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Quran Majeed Tarjuma Hindi (Para 12)

Pareshani aaye to Mayus Mat ho jao aur Khushi ke mauke pe Aape se bahar nahi ho jao.
Quran Majeed Tarjuma in Hindi Para 12
पारा – 12, ख़ुलासा क़ुरआन

क़ुरआन-ए-मजीद का पैग़ामे अमल
डॉ. मुहिउद्दीन ग़ाज़ी
--------///---------
ज़मीन पर चलने वाले
हर जानदार का रिज़्क़
अल्लाह के ज़िम्मे है।

तुम रोज़ी कमाने से ज़्यादा इसकी फ़िक्र करो कि
तुम्हारा अमल ज़्यादा से ज़्यादा अच्छा हो।

याद रखो
अल्लाह ने तुम्हारी रोज़ी का बेहतरीन इंतिज़ाम यूँ ही नहीं किया है।
उसने यह सारा इंतिज़ाम
तुम्हारे अमल का इम्तिहान लेने के लिए किया है।

सब्र करो
और नेक अमल करो,
परेशानी आए
तो मायूसी और नाशुक्री का मुज़ाहिरा (प्रदर्शन) मत करो
और अल्लाह नेमतों से नवाज़े
तो ख़ुशी के मारे
आपे से बाहर न हो जाओ।

आख़िरत के लिए जीना सीखो,
जो लोग सिर्फ़ दुनिया
और दुनिया की रौनकों के लिए जीते हैं,
उनको जो भी मिलना है
वह यहीं मिल जाता है,
आख़िरत में उनके लिए
आग के सिवा कुछ नहीं होगा।

अल्लाह के रास्ते से लोगों को रोकना
और उसमें टेढ़ पैदा करने की कोशिश करना खुला ज़ुल्म है।
यह ज़ुल्म वही करता है
जो आख़िरत पर ईमान न रखता हो।
ऐसे मुजरिम अल्लाह की पकड़ से भाग नहीं सकेंगे।

दूसरी तरफ़ वो लोग हैं
जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं,
नेक अमल करते हैं
और अपने रब के होकर
ज़िंदगी गुज़ारते हैं,
उनके लिए
हमेशा-हमेश की जन्नत है।

तुम दोनों किरदार सामने रखकर सोंचो कि
अंधे और बहरे बनकर ज़िंदगी गुज़ारना अच्छा है
या देखने और सुनने वाला बन कर ज़िंदगी गुज़ारना अच्छा है।

अल्लाह के रसूलों की तारीख़ (इतिहास) पढ़ो।
उनकी बुनियादी दावत यह होती है कि
अल्लाह के सिवा किसी की बंदगी (उपासना) मत करो
वरना दर्दनाक अज़ाब की लपेट में आ जाओगे।

वे (रसूल) अपनी क़ौम से दावत का बदला नही माँगते,
वे अपनी क़ौम की गालियों की परवाह नहीं करते,
वे अपने पैग़ाम पर कामिल (सम्पूर्ण) यक़ीन रखते हैं,
वे अपनी क़ौम के बेजा मुतालिबात (माँगों) पर ध्यान नही देते,
वे ईमान लाने वालों को इज़्ज़त व एहतिराम (सम्मान) के साथ अपने से क़रीब रखते हैं,
चाहें वे लोग अपनी क़ौम की नज़र में कितने ही हक़ीर हों,
उनका अल्लाह की मदद
और नुसरत पर पूरा भरोसा होता,
वे लोगों के तमस्ख़ुर (मज़ाक़ उड़ाने)
और हंसी को ख़ातिर में न लाते।
बस ख़ैरख़्वाही और यकसूई (एकाग्रता) के साथ अपना काम करते रहते हैं।

नूह के वाक़िये से सबक़ लो,
उनके बेटे ने कुफ़्र की राह इख़्तियार की
और काफ़िरों (इन्कार करने वालों) का साथ पकड़ा
तो रसूल का बेटा होना उसके काम नहीं आया
और वह भी काफ़िरों के साथ सैलाब में डूब गया।

