Christmas Mnana Musalmano Ke Liye Kaisa Hai?
क्रिसमस और मुसलमान:
✍ किसी मुसलमान के लिए क्रिसमस का त्योहार मनाना या उसके समारोह में भाग लेना या उसकी मुबारकबाद देना जाएज़ नहीं है।
✍ क्योंकि सूरह *फ़ुरक़ान* की आयत न० *72* में नेक बन्दों की ख़ूबी बताई गई है कि *“वे झूठ की गवाही नहीं देते, या असत्य कर्म में भाग नहीं लेते और जब किसी व्यर्थ महफ़िल से उनका गुज़र होता है तो सम्मान और गरिमा के साथ गुज़र जाते हैं।”*
✍ और चूंकि क्रिसमस का त्योहार वास्तव में एक झूठ, असत्य और व्यर्थ कर्म है, इसलिए मुसलमानों का इस त्योहार को मनाना या इसके समारोह में भाग लेना या इसकी मुबारकबाद देना एक तरह से झूठी बात का इक़रार करना और उसकी गवाही देना है, असत्य परंपरा को उचित ठहराना और उसमें शरीक होना है, व्यर्थ और फ़िज़ूल काम में शामिल होकर ईमानी शान और इस्लामिक गरिमा का अपमान करना है।
✍ अत: कोई भी बाग़ैरत मुसलमान कहीं भी और किसी भी तरह क्रिसमस का त्योहार नहीं मना सकता और न उसके किसी समारोह में भाग ले सकता है और न ही उसकी मुबारकबाद दे सकता है।
आप का भाई: इफ़्तेख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर जुबैल सऊदी अरब
✍ किसी मुसलमान के लिए क्रिसमस का त्योहार मनाना या उसके समारोह में भाग लेना या उसकी मुबारकबाद देना जाएज़ नहीं है।
✍ क्योंकि सूरह *फ़ुरक़ान* की आयत न० *72* में नेक बन्दों की ख़ूबी बताई गई है कि *“वे झूठ की गवाही नहीं देते, या असत्य कर्म में भाग नहीं लेते और जब किसी व्यर्थ महफ़िल से उनका गुज़र होता है तो सम्मान और गरिमा के साथ गुज़र जाते हैं।”*
✍ और चूंकि क्रिसमस का त्योहार वास्तव में एक झूठ, असत्य और व्यर्थ कर्म है, इसलिए मुसलमानों का इस त्योहार को मनाना या इसके समारोह में भाग लेना या इसकी मुबारकबाद देना एक तरह से झूठी बात का इक़रार करना और उसकी गवाही देना है, असत्य परंपरा को उचित ठहराना और उसमें शरीक होना है, व्यर्थ और फ़िज़ूल काम में शामिल होकर ईमानी शान और इस्लामिक गरिमा का अपमान करना है।
✍ अत: कोई भी बाग़ैरत मुसलमान कहीं भी और किसी भी तरह क्रिसमस का त्योहार नहीं मना सकता और न उसके किसी समारोह में भाग ले सकता है और न ही उसकी मुबारकबाद दे सकता है।
आप का भाई: इफ़्तेख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर जुबैल सऊदी अरब
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