Sone Aur Chandi Par kitni Zakat Nikalni Chahiye?
ज़कात पार्ट 3
*सोने और चाँदी के जेवर भी नक्द ही की तरह हैं। अगर यह निसाब को जायें और उन पर एक वर्ष बीत जाये तो उनमें भी ज़कात वाजिब होगी। चाहे अपने प्रयोग और लोगों को उधार देने के लिये ही क्यों न हों। क्योंकि नबी करीम सल्लल्लहु अलैहि व सल्लम की यह हदीस साधारण है :*
*आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक महिला के हाथ में सोने के दो कंगन देखे तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे पूछा : क्या तुम इसकी ज़कात अदा करती हो ? उसने कहा नही। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :क्या तुम्हें पसन्द है कि अल्लाह तआला क्यामत के दिन उसके बदले आग के दो कंगन पहनाये ?यह सुनकर उसने दोनों कंगन निकाल कर ज़मीन पर डाल दिये और कहा :हे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दोनो अल्लाह और उसके रसूल के लिये हैं।
(अबू दावूद, नसई-हसन सनद के साथ)
*और उम्मे सल्मा रजि० से भी साबित है कि वह सोने के पाजेब पहना करती थीं। उन्होनें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा कि क्या यह भी "कन्ज" (खज़ाना) है? इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :जिस सोने की (निसाब पूरा होने के बाद) ज़कात अदा कर दी जाये वह कन्ज़ नहीं है। इस विषय में और भी बहुत सी दूसरी हदीसे हैं।*
*जहाँ तक तिजारत के सामान की बात है तो साल के अन्त पर उस की मालियत का अन्दाजा करके उसमें से ज़कात अदा की जायेगी। समुरा दिन जुन्दुब रजि० रिवायत करते हैं : नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें उन चीजों से भी ज़कात निकालने का हुक्म देते जिन्हें हम बेचने के लिये रखते।*
*ओर यही हुक्म ज़मीनों, गाडियों, पानी निकालने वाली मशीनों और तमाम सामानों का है, जिन्हें बेचने के लिये रखा जाता है। जो मकान बेचने के लिये नहीं, बल्कि किराये पर दिये गये हों, उनकी ज़कात किराया की आमदनी से अदा की जायेगी अगर उस रकम पर एक वर्ष की अवधि बीत जाये।* *हम खुद जिस में रहते है उस मकान पर ज़कात वाजिब नहीं होगी, क्योंकि वह बेचने के लिये नहीं है। यही दशा जाती (निजी) और किराया पर चलने वाली गाड़ियों का है। अगर वह बेचने के लिये नहीं है तो उसमें ज़कात भी नहीं है। अगर टेक्सी ( किराया की गाड़ी) या किसी भी गाड़ी के मालिक के पास इतना पैसा हो जाये जो निसाब की मात्रा तक पहुँचता हो तो साल के पूरा होने पर उस में जकात वाजिब होगी, चाहे उस पैसा को आम ज़रूरत में खर्च करने के लिये रखा हो, या शादी करने के लिये बचा रखा हो, या जमीन जायदाद बनाने या कर्ज अदा करने के लिये जमा किया हो। इसलिये कि इन चीजों में ज़कात होने की जो दलीलें हैं वह आम हैं, उनकी रोशनी में उलमा की सहीह बात यही है कि कर्ज की अदायगी से जकात की अदायगी खत्म नहीं होगी।*
*अनाथों और पागलों के माल में जकात का हुक्म*
*जमहूर उलमा-ए-इस्लाम के नज़दीक यतीमों और पागलों के माल में भी ज़कात वाजिब होगी अगर वह निसाब की मात्रा तक पहुँच जाये और उस पर एक वर्ष बीत जाये। इस की अदायगी इनके वलियों पर वाजिब है, वही उनकी तरफ से साल के आखिर में जुकात अदा करेंगे। क्योंकि ज़कात के वाजिब होने वाली हदीसे बिना किसी को अलग किये हर माल वाले को शामिल हैं उदाहरण के तौर पर वह हदीस जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ रजि० को यमन भेजते समय फरमाया था :*
*अल्लाह ने उनके माल में ज़कात वाजिब की है जो उनके माल दारों से ली जायेगी और उनके मुहताजों पर खर्च की जायेगी।*
*इस पोस्ट को पढ़ने के लिए अल्लाह तआला आपको बेहतरीन अजर दे ओर आपके इल्म में बरकत दे सवाबे जारिया के लिए इसको शेयर करे ताकि हमारे भाइयो के इल्म में भी इज़ाफ़ा हो अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
Next part coming soon इन शा अल्लाह
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