हराम का मतलब होता है: नुसुक (यानी हज या उमरह) में दाख़िल होने की नीयत करना”|
नोट: हज या उमरह करने वाला उस समय मुहरिम (यानी एहराम की हालत में आएगा) जब वह हज या उमरह में दाख़िल होने की नीयत करेगा |
गोया मात्र हज या उमरह का इरादा रखने से कोई व्यक्ति मुहरिम नहीं होगा, अगरचे वह सफ़र पर निकलते समय ही क्यों न इरादा करे |
इसी तरह मात्र सिला हुआ कपड़ा उतार कर एहराम का कपड़ा पहन लेने से या तल्बिया पढ़ लेने से भी कोई व्यक्ति मुहरिम नहीं होगा |
बल्कि उसके लिए हज या उमरह में दाख़िल होने की नीयत करना ज़रुरी है |
इसलिए नुसुक का इरादा रखने वाले पर वाजिब है कि जब वह ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हो जाए और एहराम का कपड़ा पहन ले तो नुसुक में दाख़िल होने की नीयत करे |
✍और यह भी मसनून है कि जिस नुसुक की उसने नीयत की है उसका तल्बिया पढ़े | चुनांचे अगर उमरह का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة*
अगर हज्जे तमत्तो का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة متمتعا بها إلى الحج*
अगर हज्जे क़िरान का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة وحجا*
और अगर हज्जे इफ़राद का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك حجا*
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि “मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को
*لبيك عمرة وحجا*
कहते सुना”|(सहीह बुख़ारी:४३५३ सहीह मुस्लिम:१२३२)
*नोट:
एहराम दिल से नीयत करने का नाम , ज़ुबान से तल्बिया पढ़ने नीयत नहीं है, अगर किसी ने ज़ुबान से तल्बिया नहीं पढ़ा तो उसने जो दिल से नीयत की वह उसके लिए काफ़ी होगा |
*नोट:
अगर किसी को यह डर हो कि वह बीमार हो सकता है या दुश्मन रास्ते में रोका सकता है और हो सकता है कि इस कारण वह नुसुक पूरा न कर पाए तो उसको एहराम के समय यह शर्त लगा लेनी चाहिए कि:
*اللهم محلي حيث حبستني*
“ऐ अल्लाह! तू मुझ को जहां पर रक देगा मैं वहीं पर हलाल हो जाऊंगा”| (सहीह बुख़ारी:५०८९ सहीह मुस्लिम:१२०७)
इसका फ़ायदा यह होगा कि अगर इस कारण उसका नुसुक पूरा न हो सका तो वह हलाल हो सकता है यानी एहराम की हालत से बाहर निकल सकता है और दम भी वाजिब नहीं होगा |
✍एहराम का हुक्म:
एहराम नुसुक के अरकान में से एक रुक्न है, इसके बिना नह हज दुरुस्त होगा और न उमरह दुरुस्त होगा |
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है:
*إنما الأعمال بالنيات وإنما لكل إمرئ ما نوى* (صحيح البخاري:1صحيح مسلم:1907)
“अमलों का दारो मदार नीयतों पर है और हर व्यक्ति के लिए वही है जिसकी उसने नीयत की”|
और एहराम अस्ल में नुसुक (हज या उमरह) में दाख़िल होने की नीयत है |
*नोट:
एहराम बांधने के बाद नुसुक को पूरा करना वाजिब है |
अल्लाह तआला का फ़रमान है:
*وأتموا الحج والعمرة لله* (سورة:196)
“और हज और उमरह का अल्लाह के लिए पूरा करो”|
................. *जारी* .............
*आप का भाई:
इफ्तिख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर
जुबैल सऊदी अरब
+966508750925🌱एहराम🌱
✍एहराम का मतलब:
हराम का मतलब होता है: नुसुक (यानी हज या उमरह) में दाख़िल होने की नीयत करना”|
*नोट:
हज या उमरह करने वाला उस समय मुहरिम (यानी एहराम की हालत में आएगा) जब वह हज या उमरह में दाख़िल होने की नीयत करेगा |
गोया मात्र हज या उमरह का इरादा रखने से कोई व्यक्ति मुहरिम नहीं होगा, अगरचे वह सफ़र पर निकलते समय ही क्यों न इरादा करे |
इसी तरह मात्र सिला हुआ कपड़ा उतार कर एहराम का कपड़ा पहन लेने से या तल्बिया पढ़ लेने से भी कोई व्यक्ति मुहरिम नहीं होगा |
बल्कि उसके लिए हज या उमरह में दाख़िल होने की नीयत करना ज़रुरी है |
इसलिए नुसुक का इरादा रखने वाले पर वाजिब है कि जब वह ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हो जाए और एहराम का कपड़ा पहन ले तो नुसुक में दाख़िल होने की नीयत करे |
✍और यह भी मसनून है कि जिस नुसुक की उसने नीयत की है उसका तल्बिया पढ़े | चुनांचे अगर उमरह का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة*
अगर हज्जे तमत्तो का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة متمتعا بها إلى الحج*
अगर हज्जे क़िरान का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك عمرة وحجا*
और अगर हज्जे इफ़राद का इरादा है तो उसमें दाख़िल होने की नीयत करे और यह तल्बिया पढ़े:
*لبيك حجا*
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि “मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को
*لبيك عمرة وحجا*
कहते सुना”|(सहीह बुख़ारी:४३५३ सहीह मुस्लिम:१२३२)
*नोट:
एहराम दिल से नीयत करने का नाम , ज़ुबान से तल्बिया पढ़ने नीयत नहीं है, अगर किसी ने ज़ुबान से तल्बिया नहीं पढ़ा तो उसने जो दिल से नीयत की वह उसके लिए काफ़ी होगा |
*नोट:
अगर किसी को यह डर हो कि वह बीमार हो सकता है या दुश्मन रास्ते में रोका सकता है और हो सकता है कि इस कारण वह नुसुक पूरा न कर पाए तो उसको एहराम के समय यह शर्त लगा लेनी चाहिए कि:
*اللهم محلي حيث حبستني*
“ऐ अल्लाह! तू मुझ को जहां पर रक देगा मैं वहीं पर हलाल हो जाऊंगा”| (सहीह बुख़ारी:५०८९ सहीह मुस्लिम:१२०७)
इसका फ़ायदा यह होगा कि अगर इस कारण उसका नुसुक पूरा न हो सका तो वह हलाल हो सकता है यानी एहराम की हालत से बाहर निकल सकता है और दम भी वाजिब नहीं होगा |
✍एहराम का हुक्म:
एहराम नुसुक के अरकान में से एक रुक्न है, इसके बिना नह हज दुरुस्त होगा और न उमरह दुरुस्त होगा |
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है:
*إنما الأعمال بالنيات وإنما لكل إمرئ ما نوى* (صحيح البخاري:1صحيح مسلم:1907)
“अमलों का दारो मदार नीयतों पर है और हर व्यक्ति के लिए वही है जिसकी उसने नीयत की”|
और एहराम अस्ल में नुसुक (हज या उमरह) में दाख़िल होने की नीयत है |
*नोट:
एहराम बांधने के बाद नुसुक को पूरा करना वाजिब है |
अल्लाह तआला का फ़रमान है:
*وأتموا الحج والعمرة لله* (سورة:196)
“और हज और उमरह का अल्लाह के लिए पूरा करो”|
................. *जारी* .............
आप का भाई: इफ्तिख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर "जुबैल सऊदी अरब"
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