्यों विकास का मुद्दा गौण हैं?
हमे ये भी समझने की जरूरत है कि जिसने खुद के फायदे के लिए जय श्री राम के नारे को बदनाम कर दिया, जिसने अनेको जगह अपने फायदे के लिए दंगा फैला दिया, जिसने अपने फ़ायदे के लिए धर्मस्थल को ढहा दिया, जिसने नरसंहार को बढ़ावा दिया, जिसने जय श्री राम के नारे को भक्ति के नारे से हटाकर नफरत के नारे में बदल दिया, वो न राम का है, न श्याम का। वो सिर्फ चंद वोटों की खातिर धर्म को बदनाम कर रहा हैं। आइये, हम सब मिलकर, धर्म और जाति के नाम राजनीति करने वालों का पूर्ण बहिष्कार करें। आइए, हमसब धार्मिक भाईचारे को पुनः स्थापित करे, आईए हमसब मिलकर संविधान को मजबूत बनाये, आइए हमसब मिलकर अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हो। आइए हमसब फिर से भाई भाई बनकर रहे और ज़ुल्म, अत्याचार के खिलाफ एक होकर इसका विरोध करे नहीं तो यह और आगे बढ़ रहा है और बढ़ेगा इसमें शक नहीं, बस संविधान ही हमारा सबकुछ है और इसी के दायरे में रहकर हम आज से ज़ुल्म और तश्शुद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे और जो लोग ज़ुल्म ओ ज्यादती को बढ़ावा दे रहे है उसको ज्यादती करने पर उसका स्वागतम करते है ओ सब का खुलकर अपने समाज में बॉयकॉट करे और हिन्दू मुस्लिम से भाई भाई बने।
मुन्नवर_राणा सहाब की ग़ज़ल ने सच का मानो आईना दिखा दिया.
अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा।।
सिर्फ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा।।
सिर्फ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा।।
ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो।।
अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो।।
अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो।।
तुम भी महफूज़ कहाँ अपने ठिकाने पे हो।।
बादे अखलाक तुम्ही लोग निशाने पे हो।।
बादे अखलाक तुम्ही लोग निशाने पे हो।।
सारे ग़म सारे गिले शिकवे भुला के उठो।
दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उठो।।
दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उठो।।
अब अगर एक न हो पाए तो मिट जाओगे।।
ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे।।
ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे।।
खुद को पहचानो की तुम लोग वफ़ा वाले हो।।
मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो।।
मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो।।
कुफ्र दम तोड़ दे टूटी हुई शमशीर के साथ।।
तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ।।
तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ।।
अपने इस्लाम की तारीख उलट कर देखो ।
अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो।।
अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो।।
तुम पहाड़ों का जिगर चाक किया करते थे।।
तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे।।
तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे।।
तुमने खैबर को उखाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।
तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।।
तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।।
फिरते रहते थे शबो रोज़ बियाबानो में।।
ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में..
ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में..
रह के महलों में हर आयते हक़ भूल गए।।
ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए।।
ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए।।
अमने आलम के अमीं ज़ुल्म की बदली छाई।।
ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई।।
ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई।।
ठन्डे कमरे हंसी महलों से निकल कर आओ।।
फिर से तपते हु सहराओं में चल कर आओ।।
फिर से तपते हु सहराओं में चल कर आओ।।
लेके इस्लाम के लश्कर की हर एक खुबी उठो।।
अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो।।
अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो।।
राहे हक़ में बढ़ो सामान सफ़र का बांधो।।
ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो।।
ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो।।
तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो।।।
फ़तह की एक नयी तारीख बना सकते हो।।।
फ़तह की एक नयी तारीख बना सकते हो।।।
खुद को पहचानों तो सब अब भी संवर सकता है।।
दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है।।
दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है।।
हक़ परस्तों के फ़साने में कहीं मात नहीं।।।।।।।।
तुमसे टकराए *"मुंनव़र"* ज़माने की ये औक़ात नहीं।।
तुमसे टकराए *"मुंनव़र"* ज़माने की ये औक़ात नहीं।।
__शायरमुनव्वर राणा राण
Ye aisi jamat ka kaam hai jo apni bujdili ko chupane ke liye sabr ka naam deti hai lanat ho aisi jamat per
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