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Muslim Larkiyo ko Fansane ke liye Yah LM Aur HM kya Hai? Jarur padhe.

Muslim Larkiyo ke liye Chalayi Ja rahi yah Saazish kya hai?

Muslim Larkiyo ko Fansane ke liye LM aur HM Nam ka Code word kya hai?
Yah kaise Kam karti hai, iske Buniyadi Usool kya hai?
Love Jihad ke Nam Par Kis Tarah Islam ko Aur Musalman Ko Badnam Kiya Gya?
Love Jihad Ka afwah bnaker Kis Tarah Muslim Larkiyo Ko HM (Hindu Marriage) kiya Ja raha hai Aur isme Paise Ki lalach di ja rahi hai?
Kya hm apne Bacho ka Itna bhi Khyal nahi rakh sakte Ke Aaj Wah kafir Ke sath Shadi kar rahi hai?
Iski Sabse Bari wajah hmari Laparwahi hai aur Deen se Doori hai Jo Modern Education ke nam pe ya College universities me anjam Diya Ja raha hai.

*Ye un ladkiyo ki list hai jisne Hinduo se bhagkar shadi ki hai.*

love Jihad ek Propganda HM ek Muhim. 

भारतीय मुसलमानों के नाम एक अहम पैगाम

यह पैगाम इस वक्त का बहुत ही अहम पैगाम है इसको हर मुसलमान तक पहुंचा दें !!

मुल्क के अलग-अलग इलाको से यह खबर लगातार सामने आ रही हैं , कि मुसलमान लडकियां गैर-मुस्लिम लडकों से शादियां कर रही हैं !!
और अपना दीन व ईमान और शर्म व हया बेच कर अपने खानदान और अपने समाज पर बदनामी का दाग लगा रही हैं !!

पहले तो इस तरह का कोई एक आद ही मामला सामने आता था लेकिन अब एक साजिश और पलानिंग के तहत मुसलमान लडकियों को जाल में फंसाया जा रहा है !!

और एक मुस्लिम लडकी को हिंदू बनाने पर हिंदू नोजवानों काे 2 लाख रूपये का इनाम भी दिया जा रहा है !!

मुसलमानों मज़हब-ए-इस्लाम के दुश्मन की यह खासियत है कि वह जो जुर्म करने का इरादा करता है, पहले उसका इल्ज़ाम इस्लाम और मुसलमानों पर ही थोप देता है ताकि इस जुर्म का लेबल सिर्फ इस्लाम और मुसलमानों पर लगा दिया जाए !!
और फिर खुद इस काम को करना शुरू कर देता है !!
जिसका बहाना बना कर मज़हब इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम किया जा चुका होता है !!
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बिल्कुल यही साजिश लव जिहाद के नाम पर की गई है !!
पहले मुसलमानों को बदनाम किया गया कि मुसलमान लव जिहाद कर के हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बनाते हैं और फिर उनको बर्बाद कर देते हैं !!
हालांकि लव जिहाद सिर्फ एक साजिश थी जिसका लेबल इसलाम और मुसलमानों पर लगा दिया गया !!
हालां कि इस्लाम के अन्दर लव जिहाद नाम की कोई भी चीज नहीं है !!
दुनिया के अन्दर कोई ऐसा शख्स नहीं जो यह साबित करे कि इस्लाम लव जिहाद की दावत देता है !!

क्यों कि लव जिहाद सिर्फ और सिर्फ एक साजिश है जो इस्लाम दुश्मन ताकतों की तरफ से मुसलमानों के उपर जबरदस्ती थोपा गया है !!
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एक वक्त वह था जब इस्लाम के दुश्मनों ने यह शोर मचाया कि मुसलमान लव जिहाद कर रहे हैं बहर-हाल लव जिहाद सिर्फ एक लेबल था जो मुसलमानों पर लगा दिया गया !!

और फिर बहु लाओ बेटी बचाओ के अभियान के तहत मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने की मुहिम शुरू कर दी गई !!

और फिर पूरे मुल्क में मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने के एलानात किए गए !!
एक मुस्लिम लड़की को हिन्दू बनाने पर लाखों ईनाम देने के एलानात किए गए !!

अफसोस कि जिस चीज़ का मज़हब ए इस्लाम में कोई वजूद ही नहीं उसका बहाना बना कर इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम कर दिया गया !!

और फिर मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने के एलानात कर दिए गए !!
हालांकि मुसलमान यह कहते रहे कि लव जिहाद है ही नहीं और न ही किसी मुसलमान ने हिन्दू लड़की को मुसलमान बनाने पर लाखों रुपए के ईनाम का एलान किया !!

फिर भी कसूरवार मुसलमानों को ठहरा दिया गया !!
और मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने पर लाखों रुपए देने की बात करने वालों को बे-गुनाह समझा जा रहा है !!
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याद रहे कि मुसलमान लड़कियों को हिन्दू बनाने के लिए हिन्दू तन्जीमो की ओर से हिन्दू लड़कों की एक टीम बनाई गई है जो मुस्लिम लड़कियों को अपने झूठे प्यार व मुहब्बत में फंसा कर उनको हिन्दू बनाने की मुहिम का हिस्सा है !!

और बहुत सारी मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाया जा चुका है !!
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*हालात का जायज़ा*
यह सारी बातें अपनी जगह सही हैं !!
लेकिन आर एस एस का एजेंट उन लड़कियों तक कैसे पहुंचा ?
उन लड़कियों ने ऐसा क़दम क्यों उठाया ?
और ऐसे ज़ालिमाना रस्म व रिवाज को मुआशरा ने वजूब की हैसियत क्यों दी ?
जानबूझकर या नादानिसता सारे लोग उन वजूबात से चश्मपोशी करते नज़र आ रहे हैं !!
लिहाजा ज़रूरी है कि क़ौम के बहादुर और समझदार हज़रात असल वजह को तलाश करें !!
आर एस एस के बजाय असली मुजरिम कौन है इसकी निशानदेही करें !!

और लड़कियों के ऐसे ग़लत क़दम उठाने पर क्या शर‌ई एहकाम लागू होते हैं उसे ज़ाहिर करें !!
ताकि मर्ज़ का सही इलाज किया जा सके !!

मेरी नाकिस़ मालूमात में इस बुराई का असल वजह दीन की कमी और मुस्लिम घरानों में दीनी माहौल का न होना है !!

आज हमारे बच्चे यह नहीं जानते कि उनके मुसलमान होने का मतलब क्या है ?
हम मुसलमान क्यों हैं ?
हम में और काफ़िर में क्या बुनियादी और हक़ीक़ी फर्क है ?
उन्हें मालूम नहीं है कि एक मुसलमान बशर्त इस्लाम अल्लाह का वली होता है !!

अल्लाह ने कुर‌आन करीम में फ़रमाया है कि" यक़ीन मानो ! काफ़िर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं" ( सूर: निसाअ 101)

"ऐ ईमान वालो ! मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त न बनाओ" (सूर: मुम्तह़नह 1)
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फिर यह कैसे मुमकिन है कि अल्लाह का वली अल्लाह तआला के दुश्मन को अपना दोस्त बनाए और एक कुरआन व रसूल पर ईमान लाने वाली औरत या मर्द अपने अल्लाह के दुश्मन और खुद अपने दुश्मन के साथ ज़िन्दगी गुज़ारने का वादा व पैमान करे ?

एक इस्लामी वाक्या

हज़रत उम्मे सलीम रज़ि० जब बेवा हुईं तो तो मदीना के एक अमीर शख्स अबु तलहा ने शादी का पैगाम भेजा,
(उस वक्त तक अबु तलहा मुसलमान नहीं हुए थे और उम्मे सलीम रज़ि० मुसलमान हो चुकी थी)

लिहाजा उम्मे सलीम ने यह दो टूक जवाब देकर उनके पैग़ाम को रद्द कर दिया कि ऐ अबु तलहा ! अल्लाह की कसम आप की वह हैसियत है कि आपका पैग़ाम रद्द न क्या जाए !!
लेकिन मुश्किल यह है कि आप काफ़िर हैं और मैं मुसलमान हूं, और किसी मुसलमान औरत के लिए मुनासिब नहीं है कि किसी काफ़िर के साथ शादी करे !!( मसनद अहमद, सुन्न निसाई)
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क्या आप को मालूम है कि मुसलमान लड़कियों के हिन्दू बनने पर असली मुजरिम कौन है ?

मेरे तजुर्बे के मुताबिक लड़कियों की इस ग़लत राह एख्तियार करने का असली मुजरिम उनके मां बाप हैं !!
क्यों कि मां बाप ने न तो घर का माहौल दीनी रखा, न ही औलाद को दीनी तालीम सिखलाया !!
और न ही मुस्लिम व गैर मुस्लिम का असली फर्क बतलाया !!
उनकी सारी फिक्र इस बात की रही कि मेरी औलाद (बेटा बेटी) ऊंची तालीम हासिल कर ले !!
उसे अच्छी नौकरी मिल जाए !!
लेकिन इस तरफ़ बिल्कुल भी फिक्र नहीं किया कि इन हालात में मेरी बेटी मुसलमान भी रह जायेगी कि नहीं ?

उन्हें यह फ़िक्र तो सुबह व शाम रही कि मेरी बेटी डाक्टर बन जाए !!
इंजीनियर बन जाए !!
लेकिन मोमिन व मुसलमान भी बने इस के बारे में शायद कभी सोचा भी न हो !!

उनकी फिक्रे इस बात पर रहीं होंगी कि मेरी बेटी अंग्रेजी ज़बान बोलने और समझने लगे लेकिन यह कभी नहीं सोचा होगा कि उसे कुर‌आन मजीद का सिर्फ तर्जुमा ही पढ़ा दिया जाए !!

अल्लाह तआला की तरफ से दी गई असल जिम्मेदारी को वो भूले रहे !!
उनहें यह भी याद नहीं रहा कि अल्लाह और उसके रसूल ने हमारे ऊपर औलाद की क्या जिम्मेदारी रखी है ?

अल्लाह तआला फरमाता है,,, ईमान वालो तुम अपने को और अपने घर वालों को उस आग से बचाव जिस का ईंधन ईंसान और पत्थर हैं ( सूरह तहरीम, आयत 6 )
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*नबी करीम सल्ललाहु अलेईहि वसल्लम ने फरमाया कि जिस बंदे को अल्लाह तआला घर वालों की जिम्मेदारी देता है और उसकी मोत इस हालत में होती है कि वो अपने घर वालों के साथ धोका करने वाला है तो अल्लाह उस पर जन्नत हराम कर देता है
( सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)

हर समझदार मां और बाप से सवाल है कि दुनियां में इस से बडा धोका और क्या हो सकता है !!

बाप अपनी औलाद दुनिया की खतम होने वाली जिंदगी में काम आने वाले कामों के बारे में तो समझा दे और आखिरत के बाद की असली जिंदगी में काम आने वाली बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिलाया !!
अल्लाह की कसम इस से बडा धोका और विश्वासघात दुनियां में और कुछ नहीं है !!
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इस ऐजेंडे को नाकाम बनाने में इन बातों पर अमल करें
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(1)- इस्लामी निजाम के मुताबिक बच्चियों को पर्दे का पाबंद बनाया जाए !!
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(2)- वो बच्चियां जो उर्दू नहीं पढ सकती हैं उनको अपने इलाके के किसी आलिम से पूछ कर कोई एक हिंदी जबान में लिखी गई बहतरीन इस्लामी किताब लाकर दें जिस से उनको मजहब ए इस्लाम के बारे में अच्छी मालूमात हासिल हो सके !!
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(3)- अपनी बच्चियों को सिर्फ ऐसी जगह पढने के लिए भेजें जिस जगह का माहौल अच्छा और महफूज हो !!
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(4)- मोबाईल रिचार्ज के लिए किसी गैर मुस्लिम की दुकान पर जाने की ईजाजत ना दी जाए !!
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दोस्तों हमने आपके सामने जो यह चंद बातें पेश की हैं इनको हर मुसलमान तक जरूर पहुंचाएं !!
और हर मुसलमान भाई इसको अपने दोस्तों को फेसबूक और वाट्सऐप और इस्लामिक ग्रुप वगैरा में हर जगह फैलाएं !!
ताकि इस्लाम की मुकद्दस शहजादियों को जालिम के चंगुल से महफूज रखा जा सके !!

Ya Allah Jo log Islam ko aur Musalaman ko badnam karna chahte hai too use Be nakab kar de, use Duniya-o-Aakhirat me Zaleel o ruswa kar, Ya Allah Too Musalmano ko uske Dushmano ke Shar se mahfooz rakh, Muslim Larkiyo ki izzat o waqar ki hifazat kar, too use Quran-O-Sunnat pe chala, Use Deen ko Sahi Samajh Ata kar, Aur Zalimo ko barbad kar jo uske Izzat ko lootna chahta hai Aur Deen-E-Islam se mooh Morna chahta hai ya Allah Too aeise logo ko Khud usi ke shar se use Barbad aur Nesto nabood kar de, Aeisi sza de Jisse uski Pura Ahle Khana, Muashara aur Us tabke ke Log aur uski aane wali nasal Isse Tabah ho jaye, Ys Allah Too Musalmano ko Nek Pakka Sacha Momeen Bna, Use Sahi Sunne aur Haque Bolne ko Himmat de unke Ander Ittehad Qayem kar. Aameen Summa Aameen

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Angrej ka sawal. Muslim Auratein Hath kyu Nahi Milati?

