find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

Bimar Dil Ki Pahchan Kaise Kare?

Bimar Dil Ko Alamat
Insaan Ko Kaise Pta Chale Ke Mera Dil Beemari Me Mubtla Hai?
बिमार दिल की अलामत
*इंसान को कैसे पता चले कि उसका दिल बिमार है?
*इस सिलसिले मे हाफ़िज़ इब्ने क़य्यूम रहीमुल्लाह ने कुछ अलामत बताई है

🌲 पहली अलामत - जब इंसान फ़ानी चीज़ो को बाक़ी चीज़ो पर तरजीह देने लगे तो वो समझले के मेरा दिल बिमार है, मसलन दुनिया का घर अच्छा लगता है मगर आख़िरत का घर बनाने की फिक्र नही है, दुनिया मे इज़्ज़त मिल जाए मगर आख़िरत की इज़्ज़त या ज़िल्लत की सोच दिल मे नही, दुनिया मे आसानीया मिले मगर आख़िरत के अज़ाब की परवाह नही।

🌲 *दुसरी अलामत - इंसान जब रोना बंद कर दे तो वो समझले के उसका दिल सख़्त हो चुका है, कभी कभी इंसान की आंख रोती है तो कभी इंसान का दिल रोता है, दिल का रोना आंखो के रोने पर फ़ज़ीलत रखता है, ये ज़रूरी नही के आंखो से पानी ही रोना कहलाता है, बल्कि अल्लाह तआला के कई बंदे ऐसे भी होते है के उनके दिल रो रहे होते है गोया उनकी आंखो से पानी नही निकलता मगर उनका दिल से रोना अल्लाह तआला के यहा कुबूल हो जाता है, और उनकी तौबा के लिए कुबूलियत के दरवाज़े खुल जाते है, तो दिल या आंखों मे से कोई ना कोई चीज़ ज़रूर रोए, और कुछ की तो दोनो चीज़े रो रही होती है, आंखे भी रो रही होती है और दिल भी रो रहा होता है।

🌲 *तीसरी अलामत - मख़लूक से मिलने की तो तमन्ना हो लेकिन अल्लाह तआला से मिलना याद ही ना हो तो समझ ले के ये मेरे दिल के लिए मौत है, लोगों के एक दुसरे के साथ ऐसे ताल्लुकात होते है के उनके दिल मे एक दुसरे से मिलने की तमन्ना होती है, वो उदास होते है और उन्हे तमन्ना होती है वो उदास होते है और उन्हे इंतज़ार होता है मगर अल्लाह तआला की मुलाकात याद नही होती।

🌲 चौथी अलामत - जब इंसान का नफ़्स अल्लाह तआला की याद से घबराए, और मख़लूक के साथ बैठने से खुश हो तो वो भी दिल की मौत की पहचान है, अल्लाह तआला की याद से घबराने का मतलब ये है कि जब इंसान का दिल तसबीह पढ़ने और मुराकबा करने से घबराए, उसके लिए मुसल्ले पर बैठना बोझ महसूस होता है, एक मोटा सा उसूल समझ लो कि अगर बंदे का अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक देखना हो तो उसका मुसल्ले पर बैठना देख लो, ज़ाकिर, बंदा मुसल्ले पर उसी सुकून के साथ बैठा है जिस तरह बच्चा मां को गोद मे सुकून के साथ बैठता है, और जिसका दिल बिमार होता है उसके लिए मुसल्ले पर बैठना मुसीबत होता है, वो सलाम फेरकर मस्जिद से भाग खड़े होते है, कई तो ऐसे होते है के मस्जिद मे आने को उनका दिल तैयार नही होता।

Share:

No comments:

Post a Comment

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS