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Islam ke Khilaf European Propganda Quran jalana.

Sweden aur Denmark me Propganda of Freedom of expresson.

Sweden me bar bar Quran kyu jalaya jata hai, Ise kaun log support karte hai?

Shikari aur Shikar yani Musalman aur Christian.

Muslim Mulko me Khilafat islamic system kaise laya jaye?

New world order ya Jewish world Order.

Islamic tarike se Khawateen ko kaise Padhaya jaye.

Qustuntuniya par Musalmano ki fatah.

मुस्लिम मुल्को ने इस्लाम को अपना दस्तूर माना लेकिन अमल नही
मागरिबि मुल्को ने अक़ल को अपना दस्तूर माना तो अमल भी किया।

तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी।
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा

ज़ाहिर सी बात है के नई नस्ले इस्लाम के मुतालिक बद्गुमानिया और वस्वसे पालती और मागरिब के मुतालिक़ अच्छे ख्यालात।
आज यूरोप इस्लाम विरोधी हरकतो को खूब जोर शोर से फैला रहा है, वह आधुनिकता, उदारवादी और लिबरल मंसिकता के नाम पर इस्लाम और मुसलमान विरोधी मुहिम चला रहा है।

कभी फ्रांस मे नबी की शान मे गुस्ताखी की जाती है, कार्टून बनाया जाता है।
कभी स्पेन, नॉर्वे, स्वेडेन, डेनमार्क जैसे बातील और फिरंगी मुल्को मे कुरान जलाकर अपनी आज़ादी का मुजाहेरा किया जाता है। ये खुद को लिबरल, वामपंथी, उदारवादी तबका और आज़ाद ख्याल वाले कहलाते है।

इनकी आज़ादी और इज़हार ए राय कुरान को आग के हवाले करके ही पूरी होती है, इसमे सरकार और मग्रिबि विचारधारा का हाथ है जो हमेशा मुसलमानो के ख़िलाफ प्रोपगैंडा चलाया जाता है।

ये नाम निहाद सेकुलर और लिबरल सोच वाले इस्लाम विरोधी अभियान चलाने को अपनी आज़ादी बताते है।
दुसरो के धर्म का मज़ाक बनाना आसान काम है जिससे ये अपनी आज़ादी समझते है।

किसी ट्रांसजेंडर पर यह कुछ नही बोलते है, वरना
Homophobic कहा जायेगा।
किसी औरत पर कुछ भी नही कहा जा सकता है वरना उस महिला विरोधी कहा जायेगा
Misogynist

आप ऐसा न सोचे के ऐसी सोच वाले लोग सिर्फ यूरोप मे ही है, ऐसे हरकतो को दबी चुपी आवाज़ मे यहाँ भी स्पोर्ट दिया जाता है, ये कुछ नामनिहाद देसी लिबरल भी उन्ही यूरोपियन को अपना रहनुमा और रहबर समझते है जो स्विडेन मे कुरान की बे अदबि करने को आज़ादी बता रहे है।
यह आधुनिक, उदारवादी कुरीतिया सिर्फ इस्लाम के खिलाफ ही क्यो आज़माया जाता है। कभी आप ने सोचा है।
हीन्द्, पाक, बंगलादेश जैसे मुल्को मे एक तबका हमेशा आज़ादी आज़ादी नारा देते रहता है।
ये आज़ादी गैंग यूरोप के नकश् ए कदम पर चलते है।
यह मॉडर्न, उदार, आज़ाद ख्याल और साइंस से शुरू करते है अपना मुहिम।

शुरू मे जो अंजान है उसे चांद और सितारों पर पहुँचने मे मिले कामयाबी के पीछे का राज कुछ ऐसे बतायेंगे।

