Kuchh Jaruri Batein Zulhijja Mahine Ke Mutalliq.
ایک دو دن میں ماہ ذو الحجہ شروع ہونے والا ہے، اس موقع و مناسبت سے پیارے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی ایک خاص ہدایت موجود ہے، جس پر قربانی کا ارادہ رکھنے والے ہر خوش نصیب مسلمان کو لازمی عمل کرنا چاہئے، اور وہ یہ ہے کہ:
✍ قربانی کا ارادہ رکھنے والا ماہ ذوالحجہ کا چاند نکلنے کے بعد سے قربانی کرنے تک اپنے جسم کے بال، ناخن اور چمڑے نہ کاٹے۔
نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کا ارشاد ہے:
"إذا رأيتم هلال ذي الحجة وأراد أحدكم أن يضحي فليمسك عن شعره وأظفاره"* (صحيح مسلم: 1977)
یعنی *"جب تم کو ذو الحجہ کا چاند نظر آ جائے اور تم میں سے کوئی قربانی کا ارادہ رکھتا ہو تو وہ اپنے ناخن اور بال کاٹنے سے رک جائے۔"*
ایک دوسری روایت کے الفاظ یوں ہے:
*"إذا دخل العشر وأراد أحدكم أن يضحي فلا يمس من شعره ولا بشره شيئا."*(سنن ابن ماجه: 3149)
یعنی *"جب ذو الحجہ کا پہلا عشرہ داخل ہو جائے اور تم میں سے کوئی قربانی کرنا چاہتا ہو تو وہ اپنے بال اور چمڑے میں سے کچھ بھی نہ کاٹے۔"*
*نوٹ:
✍ اگر کوئی شخص ذو الحجہ کا پہلا عشرہ داخل ہونے کے بعد قربانی کا ارادہ کرتا ہے تو وہ اسی وقت ارادہ سے اپنا بال، ناخن اور چمڑہ کاٹنے سے رک جائے، اگر وہ ان دنوں میں قربانی کا ارادہ کرنے سے پہلے کاٹ چکا ہے تو اس میں گناہ نہیں ہے اور نہ اس پر کوئی فدیہ یا کفارہ ہے، اور اس کی قربانی درست ہوگی۔
✍ بال، ناخن اور چمڑے کے نہ کاٹنے کا حکم اس شخص کے لئے خاص ہے جو قربانی کرےگا، یہ حکم اس شخص کے لئے نہیں ہے جس کی طرف سے قربانی ہوگی، کیونکہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے حدیث میں صرف یہ فرمایا کہ "۔۔۔اور تم میں سے کوئی ارادہ کرے کہ وہ قربانی کرےگا۔۔۔" یہ نہیں فرمایا کہ "یا تم میں سے جس کی طرف سے قربانی کی جائے گی۔" اور اس لئے بھی کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم اپنے گھر والوں کی طرف سے قربانی کرتے تھے اس کے باوجود یہ منقول نہیں ہے کہ آپ نے ان کو اس کا حکم دیا ہو۔
✍ لہذا قربانی کرنے والے کے اہل خانہ جو اگرچہ اس کی قربانی میں شامل ہوں اس حکم کے پابند نہیں ہیں یعنی ان کے لئے ضروری نہیں ہے کہ وہ اپنے بال، ناخن اور چمڑے کاٹنے سے رک جائیں۔
✍ قربانی کا ارادہ رکھنے والا ہر حال میں بال، ناخن اور چمڑہ نہ کاٹنے کے حکم کا پابند ہے چاہے وہ خود اپنی قربانی کرے یا اس کے لئے اپنی طرف سے کسی کو وکیل بنائے۔
✍ وکیل اس حکم کا پابند نہیں ہے کیونکہ یہ حکم اس کے لئے ہے جو قربانی کر رہا ہے نہ کہ اس کے لئے جو اس کی طرف سے قربانی کا جانور ذبح کر رہا ہے۔
✍ یہ بات درست نہیں ہے کہ "جس شخص کے پاس قربانی کی استطاعت نہ ہو تو وہ قربانی کے دن اپنے بال اور ناخن وغیرہ کاٹ لے تاکہ اسے قربانی کا ثواب مل جائے۔" کیونکہ اس بارے میں جو روایت پیش کی جاتی ہے وہ ضعیف ہے اور صحیح سند سے ثابت نہیں ہے۔ (دیکھئے: ضعیف ابو داود: 482) اس لئے وہ حجت نہیں اور اس سے مسئلہ ثابت نہیں کیا جا سکتا۔
