Rizk Dene wala Razik Kaun Hai?
“ऐ लोगो! अल्लाह के अहसान जो तुम पर हैं उनको याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई ऐसा खालिक है जो तुम्हें आसमान और जमीन से रोज़ी पहुँचाऐ, उसके सिवा कोई मजबूद नहीं फिर तुम कहाँ बहके चले जा रहे हो ।” (फातिर 3)
अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने कुरआन मजीद में जा बजा वाजेह फरमा, दिया है कि रिज्क अल्लाह के कब्जे में है वह अपनी तमाम मख्नूक को रिज्क देता है। किसी को कम किसी को ज्यादा। यह घटना बढ़ाना भी उसके इख्तियार में है और वही बेहतर जानता है कि किसको कितना रिज्क देना है। लिहाजा तंगदस्ती हो या खुशहाली, हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए और उसीसे रिज्क मांगना चाहिऐ।
सोचे! अगर अल्लाह किसी का रिज्क तंग कर दे तो और कौन सी हस्ती अल्लाह से बढ़ कर जोरावर है जो अल्लाह के कम किए हुऐ रिज्क को बढ़ा सके। अगर लोग यह बात समझ लें तो रिज्क में इजाफे के लिए सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के दरबार का ही रूख करें। उसीके आगे हाथ फैलाएँ और उसी से मांगें।
बाकी तमाम सरकारों और दरबारों से मुँह मोड़ लें कि वह ज़री बराबर भी इख्तियार नहीं रखते। लोग जिन दरगाहों, मज़ारों और दरबारों पर जा कर सज्दा करते, मनते मांगते और रिज्क में इजाफे की लिए दुहाइयां देते हैं, वह तो खूद अल्लाह के मुहताज हैं किसी को क्या देंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ‘‘रिज्क तुम्हें ऐसे ढुढे लेता है जैसे मौत।" यानी जिस तरह मौत अपने मुकर्ररा वक्त पर बन्दे को आ लेती है ख्वाह कहीं भी हो। इसी तरह अल्लाह तआला ने जिस बन्दे के लिऐ जो रिज्क लिखा है।
वह उसे पहुँच जाता है ख्वाह वह कहीं भी हो। इसलिऐ हमें नाम रखते वक्त यह ख्याल रखना चाहिए कि उन नारों से अल्लाह तआला का राजिक होना जाहिर हो। लिहाजा राजि हुसैन, इमदाद अली, मुहम्मद रज्जाक, वगैरा नाम रखना भी अल्लाह के साथ शिर्क है।
इस तरह यह समझना कि अगर ग्यरहवीं न दी तो कारोबार तबाह हो जाऐगा, “मज़ार'' पर दूध का नज़राना न दिया तो भैंसें सूख जाऐंगी, इस किस्म की बातों का मतलब उन मजारों को अपना राजिक (रिज्क देने वाला) समझना है जो अल्लाह के साथ शिर्क और जुल्मे अजीम है।
अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने कुरआन मजीद में जा बजा वाजेह फरमा, दिया है कि रिज्क अल्लाह के कब्जे में है वह अपनी तमाम मख्नूक को रिज्क देता है। किसी को कम किसी को ज्यादा। यह घटना बढ़ाना भी उसके इख्तियार में है और वही बेहतर जानता है कि किसको कितना रिज्क देना है। लिहाजा तंगदस्ती हो या खुशहाली, हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए और उसीसे रिज्क मांगना चाहिऐ।
सोचे! अगर अल्लाह किसी का रिज्क तंग कर दे तो और कौन सी हस्ती अल्लाह से बढ़ कर जोरावर है जो अल्लाह के कम किए हुऐ रिज्क को बढ़ा सके। अगर लोग यह बात समझ लें तो रिज्क में इजाफे के लिए सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के दरबार का ही रूख करें। उसीके आगे हाथ फैलाएँ और उसी से मांगें।
बाकी तमाम सरकारों और दरबारों से मुँह मोड़ लें कि वह ज़री बराबर भी इख्तियार नहीं रखते। लोग जिन दरगाहों, मज़ारों और दरबारों पर जा कर सज्दा करते, मनते मांगते और रिज्क में इजाफे की लिए दुहाइयां देते हैं, वह तो खूद अल्लाह के मुहताज हैं किसी को क्या देंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ‘‘रिज्क तुम्हें ऐसे ढुढे लेता है जैसे मौत।" यानी जिस तरह मौत अपने मुकर्ररा वक्त पर बन्दे को आ लेती है ख्वाह कहीं भी हो। इसी तरह अल्लाह तआला ने जिस बन्दे के लिऐ जो रिज्क लिखा है।
वह उसे पहुँच जाता है ख्वाह वह कहीं भी हो। इसलिऐ हमें नाम रखते वक्त यह ख्याल रखना चाहिए कि उन नारों से अल्लाह तआला का राजिक होना जाहिर हो। लिहाजा राजि हुसैन, इमदाद अली, मुहम्मद रज्जाक, वगैरा नाम रखना भी अल्लाह के साथ शिर्क है।
इस तरह यह समझना कि अगर ग्यरहवीं न दी तो कारोबार तबाह हो जाऐगा, “मज़ार'' पर दूध का नज़राना न दिया तो भैंसें सूख जाऐंगी, इस किस्म की बातों का मतलब उन मजारों को अपना राजिक (रिज्क देने वाला) समझना है जो अल्लाह के साथ शिर्क और जुल्मे अजीम है।
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