दुनिया चाँद तारो पर चली गयी, मंगल ग्रह पर इंसान बस रहा है और आप वही के वही है।

यानि ये लोग चाँद पर पहुँचने के लिए बातिल , नँगापन, हमजिंसीयत को जिम्मेदार बताते है।
अगर आप नँगा हो जाए, बे गैरत बन जाए, अपने दिन और किताब को आग लगाए, मज़ाक बनाये, गालिया दे तो आप फिर आसमान पर जा सकते है, साइंस और टेक्नोलॉजी मे आगे बढ़ सकते है।

ये लोग इसकी शुरुआत औरतों की तालीम, रोजगार से शुरू करते है। औरतों की तालीम का तहरिक यूरोपियन पैटर्न पर चलाते है.... उसे तालीम कम.. दिन से, असल मकसद से, उसके मजहबी किताब से, आलिम ए दिन से दिल मे नफरत ज्यादा बैठाते है। क्योंके इनका असल सच छुपा रहता है इसलिए कोई जब दीन की बातें बताता है तो उसे रूढ़ीवादी, पुरानी सोच वाला कहकर मजाक बना दिया जाता है ताकि इसका हौसला यही पस्त कर दे। जबकि इस्लाम ने औरतों को पढ़ने से मना नही किया मगर तालीम जो मग्रिबियत के सिलेबस मे है वह कुफ्र और बेग़ैरति की तरफ ले जाता है।

जब यह अपनी ज़मीन शुरुआती दौर मे तैयार कर लेते है फिर औरतों की आज़ादी के नाम पर उसे आज़ाद महसूस कराने और वेल एडुकेटेड कहलाने के लिए यह शर्त रखा जाता है बरहना लिबास पहनो फिर तुम्हे दुनिया आज़ाद ख्याल कहेगी वरना मर्दो की गुलाम कहलओगी, यानी आप कितना भी पढ़ ले जबतक मगरिब् के तहजीब पर नही चलेंगे तब तक जाहिल गंवार है। ये लोग हर जगह इख़्तिएलाफ पैदा कर के एक पक्ष को अपने साथ रख कर दूसरे के खिलाफ खडा करते है ताकि दरार पैदा किया जा सके और यहाँ से शुरू होता है जेंडर वार।

ये तालीम के साथ साथ मर्दो के खिलाफ भी उसका ब्रेनवाश करते है और जब स्टेप बाय स्टेप ट्रेनिंग मुकम्मल हो जाता है फिर उसे दुनिया के सामने दूसरी लड़कियो के लिए आदर्श बनाकर पेश करते है।
इसमे मर्द और औरत दोनो शामिल है, लेकिन इस सोच को फैलाने के लिए समाज मे औरतों को अपना मूहरा बनाते है, यानी नारी उत्थान (women empowerment) से शुरू करते है।

स्वीडेन मे जो कुरान जलाया जा रहा है उधर भी इसी तरह शुरुआत हुआ, जैसे हिंद पाक मे शुरू किया गया है। यहाँ औरतों की आज़ादी के बाद अब हमजिंसीयत की तरफ कदम बढ़ाया जायेगा जो के इस्लाम मे हराम है। फिर उसी आज़ादी की शुरुआत होगी जो शार्ली हेब्दो, और डेनमार्क मे आज हो रहा है।

ऐसे मुनफ़ीकीन् देसी लिबरल की पहचान कैसे करे।

देसी लिबरल थ्योरी

यह हमेशा अपने मुल्क के बनिसबत यूरोप को बेहतर बतायेंगे, वहाँ का मिशाल देकर वैसे कानून यहाँ भी नाफ़िज़ करवाएंगे, जैसे ट्रांसजेंडर एक्ट व homosexuality, इज़हार ए राय की आज़ादी बगैर रोक टोक के (मगर इनके डेमोक्रेसी, यूरोपियन सिस्टम पर तंकिद नही कर सकते है बाकी आपको जितना इस्लाम के खिलाफ बोलना है बोले इस्लाम विरोधी नही कहलाएंगे, उदारवादी कहलाएंगे। हा आप अपने मजहब, दिन और तहजीब का प्रचार या इजतैमाइ तौर पर कुछ भी नही कर सकते वरना कट्टरपंथी, दकियानुसी कहे जायेंगे, आप महिला विरोधी, सामलैंगिक विरोधी कह जा सकते है)

