Kya Islam Aman (Peace) Wala Deen Hai?
सवाल : इस्लाम को शान्ति का धर्म कैसे कहा जा सकता है जबकि यह तलवार से फैला है? (part 05)
तुम सबसे बेहतरीन उम्मत हो जिसे इन्सानों (की रहनुमाई) के लिये बरपा किया गया है। तुम भलाई का हुक्म करते हो, बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो।' (आले इमरान : 110)
'उससे बेहतर बात और किसकी हो सकती है जो लोगों को अल्लाह के दीन की तरफ़ बुलाए और अच्छे काम करे और कहे कि बेशक मैं मुस्लिम हूं।'
(हा-मीम अस्सज्दाः33)
मुस्लिम क़ौम की ज़िम्मेदारी है कि वे अल्लाह पर ईमान और मुकम्मल। भरोसा रखते हुए दुनिया के लोगों को नेक कामों की तरफ़ बुलाए और बुरे कामों से रोकें। यानी हर मुस्लिम की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सबसे पहले खुद इस्लाम की तालीमात पर अमल करे और खुद को सही व सच्चा मुस्लिम षावित करे।
उसके बाद उसकी ज़िम्मेदारी यह है कि वह दूसरे लोगों तक अल्लाह के दीन का पैग़ाम अच्छे अन्दाज़ में पहुंचा दे। जंग की इजाज़त किन हालात (परिस्थितियों) में? यह भी सच है कि कुछ ख़ास सूरतों में मुस्लिमों को तलवार उठाने और जंग करने की इजाजत दी गई हैं।
बात को वाजेह करने और सही तरीके से समझ लेने के। लिये उनकी जानकारी होना भी जरूरी है। कुरआन मजीद में है,
‘और अल्लाह की राह में उन ₹ लोगों से लड़ो जो तुम से लड़ते हैं, मगर ज़्यादती न करो। अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसन्द नहीं करता' (अल बक़रः 190)
इस आयत में उन लोगों से युद्ध करने की इजाजत दी गई है जो मुस्लिमों से जंग करते हैं। यह उचित भी है क्योंकि जुल्म सहन करना भी एक तरह का जुल्म ही है। लेकिन यहाँ यह बात ग़ौर करने की है कि इस्लाम ने दिफ़ाई जंग (प्रतिरक्षात्मक युद्ध) में भी ज़्यादती न करने का हुक्म दिया है।
उनसे न लड़ो जो तुमसे न लड़े। हाँ! अगर वे तुमसे लड़े तो उन्हें क़त्ल करो कि ऐसे काफ़िरों की यही सज़ा है। फिर अगर वे बाज़ आ जाएं तो अल्लाह माफ़ कर देने वाला और रहम फर्माने वाला है।
। (अल बर: 191-192)
इस आयत में मुस्लिमों को उन लोगों से लड़ने की इजाजत दी गई है जो मुस्लिमों पर हमला करते हैं और जुल्म करते हैं। अगर हमलावर लोग अपनी हरकत से रूक जाएं तो मुस्लिमों को भी जंग रोक देने का हुक्म है।
TO BE CONTINUE Insha'Allah
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