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Hme Kiski Ibadat Karni Chahiye?

Hmara Mabood Kaun Hai?
कह दो मुझे यही हुक्म हुआ है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करू और उसके साथ किसी को शरीक न बनाऊ। मैं उसकी तरफ बुलाता हूं और उसी की तरफ मुझे लोटना है।'' (रअद 36)
इस आयते मुबारका से साफा वाजेह है कि इबादत सिर्फ अल्लाह ही की करनी है और उसकी इबादत में किसी को शरीक (हिस्सेदार) नहीं बनाना।
मअबूद के मानी हैं ‘‘जिसकी इबादत की जाए'' पस अल्लाह तआला ही अकेला और हकीकी (सच्चा) मअबूद है। आबिद के मानी हैं इबादत करने वाला। तमाम अम्बिया अलैहिस्सलाम और उनके फरमाबरदार अल्लाह के “आबिद (इबादत करने वाले हैं।
लिहाजा हमें ऐसे नाम रखना चाहिए जो अल्लाह की बन्दगी को जाहिर करते हों। किसी मखलूक की बन्दगी को जाहिर करने वाले नाम रखना शिर्क फील अस्मा (नामों में शिक) कहलाता है। लिहाजा अपने आपको अल्लाह के सिवा किसी और का बन्दा कहना अल्लाह के साथ शिर्क है। पास आबिद हुसैन, अब्दुलरसूल, अब्दुल मुस्तफा अब्दुल हुसैन वगैरा नाम रखना शिर्क है क्योंकि इन नामों से अल्लाह के बजाऐ मखलूक की बन्दगी जाहिर होती है।
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इल्म हासिल करना हर एक मुसलमान मर्द-और-औरत पर फर्ज़ हैं.

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