Kis Tarah Musalmano Par Makka Ke Kafir Zulm Kiya Karte They.
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
#क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
#क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
Tabrej Ansari Killed By Mob Lynching In Jhharkhand |
सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
*नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।*
*पार्ट* 04
*हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की संक्षिप्त जीवनी
मुहम्मद (सल्ल0) लोगों को अल्लाह का पैग़ाम देने लगे कि
(परमेश्वर) एक है उसका कोई शरीक नहीं। केवल वही पूजा के योग्य लोगों को उसी की इबादत करनी चाहिए।
*अल्लाह ने मुझे नबी (पैग़म्बर) बनाया है। मुझ पर अपनी आयतें उतारी हैं ताकि मैं लोगों को सत्य बताऊँ, और सत्य की सीधी राह दिखाऊँ।' जो लोग *मुहम्मद (सल्ल0)* के इस पैग़ाम पर ईमान (यानी विश्वास) लाए, वे *मुस्लिम* अर्थात् मुसलमान कहलाए।
मुस्लिम का अर्थ है आज्ञाकारी, फ़रमांबरदार, अपने आपको ईश्वर के हवाले कर देनेवाला बीवी ख़दीजा (रज़ि) पैग़म्बर मुहम्मद पर विश्वास लाकर पहली मुसलमान बनीं। इसके बाद चाचा अबू-तालिब के बेटे *अली (रज़िo) और मुंह बोले बेटे जैद (रज़ि०) व *पैग़म्बर (सल्ल0) के गहरे दोस्त अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि) ने मुसलमान बनने के लिए: अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन-न मुहम्मदरसूलुल्लाह' यानी “*मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि *मुहम्मद (सल्ल0) अल्लाह के रसूल हैं* कहकर *इस्लाम क़बूल किया।
मक्का के अन्य लोग भी ईमान (यानी विश्वास) लाकर *मुसलमान* बनने लगे। कुछ समय बाद ही कुरैश के सरदारों को मालूम हो गया कि *मुहम्मद (सल्ल0)* अपने बाप-दादा के धर्म बहुदेववाद और मूर्तिपूजा के स्थान पर किसी नए धर्म का प्रचार कर रहे हैं और बाप-दादा के धर्म को समाप्त कर रहे हैं। यह जानकर *मुहम्मद (सल्ल0) के अपने ही क़बीले कुरैश के लोग बहुत क्रोधित हो गए। मक्का के सारे बहुदेववादी काफ़िर सरदार इकट्ठे होकर *मुहम्मद (सल्ल0)
की शिकायत लेकर उनके चाचा अबू-तालिब के पास गए। अबू-तालिब ने *मुहम्मद (सल्ल0) को बुलवाया और कहा, *मुहम्मद (सल्ल0)* ये अपने कुरैश क़बीले के सरदार हैं, ये चाहते हैं कि तुम यह प्रचार न करो कि *अल्लाह* के सिवा कोई पूज्य नहीं है और ये चाहते हैं कि तुम अपने बाप-दादा के धर्म पर क़ायम रहो मुहम्मद (सल्ल0) ने ला इला-ह इल्लल्लाह' (अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है) इस सत्य का प्रचार छोड़ने से इनकार कर दिया। कुरैश के सरदार क्रोधित होकर चले गए। इसके बाद कुरैश के इन सरदारों ने तय किया कि अब हम *मुहम्मद (सल्ल0) को हर प्रकार से कुचल देंगे। अत: वे *मुहम्मद (सल्ल0)* और उनके साथियों को बेरहमी के साथ तरह-तरह से सताते, अपमानित करते और उनपर पत्थर बरसाते।
इसके बावजूद *मुहम्मद (सल्ल0) ने उनकी दुष्टता का जवाब सदैव सज्जनता और सद्व्यवहार से ही दिया।