ये अपने मुल्क और अमेरिका का मसला हो तो अमेरिका के साथ खड़े होंगे,
इसराइल व फिलिस्तीन का मसला हो तो इसराइल के साथ खड़े होंगे, वैसे आम दिनों मे ये इंसानी हुकूक और जम्हूरियत की आवाज़ खूब उठाएंगे अपने मुल्क की हुकूमत से मगर इसराइल के ज़ुल्म पर खामोश रहेंगे क्यों वह इसलिए के इसराइल के साथ अमेरिका खडा है।
इराक अमेरिका का मसला होगा तो फ़ौरन अमरीकी खेमे मे जायेंगे और उसके दूसरे पक्ष को आतंकवाद और दहशत गढ़ बोलेंगे।
अफगान अमेरिका का मामला हो तो ये पूरे अफगानी को कट्टरपंथी कहेंगे दूसरे तरफ हमलावर अमेरिका को अमन पसंद।
युक्रेन रूस का मामला होगा तो युक्रेन का साथ देंगे, दलील यह के रूस ने युक्रेन पर हमला किया, लेकिन सच यह नही है सच यह है के युक्रेन के साथ अमेरिका इंग्लैंड खडा है। अगर हमला करने वाला रूस दहशत गर्द है तो अमेरिका' इराक, अफगान, वियतनाम जैसे देश पर हमला करके अमन पसंद कैसे बन गया?
इनको इसराइल, इंग्लैंड, डेनमार्क सब हक पर नजर आता है, मुसलमानो के इख़्तेलाफ को फिरक़ परस्ती कहते है,  इत्तेहाद हो जाए तो कहते है "हम आप के इत्तेफाक को नही मानते"।

एक वाइट अमेरिकन पुलिस के बर्बरता से जॉर्ज फ्लॉयड मारा गया
अमरीका मे #BlackLivesMatter प्रोटेस्ट हुआ अमेरिका मे पुलिस की बर्बरता पर खूब चर्चा हुई सबने मरने वाले से अपनी संवेदना  दिखाई। 
किसी ने बाइबल या अमेरिका का संविधान या वहां के राष्ट्रपति की तस्वीर नहीं जलाई।

ईरान मे मोरालिटी पुलिस के हिरासत मे महसा अमीनी की मौत हुई हंगामा हुआ खूब प्रोटेस्ट हुआ पुलिस के साथ साथ ईरान की सरकार इस्लाम क़ुरान सब टारगेट हुआ ( ईरान मे इस्लामी हुकूमत नहीं है )
पूरी दुनया ने महसा अमीनी के साथ अपनी संवेदना प्रकट की। (आगजनी हुआ, नंगे प्रोटेस्ट किया, इसके समर्थन पर भारतीय मीडिया मे औरतें बाल काटने लगी,  actores हमदर्दी दिखाने लगी। )

फ्रांस मे वहां की पुलिस ने 17 साल के निहाल मरजूक को पॉइंट ब्लेंक से गोली मार दी
ममला पुलिस बर्बरता के साथ साथ उनके एक गन्दी जेहनियत का था
प्रोटेस्ट हुआ हंगामा हुआ
पूरी दुनिया अमेरिका और ईरान के मामले जैसे निहाल को अपनी संवेदना देती फ्रांस सरकार और उसकी पुलिस के हरकत पर सवाल करती मगर ऐसा हुआ नहीं उल्टा मुसलमानो के वुजूद पर माईगरेंट मुसलिम पर सवाल होने लगा और भारत मे तो इसका अलग ही सीन है। कुछ आतंकवादी मीडिया ने मुसलमानो के खिलाफ नफ़रत के लिए इसको कैचा कर लिया।

ऐसा क्यों है के पूरी दुनिया मुसलमानो के मामले मे दोगला रवैया रखती हैं?
क्यूँ मुसलमानो के मामले मे लोग सारा सिद्धांत सारी इंसानियत भूल जाते है ?

