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Islam Me kitne JAmaat Ke MAnne Wale HAi?

FirqaParasti Kya Hai?

Kya Iska Koi Quran o Hadees Me Jikr Hai?
Kya Musalmano ke Ander Bhi Bahut Sari Jamaatein Hai Shariyat Ke Mutabik?

मैं आखिरकार शरीअत मे फिरका ढूंढते ढूंढते नाकाम रहा
मैंने बड़ी कोशिश की के क़ुरआन पढ़ कर ख़ुद को किसी एक फिरके में साबित करूँ मगर नाकाम रहा।
मैंने तमाम क़ुरानी सूरतें पढ़ीं मगर मुझे न कोई शिया फिरके का निम मिला, न बरेलवी, न देवबंदी, और न ही अहले -ए-हदीस ।
बल्कि जो मिला वो तो ...
*अल्लाह ने पहले भी तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा था और इस (क़ुरआन) में भी (तुम्हारा यही नाम है) ताकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम पर गवाह हों...।
(सुर: हज 22/78)
मैंने कोशिश की, के मुहम्मद ﷺ की सीरत (जींदगी) को पढ़कर अपने आपको किसी फ़िरके से जोडूं, मगर यहाँ भी मुझे नाकामी हुई।
हर जगह सिवाय एक मुसलमान (मुस्लिम) के अपनी दूसरी पहचान न मिली।
अगर *फ़िरके का कहीं ज़िक्र आया भी तो रद करने के अंदाज़ में,*एक गुनाह, एक तम्बीह की हैसियत से।
सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फिर्क़ों में मत बटो...।"
(सुर: आले इमरान 3/103)
"तुम उन लोगो की तरह न हो जाना जो फिरकों में बंट गए और खुली-खुली वाज़ेह हिदायात पाने के बाद इख़्तेलाफ़ में पड़ गए, इन्ही लोगों के लिए बड़ा अज़ाब है"*
(सुर:आले इमरान 3/105)
जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े टुकड़े कर लिया और गिरोह-गिरोह बन गए, आपका (यानि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का) इनसे कोई ताल्लुक नहीं, इनका मामला अल्लाह के हवाले है, वही इन्हें बताएगा की इन्होंने क्या कुछ किया है...।"
(सुर: अनआम 6/159)
इन सब वाज़ेह अह़कामात के बावजूद *आज हम एक मुसलमान के अलावा सब कुछ हैं,
हम फ़िरक़ों में इतने बुरी तरह से फंस गए हैं के *हमारी पहचान ही गुम हो गयी
*"फिर इन्होंने खुद ही अपने दीन के टुकड़े-टुकड़े कर लिए, हर गिरोह जो कुछ इसके पास है इसी में मगन है...।"
(सुर: मोमिनून 23/53)
हम हमारे आपसी इख़्तेलाफ़ को अल्लाह के हवाले क्यूँ नहीं करते ।क्यों खुद ही फैसला करने बैठ जाते हैं ..
*"तुम्हारे दरमियान जिस मामले में भी इख़्तेलाफ़ हो उसका फैसला करना अल्लाह का काम है...
(सुर: शूरा 42/10)
बल्कि हमें तो ये हुक्म दिया गया है कि-
*"बेशक सारे मुसलमान भाई भाई हैं, अपने  भाइयों में सुलह व मिलाप करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाये...।"
(सुर: हुजरात 49/10)
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