*मुहम्मद (सल्ल0)* व आपके साथी *मुसलमानों के विरोध में कुरैश का साथ देने के लिए अरब के और बहुत-से क़बीले थे जिन्होंने आपस में यह समझौता कर लिया था कि कोई क़बीला किसी मुसलमान को पनाह नहीं देगा। प्रत्येक क़बीले की ज़िम्मेदारी थी कि जहां कहीं *मुसलमान* मिल जाए उनको खूब मारें-पीटें और हर तरह से अपमानित करें, जिससे कि वे अपने बाप-दादा के धर्म की ओर लौट आने को मजबूर हो जाएं।
दिन-प्रतिदिन उनके अत्याचार बढ़ते गए। उन्होंने निर्दोष असहाय *मुसलमानो*ं को कैद किया, मारा-पीटा, भूखा-प्यासा रखा । मक्का की तपती रेत पर नंगा लिटाया, लोहे की गर्म छड़ों से दाग़ा और तरह-तरह के अत्याचार किए।
उदाहरण के लिए *हज़रत यासिर (रज़ि0)* और उनकी बीवी *हज़रत सुमय्या (रज़ि)* तथा उनके पुत्र *हज़रत अम्मार (रज़ि)* मक्का के ग़रीब लोग थे और इस्लाम कबूल कर के *मुसलमान* बन गए थे। उनके मुसलमान बनने से नाराज़ मक्का के इस्लाम-विरोधी उन्हें सज़ा देने के लिए जब कड़ी दोपहर हो जाती तो उनके कपड़े उतार कर उन्हें तपती रेत पर लिटा देते।
हज़रत यासिर (रजि0) ने इन जुल्मों को सहते हुए तड़प-तड़प कर जान दे दी। *मुहम्मद (सल्ल0)* व *मुसलमानो* का सबसे बड़ा विरोधी अबू-जहल बड़ी बेदर्दी से *हजरत सुमय्या (रज़ि)* पर जुल्म करता रहता। एक दिन उन्होंने अबू-जहल को बददुआ दे दी जिससे नाराज़ होकर अबू-जल ने भाला मारकर हज़रत सुमय्या (रज़ि०) का क़त्ल कर दिया।
इस तरह इस्लाम में हज़रत। सुमय्या (रज़ि०) ही सबसे पहले सत्य की रक्षा के लिए शहीद बनीं।
*नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।*
*पार्ट* 04
*हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की संक्षिप्त जीवनी
मुहम्मद (सल्ल0) लोगों को अल्लाह का पैग़ाम देने लगे कि
(परमेश्वर) एक है उसका कोई शरीक नहीं। केवल वही पूजा के योग्य लोगों को उसी की इबादत करनी चाहिए।
*अल्लाह ने मुझे नबी (पैग़म्बर) बनाया है। मुझ पर अपनी आयतें उतारी हैं ताकि मैं लोगों को सत्य बताऊँ, और सत्य की सीधी राह दिखाऊँ।' जो लोग *मुहम्मद (सल्ल0)* के इस पैग़ाम पर ईमान (यानी विश्वास) लाए, वे *मुस्लिम* अर्थात् मुसलमान कहलाए।
मुस्लिम का अर्थ है आज्ञाकारी, फ़रमांबरदार, अपने आपको ईश्वर के हवाले कर देनेवाला बीवी ख़दीजा (रज़ि) पैग़म्बर मुहम्मद पर विश्वास लाकर पहली मुसलमान बनीं। इसके बाद चाचा अबू-तालिब के बेटे *अली (रज़िo) और मुंह बोले बेटे जैद (रज़ि०) व *पैग़म्बर (सल्ल0) के गहरे दोस्त अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि) ने मुसलमान बनने के लिए: अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन-न मुहम्मदरसूलुल्लाह' यानी “*मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि *मुहम्मद (सल्ल0) अल्लाह के रसूल हैं* कहकर *इस्लाम क़बूल किया।
मक्का के अन्य लोग भी ईमान (यानी विश्वास) लाकर *मुसलमान* बनने लगे। कुछ समय बाद ही कुरैश के सरदारों को मालूम हो गया कि *मुहम्मद (सल्ल0)* अपने बाप-दादा के धर्म बहुदेववाद और मूर्तिपूजा के स्थान पर किसी नए धर्म का प्रचार कर रहे हैं और बाप-दादा के धर्म को समाप्त कर रहे हैं। यह जानकर *मुहम्मद (सल्ल0) के अपने ही क़बीले कुरैश के लोग बहुत क्रोधित हो गए। मक्का के सारे बहुदेववादी काफ़िर सरदार इकट्ठे होकर *मुहम्मद (सल्ल0)