✍ اگر قربانی کا ارادہ رکھنے والا شخص کسی مجبوری کے تحت یا لا علمی میں یا بھول کر یا غلطی سے یا کسی کے جبر واکراہ کی وجہ سے اپنا بال یا ناخن یا چمڑہ کاٹ لے یا بغیر اس کے قصد وارادہ کے خود بخود بال ٹوٹ کر گر جائے تو اس میں گناہ نہیں ہے اور نہ ہی اس پر کوئی فدیہ یا کفارہ ہے، اور اس کی قربانی بھی درست ہوگی۔
اللہ تعالی کا فرمان ہے:
*"وليس عليكم جناح فيما أخطأتم به ولكن ما تعمدت قلوبكم."*(سورة الأحزاب:5)
*"اور تم سے بھول چوک میں یا غلطی سے کچھ ہو جائے تو اس میں تم پر کوئی گناہ نہیں ہے، البتہ گناہ اس میں ہے جو تم جان بوجھ کر کرو۔"*
اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے:
*"إن الله تجاوز عن أمتي الخطأ والنسيان وما استكرهوا عليه."*(سنن ابن ماجه: 2043)
"بے شک اللہ نے میری امت سے غلطی، بھول چوک اور جبر واکراہ کی وجہ سے ہونے والے گناہوں کو معاف فرما دیا ہے۔"
✍ اور اگر کوئی اس کا علم رکھتے ہوئے اور اپنے اختیار سے جان بوجھ کر کاٹ لے تو گرچہ اس پر کوئی فدیہ یا کفارہ نہیں ہے اور اس کی قربانی بھی درست ہوگی لیکن وہ گناہ گار ہوگا، لہذا اس کو چاہئے کہ نیکی اور توبہ واستغفار کرے تاکہ یہ گناہ مٹ جائے۔
اللہ تعالی کا فرمان ہے:
"إن الحسنات يذهبن السيئات."(سورة هود:114)
یعنی"بے شک نیکیاں برائیوں کو دور کر دیتی ہیں۔"
اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے:
"وأتبع السيئة الحسنة تمحها."*(سنن الترمذي:1987)
یعنی " گناہ ہو جائے تو نیکی کر لو، نیکی گناہ کو مٹا دےگی۔"
آپ کا بھائی: افتخار عالم مدنی
اسلامک گائڈینس سنٹر جبیل سعودی عرب
एक दो दिन में ज़ुलहिज्जा का महीना शुरू होने वाला है, इस अवसर पर प्यारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की एक ख़ास हिदायत मौजूद है, जिस पर क़ुर्बानी करने वाले हर ख़ुश नसीब मुसलमान को लाज़िमी अमल करना चाहिए, और वह यह है कि:
क़ुर्बानी का इरादा रखने वाला ज़ुलहिज्जा का चादं निकलने के बाद से क़ुर्बानी करने तक अपने जिस्म के बाल, नाख़ुन और चमड़े न काटे |
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशाद है:
"إذا رأيتم هلال ذي الحجة وأراد أحدكم أن يضحي فليمسك عن شعره وأظفاره"*(صحيح مسلم: 1977)
यानी “जब तुम को ज़ुलहिज्जा चांद नज़र आ जाए और तुम में से कोई क़ुर्बानी का इरादा रखता हो तो वह अपने नाख़ुन और बाल काटने से रुक जाए”*|
एक दूसरी रिवायत के अलफ़ाज़ यूं हैं:
"إذا دخل العشر وأراد أحدكم أن يضحي فلا يمس من شعره ولا بشره شيئا."*(سنن ابن ماجه: 3149)
यानी “जब ज़ुलहिज्जा का पहला अशरा (दहाई) दाख़िल हो जाए और तुम में से कोई क़ुर्बानी करना चाहता हो तो वह अपने बाल और चमड़े में से कुछ भी न काटे”|
*नोट:
✍अगर कोई आदमी ज़ुलहिज्जा का पहला अशरा (दहाई) दाख़िल होने के बाद क़ुर्बानी का इरादा करता है तो वह इसी समय से अपना बाल, नाख़ुन और चमड़ा काटने से रुक जाए, और अगर वह इन दोनों में क़ुर्बानी का इरादा करने से पहले काट चुका है तो इसमें गुनाह नहीं है और न उसपर कोई फ़िदया या कफ्फ़ारा है और उसकी क़ुर्बानी दुरुस्त होगी |