सोचिएगा जरुर.....

मगर सारी तथाकथित आज़दिया, सेकुलरिज्म और अभिवायक्ति की स्वतंत्रा का बोझ कुरान जलाकर ही हलका किया जाता है। यह मगरीबि प्रोपगैंडा है इस्लाम के खिलाफ।

मगर मुसलमान नवजवानो का क्या हाल है?

इसलामी एडुकेशं को बेकार करार दिया और अगर पढाया भी जाता तो एक मामूली और बिना जरूरत का किताब समझा जाने लगा।

हिंदुस्तान, पाकिस्तान के तरफ के मुसलमानो ने इस्लाम को शादी, बराती, मैय्यत और मुहर्रम तक ही जरूरी समझा। बाकी दिनों मे फिरंगियों के दस्तारखवाँ पर छोड़े हुए हड्डीयो को गले का हार बना लिया।

दिनी तालीम को सिर्फ मस्जिद के इमाम और उलेमा तक ही जरूरी समझा जाने लगा।

ऐसे मौलवियो ने भी इस्लाम को इस तरह पेश किया के सिर्फ इस्लाम मे नमाज, रोजा, कुरान खवानी जैसे बिद्दत्, ज़कात व खैरात और हज्ज्  ही फ़र्ज़ है। बाकी सारी उमर गोश्त की बोटिया नोचते रहो और एक सर पर टोपी, कुर्ता व पजामा पहन लो हो गए मुसलमान।

जिहाद एक सआदत थी मगर इसको जुर्म करार दिया गया।
जिहाद एक इबादत थी मगर इसको फसाद करार दिया गया।

जिहाद एक जरूरत थी मगर इसको बेकार करार दिया गया।
जिहाद नुसरत का दरवाजा था मगर हम ने खुद बंद कर दिया।

जिहाद रहमत की बारिश थी मगर छतरिया लगा ली गयी
जिहाद शहादत की राह थी जो बंद कर दी गयी।

उम्मत ए मुस्लेमा को बहादुर और बेदार लोगो की जरूरत है।

ऐसा कहा जाता है के अफसर ज़र्मन  (ज़र्मनी का रहने वाला) हो और लड़ने वाले तुर्क हो तो सारी दुनिया फतह कर लेंगे। वज़ह यह बताई जाती है के तुर्क बहादुर है मगर ग़ाफ़िल है और ज़र्मनी इतने बहादुर नही मगर बेदार है।

यह हिकायत बयां करने का मकसद यह था के हर मुसलमान को चाहिए के वह बहादुर भी बने और बेदारी का मुजाहेरा भी करे। आज हम अपनी तादाद को देख कर फखर महसूस करते है लेकिन हकीकत यह है के हम बेदार नही है बल्कि अपनी गफलत का शिकार है, हम अपने आप को, अपनी तारीख को, अपने अस्लाफ को भूल चुके है। इसी गफलत की नींद ने गैरो को अपनी चाल चलने के लिए आज़ादी फराहम कर दी।

हमारी गफलत और बुझ्दिली का ही नतीजा है के आज मुसलमान गुलामी का शिकार है, जो लोग खुद को आज़ाद समझते है वह बाकी मुसलमानो के खातिर की जद्दो जेहद् नही करना चाहते, हर कोई बहाने बनाये बैठा हमारा यह मजबूरी.... वह मजबूरी

शहर में आग लगा के मुझे तसल्ली है , ज़रा सा शोर मचा के मुझे तसल्ली है।
डरा रहा था उजाले में आइना मुझ को, चिराग घर के बुझा के मुझे तसल्ली है।

एक ही जिंदगी है, कुछ कर दिखाओ, रोज क़यामत सुरखुरु होंगे वरना यह दुनिया तो हाथ से निकल चुकी, आखि़रत मे भी अफसोस का शिकार होंगे।

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