Muslim Auratein Hijab kyu Karti aur Na Mehram se kyu nahi Hath Milati.

Islam Me kisse Hath Milana hai aur kisse Parda karna hai, kya Jo log parda Nahi karti sirf wahi Tarakki kar sakti hai?
ﻋﻮﺭﺕ ﺳﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﻼﻧﺎ
ﺍﯾﮏ ﺍﻧﮕﺮﯾﺰ ﻧﮯ ﻋﺎﻟﻢ ﺩﯾﻦ ﺳﮯ ﺳﻮﺍﻝ ﮐﯿﺎ :
ﺍﺳﻼﻡ ﻣﯿﮟ ﮐﯿﻮﮞ ﻣﺮﺩ ﺍﻭﺭ ﻋﻮﺭﺕ ﺟﻮ ﻧﺎﻣﺤﺮﻡ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﮐﺎ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﻼﻧﺎ ﺣﺮﺍﻡ ﮨﮯ؟
ﻋﺎﻟﻢ ﺩﯾﻦ ﻧﮯ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﯾﺎ :
ﮐﯿﺎ ﺗﻢ ﻣﻠﮑﮧ ﺍﻟﺰﺑﺘﮫ ‏( ﻣﻠﮑﮧ ﺑﺮﻃﺎﻧﯿﮧ ‏) ﺳﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﻼ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﻮ؟
ﺍﺱ ﺍﻧﮕﺮﯾﺰ ﻣﺮﺩ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ :
ﯾﻘﯿﻨﺎ ﺍﯾﺴﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ، ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﻓﻘﻂ ﻣﺤﺪﻭﺩ ﺍﻭﺭ ﺧﺎﺹ ﻟﻮﮒ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﻣﻠﮑﮧ ﺍﻟﺰﺑﺘﮫ ﺳﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﻼ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ .
ﻋﺎﻟﻢ ﺩﯾﻦ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ :
ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﻣﻠﮑﮧ ﮐﯽ ﻃﺮﺡ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺟﻮ ﻣﻠﮑﮧ ﮨﻮﮞ ﺗﻮ ﺑﯿﮕﺎﻧﮯ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﺳﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﻣﻼﺗﯿﮟ ....
ﭘﮭﺮ ﺍﺱ ﺍﻧﮕﺮﯾﺰ ﻧﮯ ﺳﻮﺍﻝ ﮐﯿﺎ :
ﮐﯿﻮﮞ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﺍﭘﻨﮯ ﺑﺎﻟﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﺍﭘﻨﮯ ﺑﺪﻥ ﮐﻮ ﭼﮭﭙﺎﺗﯽ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺣﺠﺎﺏ ﮐﯽ ﭘﺎﭘﻨﺪ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﯿﮟ؟
ﺍﺱ ﻋﺎﻟﻢ ﺩﯾﻦ ﻧﮯ ﺗﺒﺴﻢ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ :
ﺩﻭ ﭨﺎﻓﯿﺎﮞ ﻟﯿﮟ، ﺍﯾﮏ ﭨﺎﻓﯽ ﮐﻮ ﮐﮭﻮﻻ ﺍﻭﺭ ﺩﻭﺳﺮﯼ ﮐﻮ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮭﻮﻻ ﻭﯾﺴﮯ ﺭﮨﻨﮯ ﺩﯾﺎ ، ﭘﮭﺮ ﺑﻌﺪ ﻣﯿﮟ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﻣﭩﯽ ﻣﯿﮟ ﻣﻼﯾﺎ، ﺍﻭﺭ ﺍﺳﯽ ﺍﻧﮕﺮﯾﺰ ﮐﻮ ﮐﮩﺎ :
ﺍﮔﺮ ﻣﯿﮟ ﺁﭖ ﺳﮯ ﮐﮩﻮﮞ ﮐﮧ ﺍﻥ ﺩﻭ ﭨﺎﻓﯿﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺳﮯ ﺍﯾﮏ ﺍﭨﮭﺎﺅ ﺗﻮ ﺁﭖ ﮐﺲ ﮐﻮ ﺍﭨﮭﺎﺋﯿﮟ ﮔﮯ؟
ﺍﺱ ﺍﻧﮕﺮﯾﺰ ﻣﺮﺩ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ :
ﻇﺎﮬﺮ ﺳﯽ ﺑﺎﺕ ﮨﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﯽ ﭨﺎﻓﯽ ﮐﻮ ﺍﭨﮭﺎﺅﮞ ﮔﺎ ﺟﻮ ﻟﭙﭩﯽ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﭩﯽ ﻣﯿﮟ ﺁﻟﻮﺩﮦ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ....
ﻋﺎﻟﻢ ﺩﯾﻦ ﻧﮯ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﯾﺎ :
ﯾﮧ ﺩﻟﯿﻞ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﮐﯿﻮﮞ ﺣﺠﺎﺏ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﯿﮟ .

अल्लाह ने सबको बता दिया है कि औरत का बहुत ज्यादा रुतबा है और उसी पर्दे का हुक्म इसलिए दिया है कि उसे देखकर गैर मर्दों की नियत ना खराब हो और उनका इमान ना खराब हो और वह गुनाह (जहन्नुम ) से बच सकें क्योंकि नाही कोई मर्द खूबसूरती को देखेगा नहीं वह गुना की ओर बढ़ेगा यह भी एक खास वजह है लोगों को गुनाहों से बचाने की वैसे हिजाब में लड़कियां और भी ज्यादा खूबसूरत लगती हैं क्योंकि खुली हुई चीज पर कोई ध्यान नहीं देता और कुछ ज्यादा तवज्जो भी नहीं देता जो चीज छुपी होती है हर कोई उसे देखना चाहता है और उसका खास मुकाम होता है इसी तरह हिजाब पहनने वाली लड़की औरत को लोग इज्जत की नजर से भी देखते हैं और अल्लाह भी उनसे खुश रहता है
 वैसे भी हिजाब में कोई भी निहायत ही खूबसूरत दिखती है, जो आम हो फिर उसमे खास क्या है? सिर्फ औरत के लिए ही नहीं बल्कि मर्द के लिए भी पर्दे का हुक्म है और वह यह के मर्द अपनी निगाहें नीची रखे किसी ना मेहरम औरत पे नजर ना डाले अगर गलती से नजर पर जाए तो वह माफ है मगर जानबूझ कर किसी औरत को देखना गुनाह है। हिजाब में भी रहकर तरक्की किया जा सकता है, तरक्की दिमाग से होता है ना के कपड़े से, पर्दा करने वाली किसी सल्तनत की नहीं इसलाम की शहजादियां होती है, किसी मामूली और सस्ती लोगो के जैसा नहीं के जिसे हर कोई देखे, इज्ज़त बनानी पड़ती है तभी इज्ज़त मिलती है, सोच बदल लेने से भी जो हकीकत है वह अफसाना नहीं बनता, अगर कोई जाहिल अगर छोटा कपड़ा भी पहन ले तो कोई वह पढ़ा लिखा नहीं बन जाता और कोई हिजाब में अगर है तो ऐसा नहीं है के वह अनपढ़ है उसे कुछ आता जाता नहीं है। अगर कपरे उतारना ही फ़ैशन है तो नंगापन भी फ़ैशन ही है, लोग अगर अपनी मर्जी से नंगा रह रहा है और वही कोई अपनी मर्जी से हिजाब कर रही है तो इसमें किसी को इतना ज़लन क्यों हो जाता है, अपनी मर्जी तो दोनों का है फिर एक को सही एक को ग़लत क्यों?
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Saudi Arabia ke Pas itne Paise Hote hue bhi kyu Israil Se Darta Hai?

Aakhir Saudi Arabia ke Pas Itni Paise hai fir Bhi wo khud Apni Hifajat kyu nahi kar pa raha hai?

Kyu use hamesa Israil aur Iran Apne Nishane Pe Le rakha Hai?
सऊदी अरब के पास इतना पैसा है, आधुनिक सेना है फिर भी इज़राइल से क्यों डरता है?

सउदी अरब पूरी तरह से अमेरिकी सेना के नियंत्रण में है , अतः अमेरिका उन्हें हथियारों के उत्पादन की इजाज़त नही देता । यदि सउदी अरब हथियारों का उत्पादन करना सीख जाता है और ताक़तवर सेना खड़ी कर लेता है तो सउदी अरब को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा और सउदी अरब की सेना अमेरिका की तेल कम्पनियों को वहाँ से खदेड़ देगी .
सउदी अरब में विज्ञान-गणित की शिक्षा का स्तर बदतरीन हालत में है और स्थानीय तकनीकी इकाइयों द्वारा किया जाने वाला निर्माण ज़ीरो है । उन्हें पंखे बनाने की तकनीक भी नही पता , हथियार निर्माण की बात तो भूल ही जाइए । सउदी अरब का सारा विकास अमेरिकी कम्पनियाँ करती है, और डॉलर कमाती है । सउदी अरब के पास तेल के भंडार है, किंतु उनके पास तेल निकालने की तकनीक नही है , अतः अमेरिकी कम्पनियाँ वहाँ तेल निकालती है और उसमें से कुछ हिस्सा डॉलर के रूप में सउदी अरब को दे देती है । इसी डॉलर से सउदी अरब अपना देश चलाता है । इस तरह सउदी अरब पूरी तरह अमेरिकीयों पर निर्भर है ।
सउदी अरब के पास २० वर्ष का तेल और है । जब यह ख़त्म हो जाएगा तो सउदी अरब फिर से रोड पर आ जाएगा । क्योंकि तब उनके पास ऐसा कुछ नही है होगा जिसे बेचकर वे डॉलर कमा सके और अपना देश चला सके । तब अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सउदी अरब में तेज़ी से धर्मान्तर करेगी और वहाँ की ज़्यादातर आबादी फ़िलिपींस एवं दक्षिण कोरिया की तरह ईसाईयत में कन्वर्ट हो जाएगी ।
यदि सउदी अरब सेना खड़ी कर लेता है तो न तो अमेरिकी कम्पनियाँ उनका तेल लूट पाएगी और न ही उन्हें कन्वर्ट कर पाएगी । इसीलिए अमेरिका ने अपनी सेना को सउदी अरब में बिठाया हुआ है । यह वही स्थिति है जो ग़ुलाम भारत में भारत के राजाओं की थी । ब्रिटिश भारत के प्राकृतिक संसाधन लूट रहे थे और अपनी सेनाओं की जमावट करके उन्होंने राजाओं को कंट्रोल कर रखा था । ब्रिटिश जो संसाधन लूटते थे उसने से एक हिस्सा राजाओं को देते थे ताकि वे इसका उपभोग अपनी विलासिता में कर सके , उसी तरह आज अमेरिकी सउदी अरब को आलीशान जीवन जीने के लिए डॉलर दे रहा है, ताकि उनके संसाधन लूटे जा सके ।
देश उसी का होता है जिसके पास इसका सैन्य नियंत्रण होता है । आज अमेरिका की सेना सउदी अरब में सउदी अरब से भी ज़्यादा ताक़तवर है । वस्तुतः सउदी अरब एक ग़ुलाम देश है , किंतु वहाँ की अवाम को इसका अहसास होने में कम से कम 25 साल और लगेंगे । भारत में ब्रिटिश 1600 ई में आए थे और हम ग़ुलाम बन चुके है, इसका अहसास होने में हमें 150 साल लगे ।
जिस तरह भारत की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी कम्पनियों का प्रभुत्व बढ़ रहा है, और जिस तरह भारत की सेना अमेरिकी हथियारों पर निर्भर होती जा रही है, उसकी गहरी पड़ताल करने पर कोई भी सेंसिबल व्यक्ति यह जान सकता है कि मौजूदा नीति जारी रही तो कुछ ही वर्षों में भारत फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियो के पूर्ण नियंत्रण में चला जाएगा, और हमें इसका अहसास भी नही होगा । जिस तरह फ़िलिपींस और साउथ कोरिया को नही हुआ था , सउदी अरब को नही हुआ था और ब्रिटिश भारत में भारतियो को नही हुआ था । इसे नियो कोलोनीज़्म कहते है ।
सऊदी अरब एक अत्यंत धनी देश है जो मध्य पूर्व में कमांडिंग स्थिति में स्थित है।

सऊदी अरब के धन ने इसे बेहतरीन हथियार प्रणालियों खरीदने की अनुमति दी है जो संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य यूरोपीय निर्माताओं से खरीद सकते हैं। चीन ने कुछ मध्यम दूरी के अप्रचलित बैलिस्टिक मिसाइलों की भी आपूर्ति की है। (MRBM के)
हालांकि, प्रतिष्ठित स्रोतों से, सऊदी अरब के पास एक खराब नेतृत्व वाली और प्रशिक्षित सेना है। यह अरबों डॉलर के चमकदार नए हथियारों जैसे टाइफून, एफ -15 ईगल्स, एम 1 अब्राम टैंक, यूएस के खट्टे-मीठे लिटोरल फ्रिगेट, AWACS, और टैंकरों जैसे बड़े पैमाने पर हजारों विदेशी कर्मियों के साथ बनाए रखा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के अनुसार, सऊदी अरब में बाहरी उपकरणों के बिना अपने अधिकांश उपकरणों की सेवा और रखरखाव (Maintain) करने की कोई स्पष्ट क्षमता नहीं है, और प्रशिक्षण मानक प्रतिष्ठित रूप से कम हैं। कई सऊदी संचालक अपने उपकरणों को पीस-टाइम में चला सकते हैं, उड़ा सकते हैं या पाल सकते हैं, लेकिन एक कुशल शत्रु के खिलाफ युद्ध में उन्हें संचालित करने की कोशिश करना अलग बात है। अधिकारियों को उनके पुरुषों के साथ दुर्व्यवहार करने और उन पर नज़र रखने के लिए भी सूचित किया जाता है, और उनके सूचीबद्ध सैनिक, केवल पेचेक(Paycheck) के लिए इसमें हैं।।
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Bewqoof aur Aqalmand Shauhar Aur Biwi Ki kuchh Pahchan.

Aqalmand Husband wife ki Pahchan.
Kya Aap Bhi Apne Ajwazi Zindagi me aeise Amal karte hai?
Kya Aap bhi Unlogo (Shauhar-Biwi) me Shamil hai jo ek dusre se Muqable me lage rahte hai?
Kya Aap bhi Apni khtao ko Najerandaz kar dete hai Mager kabhi Maafi nahi mangte hai?
Kya Aap bhi Ek Dusre ko Zaleel karne me Lage Rahte hai?
Kya Aap ke Rishte ki Buniyad Allah Aur Rasool ki Itaa'at karne pe hai
                         Ya
Muashare ke Rasm o riwaj aur Jmane Jahiliyat ke Tarike Pe Hai?
ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﺍﻭﺭ ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ
ﻋﺮﺑﯽ ﺯﺑﺎﻥ ﮐﯽ ﺍﯾﮏ ﻣﻔﯿﺪ ﺗﺤﺮﯾﺮ ﺳﮯ ﺍﻗﺘﺒﺎﺱ

1 ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﭘﻨﮯ ﺭﺷﺘﮯ ﮐﯽ ﺑﻨﯿﺎﺩ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﯽ ﺍﻃﺎﻋﺖ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﮑﮯ ﻣﺘﻌﯿﻦ ﮐﺮﺩﮦ ﺣﻘﻮﻕ ﻭﻓﺮﺍﺋﺾ ﭘﺮ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﭘﻨﮯ ﺭﺷﺘﮯ ﮐﯽ ﺑﻨﯿﺎﺩ ﺭﺳﻮﻣﺎﺕ، ﮔﻨﺎﮨﻮﮞ، ﺍﻭﺭ، ﺧﻮﺍﮨﺸﺎﺕِ ﻧﻔﺲ ﭘﺮ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ

*.2* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮭﯽ ﺍﻭﺭ ﺧﯿﺮ ﺧﻮﺍﮦ ﮨﻮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﺣﺮﯾﻒ ﺍﻭﺭ ﻣﻘﺎﺑﻞ ﮨﻮﺗﮯ ﮨﯿﮟ

*.3* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﻋﺰﺕ ﺍﻭﺭ ﺍﺣﺘﺮﺍﻡ ﮨﻤﯿﺸﮧ ﻗﺎﺋﻢ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﺎ ﻣﺬﺍﻕ ﺍﮌﺍﺗﮯ ﺍﻭﺭ ﺗﺬﻟﯿﻞ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ

*.4* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﻟﻔﺎﻅ، ﺍﻋﻤﺎﻝ، ﺍﻭﺭ ﺟﺬﺑﺎﺕ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﺍﮐﺜﺮ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﺗﻌﺮﯾﻒ ﺍﻭﺭ ﻗﺪﺭﺩﺍﻧﯽ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﻇﮩﺎﺭِ ﻣﺤﺒﺖ ﺍﻭﺭ ﺗﻌﺮﯾﻒ ﮐﻮ ﺑﯿﮑﺎﺭ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ

*.5* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺑﻨﻨﮯ ﺳﻨﻮﺭﻧﮯ ﺍﻭﺭ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﺩﮐﮭﻨﮯ ﮐﺎ ﺍﮨﺘﻤﺎﻡ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﺎﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺳﻨﻮﺭﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻧﮩﯿﮟ

*.5* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﭘﺮﺩﮦ ﭘﻮﺷﯽ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﻮ ﻣﻌﺎﻑ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﻣﺠﺒﻮﺭﯾﻮﮞ ﮐﻮ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺧﺘﻼﻓﺎﺕ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﮯ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﻇﺎﮨﺮ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ.

*.6* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﻧﺮﻡ ﮔﺮﻡ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﺍﮔﻨﻮﺭ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﭘﺮ ﺭﺍﺋﯽ ﮐﺎ ﭘﮩﺎﮌ ﺑﻨﺎﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ

*.7* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﻧﺎ ﮐﻮ ﭼﮭﻮﮌ ﮐﺮ ﻣﻌﺎﻓﯽ ﻣﺎﻧﮕﻨﮯ ﻣﯿﮟ ﭘﮩﻞ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﻧﺎ ﭘﺮﺳﺘﯽ ﻣﯿﮟ ﮔﮭﺮ ﺗﺒﺎﮦ ﮐﺮﻟﯿﺘﮯ ﮨﯿﮟ

*.8* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﭘﺮ ﮨﺮ ﻭﻗﺖ ﺍﭘﻨﯽ ﻣﺮﺿﯽ ﻣﺴﻠﻂ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﮯ ﺑﻠﮑﮧ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﯽ ﭘﺴﻨﺪ ﻧﺎﭘﺴﻨﺪ ﮐﺎ ﺍﺣﺘﺮﺍﻡ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﻮ ﮐﻨﭩﺮﻭﻝ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯽ ﮐﻮﺷﺶ ﻣﯿﮟ ﺭﺷﺘﮧ ﺗﺒﺎﮦ ﮐﺮﻟﯿﺘﮯ ﮨﯿﮟ.

*.9* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﺗﺤﺎﺩ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﮏ ﮔﯿﺎﺭﮦ ﮨﻮﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺑﺎﺕ ﺑﺎﺕ ﭘﺮ ﺟﮭﮕﮍ ﮐﺮ ﺗﻨﮩﺎ ﺭﮦ ﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ

.10 ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﮨﺮ ﻭﻗﺖ ﺍﺱ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﮐﺲ ﻃﺮﺡ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﻮ ﺭﺍﺣﺖ ﭘﮩﻨﭽﺎﺋﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﮨﺮ ﻭﻗﺖ ﺍﺱ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﮐﺲ ﻃﺮﺡ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﻓﺎﺋﺪﮦ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﺮﻟﯿﮟ.

.11 ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﻣﺎﮞ ﺑﺎﭖ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﻣﺎﮞ ﺑﺎﭖ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﮑﯽ ﺧﺪﻣﺖ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﺎ ﻓﺮﺽ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﻣﺎﮞ ﺑﺎﭖ ﮐﻮ ﺑﻮﺟﮫ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ.

*.12* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺗﻤﺎﻡ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﮯ ﻣﻘﺎﺑﻠﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﺎ ﺳﺎﺗﮫ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺩﻭﺳﺮﻭﮞ ﮐﻮ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﭘﺮ ﺗﺮﺟﯿﺢ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ

*.13* ﻋﻘﻠﻤﻨﺪ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﯾﺴﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﮔﺰﺍﺭﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﻧﮑﯽ ﺍﻭﻻﺩ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻣﺜﺎﻝ ﮨﻮ
ﺑﯿﻮﻗﻮﻑ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﺁﭘﺲ ﮐﮯ ﺟﮭﮕﮍﻭﮞ ﺍﻭﺭ ﺑﺪﺳﻠﻮﮐﯽ ﺳﮯ ﺍﻭﻻﺩ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺗﺒﺎﮨﯽ ﮐﮯ ﺭﺍﺳﺘﮯ ﭘﺮ ﮈﺍﻝ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ
Kya Aap Log Aeisa Suluk Karte hai Inme se kis qism ke Shakhs hai Aap?

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Narvey me Quran ki Be Hurmati aur Musalmano ka Kirdar.

Kyu Narvey me Quran Majeed ki Be Hurmati ki Gayi?

Kya Hm Apne yaha Quran ki Be Hurmati nahi karte? Hm kitne din Quran Majeed ki Tilawat karte hai? Kya Sirf Quran Pak Takho me Rakhne ke liye ya Taweej Bnane ke liye rakha jata hai? Kya Hme Islam se Sachi Muhabbat hai ya fir Dikhawe ka hm Musalman hai?
Hm kab Islam se love marriage jaisa suluk karenge?


