Kya Islam Talwar Se Faila Hai? (Part 07)
सवाल : इस्लाम को शान्ति का धर्म कैसे कहा जा सकता है जबकि यह तलवार से फैला है?
‘जिन लोगों ने तुमसे सुलह की और अपना समझौता हर बार तोड़ते रहे और वे (अल्लाह से) डरते नहीं। ऐसे लोगों को अगर तुम लड़ाई में पाओ तो ऐसी सजा दो कि जो लोग उनके पीछे हैं उनके कदम उखड़ जाएं और वे सबक लें।'. (अल अन्फ़ाल : 56-57)
इस आयत में मुस्लिमों को ऐसे लोगों से लड़ने की इजाज़त दी गई हैं जो उनके साथ शान्ति समझौता करके तोड़ दें, धोखा दें और हमला कर दें।
'अलबत्ता वे मुश्कि इससे अलग हैं जिनसे तुमने समझौता कर रखा है और इसके बाद उन्होंने उसे निभाने में कोई कमी नहीं की। और न तुम्हारे ख़िलाफ़ किसी की मदद की। ऐसे लोगों के समझौते को उनकी मुद्दत पूरी होने तक पूरा करो कि अल्लाह मुत्तकियों को पसन्द करता। (सूरह तौबा: 4)
इस आयत में मुस्लिमों को पाबन्द किया गया है वे ऐसे लोगों से जंग न करें जो उनके साथ समझौते में बंधे हुए हैं और वादाखिलाफी नहीं करते और मुस्लिमों के दुश्मनों की मदद भी नहीं करते।
अगर मुश्रिको (बहु-देववादियों में से कोई शख़्स तुमसे पनाह (शरण) की मांग करे तो उसे पनाह दे दो यहाँ तक कि वो अल्लाह का कलाम सुन ले। फिर उसे उसके अमन की जगह पहुंचा दो। यह इसलिये कि यह लोग जानते नहीं हैं।'. (सूरह तौबा : 6)
इस आयत में यह बताया गया है कि अगर कोई मुश्रिक (मूर्तिपूजक/बहुदेववादी/गैर-मुस्लिम) अगर मुस्लिम क़ौम के किसी शख्स से पनाह (शरण) मांगे तो उसे पनाह देनी चाहिये। इस शरणागत इन्सान को इतना मौका भी मिलना चाहिये कि वो अल्लाह का कलाम सुन ले। उसके बाद भी उसे इस्लाम कुबूल करने के लिये मजबूर न करके उसे ऐसी जगह पहुंचा देना चाहिये जहाँ उसे कोई खतरा नहीं हो। क्या किसी और धर्म में इतना मानवीय आदेश मौजूद है?
'और अगर ये अहद (प्रतिज्ञा) करने के बाद अपनी कसमें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन की तौहीन करने लगे तो कुफ्र के पेशवाओं से लड़ो कि उनकी कसमों का कोई भरोसा नहीं (उनसे लड़ो) यहाँ तक कि वे बाज़ आ जाएं।' (सूरह तौबा : 12)
TO BE CONTINUE In sha'Allah
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