Mushkil Kusha Aur Hajit Rwa Kaun Hai?
मुश्किल कुशा और हाजत रवा
“और अगर अल्लाह तआला कोई तकलीफ पहुंचाए तो उसको दूर करने वाला और कोई नहीं और अगर वह तुम्हें भलाई पहुंचाऐ तो वह हर बात पर कादिर है। (अनआम 17)
इस आयत से साफ वाजेह है.कि तकलीफ अल्लाह के हुक्म से आती है. और अल्लाह के हुक्म से ही जाती है। यह नामुमकिन बात है कि कादिरे मुतलक और तमाम कुव्वतों का मालिक अल्लाह जुलजलाल किसी को मुसीबत में मुनला करे तो उसको नतवां मख्लूक में से कोई उस मुसीबत को दूर नहीं कर सकता अल्लाह के सिवा किसी और को मुश्किल ,कुशा समझना अल्लाह तआला की कुदरत और बड़ाई का इन्कार है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम ने यही तालीम दी कि जब मांगो तो अल्लाह तआला से मांगों और जब मदद तलब करो तो अल्लाह से ही मदद तलब करो। जब अल्लाह सुब्हानु व तआला ने अपने महबूब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुश्किल कुशाई का इख्तियार नहीं दिया तो एक उम्मती (अली रजि.) को मुश्किल कुशा कह कर पुकारना कितना बड़ा जुल्म और शिर्क है।
हालांकि अली रजि. ने अपनी ज़िन्दगी में कभी भी अपने आपको मुश्किल कुशा नहीं कहलवाया बल्कि आप तो खूद अल्लाह के हुजूर सज्दा रेज़ हो कर अपनी बेचारगी का इजहार करते थे और उससे मदद के तलबगार रहते थे। उसी आजिज़ी और इबादत की बदोलत अली रजि. के मुश्किल कशा (अल्लाह रब्बुलआमीन) ने उनका अपने नबी सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम के जरिये जन्नत की खुशखबरी दी और उन्हें अशरे मुब्बशरा (दस सहाबा रजि. जिन्हें दुनिया में जन्नत की खूशखबरी दी गई) में शामिल किया।
आज जो लोग उन्हें मुश्किली कुशा कह कर पुकारते हैं वह सोचे और गौर करें कि कल रब्बुलआलमीन को क्या जवाब देंगे। और उस वक्त क्या करेंगे जब अली रजि. उनसे बेज़ारी का इज़हार करेंगे कि मैंने तुमसे कब कहा था कि मुझे मुश्किल कुशा मान कर पुकारों। खूद अली रजि. की शहादत और वाक्या कर्बला में अहले बैत पर जुल्मों सितम इस बात का सबूत हैं कि अली रजि. मुश्किल कुशा नहीं थे। ऐ लोगों! आ जाओ।
एक अल्लाह की बन्दगी की तरफ। उसी ने तुम्हें पैदा किया, वही तुम्हारा मुश्किल कुशा है। उसकी को पुकारों उसी से मदद तलब करो।
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इल्म हासिल करना हर एक मुसलमान मर्द-और-औरत पर फर्ज़ हैं
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