ﻧﺎﺭﻭﮮ ﻣﯿﮟ ﻗﺮﺍﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﺍﻭﺭ ﮨﻤﺎﺭﺍ ﮐﺮﺩﺍﺭ ۔۔۔
ﺍﯾﮏ ﺩﻥ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺍﻣﯿﺮ ﺣﻤﺰﮦ ﺟﺐ ﺷﮑﺎﺭ ﮐﮭﯿﻞ ﮐﺮ ﻭﺍﭘﺲ ﮔﮭﺮ ﺁﺋﮯ ﺗﻮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺧﺎﺩﻣﮧ ﺑﻮﻟﯽ ﺗﻢ ﮐﯿﺴﮯ ﭼﭽﺎ ﮨﻮ ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﺗﻮ ﻣﮑﮯ ﮐﺎ ﺳﺮﺩﺍﺭ ﮐﮩﺘﮯ ﮨﻮ ﺍﻭﺭ ﺗﻤﮩﺎﺭﮮ ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﻣﺤﻤﺪ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﮐﺎ ﺳﺮ ﺍﺑﻮ ﺟﮩﻞ ﻧﮯ ﭘﺘﮭﺮ ﻣﺎﺭ ﮐﺮ ﺯﺧﻤﯽ ﮐﺮ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ ﮐﯿﺎ ﺍﺱ ﻟﯿﮯ ﮐﮧ ﻭﮦ ﯾﺘﯿﻢ ﮨﮯ ؟؟؟؟
ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺍﻣﯿﺮ ﺣﻤﺰﮦ ﺍﺑﮭﯽ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﺩﻭﻟﺖ ﺳﮯ ﺑﮩﺮﮦ ﻭﺭ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺋﮯ ﺗﮭﮯ ﻧﺎ ﮨﯽ ﻧﺎﻣﻮﺱ ﺭﺳﺎﻟﺖ ﮐﺎ ﭘﺎﺱ ﺗﮭﺎ ﺍﻟﺒﺘﮧ ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﺳﮯ ﺑﮩﺖ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺮﺗﮯ ﺗﮭﮯ ۔ ﯾﮧ ﺳﻨﻨﺎ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺁﭖ ﮐﯽ ﭘﯿﺸﺎﻧﯽ ﭘﺮ ﺗﯿﻮﺭﯼ ﻧﻤﻮﺩﺍﺭ ﮨﻮﺋﯽ، ﺷﺪﯾﺪ ﻏﺼﮯ ﮐﯽ ﺣﺎﻟﺖ ﻣﯿﮟ ﺗﯿﺮ ﮐﻤﺎﻥ ﺍﯾﺴﮯ ﮨﯽ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﯿﮟ ﺗﮭﺎﻣﮯ ﻧﮑﻠﮯ ، ﺍﺑﻮ ﺟﮩﻞ ﮐﻮ ﺟﺎ ﭘﮑﮍﺍ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺳﺮ ﭘﺮ ﮐﻤﺎﻥ ﻣﺎﺭ ﮐﺮ ﺯﺧﻤﯽ ﮐﺮ ﺩﯾﺎ ۔ ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﮐﻮ ﭘﮩﻨﭽﯽ ﭼﻮﭦ ﮐﺎ ﺑﺪﻻ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺳﯿﻨﮧ ﻓﺨﺮ ﺳﮯ ﺑﻠﻨﺪ ﮐﯿﮯ ﺑﺎﺭﮔﺎﮦ ﺭﺳﺎﻟﺖ ﻣﯿﮟ ﺣﺎﺿﺮ ﮨﻮﺋﮯ ۔ ﺍﻭﺭ ﮔﺮﺩﻥ ﻓﺨﺮ ﺳﮯ ﺍﭨﮭﺎ ﮐﺮ ﺑﻮﻟﮯ ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﺑﻮ ﺟﮩﻞ ﮐﺎ ﺳﺮ ﺯﺧﻤﯽ ﮐﺮﮐﮯ ﺗﻤﮩﺎﺭﺍ ﺑﺪﻟﮧ ﺍﺗﺎﺭ ﺁﯾﺎ ﮨﻮﮞ ۔
ﻗﺮﺑﺎﻥ ﺟﺎﺋﯿﮯ ﺁﻗﺎﺋﮯ ﮐﺎﺋﻨﺎﺕ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﮐﯽ ﺫﺍﺕ ﺍﻗﺪﺱ ﭘﺮ ﺟﻦ ﮐﺎ ﺍﭘﻨﮯ ﭼﭽﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺭﺷﺘﮧ ﮐﭽﮫ ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﮐﺎ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺍﯾﮏ ﺩﻥ ﺁﭖ ﮐﮯ ﭼﭽﺎ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﺒﺎﺱ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﺳﮯ ﮐﺴﯽ ﻧﮯ ﺳﻮﺍﻝ ﮐﯿﺎ ﮐﮧ ﻋﺒﺎﺱ ﺁﭖ ﻣﺤﻤﺪ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﺳﮯ ﺑﮍﮮ ﮨﯿﮟ ﯾﺎ ﭼﮭﻮﭨﮯ ﮨﯿﮟ ۔ ﺗﻮ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﺒﺎﺱ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﻧﮯ ﺟﻮ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﯾﺎ ﺳﻮﻧﮯ ﮐﮯ ﭘﺎﻧﯽ ﺳﮯ ﻟﮑﮭﻨﮯ ﮐﮯ ﻗﺎﺑﻞ ﮨﮯ ۔ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﺒﺎﺱ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮩﺎ ﻧﮯ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﺑﮍﮮ ﻣﺤﻤﺪ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﮨﯿﮟ ﺍﻟﺒﺘﮧ ﻋﻤﺮ ﻣﯿﺮﯼ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﮨﮯ ۔ ﺣﻀﻮﺭ ﺁﻗﺎﺋﮯ ﻧﺎﻣﺪﺍﺭ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﮐﮯ ﭼﭽﺎ ﺁﭖ ﺳﮯ ﺑﮯ ﺷﮏ ﻋﻤﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺗﮭﮯ ﻟﯿﮑﻦ ﺳﺮﮐﺎﺭ ﮐﻮ ﺑﮍﺍ ﻣﺎﻧﺘﮯ ﺗﮭﮯ ﺍﻭﺭ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺣﻤﺰﮦ ﻧﮯ ﺟﺐ ﺣﻀﻮﺭ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﮐﻮ ﯾﮧ ﺧﻮﺷﺨﺒﺮﯼ ﺳﻨﺎﺋﯽ ﺗﻮ ﺁﻗﺎ ﮐﺮﯾﻢ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﯾﺎ
ﭼﭽﺎ ﻣﺠﮭﮯ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺧﻮﺷﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺋﯽ
ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺍﻣﯿﺮ ﺣﻤﺰﮦ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﺑﮩﺖ ﺣﯿﺮﺍﻥ ﮨﻮﺋﮯ ﺍﻭﺭ ﺑﻮﻟﮯ
ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﺁﭖ ﮐﻮ ﮐﺲ ﭼﯿﺰ ﺳﮯ ﺧﻮﺷﯽ ﻣﻠﮯ ﮔﯽ
ﺁﻗﺎﺋﮯ ﻧﺎﻣﺪﺍﺭ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ، ﭼﭽﺎ ﻣﺠﮭﮯ ﺗﺐ ﺧﻮﺷﯽ ﻣﻠﮯ ﮔﯽ ﺟﺐ ﺁﭖ ﺍﺳﻼﻡ ﻗﺒﻮﻝ ﮐﺮﯾﮟ ﮔﮯ ۔
ﻧﺎﺭﻭﮮ ﻣﯿﮟ ﮨﻮﺋﮯ ﺍﺱ ﻭﺍﻗﻌﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮩﺖ ﺳﮯ ﻣﺜﺒﺖ ﺍﻭﺭ ﻣﻨﻔﯽ ﭘﮩﻠﻮ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﺁﺋﮯ ۔
ﺍﯾﮏ ﺗﻮ ﯾﮧ ﮐﮧ ﯾﮩﻮﺩ ﻭ ﻧﺼﺎﺭﯼ ﮐﺒﮭﯽ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺩﻭﺳﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﮯ
ﺍﯾﮏ ﭘﮩﻠﻮ ﻣﻠﻌﻮﻥ ﮔﺴﺘﺎﺥ ﭘﺮ ﻣﺠﺎﮨﺪ ﺍﺳﻼﻡ ﻋﻤﺮ ﺍﻟﯿﺎﺱ ﮐﮯ ﺣﻤﻠﮯ ﮐﯽ ﺻﻮﺭﺕ ﻣﯿﮟ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﺁﯾﺎ ﺟﺲ ﻧﮯ ﻋﻤﺮ ﺍﻟﯿﺎﺱ ﮐﻮ ﻣﺮﺩ ﺣﺮ ﺑﻨﺎﯾﺎ ﺍﻭﺭ ﮐﻔﺮ ﮐﮯ ﺍﯾﻮﺍﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﻟﻠﮑﺎﺭ ﭘﮩﻨﭽﺎﺋﯽ ﮐﮧ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﺁﻥ ﭘﺮ ﮐﭧ ﻣﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﺑﮩﺖ ﺳﮯ ﺟﺎﻧﺜﺎﺭ ﺁﺝ ﺑﮭﯽ ﺟﺎﻥ ﮨﺘﮭﯿﻠﯽ ﭘﺮ ﻟﯿﮯ ﭘﮭﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ.
ﺍﺱ ﮐﮯ ﻋﻼﺅﮦ ﮨﻢ ﺳﺐ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﮐﺮﺩﺍﺭ ﭘﺮ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﮏ ﺳﻮﺍﻟﯿﮧ ﻧﺸﺎﻥ ﻟﮕﺎ ﮐﮧ ﮐﯿﺎ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﺩﯾﻦ ﺳﮯ ﯾﮩﯽ ﻣﺤﺒﺖ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺍﻣﯿﺮ ﺣﻤﺰﮦ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﺑﮭﺘﯿﺠﮯ ﺳﮯ ﺗﮭﯽ ؟؟؟؟؟
ﮐﯿﺎ ﮨﻢ ﺁﺝ ﺑﮭﯽ ﺍﺑﻮ ﺟﮩﻞ ﮐﺎ ﺳﺮ ﭘﮭﺎﮌ ﮐﺮ ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﺭﮨﯿﮟ ﮔﮯ ۔ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﻣﺎﮞ ﺑﺎﭖ ﮐﮯ ﮔﮭﺮ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﻧﮯ ﺳﮯ ﮨﻤﯿﮟ ﻣﺴﻠﻢ ﮐﺎ ﻣﯿﮉﻝ ﺗﻮ ﺿﺮﻭﺭ ﻣﻼ ﻟﯿﮑﻦ ﮨﻢ ﻧﮯ ﺍﺱ ﻣﺬﮨﺐ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺭﯾﻨﺞ ﻣﯿﺮﺝ ﻭﺍﻻ ﺑﮭﯽ ﺳﻠﻮﮎ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﺎ ۔ ﮐﯿﺎ ﻭﮦ ﺩﻥ ﮐﺒﮭﯽ ﺁﺋﮯ ﮔﺎ ﺟﺐ ﮨﻢ ﺍﭘﻨﮯ ﺁﺑﺎﺅ ﺍﺟﺪﺍﺩ ﺳﮯ ﻭﺭﺍﺛﺖ ﻣﯿﮟ ﻣﻠﮯ ﺍﺳﻼﻡ ﺳﮯ ﮨﭧ ﮐﺮ ﺍﺱ ﻣﺬﮨﺐ ﺳﮯ ﻟﻮ ﻣﯿﺮﺝ ﮐﺮﯾﮟ ﮔﮯ ۔
ﮐﯿﺎ ﮨﻢ ﻣﺤﺒﺖ ﺭﺳﻮﻝ ﻣﯿﮟ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﺍﻣﯿﺮ ﺣﻤﺰﮦ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﮐﯽ ﻃﺮﺡ ﺍﺳﻼﻡ ﻗﺒﻮﻝ ﮐﺮﻧﮯ ﭘﺮ ﺗﯿﺎﺭ ﮨﯿﮟ ؟؟؟؟
ﮐﯿﺎ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﺻﺮﻑ ﮐﻔﺎﺭ ﮨﯽ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﺐ ﮨﻢ ﻗﺮﺁﻥ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺍﺣﮑﺎﻣﺎﺕ ﮐﻮ ﭘﺲ ﭘﺸﺖ ﮈﺍﻝ ﮐﺮ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﻣﯿﮟ ﻓﺴﺎﺩ ﻣﭽﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﭘﻨﯽ ﻏﻠﻂ ﺣﺮﮐﺘﻮﮞ ﺳﮯ ﺍﺳﻼﻡ ﺍﻭﺭ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﮐﺎ ﻏﻠﻂ ﺍﻣﯿﺞ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﭘﯿﺶ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﯿﺎ ﺗﺐ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﯽ ۔
ﮐﯿﺎ ﺗﺐ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﯽ ﺟﺐ ﮨﻢ ﺍﺳﮯ ﺧﺮﯾﺪ ﮐﺮ ﺳﺒﺰ ﻏﻼﻑ ﻣﯿﮟ ﺑﻨﺪ ﮐﺮﮐﮯ ﺍﻭﭘﺮ ﺍﻭﻃﺎﻕ ﻣﯿﮟ ﺭﮐﮫ ﮐﺮ ﺑﮭﻮﻝ ﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ ۔
ﮐﯿﺎ ﺗﺐ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﯽ ﺟﺐ ﮨﻢ ﺍﺳﮯ ﭘﮍﮬﻨﮯ ﺍﻭﺭ ﺳﻤﺠﮭﻨﮯ ﮐﯽ ﺑﺠﺎﺋﮯ ﮐﺎﺭﻭﺑﺎﺭ ﮐﺎ ﺯﺭﯾﻌﮧ ﺑﻨﺎ ﻟﯿﺘﮯ ﮨﯿﮟ ۔
ﺍﺱ ﻭﺍﻗﻌﮯ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﮨﻤﺎﺭﺍ ﮐﯿﺎ ﺭﻭﯾﮧ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﮐﯿﺎ ﯾﮧ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺣﺮﻣﺘﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮧ ﮨﻢ ﮨﻔﺘﻮﮞ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﮭﻮﻝ ﮐﺮ ﭘﮍﮬﻨﺎ ﮔﻮﺍﺭﮦ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﮯ ۔ ﺍﺳﮯ ﺳﻤﺠﮭﻨﺎ ﯾﮧ ﺗﻮ ﺑﮩﺖ ﺩﻭﺭ ﮐﯽ ﺑﺎﺕ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻣﻄﺎﺑﻖ ﺫﻧﺪﮔﯽ ﮔﺰﺍﺭﻧﺎ ۔
ﺍﻟﻠﮧ ﺍﮐﺒﺮ
ﺍﻟﻠﮧ ﮨﻤﯿﮟ ﺟﺎﻧﮯ ﺍﻧﺠﺎﻧﮯ ﻗﺮﺁﻥ ﻣﺠﯿﺪ ﮐﯽ ﺑﮯ ﺍﺩﺑﯽ ﮐﯽ ﻣﻌﺎﻓﯽ ﻋﻄﺎ ﻓﺮﻣﺎﺋﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﺘﺎﺏ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﯽ ﺗﻮﻓﯿﻖ ﻋﻄﺎ ﻓﺮﻣﺎﺋﮯ ۔ آمین ثمہ آمین
ﻣﻨﻘﻮﻝ۔۔۔
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Aaj Science Ki Talim ke Sath Sath Deeni Talim kitni Ahem Hai?

WHAT is the value of Islamic studies for Muslim Society?

These days how many important of islamic education?
Aaj ke Science aur Technology ke Jmane me Islamic Talimat ki kitni jarurat hai?
Jadeed Talim ke sath sath Akhlaqi aur Deeni Talim Kitni Ahem Hai?

ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺍﯾﮏ ﺍﯾﺴﺎ ﻣﻮﺿﻮﻉ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺍﭨﮭﺎﺭﮨﻮﯾﮟ ﺻﺪﯼ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺳﮯ ﮨﯽ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺩﺭﻣﯿﺎﻥ ﺍﯾﮏ ﺳﻨﺠﯿﺪﮦ ﺑﺤﺚ ﺍﻭﺭ ﺗﺤﻘﯿﻖ ﮐﺎ ﻋﻨﻮﺍﻥ ﺑﻦ ﭼﮑﺎ ﮨﮯ - ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﺟﺐ ﮨﻢ ﺍﺱ ﻣﻮﺿﻮﻉ ﭘﺮ ﺑﺤﺚ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯽ ﺟﺮﺍﺕ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﮨﻤﯿﮟ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺟﺪﯾﺪ ﺩﺭﺱ ﻭ ﺗﺪﺭﯾﺲ ﺍﻭﺭ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﻗﺎﻓﻠﮯ ﮐﮯ ﺭﻭﺡ ﺭﻭﺍﮞ ﺳﺮﺳﯿﺪ ﺍﺣﻤﺪ ﺧﺎﻥ , ﺻﺎﺑﻮ ﺻﺪﯾﻖ , ﻣﻮﻻﻧﺎ ﺷﺒﻠﯽ , ﻣﻮﻻﻧﺎ ﺣﻤﯿﺪﺍﻟﺪﯾﻦ ﻓﺮﺍﮨﯽ ﺍﻭﺭ ﻣﻮﻻﻧﺎ ﻋﻠﯽ ﻣﯿﺎﮞ ﻧﺪﻭﯼ ﺳﮯ ﻟﯿﮑﺮ ﮈﺍﮐﭩﺮ ﺭﻓﯿﻖ ﺫﮐﺮﯾﺎ ﻏﻼﻡ ﻭﺳﺘﺎﻧﻮﯼ , ﻭﻟﯽ ﺭﺣﻤﺎﻧﯽ , ﮈﺍﮐﭩﺮ ﺫﺍﮐﺮ ﻧﺎﯾﮏ ﺍﻭﺭ ﻣﺒﺎﺭﮎ ﭘﮍﯼ ﮐﯽ ﮐﺎﻭﺷﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺫﮨﻦ ﻣﯿﮟ ﺿﺮﻭﺭ ﺭﮐﮭﻨﯽ ﭼﺎہیے ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺑﮭﯽ ﺫﮨﻦ ﻣﯿﮟ ﺿﺮﻭﺭ ﺭﮨﮯ ﮐﮧ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﮐﯽ ﺍﭘﻨﯽ ﺣﯿﺜﯿﺖ ﺍﻭﺭ ﺷﻨﺎﺧﺖ ﺍﯾﮏ ﺩﺍﻋﯽ ﺍﻭﺭ ﻗﺎﺋﺪ ﮐﯽ ﻃﺮﺡ ﮨﮯ - ﻗﺎﺋﺪ ﺍﮔﺮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﺍﻭﺭ ﺑﯿﺪﺍﺭ ﻧﮧ ﮨﻮ ﺗﻮ ﻭﮦ ﮐﺴﯽ ﻗﻮﻡ ﺍﻭﺭ ﻗﺎﻓﻠﮯ ﮐﯽ ﺭﮨﻨﻤﺎﺋﯽ ﮐﺒﮭﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﺎ - ﺍﯾﮏ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﮐﺎ ﻋﻘﯿﺪﮦ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﯽ ﺍﺻﻞ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﺮﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺷﺮﻭﻉ ﮨﻮﻧﯽ ﮨﮯ - ﻣﮕﺮ ﯾﮧ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﺑﮭﯽ ﺍﺳﯽ ﻭﻗﺖ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ ﺟﺒﮑﮧ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺩﻧﯿﺎ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﮨﻮ - ﺩﻧﯿﺎ ﮐﻮ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﭘﺮﺍﻣﻦ ﺑﻨﺎﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻻﺯﻣﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﭘﻨﮯ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﯽ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﺍﻭﺭ ﺧﺎﻟﻖ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﺿﺮﻭﺭ ﻭﺍﻗﻒ ﮨﻮ - ﻋﻠﻢ ﻏﯿﺐ ﮐﯽ ﺍﺱ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﮐﻮ ﭼﺎﮎ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﻻﺯﻣﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﯾﺴﮯ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﮐﻮ ﺍﺧﺘﯿﺎﺭ ﮐﺮﮮ ﺟﻮ ﺍﺳﮯ ﺣﺎﻻﺕ ﺣﺎﺿﺮﮦ ﺳﮯ ﻭﺍﻗﻒ ﮐﺮﺍﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺪﺩ ﮐﺮﮮ - ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﺒﮭﯽ ﺟﺎﻧﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺑﺬﺍﺕ ﺧﻮﺩ ﻧﮧ ﺗﻮ ﮐﻮﺋﯽ ﻣﻘﺼﺪ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻧﮧ ﮨﯽ ﺍﺳﻼﻡ ﺑﻠﮑﮧ ﯾﮧ ﺍﯾﮏ ﮨﺘﮭﯿﺎﺭ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺍﻧﺴﺎﻧﯽ ﺫﮨﻦ ﺳﮯ ﺟﮩﺎﻟﺖ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﺪﮬﯿﺮﮮ ﮐﮯ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﻮ ﭼﺎﮎ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﺻﺮﺍﻁ ﻣﺴﺘﻘﯿﻢ ﯾﺎ ﺻﺤﯿﺢ ﺭﺥ ﮐﮯ ﺗﻌﯿﻦ ﮐﺎ ﻓﯿﺼﻠﮧ ﮐﺮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺪﺩ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﮯ - ﺁﺝ ﮐﮯ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﺍﻧﺴﺎﻧﯽ ﺿﺮﻭﺭﯾﺎﺕ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﺠﺎﺩﺍﺕ ﻧﮯ ﺟﺲ ﻃﺮﺡ ﺻﻨﻌﺖ ﻭ ﺗﺠﺎﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﭨﮑﻨﺎﻟﻮﺟﯽ ﮐﮯ ﺷﻌﺒﮯ ﮐﻮ ﻭﺳﻌﺖ ﺩﯼ ﮨﮯ ﻋﻠﻢ ﻭ ﮨﻨﺮ ﺍﻭﺭ ﺗﺤﻘﯿﻖ ﻭ ﺟﺴﺘﺠﻮ ﮐﮯ ﺯﺍﻭﯾﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺑﮯ ﭘﻨﺎﮦ ﺍﺿﺎﻓﮧ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ ﺑﻠﮑﮧ ﮔﻠﻮﺑﻼﺋﺰﯾﺸﻦ ﺍﻭﺭ ﺟﯿﻮﻣﯿﭩﺮﯼ ﮐﯽ ﺯﺑﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺩﺍﺋﺮﮮ ﮐﮯ 360 ﮈﮔﺮﯼ ﮐﺎ ﺯﺍﻭﯾﮧ ﺟﻮ ﺍﭨﮭﺎﺭﮨﻮﯾﮟ ﺻﺪﯼ ﮐﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﺗﮏ ﻧﺎﻣﮑﻤﻞ ﯾﺎ ﺍﺑﺘﺪﺍﺋﯽ ﻣﺮﺍﺣﻞ ﮐﮯ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﺗﮭﺎ ﺍﺏ ﺍﮐﯿﺴﻮﯾﮟ ﺻﺪﯼ ﻣﯿﮟ ﺗﻘﺮﯾﺒﺎً ﻣﮑﻤﻞ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﮯ ﻗﺮﯾﺐ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﺤﺴﻮﺱ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﭘﻨﯽ ﺗﺮﻗﯽ ﺍﻭﺭ ﻋﻠﻢ ﮐﯽ ﺍﺱ ﺍﻧﺘﮩﺎ ﮐﻮ ﭘﮩﻨﭻ ﭼﮑﺎ ﮨﮯ ﺟﺴﮯ ﺍﮔﺮ ﺍﻧﺴﺎﻧﯽ ﺍﺧﻼﻕ ﻭ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﮐﮯ ﭘﯿﺮﮨﻦ ﻣﯿﮟ ﻧﮩﯿﮟ ﮈﮬﺎﻻ ﮔﯿﺎ ﺗﻮ ﺍﺱ ﭘﻮﺭﮮ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﯽ ﺗﺒﺎﮨﯽ ﯾﻘﯿﻨﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﺴﯽ ﺣﺪ ﺗﮏ ﮨﻢ ﺍﺱ ﺍﻧﺪﮬﯽ ﺗﺮﻗﯽ ﮐﮯ ﺗﺒﺎﮦ ﮐﻦ ﻧﺘﺎﺋﺞ ﺳﮯ ﺁﺷﻨﺎ ﺑﮭﯽ ﮨﻮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ -
ﺍﯾﺴﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﻃﺎﻟﺐ ﻋﻠﻢ ﮐﮯ ﭘﺎﺱ ﺟﺒﮑﮧ ﺑﭽﭙﻦ ﺳﮯ ﺑﮍﮬﺎﭘﮯ ﺗﮏ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﯽ ﺳﺒﺠﯿﮑﭧ ﯾﺎ ﻋﻨﻮﺍﻥ ﭘﺮ ﻋﺒﻮﺭ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺻﺮﻑ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﮯ ﺗﯿﺲ ﺳﺎﻝ ﮐﺎ ﻭﻗﻔﮧ ﮨﯽ ﺩﺭﮐﺎﺭ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﻭﻗﻔﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﯾﮧ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺱ ﻣﻘﺼﺪ ﮐﻮ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﺮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﮐﺎﻣﯿﺎﺏ ﮨﯽ ﮨﻮﺟﺎﺋﮯ ﺍﻭﺭ ﺟﺲ ﻃﺮﺡ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺍﺱ ﮐﯽ ﭘﻮﺭﯼ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﻌﺎﺷﯽ ﺍﻭﺭ ﮔﮭﺮﯾﻠﻮ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﮐﯽ ﺟﺪﻭﺟﮩﺪ ﺍﻭﺭ ﺿﺮﻭﺭﯾﺎﺕ ﮐﯽ ﺗﮑﻤﯿﻞ ﻣﯿﮟ ﮨﯽ ﺳﺮﻑ ﮨﻮ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﻧﺎﻣﻤﮑﻦ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺟﺪﯾﺪ ﺩﻭﺭ ﮐﮯ 360 ﮈﮔﺮﯼ ﮐﮯ ﺗﺤﻘﯿﻘﯽ ﺍﻭﺭ ﻋﻠﻤﯽ ﺯﺍﻭﯾﮯ ﮐﻮ ﻃﺌﮯ ﮐﺮ ﭘﺎﺋﮯ - ﮨﻤﺎﺭﺍ ﮐﮩﻨﮯ ﮐﺎ ﻣﻘﺼﺪ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﺱ ﺗﯿﺲ ﺳﺎﻝ ﮐﮯ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﻭﻗﻔﮯ ﮐﮯ ﺩﻭﺭﺍﻥ ﺍﮔﺮ ﺑﭽﮯ ﮐﻮ ﮐﻮﺋﯽ ﭨﮭﻮﺱ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯼ ﮔﺌﯽ ﯾﺎ ﻭﮦ ﺍﻧﺴﺎﻧﯽ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﺍﻭﺭ ﺍﭘﻨﮯ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﮯ ﻣﻘﺼﺪ ﯾﻌﻨﯽ ﺍﻗﺮﺍﺀ ﺑﺴﻢ ﺭﺑﮏ ﺍﻟﺬﯼ ﺧﻠﻖ ﺳﮯ ﻏﺎﻓﻞ ﺍﻭﺭ ﻣﺤﺮﻭﻡ ﺭﮦ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﺎﻗﯽ ﮐﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﺱ ﻏﯿﺮ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺩﻧﯿﺎﻭﯼ ﺍﻭﺭ ﻣﺎﺩﯼ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﯽ ﮐﺎﻣﯿﺎﺑﯽ ﺍﻭﺭ ﻧﺎﮐﺎﻣﯿﺎﺑﯽ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮨﯽ ﺻﻮﺭﺗﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺟﻮ ﻓﺴﺎﺩﺍﺕ ﺑﺮﭘﺎ ﮐﺮﯾﮕﺎ ﺍﺱ ﮐﺎ ﺗﺼﻮﺭ ﺁﺝ ﮐﮯ ﺍﺱ ﻣﺎﺩﮦ ﭘﺮﺳﺖ ﻣﺴﺎﺑﻘﺖ ﺍﻭﺭ ﺳﺮﻣﺎﯾﮧ ﺩﺍﺭﺍﻧﮧ ﻧﻈﺎﻡ ﻣﯿﮟ ﺑﺨﻮﺑﯽ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺟﮩﺎﮞ ﮨﺮ ﺷﺨﺺ ﺍﭘﻨﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﯿﮟ ﺗﺤﺮﯾﺮ ﻭ ﺗﻘﺮﯾﺮ ﮐﯽ ﺷﮑﻞ ﻣﯿﮟ ﺳﺎﺯﺵ ﺍﻭﺭ ﺑﺎﺭﻭﺩ ﮐﯽ ﺷﮑﻞ ﻣﯿﮟ ﭘﺘﮭﺮ ﻟﺌﮯ ﮐﮭﮍﺍ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﻣﻮﻗﻊ ﮐﯽ ﺗﻼﺵ ﻣﯿﮟ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﮔﺮ ﮐﻮﺋﯽ ﺑﺎﺕ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻣﺰﺍﺝ ﺍﻭﺭ ﺗﻮﻗﻊ ﮐﮯ ﺧﻼﻑ ﮨﻮ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺍﺱ ﭘﺘﮭﺮ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﻣﺨﺎﻟﻒ ﮐﮯ ﺳﺮ ﭘﺮ ﺩﮮ ﻣﺎﺭﮮ - ﯾﺎ ﻧﺎﮐﺎﻣﯽ ﮐﯽ ﺻﻮﺭﺕ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﯽ ﮨﺘﮭﯿﺎﺭ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﺳﺮ ﭘﺮ ﺩﮮ ﻣﺎﺭﮮ -
ﺍﯾﺴﮯ ﻣﯿﮟ ﻋﻠﻤﺒﺮﺩﺍﺭﺍﻥ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﯾﮧ ﺫﻣﮧ ﺩﺍﺭﯼ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﺳﮯ ﺍﺱ ﺟﺎﻧﻮﺭ ﮐﻮ ﺧﺘﻢ ﮐﺮﻧﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﮯ ﺗﺒﺎﮨﯽ ﮐﮯ ﮨﺘﮭﯿﺎﺭ ﻣﯿﮟ ﺗﺒﺪﯾﻞ ﮨﻮﻧﮯ ﺳﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﮨﯽ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﺧﻼﻕ ﻭ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﮐﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺳﮯ ﺭﻭﺷﻨﺎﺱ ﮐﺮﺍﺋﯿﮟ - ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻣﻠﮏ ﻣﯿﮟ ﺩﻋﻮﺕ ﻭ ﺗﺒﻠﯿﻎ ﻣﯿﮟ ﻣﺼﺮﻭﻑ ﻣﺨﺘﻠﻒ ﺗﻨﻈﯿﻤﯿﮟ ﯾﮧ ﮐﺎﻡ ﮐﺮ ﺑﮭﯽ ﺭﮨﯽ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺟﻮ ﻟﻮﮒ ﺍﻥ ﺗﻨﻈﯿﻤﻮﮞ ﺳﮯ ﺟﮍﮮ ﮨﯿﮟ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻓﺎﺋﺪﮮ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﻧﮑﺎﺭ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﻣﮕﺮ ﺍﺩﯾﺎﻥ ﺑﺎﻃﻞ ﯾﺎ ﺧﺎﻟﺺ ﻣﺎﺩﮦ ﭘﺮﺳﺖ ﻃﺎﻗﺘﻮﮞ ﮐﮯ ﻣﻘﺎﺑﻠﮯ ﻣﯿﮟ ﯾﮧ ﺗﺤﺮﯾﮑﯿﮟ ﺍﮔﺮ ان ﭘﺮ ﺍﺛﺮ ﻧﮩﯿﮟ ﺛﺎﺑﺖ ﮨﻮﺭﮨﯽ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﺍﺱ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺑﺎﻃﻞ ﻃﺎﻗﺘﻮﮞ ﮐﻮ ﺍﻗﺘﺪﺍﺭ ﺣﺎﺻﻞ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺟﮩﺎﮞ ﺍﭘﻨﯽ ﺗﻤﺎﻡ ﺟﺪﯾﺪ ﺣﮑﻮﻣﺘﯽ ﺫﺭﺍﺋﻊ ﺍﻭﺭ ﻭﺳﺎﺋﻞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﺭﯼ ﻋﺰﺍﺋﻢ ﮐﯽ ﺗﮑﻤﯿﻞ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﺍﻭﺭ ﺍﺻﻮﻝ ﭘﺮ ﺣﻤﻠﮧ ﺁﻭﺭ ﮨﯿﮟ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﻗﺎﻓﻠﮯ ﮐﺎ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﮏ ﮐﺜﯿﺮ ﮔﺮﻭﮦ ﻧﺎﺩﺍﻧﺴﺘﮧ ﯾﺎ ﺍﭘﻨﯽ ﻣﺎﺩﯼ ﮐﻤﺰﻭﺭﯼ ﮐﯽ ﺑﻨﯿﺎﺩ ﭘﺮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺟﻤﺎﻋﺖ ﮐﺎ ﺳﭙﺎﮨﯽ ﮨﮯ - ﮨﻤﺎﺭﺍ ﯾﻌﻨﯽ ﻣﺴﻠﻢ ﻋﻠﻤﺎﺀ ﺍﻭﺭ ﺍﮨﻞ ﺩﺍﻧﺶ ﮐﺎ ﻣﺴﺌﻠﮧ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺟﺲ ﻃﺮﺡ ﺍﺭﺑﺎﺏ ﺍﻗﺘﺪﺍﺭ ﺍﭘﻨﮯ ﺑﺎﻃﻞ ﻧﻈﺮﯾﺎﺕ ﮐﻮ ﺑﺎﻗﺎﻋﺪﮦ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻣﺸﺘﮩﺮ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﭘﺎﺱ ﺑﮭﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﻭ ﺗﺒﻠﯿﻎ ﮐﺎ ﮐﻮﺋﯽ ﭨﮭﻮﺱ ﻣﻨﺼﻮﺑﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮨﻢ ﺁﺝ ﺑﮭﯽ ﮔﻠﯽ ﮐﻮﭼﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﻟﯿﭩﺮﯾﭽﺮ ﺑﺎﻧﭧ ﮐﺮ ﯾﺎ ﻧﻤﺎﺯ ﮐﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﺩﮮ ﮐﺮ ﻣﻄﻤﺌﻦ ﮨﯿﮟ