अल्लाह के यहाँ कोई रिश्तेदारी काम आने वाली नहीं,
हर शख़्स (व्यक्ति) को अपनी आख़िरत ख़ुद बनानी है।

दुनिया के हर सरकश,
हर ज़ालिम
और हर मुजरिम के लिए
नबियों का पैग़ाम आम है कि
अल्लाह की नेमतों पर ग़ौर करो,
अपने रब से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगो
और अपनी रविश (तरीक़ा) बदलकर
उसकी तरफ़ पलट आओ।
अल्लाह तुम्हारी तौबा क़बूल करेगा।
आसमान से तुम पर रहमतों की बारिश करेगा।
जो नेमतें तुम्हें हासिल हैं,
उनमें और इज़ाफ़ा (वृद्धि) होगा।

देखो हठधर्मी मत दिखाओ,
वरना अपनी आक़िबत (अंजाम) ख़राब करोगे।

अगर तुम अल्लाह के दीन की दावत लेकर उठे हो
तो इस दावत की अमली तस्वीर बन जाओ।

जिन बातों से लोगों को रोकते हो
उन बातों से ख़ुद भी रुक जाओ।

लोगों की इस्लाह (सुधार) के लिए अपनी सारी तवानाइयाँ (ऊर्जा) निचोड़ दो।

तुम्हें कामयाबी जब भी मिलेगी,
अल्लाह की तौफ़ीक़ से मिलेगी।
उसी पर भरोसा रखो
और उसी से लौ लगाओ।

अल्लाह तुम्हें तौबा की तौफ़ीक़ दे
तो उसके हुक्म को पूरा करो
और सीधे रास्ते पर जमे रहो।

हुदूद (सीमाओं) का खयाल करो,
अल्लाह की निगरानी का एहसास रखो
और ज़ालिमों की तरफ़ ज़रा भी न झुको
वरना उनके साथ तुम भी आग की लपेट में आ जाओगे।

दिन में भी
और रात में भी नमाजें पढ़ो,
नेकियों का एहतिमाम करो,
नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती हैं।

अल्लाह की हिदायत से ज़ेहन को रौशन रखो,
सब्र से काम लो,
ज़िंदगी में अच्छे से अच्छे काम करो,
अल्लाह तुम्हारा अज्र (बदला) ज़ाया (बर्बाद) नहीं करेगा।

बुरे कामों से
और ज़मीन में फ़साद फैलाने से लोगों को रोकते रहो,
चाहें लोग बुराइयों में मुलव्विस (लिप्त) रहें
और ऐश व इशरत में डूबे रहें,
मगर तुम अपनी ज़िम्मेदारी अदा करते रहो।

अल्लाह की किताब में रसूलों के क़िस्से पढ़ो,
उन किस्सों से तुम्हारे दिलों को मज़बूती हासिल होगी,
तुम्हें हक़ीक़त का इल्म मिलेगा,
नसीहत और याददिहानी हासिल होगी।

ईमान न लाने वाले
अपना काम कर रहे हैं,
तुम भी
इख़लास और यकसूई (एकाग्रता) के साथ अपना काम किए जाओ,
अल्लाह की बंदगी करो
और उस पर भरोसा रखो।

शैतान से हमेशा होशियार रहो,
शैतान इन्सानों का खुला हुआ दुश्मन है,
वह भाई को भाई से लड़ा देता है,
उसकी चालों से बहुत ज़्यादा चौकन्ना रहने की ज़रूरत है।

ज़िंदगी अच्छे से अच्छे तरीक़े से गुज़ारने की कोशिश करो,
अल्लाह तआला
तुम्हें इल्म व हिकमत से नवाज़ेगा।

