Islam Me Auraton Ko Parde ka Kyu Hukm Hai? (Part 09)
सवाल: इस्लाम औरतों को पर्दे में रख कर उनका अपमान क्यों करता है?
(5). महावृष्टि चलि फूट कि आरी, जिमि सुतंत्र भए बिगरहिं नारी
अनुवाद: भारी बरसात होने पर क्यारियां इस तरह फूल चलीं जिस तरह आज़ाद हो जाने के बाद औरतें बिगड़ जाती हैं। (किष्किंधाः 15/7)
(6). ढोल गंवार सूद्र पसु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी, अनुवादः ढोल, गंवार, शूद्र (दलित), जानवर और औरत, ये सब सज़ा
(सुन्दरकाण्ड: 59/6)
दिये जाने/सताए जाने के हक़दार हैं। 'मनुस्मृति' हिन्दू धर्म का प्रमुख धर्मग्रन्थ है। इसमें भी औरतों के लिये निम्नलिखित शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। मुलाहिजा फ़र्माएं
(7). यह औरतों की फ़ितरत है कि वे मदों को अपने सिंगार से मोहित करके उनमें दोष (खामी) पैदा कर देती है। (मनुस्मृति: 2/217)
हिन्दू धर्म में पर्दे की ताक़ीदः
इस्लाम पर कट्टरपंथी होने और औरत को गुलाम बनाकर रखने का इल्ज़ाम लगाने वाले लोगों से गुज़ारिश है कि नीचे लिखे हवालों पर भी गौर करें। इस्लाम ने तो औरत की इज़्ज़त और पाकदामनी बाक़ी रखने के लिये उसे पर्दे में रहने का हुक्म दिया।
पर्दा औरत की तरक्की में किसी तरह की रूकावट नहीं है इसकी व्याख्या इंशाअल्लाह आगे की जाएगी। इस्लोम ने औरत के पर्दे की हद से जिन लोगों को बाहर रखा है उनमें शौहर, बाप, भाई, बेटा, भतीजा, भांजा आदि हैं जिनका ज़िक्र कुरआन के हवाले से आप पहले पढ़ चुके हैं लेकिन प्रमुख हिन्दू धर्मग्रन्थ 'मनुस्मृति' ने किसी आदमी को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ भी एकान्त में रहने पर पाबन्दी लगाई है।
मर्द को अपनी जवान उम्र माँ, बहन और बेटी के साथ भी ज़्यादा देर अकेले में नहीं रहना चाहिये
(मनुस्मृति: 2/219)
औरत को पिता, पति और बेटे से आज़ाद होकर कभी नहीं रहना चाहिये। इनसे अलग होकर रहने वाली आज़ाद औरत अपने दोनों खानदानों (बाप व पति के ख़ानदानों) को कलंकित करती है।
(मनुस्मृति :5/152)
TO BE CONTINUE Insha'Allah
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