- ﺟﺒﮑﮧ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺍﻧﺒﯿﺎﺀ ﮐﺮﺍﻡ ﮐﯽ ﺳﻨﺖ ﯾﮧ ﺭﮨﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﺳﺐ ﺳﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺱ ﺍﺧﻼﻕ ﻭ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﮐﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﮐﻮ ﻭﻗﺖ ﮐﮯ ﻧﻤﺮﻭﺩ , ﻓﺮﻋﻮﻥ ﺍﻭﺭ ﺳﺮﺩﺍﺭﺍﻥ ﻗﻮﻡ ﮐﮯ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﭘﯿﺶ ﮐﯿﺎ - ﺍﺱ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ  ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﮯ ﺑﮕﺎﮌ ﻣﯿﮟ ﻭﻗﺖ ﮐﮯ ﻋﺎﻟﻢ ﻭ ﺣﺎﮐﻢ ﺍﻭﺭ ﺳﺮﺩﺍﺭﺍﻥ ﻗﻮﻡ ﮐﺎ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﮨﻢ ﮐﺮﺩﺍﺭ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﮐﯿﻮﮞ ﮐﮧ ﻋﻮﺍﻡ ﭘﺮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﮔﺮﻓﺖ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﮯ - ﭼﻮﻧﮑﮧ ﺣﺎﻻﺕ ﻣﯿﮟ ﺑﺪﻻﺅ ﺁﭼﮑﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﯽ ﺑﺎﮒ ﮈﻭﺭ ﺍﻭﺭ ﻗﺴﻤﺖ ﮐﺎ ﻓﯿﺼﻠﮧ ﺳﯿﺎﺳﺖ ﺩﺍﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺳﺎﺗﮫ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﮐﮯ ﭘﺮﻭﻓﯿﺴﺮ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﮐﮯ ﭨﯿﭽﺮ , ﺍﺧﺒﺎﺭﺍﺕ ﮐﮯ ﺍﯾﮉﯾﭩﺮ ﺍﻭﺭ ﻗﻠﻤﮑﺎﺭ ﮐﺮﻧﮯ ﻟﮕﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﻣﻮﺟﻮﺩﮦ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﯾﮧ ﮐﺎﻡ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﮐﮯ ﻧﺼﺎﺏ ﻣﯿﮟ ﺍﺧﻼﻕ ﻭ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﮐﯽ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﯽ ﺷﻤﻮﻟﯿﺖ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺗﺎﮐﮧ ﺍﻥ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﺳﮯ ﻓﺎﺭﻍ ﮨﻮﮐﺮ ﺟﺐ ﺍﯾﮏ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺑﭽﮧ ﮐﺎﻟﺞ ﯾﺎ ﯾﻮﻧﯿﻮﺭﺳﭩﯽ ﮐﯽ ﺩﮨﻠﯿﺰ ﭘﺮ ﻗﺪﻡ ﺭﮐﮭﮯ ﺗﻮ ﻏﯿﺮ ﻣﺬﺍﮨﺐ ﮐﮯ ﭘﺨﺘﮧ ﺍﻭﺭ ﺫﮨﯿﻦ ﺑﭽﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﻮﺍﻟﻮﮞ ﮐﺎ ﺑﺎﺁﺳﺎﻧﯽ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﮮ ﺳﮑﮯ -
ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﺟﯿﺴﮯ ﮐﺜﯿﺮ ﺍﻟﻤﺬﺍﮨﺐ ﺳﻤﺎﺝ ﻣﯿﮟ ﭼﻮﻧﮑﮧ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﮐﯽ ﺳﻄﺢ ﺗﮏ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻧﺼﺎﺏ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﺷﺎﻣﻞ ﮐﺮﻭﺍﻧﺎ ﺑﮩﺖ ﻣﺸﮑﻞ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺍﭘﻨﮯ ﺫﺍﺗﯽ ﺍﺩﺍﺭﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﭘﺮﯼ ﭘﺮﺍﺋﻤﺮﯼ ﺍﻭﺭ ﺳﯿﮑﻨﮉﺭﯼ ﺗﮏ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﺑﻨﯿﺎﺩﯼ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﭘﺮ ﻣﺒﻨﯽ ﺍﯾﺴﺎ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﻧﺼﺎﺏ ﺗﯿﺎﺭ ﮐﺮﯾﮟ ﺗﺎﮐﮧ ﺍﺱ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺳﺎﺗﮫ ﺳﺮﮐﺎﺭﯼ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﺑﻮﺭﮈ ﮐﮯ ﮨﻢ ﺟﮩﺘﯽ ﻧﺼﺎﺏ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﻣﮑﻤﻞ ﮐﺮﻭﺍﻧﺎ ﻣﺸﮑﻞ ﻧﮧ ﮨﻮ -
ﻣﻤﺐﺀ ﻣﯿﮟ ﺁﺟﮑﻞ ﮐﺌﯽ ﺍﯾﺴﮯ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﮐﮭﻞ ﭼﮑﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺟﺪﯾﺪ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﭘﺮ ﺑﮭﯽ ﺑﮭﺮ ﭘﻮﺭ ﻣﺤﻨﺖ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﺲ ﮐﯽ ﺷﺮﻭﻋﺎﺕ ﺳﺐ ﺳﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﮈﺍﮐﭩﺮ ﺫﺍﮐﺮ ﻧﺎﯾﮏ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺳﮯ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺏ ﺗﻮ ﺍﯾﺴﮯ ﺩﺳﯿﻮﮞ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﻭﺟﻮﺩ ﻣﯿﮟ ﺁﭼﮑﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭﻏﺎﻟﺒﺎً ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﮐﮯ ﮨﺎﺋﯽ ﭘﺮﻭﻓﺎﺋﻞ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﮐﯽ ﺷﺮﻭﻋﺎﺕ ﺳﺎﺅﺗﮫ ﺍﻓﺮﯾﻘﮧ ﭘﺎﮐﺴﺘﺎﻥ ﺍﻭﺭﺩبی  ﻭﻏﯿﺮﮦ ﺳﮯ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﮯ ﺟﺴﮯ ﻣﻤﺐﺀ ﻣﯿﮟ ﺳﺐ ﺳﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﮈﺍﮐﭩﺮ ﺫﺍﮐﺮ ﻧﺎﯾﮏ ﻧﮯ ﺍﺳﻼﻣﮏ ﺍﻧﭩﺮﻧﯿﺸﻨﻞ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﮐﮯ ﻧﺎﻡ ﺳﮯ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﮐﺎﻣﯿﺎﺏ ﺑﮭﯽ ﺭﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺏ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻣﻌﻠﻮﻣﺎﺕ ﮐﮯ ﻣﻄﺎﺑﻖ ﻣﻤﺐﺀ ﻣﯿﮟ ﮐﻢ ﺳﮯ ﮐﻢ ﺍﯾﺴﮯ ﺩﺳﯿﻮﮞ ﺍﺳﻼﻣﮏ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﮐﮭﻞ ﭼﮑﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺑﺎﺑﺮﯼ ﻣﺴﺠﺪ ﮐﯽ ﺷﮩﺎﺩﺕ ﺍﻭﺭ 9/11 ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﻋﺎﻟﻤﮕﯿﺮ ﺳﻄﺢ ﭘﺮ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﻣﻘﺒﻮﻟﯿﺖ ﻧﮯ ﺧﻮﺩ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﮏ ﺑﺎﺭ ﭘﮭﺮ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺭﺍﻏﺐ ﮨﻮﻧﮯ ﭘﺮ ﺁﻣﺎﺩﮦ ﮐﯿﺎ - ﺍﺳﯽ ﺳﻠﺴﻠﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺑﺎﺭ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻣﻼﻗﺎﺕ ﺑﺮﻃﺎﻧﯿﮧ ﮐﮯ ﺍﯾﮏ ﮨﻢ ﻋﺼﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﺳﮑﺎﻟﺮ ﻋﯿﺴﮟٰ ﻣﻨﺼﻮﺭﯼ ﺻﺎﺣﺐ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﮨﻮ ﭼﮑﯽ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺑﺮﻃﺎﻧﯿﮧ ﻣﯿﮟ ﻣﻘﯿﻢ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺑﯿﺪﺍﺭﯼ ﭘﯿﺪﺍ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺍﯾﺴﮯ ﮐﺌﯽ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﻗﺎﺋﻢ ﮐﺮ ﭼﮑﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺱ ﻣﻘﺼﺪ ﮐﯽ ﺗﮑﻤﯿﻞ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﮯ ﺩﯾﮕﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻣﻤﺎﻟﮏ ﮐﺎ ﺩﻭﺭﮦ ﺑﮭﯽ ﮐﺮﺗﮯ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ - ﺧﺎﺹ ﻃﻮﺭ ﺳﮯ ﭘﺎﮐﺴﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺍﺱ ﻣﻨﺼﻮﺑﮯ ﭘﺮ ﺑﮩﺖ ﮨﯽ ﻭﺳﯿﻊ ﭘﯿﻤﺎﻧﮯ ﭘﺮ ﮐﺎﻡ ﮨﻮ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ - ﺍﺏ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﭘﭽﮭﻠﮯ ﭘﻨﺪﺭﮦ ﺳﺎﻟﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺟﮩﺎﮞ ﺩﺱ ﺳﮯ ﺑﺎﺭﮦ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﺍﻣﯿﺮ ﻭﮐﺒﯿﺮ ﮔﮭﺮﺍﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﭽﻮﮞ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﮐﮭﻮﻟﮯ ﮔﺌﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﺲ ﮐﯽ ﻣﺎﮨﺎﻧﮧ ﻓﯿﺲ ﺗﻘﺮﯾﺒﺎً ﭼﺎﺭ ﺳﮯ ﭘﺎﻧﭻ ﮨﺰﺍﺭ ﮨﮯ ﺍﯾﺴﮯ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﺑﮭﯽ ﻗﺎﺋﻢ ﮨﻮﮞ ﺟﮩﺎﮞ ﭘﺴﻤﺎﻧﺪﮦ ﺍﻭﺭ ﺍﻭﺳﻂ ﺁﻣﺪﻧﯽ ﮐﮯ ﻟﻮﮒ ﺑﮭﯽ ﺟﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﺑﭽﻮﮞ ﮐﻮ ﮐﺎﻧﻮﻧﭧ ﺍﻭﺭ ﻣﺸﻨﺮﯼ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯿﺠﻨﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻣﺠﺒﻮﺭ ﮨﯿﮟ ﺍﻧﮩﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﻭﺭ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻣﺘﺒﺎﺩﻝ ﺭﺍﺳﺘﮧ ﻣﻞ ﺳﮑﮯ - ﺟﻮﮔﯿﺸﻮﺭﯼ ﻣﯿﮟ ﻣﻠﺖ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﮏ ﺍﺳﮑﺎﻟﺮ ﮐﮯ ﻧﺎﻡ ﺳﮯ ﮐﭽﮫ ﺍﯾﺴﮯ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﻗﺎﺋﻢ ﺿﺮﻭﺭ ﮨﻮﺋﮯ ﮨﯿﮟ ﻟﯿﮑﻦ ﮐﺎﻧﻮﻧﭧ ﮐﮯ ﻣﻄﻠﻮﺑﮧ ﻣﻌﯿﺎﺭ ﮐﻮ ﻧﮧ ﭘﮩﻨﭽﻨﮯ ﮐﮯ ﺳﺒﺐ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺷﮩﺮﺕ ﻣﯿﮟ ﮐﭽﮫ ﮔﺮﺍﻭﭦ ﺁﺋﯽ ﮨﮯ - ﺿﺮﻭﺭﺕ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺟﻮ ﻭﻗﺖ ﺍﻭﺭ ﺳﺮﻣﺎﯾﮧ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻟﻮﮒ ﺩﻋﻮﺕ ﻭ ﺗﺒﻠﯿﻎ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺑﺎﮨﺮ ﮐﯽ ﺩﻧﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﺍﺟﺘﻤﺎﻋﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﺳﺮﻑ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﮐﮯ ﻣﻌﯿﺎﺭ ﺑﻠﻨﺪ ﮐﺮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﻟﮕﺎﯾﺎ ﺟﺎﺋﮯ ﺗﺎﮐﮧ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺑﭽﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﮈﺭﺍﭖ ﺁﻭﭦ ﮐﯽ ﮐﻤﯽ ﮨﻮ ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﺑﭽﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﺳﮯ ﺁﺭﺍﺳﺘﮧ ﮨﻮ ﮐﺮ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺩﺍﺧﻞ ﮨﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﻭﻗﺖ ﮐﮯ ﺭﻭﮨﺖ ﻭﻣﯿﻼ ﺍﻭﺭ ﮐﻨﮩﯿﺎﺅﮞ ﮐﯽ ﺫﮨﻦ ﺳﺎﺯﯼ ﮐﺮ ﺳﮑﯿﮟ ۔
ﺩﻭﺳﺮﮮ ﻟﻔﻈﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻋﺎﻡ ﻣﺒﻠﻐﯿﻦ ﮐﺎ ﺟﻮ ﭘﯿﻐﺎﻡ ﮨﻨﺪﻭ ﯾﻮﻧﯿﻮﺭﺳﭩﯿﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﭘﮩﻨﭽﻨﺎ ﻧﺎﻣﻤﮑﻦ ﮨﻮ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﺍﻥ ﺑﭽﻮﮞ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﭘﮩﻨﭽﺎﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺁﺳﺎﻧﯽ ﮨﻮ - ﺍﺳﻼﻣﮏ ﺍﻧﭩﺮﻧﯿﺸﻨﻞ ﮨﺎﺋﯽ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﮐﮯ ﻣﺎﻟﮏ ﮈﺍﮐﭩﺮ ﺫﺍﮐﺮ ﻧﺎﯾﮏ ﺍﻭﺭ ﺻﻔﺎ ﺍﺳﻼﻣﮏ ﮨﺎﺋﯽ ﺍﺳﮑﻮﻝ ﮐﮯ ﻣﺎﻟﮏ ﻣﺮﺣﻮﻡ ﺷﮩﺎﺏ ﺑﮭﺎﺋﯽ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﯾﮧ ﮐﺎﻡ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﻣﻤﮑﻦ ﮨﻮ ﺳﮑﺎ ﮐﯿﻮﮞ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺟﺪﯾﺪ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﺍﻭﺭ ﺑﭽﭙﻦ ﺳﮯ ﮨﯽ ﺩﯾﻨﺪﺍﺭ ﺗﮭﮯ ﺍﻟﻠﮧ ﻧﮯ ﺍﻥ ﮐﮯ ﻭﺍﻟﺪﯾﻦ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺷﻤﺎﺭ ﺩﻭﻟﺖ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﻧﻮﺍﺯﮦ ﺗﮭﺎ - ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﻣﺮﺣﻮﻡ ﺷﮩﺎﺏ ﺍﻭﺭ ﺫﺍﮐﺮ ﻧﺎﯾﮏ ﮐﯽ ﻃﺮﺡ ﺍﻭﺭ ﺑﮭﯽ ﺷﺨﺼﯿﺎﺕ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻥ ﮐﯽ ﻧﻈﺮ ﻣﯿﮟ ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﮐﮯ ﺍﺩﺍﺭﻭﮞ ﮐﯽ ﺍﻓﺎﺭﯾﺖ ﮐﺎ ﻋﻠﻢ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﺪﺍﺯﮦ ﻧﮧ ﮨﻮ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﻣﯿﮟ ﺩﻋﻮﺕ ﻭ ﺗﺒﻠﯿﻎ ﻣﯿﮟ ﻣﺼﺮﻭﻑ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﮐﯽ ﺗﻤﺎﻡ ﺗﺤﺮﯾﮑﻮﮞ ﺳﮯ ﮐﮩﻨﺎ ﭼﺎﮨﻮﻧﮕﺎ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﮐﮯ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﻣﻨﺼﻮﺑﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻭﻗﺖ ﮐﮯ ﺷﮩﺎﺏ ﻭ ﺛﺎﻗﺐ ﮐﮯ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﭘﯿﺶ ﮐﺮﯾﮟ -ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﻧﮧ ﺻﺮﻑ ﺩﻋﻮﺕ ﮐﮯ ﻓﺮﺍﺋﺾ ﺑﮭﯽ ﺍﺩﺍ ﮨﻮﮞ ﮔﮯ۔ ﺍﺱ ﮐﻮﺷﺲ ﺳﮯ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﮐﮯ ﭘﺴﻤﺎﻧﺪﮦ ﻋﻼﻗﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﻗﺎﺋﻢ ﮨﻮﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﺳﮯ ﺩﯾﮕﺮ ﭘﺴﻤﺎﻧﺪﮦ ﻣﺴﻠﻢ ﻃﺒﻘﺎﺕ ﺑﮭﯽ ﻣﺴﺘﻔﯿﺪ ﮨﻮ ﺳﮑﯿﮟ ﮔﮯ ﻧﯿﺰ ﺍﻥ ﺍﺳﮑﻮﻟﻮﮞ ﺳﮯ ﻧﮑﻠﻨﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﺑﭽﮯ ﮐﺎﻟﺠﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺩﯾﮕﺮ ﺑﺮﺍﺩﺭﺍﻥ ﻭﻃﻦ ﮐﯽ ﺫﮨﻦ ﺳﺎﺯﯼ ﻣﯿﮟ ﻣﻌﺎﻭﻥ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ - ﺍﯾﮏ ﺳﺴﺘﯽ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﻣﯿﮟ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﺎ ﯾﮧ ﮐﺎﻡ ﻣﺴﺠﺪﻭﮞ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﻧﺠﺎﻡ ﺩﯾﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺟﻮ ﮐﮧ ﻧﻤﺎﺯ ﮐﮯ ﺑﺎﻗﯽ ﺍﻭﻗﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﺧﺎﻟﯽ ﮨﯽ ﺭﮨﺘﯽ ﮨﯿﮟ ﺟﯿﺴﺎ ﮐﮧ ﺑﻨﮕﻠﻮﺭ ﺍﻭﺭ ﭼﻨﺌﯽ ﮐﯽ ﮐﭽﮫ ﻣﺴﺠﺪﻭﮞ ﮐﻮ ﺟﺪﯾﺪ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﻣﯿﮟ ﻟﯿﺎ ﺟﺎ ﭼﮑﺎ ﮨﮯ ۔
Hm Sb Ko Aeise Koshish karni chahiye khas ker Abhi ke Halat ko dekhte hue. IN SHA ALLAH TA'ALA
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Modern Education Ke Sath Sath Moral Education ki Ahmiyat?