की शिकायत लेकर उनके चाचा अबू-तालिब के पास गए। अबू-तालिब ने *मुहम्मद (सल्ल0) को बुलवाया और कहा, *मुहम्मद (सल्ल0)* ये अपने कुरैश क़बीले के सरदार हैं, ये चाहते हैं कि तुम यह प्रचार न करो कि *अल्लाह* के सिवा कोई पूज्य नहीं है और ये चाहते हैं कि तुम अपने बाप-दादा के धर्म पर क़ायम रहो मुहम्मद (सल्ल0) ने ला इला-ह इल्लल्लाह' (अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है) इस सत्य का प्रचार छोड़ने से इनकार कर दिया। कुरैश के सरदार क्रोधित होकर चले गए। इसके बाद कुरैश के इन सरदारों ने तय किया कि अब हम *मुहम्मद (सल्ल0) को हर प्रकार से कुचल देंगे। अत: वे *मुहम्मद (सल्ल0)* और उनके साथियों को बेरहमी के साथ तरह-तरह से सताते, अपमानित करते और उनपर पत्थर बरसाते।
इसके बावजूद *मुहम्मद (सल्ल0) ने उनकी दुष्टता का जवाब सदैव सज्जनता और सद्व्यवहार से ही दिया।
*मुहम्मद (सल्ल0)* व आपके साथी *मुसलमानों के विरोध में कुरैश का साथ देने के लिए अरब के और बहुत-से क़बीले थे जिन्होंने आपस में यह समझौता कर लिया था कि कोई क़बीला किसी मुसलमान को पनाह नहीं देगा। प्रत्येक क़बीले की ज़िम्मेदारी थी कि जहां कहीं *मुसलमान* मिल जाए उनको खूब मारें-पीटें और हर तरह से अपमानित करें, जिससे कि वे अपने बाप-दादा के धर्म की ओर लौट आने को मजबूर हो जाएं।
दिन-प्रतिदिन उनके अत्याचार बढ़ते गए। उन्होंने निर्दोष असहाय *मुसलमानो*ं को कैद किया, मारा-पीटा, भूखा-प्यासा रखा । मक्का की तपती रेत पर नंगा लिटाया, लोहे की गर्म छड़ों से दाग़ा और तरह-तरह के अत्याचार किए।
उदाहरण के लिए *हज़रत यासिर (रज़ि0)* और उनकी बीवी *हज़रत सुमय्या (रज़ि)* तथा उनके पुत्र *हज़रत अम्मार (रज़ि)* मक्का के ग़रीब लोग थे और इस्लाम कबूल कर के *मुसलमान* बन गए थे। उनके मुसलमान बनने से नाराज़ मक्का के इस्लाम-विरोधी उन्हें सज़ा देने के लिए जब कड़ी दोपहर हो जाती तो उनके कपड़े उतार कर उन्हें तपती रेत पर लिटा देते।
हज़रत यासिर (रजि0) ने इन जुल्मों को सहते हुए तड़प-तड़प कर जान दे दी। *मुहम्मद (सल्ल0)* व *मुसलमानो* का सबसे बड़ा विरोधी अबू-जहल बड़ी बेदर्दी से *हजरत सुमय्या (रज़ि)* पर जुल्म करता रहता। एक दिन उन्होंने अबू-जहल को बददुआ दे दी जिससे नाराज़ होकर अबू-जल ने भाला मारकर हज़रत सुमय्या (रज़ि०) का क़त्ल कर दिया।
इस तरह इस्लाम में हज़रत। सुमय्या (रज़ि०) ही सबसे पहले सत्य की रक्षा के लिए शहीद बनीं।
*पोस्ट आगे जारी है(next part coming soon) इन-शा-अल्लाह* ✍✍✍.......
*HAMARI DUAA* ⬇⬇⬇
*इस पोस्ट को हमारे सभी गैर मुस्लिम भाइयो ओर दोस्तो की इस्लाह ओर आपसी भाईचारे के लिए शेयर करे ताकि हमारे भाइयो को जो गलतफहमियां है उनको दूर किया जा सके अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
*HAMARI DUAA* ⬇⬇⬇
*इस पोस्ट को हमारे सभी गैर मुस्लिम भाइयो ओर दोस्तो की इस्लाह ओर आपसी भाईचारे के लिए शेयर करे ताकि हमारे भाइयो को जो गलतफहमियां है उनको दूर किया जा सके अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
हमारा मकसद सच बात को सबूत के साथ लोगो तक पहुँचाना ओर आज के दौर में इंसानो के अंदर फैले मतभेदों को दूर करके भाईचारे ओर इंसानियत को बढ़ावा देना है
WAY OF JANNAH INSTITUTE RAJSTHAN
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