✍यह हुक्म उस आदमी के लिए ख़ास है जो क़ुर्बानी करेगा, उसके लिए नहीं है जिसकी तरफ़ से क़ुर्बानी होगी, क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हदीस में यह फ़रमाया है कि “...और तुम में से कोई इरादा करे कि वह क़ुर्बानी करेगा...” यह नहीं फ़रमाया कि “या तुम में से जिसकी तरफ़ से क़ुर्बानी की जाएगी” | और इसलिए भी कि "नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने घर वालों की तरफ़ से क़ुर्बानी करते थे उसके बावजूद यह नक़ल नहीं किया गया है कि आप ने उनको यह हुक्म दिया हो कि वे अपने बाल, नाख़ुन और चमड़े काटने से रुक जाएं"|
✍इसलिए क़ुर्बानी करने वाले के घर वाले जो अगरचे उसकी क़ुर्बानी में शामिल हों इस हुक्म के पाबंद नहीं हैं यानी उनके लिए ज़रुरी नहीं है कि वे अपने बाल, नाख़ुन और चमड़े काटने से रुक जाएं |
✍क़ुर्बानी का इरादा रखने वाला हर हाल में अपने बाल, नाख़ुन और चमड़े न काटने के हुक्म का पाबंद है चाहे वह ख़ुद अपनी क़ुर्बानी करे या उसके लिए अपनी तरफ़ से किसी को वकील बनाए |
✍वकील इस हुक्म का पाबंद नहीं है क्योंकि यह हुक्म उसके लिए है जो क़ुर्बानी कर रहा है न कि उसके लिए जो उसकी तरफ़ से का क़ुर्बानी का जानवर ज़बह कर रहा है |
✍यह बात दुरुस्त नहीं है कि “जिस आदमी के पास क़ुर्बानी की ताक़त न हो तो वह क़ुर्बानी के दिन अपने बाल और नाख़ुन वग़ैरह काट ले ताकि उसे क़ुर्बानी का सवाब मिल जाए” क्योंकि इस बारे में जो रिवायत पेश की जाती है वह ज़ईफ़ है और सहीह सनद से साबित नहीं है | (देखिए: ज़ईफ़ अबू दाऊद: ४८२) इसलिए वह हुज्जत नहीं है और उससे यह मसला साबित नहीं किया जा सकता |
✍अगर क़ुर्बानी का इरादा रखने वाला आदमी किसी मजबूरी से या ना जानकारी में या भूल कर या ग़लती से या किसी के ज़बरदस्ती करने पर अपने बाल, नाख़ुन या चमड़ा काट ले या बिना इरादा के ख़ुद बख़ुद बाल टूट कर गिर जाए तो उसमें गुनाह नहीं है और न ही उसपर कोई फ़िदया या कफ्फ़ारा है, और उसकी क़ुर्बानी भी दुरुस्त होगी |
अल्लाह तआला का फ़रमान है:
"وليس عليكم جناح فيما أخطأتم به ولكن ما تعمدت قلوبكم."*(سورة الأحزاب:5)
*“और तुम से भूल चूक में या ग़लती से कुछ हो जाए तो उसमें तुम पर कोई गुनाह नहीं है, परन्तु गुनाह उसमें है जो तुम जान बूझ कर करो”|*
और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है:
"إن الله تجاوز عن أمتي الخطأ والنسيان وما استكرهوا عليه."*(سنن ابن ماجه: 2043)
“बेशक अल्लाह ने मेरी उम्मत से ग़लती, भूल चूक और ज़बरदस्ती के कारण होने वाले गुनाहों को माफ़ कर दिया है”|
और अगर कोई इसकी जानकारी रखते हुए और अपने इख़्तियार से जान बूझ कर काट ले तो अगरचे उसपर कोई फ़िदया या कफ्फ़ारा नहीं है और उसकी क़ुर्बानी भी दुरुस्त होगी लेकिन वह गुनाहगार होगा, उसको चाहिए कि नेकी और तौबा व इस्तिग़फ़ार करे ताकि यह गुनाह मिट जाए |
अल्लाह तआला का फ़रमान है:
"إن الحسنات يذهبن السيئات."(سورة هود:114)
“बेशक नेकियां बुराइयों को दूर कर देती हैं|”
और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है:
"وأتبع السيئة الحسنة تمحها."(سنن الترمذي:1987)
“गुनाह हो जाए तो नेकी कर लो, नेकी गुनाह को मिटा देगी”
आप का भाई: इफ्तिख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर जुबैल सऊदी अरब
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