Talim Ke sath sath Hme insan banne ke liye Tarbiyat kitni Jaruri Hai?

मॉडर्न शिक्षा के साथ साथ नैतिक शिक्षा की कितनी जरूरी है आज हमारे मुआशरे के लिए?
तालीम और तरबियत क्या है ?
तरबियत के बगैर तालीम और अखलाक के बगैर इल्म किस काम का?


تعلیم اور علم کیا ہے اسکا تعریف؟
علم کے ساتھ ساتھ اخلاقیات کتنا ضروری ہے؟
تعلیم کے ساتھ تربیت کتنی ضروری ہے آج کے معاشرے کے لیے؟
ﺍﺧﻼﻕ ﮐﻮ ﺳﻨﻮﺍﺭﻧﮯ ﺍﻭﺭ ﻗﻠﺐ ﻭ ﺭﻭﺡ ﮐﻮ ﺑﯿﻤﺎﺭﯾﻮﮞ ﺳﮯ ﺷﻔﺎﯾﺎﺏ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺍﮨﻢ ﺗﺮﯾﻦ ﺫﺭﯾﻌﮧ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺑﮭﯽ ﮨﮯ۔ 

ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽٰ ﻧﮯ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﺟﻦ ﺍﻭﺻﺎﻑ ﻭ ﺍﻣﺘﯿﺎﺯﺍﺕ ﺳﮯ ﻧﻮﺍﺯﺍ ﮨﮯ، ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﺩﻭ ﺑﺎﺗﯿﮟ ﺑﮍﯼ ﺍﮨﻤﯿﺖ ﮐﯽ ﺣﺎﻣﻞ ﮨﯿﮟ، ﺍﯾﮏ : ﻋﻠﻢ، ﺩﻭﺳﺮﮮ : ﺍﺧﻼﻕ۔ ﻋﻠﻢ ﮐﺎ ﺗﻌﻠﻖ ﺩﻣﺎﻍ ﺳﮯ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﺎ ﺗﻌﻠﻖ ﺩﻝ ﺳﮯ۔ ﻋﻠﻢ ﮐﮯ ﻣﻌﻨﯽ ﺟﺎﻧﻨﮯ ﮐﮯ ﮨﯿﮟ۔

