ज़ुलहिज्जा के पहले दस दिनों की अहमियत व फ़ज़ीलत
खाड़ी देशों में ज़ुलहिज्जा का महीना शुरू हो चुका है और कल रात से अपने देश भारत में भी शुरू हो जाएगा | इन शा अल्लाह |
इस अवसर पर इस महीने के पहले दस दिनों की अहमियत और फ़ज़ीलत पेशे ख़िदमत है:
✍यह हुरमत वाले दिन हैं और इन दिनों गुनाहों से बचने की ख़ुसूसी व ताकीदी हिदायत है |
(देखिए: तफ़सीर सूरह तौबा: ३६ सहीह बुख़ारी: ३१९७)
और कुछ अहले इल्म का यह भी कहना है कि इन दोनों नेकियों की महानता और गुनाहों की गंभीरता बढ़ जाती है |
✍इन दिनों की अल्लाह तआला ने क़ुरआन मजीद में क़सम खाई है | (देखिए: तफ़सीर सूरह फ़ज्र: २)
इससे इन दिनों की अहमियत, क़द्र व क़ीमत और शाने अज़मत का अनुमान लगाया जा सकता है |
✍इन दिनों को यह शरफ़ हासिल है कि यह दुनिया के तमाम दिनों में सबसे अफ़ज़ल दिन हैं | (सहीहुल जामे उस्सग़ीर: ११३३)
✍यह अल्लाह के नज़दीक तमाम दिनों में सबसे अज़ीम दिन हैं | (देखिए: मुसनद अहमद: ७/२२४)
✍इन दिनों की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि इनमें अन्य तमाम इस्लामी इबादत के साथ हज जैसी बुनियादी इबादत और क़ुर्बानी जैसी अज़ीम सुन्नत भी जमा हो जाती हैं |
✍इन दिनों को एक विशेष सम्मान यह हासिल है कि इनमें किया जाने वाला नेक अमल अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद है | (देखिए: सहीह बुख़ारी: ९२६)
✍इन दिनों में क्या जाने वाला अमल अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा पाकीज़ा है | (देखिए: इरवाउल ग़लील: ३/३९८)
✍इन दिनों में की जाने वाली नेकी का अज्र सबसे अज़ीम है | (देखिए: इरवाउल ग़लील: ३/३९८)
✍इन दिनों में एक दिन “अरफ़ा का दिन” है जिस दिन अरफ़ा (के मैदान) में ठहरना हज का सबसे अज़ीम रुक्न है | (देखिए: सुनन अबू दाऊद: १४४९ सुनन तिर्मिज़ी: ८१४)
जिस दिन अल्लाह तआला अपने बन्दों को सबसे ज़्यादा जहन्नम से आज़ाद करता है, और क़रीब होता है और अरफ़ा में मौजूद हाजियों के ज़रिए फ़रिश्तों से फ़ख्र करता है और कहता है कि यह लोग क्या चाहते हैं? (देखिए: सहीह मुस्लिम: १३४८)
जिस दिन की दुआ तमाम दुआओं में सबसे अफ़ज़ल दुआ है | (देखिए: सुनन तिर्मिज़ी: ३५०९)
जिस दिन ग़ैर हाजी के रोज़े रखने से अगले और पिछले दो साल के गुनाह माफ़ होते हैं | (सहीह मुस्लिम: ११६२)
✍इन दिनों में एक दिन क़ुर्बानी का दिन है जो अल्लाह के नज़दीक तमाम दिनों में सबसे अज़ीम दिन है | (सहीह अबू दाऊद: १५४९)
जिस दिन हज के अक्सर व बेशतर आमाल अंजाम दिए जाते हैं |
जिस दिन पूरी दुनिया में ईदुल अज़हा मनाई जाती है, ईद की नमाज़ अदा होती है और जानवरों की क़ुर्बानी की जाती है |
✍इन दिनों तकमीले दीन, इतमामे नेमत और इस्लाम को बतौरे दीन पसंद किए जाने का एलाने इलाही हुआ | (देखिए: तफ़सीर सूरह माइदा: ३)
✍यह उन महान दिनों में से हैं जिनकी सलफ़ सालेहीन बड़ी क़द्र और ताज़ीम किया करते थे |
✍मालूम हुआ कि ज़ुलहिज्जा के पहले दस दिन बहुत ही महान, अहम तरीन, क़ीमती और क़ाबिले एहतिराम हैं | इसलिए हमें चाहिए कि हम इन दिनों की ताज़ीम करें और उनकी हुरमत व अज़मत का पास लिहाज़ रखें, क्योंकि यह बेशक ईमान और तक़वा व परहेज़गारी के तक़ाज़ों में से है |
अल्लाह तआला का फ़रमान है:
*"ومن يعظم شعائر الله فإنها من تقوى القلوب."* (سورة الحج:32)
*“और जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करें तो यह दिलों के तक़वा की वजह से है”|*
............... *जारी* .............
आप का भाई: इफ्तिख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर जुबैल सऊदी अरब
No comments:
Post a Comment