अल्लाह की नेमतों को याद करो
और उसका शुक्र अदा करो।

अपने दिल में
अपने मोहसिन (एहसान करने वाले) से मुहब्बत के चिराग़ रौशन रखो।
यह चीज़ तुम्हारे रब की बुरहान (दलील) बन कर
तुम्हें हर तरह की बदी (बुराई)
और बेहयाई से महफ़ूज़ रखेगी।

अगर तुम पाकीज़गी चाहते हो
तो यूसुफ़ को अपने लिए नमूना बनाओ,
सिर्फ़ एक अज़ीज़ की बीवी ही ने नहीं
मिस्र की न जाने कितनी हसीनाओं ने
उन पर अपने-अपने जाल फेंके,
मगर इफ़्फ़त व तहारत (पाकदामन और पाकीज़ा) के एक फ़रिश्ते की तरह
पाकदामनी का पहाड़ बने रहे।
बेहयाई के तूफ़ान आते और जाते रहे,
लेकिन उनके दामन पर
एक छींट भी नहीं आई।

हज़रत यूसुफ़ से सीखो कि
अल्लाह के नेक बन्दों की क्या शान होती है कि
वे दुनिया की हराम लज़्ज़तों के मुक़ाबले में
जेल की तकलीफ़ों को सीने से लगाते हैं।

दुनिया हैवानी लज़्ज़तों की तरफ़ दौड़ रही होती है
और वे उन हैवानी लज़्ज़तों से दूर रहने में लज़्ज़त महसूस करते हैं।

कई सालो जेल में गुज़ार देते हैं
लेकिन एक लम्हे के लिए भी
हराम लज़्ज़त गवारा नहीं करते।

यूसुफ़ के वाक़िये में एक सबक़ यह भी है कि
गुनाहों से बचने की सारी कोशिशें करो
और अल्लाह से मदद भी माँगते रहो।
बेहयाई के हमलों का मुक़ाबला करने
और अपने नफ़्स पर कंट्रोल (नियंत्रण) करने के लिए
अल्लाह की मदद बहुत ज़रूरी होती है।
अल्लाह से ताल्लुक़ (संबंध) मज़बूत रखोगे
तो तुम्हारे अंदर भी मज़बूती आएगी।

यूसुफ़ से सीखो कि
किस तरह अच्छाई की सिफ़त (गुण) पर क़ायम रहा जाता है।

तुम्हें सख़्त से सख़्त आज़माइशों से दो-चार होना पड़े
तब भी तुम्हारे हुस्ने सीरत में कोई फ़र्क़ न आए।
तुम हर हाल में
और हर जगह मोहसिनीन (एहसान करने वालों) की शान पर क़ायम रहो।

यूसुफ़ से सीखो कि
जो लोग अल्लाह के दीन की दावत लेकर उठते हैं
वे कभी अपने काम से ग़ाफ़िल नहीं होते,
हालात की सख़्तियों में भी वे दीन की तालीमात (शिक्षाएं) फैलाते हैं।

अल्लाह के साथ शिर्क करना
तुम्हें ज़ेब (शोभा) नहीं देता।

अल्लाह ने तुम्हें किसी और की बंदगी (उपासना) के लिए नहीं पैदा किया।
यह अल्लाह का बहुत बड़ा फ़ज़्ल (कृपा) है,
इस फ़ज़्ल (कृपा) पर उसका जितना शुक्र अदा किया जाए कम है।

लेकिन इंसान नाशुक्री पर तुला रहता है।
वह इस फ़ज़ल पर अल्लाह का शुक्र अदा करने के बजाए
अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक ठहराने लगता है।

अक़्ल से काम लो
और सिर्फ़ अल्लाह की बंदगी करो।

यूसुफ़ की बेलौसी
और ख़ैरख़्वाही को देखो।
जिन लोगों ने उन्हें बरसों जेल की मुसीबतों में रखा
उनको कितने ख़ुलूस से समझाया कि
वे बरसों की क़हतसाली (भीषण अकाल) से कैसे राहत पा सकते हैं।

अनुवाद : तय्यब अहमद

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