ﯾﮧ ﺟﺎﻧﻨﺎ ﮐﺒﮭﯽ ﺍﭘﻨﮯ ﺍٓﭖ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻧﮧ ﻭﺍﺳﻄﮯ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﭘﮍﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻧﮧ ﻣﺤﻨﺖ ﮐﯽ، ﺟﯿﺴﮯ ﺍﯾﮏ ﺷﺨﺺ ﮐﮯ ﺳﺮ ﻣﯿﮟ ﺩﺭﺩ ﮨﻮ، ﺍﺳﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺍٓﭖ ﺍﺱ ﺗﮑﻠﯿﻒ ﮐﺎ ﺍﺩﺭﺍﮎ ﮨﻮﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ، ﮐﺒﮭﯽ ﻋﻠﻢ ﮐﺴﯽ ﻭﺍﺳﻄﮯ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﺣﺎﺻﻞ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ، ﻟﯿﮑﻦ ﺍﺱ ﻣﯿﮟ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﻣﺤﻨﺖ ﮐﺮﻧﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﭘﮍﺗﯽ، ﺟﯿﺴﮯ ﺻﺒﺢ ﮐﺎ ﺳﻮﺭﺝ ﻃﻠﻮﻉ ﮨﻮﺍ، ﺳﻨﮩﺮﯼ ﺩﮬﻮﭖ ﮐﺎﺋﻨﺎﺕ ﮐﮯ ﻧﺸﯿﺐ ﻭ ﻓﺮﺍﺯ ﭘﺮ ﭼﮭﺎﮔﺌﯽ، ﺍﻭﺭ ﮨﺮ ﺩﯾﮑﮭﻨﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﻧﮯ ﺟﺎﻥ ﻟﯿﺎ ﮐﮧ ﯾﮧ ﺩﻥ ﮐﺎ ﻭﻗﺖ ﮨﮯ، ﮐﺴﯽ ﺟﺎﻧﮯ ﭘﮩﭽﺎﻧﮯ ﺷﺨﺺ ﮐﻮ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﺍﻭﺭ ﻓﻮﺭﺍً ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﻮﮔﯿﺎ ﮐﮧ ﯾﮧ ﻓﻼﮞ ﺷﺨﺺ ﮨﮯ، ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﻋﻠﻢ ﮐﮯ ﺣﺎﺻﻞ ﮨﻮﻧﮯ ﮨﯽ ﮐﯽ ﺻﻮﺭﺗﯿﮟ ﮨﯿﮟ، ﻟﯿﮑﻦ ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﮐﻮﺋﯽ ﻣﺤﻨﺖ ﮨﮯ ﻧﮧ ﻣﺸﻘﺖ ﺍﻭﺭ ﻧﮧ ﻓﮑﺮﯼ ﺗﮓ ﻭ ﺩﻭ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﻟﯿﮯ ﯾﮧ ﻋﻠﻢ ﺍﻭﺭ ﻭﺍﻗﻔﯿﺖ ﺗﻮ ﮨﮯ، ﻟﯿﮑﻦ ﺍﺳﮯ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮩﺎ ﺟﺎﺗﺎ۔
ﻋﻠﻢ ﮐﯽ ﺍﯾﮏ ﺍﻭﺭ ﺻﻮﺭﺕ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﮐﺴﯽ ﻭﺍﺳﻄﮯ ﺳﮯ ﺑﺎﺕ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﻮ، ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﺗﮏ ﺭﺳﺎﺋﯽ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻣﺤﻨﺖ ﺑﮭﯽ ﮐﺮﻧﺎ ﭘﮍﮮ، ﺍﺱ ﮐﻮ ’’ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﻭ ﺗﻌﻠّﻢ ‘‘ ﮐﮩﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﯾﮧ ﺻﺮﻑ ﺟﺎﻧﻨﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ، ﺑﻞ ﮐﮧ ﺟﺎﻥ ﮐﺎﺭﯼ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﺮﻧﺎ ﮨﮯ، ﺟﻮ ﺑﺎﺗﯿﮟ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﯿﮟ، ﺍﻥ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻧﺎﻣﻌﻠﻮﻡ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﺗﮏ ﺍﻭﺭ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﺣﻘﯿﻘﺘﻮﮞ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﺍﻧﺠﺎﻧﯽ ﺣﻘﯿﻘﺘﻮﮞ ﺗﮏ ﭘﮩﻨﭽﻨﺎ ﻋﻠﻢ ﮐﺎ ﻭﮦ ﺍﻋﻠﯽٰ ﻣﻘﺎﻡ ﮨﮯ، ﺟﻮ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽٰ ﻧﮯ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﻋﻄﺎ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﮨﮯ۔ ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮯ ﺟﺐ ﺣﻀﺮﺕ ﺍٓﺩﻡ ﻋﻠﯿﮧ ﺍﻟﺴﻼﻡ ﮐﯽ ﺗﺨﻠﯿﻖ ﮨﻮﺋﯽ ﺗﻮ ﺍﻥ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﺎ ﺍﻧﺘﻈﺎﻡ ﮐﯿﺎ ﮔﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﺧﻮﺩ ﺣﻖ ﺗﻌﺎﻟﯽٰ ﻧﮯ ﺍﻥ ﮐﻮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺩﯼ۔ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮨﯽ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﺩُﻭﺭﺭﺱ ﺍﻧﻘﻼﺏ ﭘﯿﺪﺍ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﺴﺎﻧﯽ ﺗﺎﺭﯾﺦ ﻣﯿﮟ ﮨﻤﯿﺸﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﻓﮑﺮﯼ ﺍﻧﻘﻼﺏ ﻻﻧﮯ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺍﺳﯽ ﮨﺘﮭﯿﺎﺭ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ۔
ﻋﺮﺑﯽ ﺯﺑﺎﻥ ﻣﯿﮟ ’’ ﺧﻠﻖ ‘‘ ﮐﮯ ﻣﻌﻨﯽ ﭘﯿﺪﺍ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﮯ ﮨﯿﮟ۔
ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺟﺐ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ، ﺗﻮ ﺟﮩﺎﮞ ﻭﮦ ﺍﯾﮏ ﻇﺎﮨﺮﯼ ﺷﮑﻞ ﻭ ﺻﻮﺭﺕ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺍٓﺗﺎ ﮨﮯ، ﻭﮨﯿﮟ ﮐﭽﮫ ﺑﺎﻃﻨﯽ ﺻﻔﺎﺕ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﻣﻮﺟﻮﺩ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﯿﮟ، ﻇﺎﮨﺮﯼ ﺷﮑﻞ ﻭ ﺻﻮﺭﺕ ﺑﺎﻟﮑﻞ ﻭﺍﺿﺢ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﮐﺎ ﺭﻧﮓ ﺭﻭﭖ، ﻧﺎﮎ ﻧﻘﺸﮧ، ﭼﮩﺮﮦ ﻣﮩﺮﮦ ﺍﻭﺭ ﮨﺎﺗﮫ ﭘﺎﻭٔﮞ ﻭﻏﯿﺮﮦ، ﺟﻨﮩﯿﮟ ﺑﮧ ﺍٓﺳﺎﻧﯽ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﮔﺮ ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﮐﻮﺋﯽ ﮐﻤﯽ ﻣﺤﺴﻮﺱ ﮐﯽ ﺟﺎﺋﮯ ﺗﻮ ﮈﺍﮐﭩﺮﻭﮞ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻋﻼﺝ ﺑﮭﯽ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ۔
ﺍﺱ ﮐﻮ ’’ ﺧَﻠﻖ ‘‘ ﯾﻌﻨﯽ ﺟﺴﻤﺎﻧﯽ ﮨﺌﯿﺖ ﻭ ﺷﮑﻞ ﮐﮩﺘﮯ ﮨﯿﮟ۔ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﯽ ﺑﺎﻃﻨﯽ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﺪﺭﻭﻧﯽ ﺻﻔﺎﺕ ﺍٓﮨﺴﺘﮧ ﺍٓﮨﺴﺘﮧ ﻇﺎﮨﺮ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﯿﮟ، ﺗﻮﺍﺿﻊ ﯾﺎ ﮐﺒﺮ، ﻏﺼﮧ ﯾﺎ ﺑﺮﺩﺑﺎﺭﯼ، ﻣﺤﺒﺖ ﯾﺎ ﻧﻔﺮﺕ، ﺍﯾﺜﺎﺭ ﯾﺎ ﺧﻮﺩ ﻏﺮﺿﯽ ﻭﻏﯿﺮﮦ، ﺍﻥ ﮐﻮ ’’ ﺧُﻠﻖ ‘‘ ﯾﻌﻨﯽ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﮩﺘﮯ ﮨﯿﮟ۔ ﺟﯿﺴﮯ ﺟﺴﻢ ﮐﯽ ﻇﺎﮨﺮﯼ ﺑﯿﻤﺎﺭﯾﻮﮞ ﮐﺎ ﻋﻼﺝ ﮨﻮﺍ ﮐﺮﺗﺎ ﮨﮯ، ﺍﺳﯽ ﻃﺮﺡ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺑﯿﻤﺎﺭﯾﺎﮞ ﺑﮭﯽ ﻻﻋﻼﺝ ﻣﺮﺽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﯿﮟ، ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﻗﺎﺑﻞِ ﻋﻼﺝ ﮨﯿﮟ، ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﭘﯿﻐﻤﺒﺮﻭﮞ ﺍﻭﺭ ﺭﺳﻮﻟﻮﮞؑ ﮐﯽ ﺑﻌﺜﺖ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺍﮨﻢ ﻣﻘﺼﺪ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺍﻣﺮﺍﺽ ﺍﻭﺭ ﺭﻭﺣﺎﻧﯽ ﺑﯿﻤﺎﺭﯾﻮﮞ ﮐﺎ ﻋﻼﺝ ﮨﻮﺳﮑﮯ۔
ﺍﺧﻼﻕ ﮐﻮ ﺳﻨﻮﺍﺭﻧﮯ ﺍﻭﺭ ﻗﻠﺐ ﻭ ﺭﻭﺡ ﮐﻮ ﺑﯿﻤﺎﺭﯾﻮﮞ ﺳﮯ ﺷﻔﺎ ﯾﺎﺏ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺍﮨﻢ ﺗﺮﯾﻦ ﺫﺭﯾﻌﮧ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺑﮭﯽ ﮨﮯ، ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮯ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻌﺎﻟﯽٰ ﻧﮯ ﺗﺰﮐﯿﮧٔ ﺍﺧﻼﻕ، ﺍٓﯾﺎﺕِ ﻗﺮﺍٓﻧﯽ ﮐﯽ ﺗﻼﻭﺕ ﺍﻭﺭ ﮐﺘﺎﺏ ﻭ ﺣﮑﻤﺖ ﮐﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﺳﮯ ﻣﺮﺑﻮﻁ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺫﮐﺮ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﺧﯿﺮ ﺍﻭﺭ ﺷﺮ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮐﯽ ﺻﻼﺣﯿﺘﯿﮟ ﺭﮐﮭﯽ ﮔﺌﯽ ﮨﯿﮟ، ﺑﮭﻼﺋﯽ ﮐﺎ ﺟﺬﺑﮧ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﭘﻨﮩﺎﮞ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺑﺮﺍﺋﯽ ﮐﯽ ﺧﻮﺍﮨﺶ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﮐﺮﻭﭦ ﻟﯿﺘﯽ ﺭﮨﺘﯽ ﮨﮯ، ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﯽ ﭘﻮﺭﯼ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﺍﺳﯽ ﮐﺶ ﻣﮑﺶ ﻣﯿﮟ ﮔﺰﺭﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺍﺱ ﺍﻣﺘﺤﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺟﺲ ﺩﺭﺟﮯ ﮐﺎﻡ ﯾﺎﺑﯽ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﺮﺗﺎ ﮨﮯ، ﯾﺎ ﻧﺎﮐﺎﻣﯽ ﺳﮯ ﺩﻭﭼﺎﺭ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ، ﺍﺳﯽ ﻟﺤﺎﻅ ﺳﮯ ﻭﮦ ﺍٓﺧﺮﺕ ﻣﯿﮟ ﺟﺰﺍ ﯾﺎ ﺳﺰﺍ ﮐﺎ ﻣﺴﺘﺤﻖ ﮨﻮﮔﺎ۔
ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﻧﯿﮑﯽ ﺍﻭﺭ ﺑﺪﯼ ﮐﯽ ﺍﺱ ﮐﺶ ﻣﮑﺶ ﻣﯿﮟ ﻧﯿﮑﯽ ﭘﺮ ﺭﺍﻏﺐ ﺍﻭﺭ ﺑﺪﯼ ﭘﺮ ﻓﺘﺢ ﯾﺎﺏ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﮯ، ﭘﮭﺮ ﺟﺐ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﺍﭼﮭﮯ ﺍﺧﻼﻕ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﮯ ﻋﻠﻢ ﮐﻮ ﺑﮩﺘﺮ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﺮﺗﺎ ﮨﮯ۔ ﭘﺲ ﻋﻠﻢ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺧﻼﻕ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﮨﮯ، ﺍﭼﮭﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﺍﭼﮭﮯ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﻟﮯ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﺳﮯ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﺎ ﻋﻠﻢ ﺣﻘﯿﻘﯽ ﻣﻌﻨﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﻧﺎﻓﻊ ﺑﻨﺘﺎ ﮨﮯ۔ ﺟﺲ ﮐﯽ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﮧ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﺩﻋﺎ ﻓﺮﻣﺎﺋﯽ ﮨﮯ۔
ﺍﮔﺮ ﻋﻠﻢ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺧﻼﻕ ﻧﮧ ﮨﻮ ﺗﻮ ﺍﮐﺜﺮ ﺍﻭﻗﺎﺕ ﺍﭼﮭﮯ ﺳﮯ ﺍﭼﮭﺎ ﻋﻠﻢ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﻮ ﻓﺎﺋﺪﮦ ﭘﮩﻨﭽﺎﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﮧ ﺟﺎﺋﮯ ﺍﻧﺴﺎﻧﯿﺖ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻧﻘﺼﺎﻥ ﺍﻭﺭ ﮨﻼﮐﺖ ﮐﺎ ﺳﺒﺐ ﺑﻦ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﮐﯽ ﻭﺍﺿﺢ ﻣﺜﺎﻝ ﺟﺪﯾﺪ ﭨﯿﮑﻨﺎﻟﻮﺟﯽ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻭﺟﻮﺩ ﻣﯿﮟ ﺍٓﻧﮯ ﻭﺍﻟﯽ ﺍﺷﯿﺎﺀ ﮨﯿﮟ، ﺍﻧﺴﺎﻥ ﻧﮯ ﺍﯾﭩﻢ ﮐﻮ ﺩﺭﯾﺎﻓﺖ ﮐﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﭩﻤﯽ ﻃﺎﻗﺖ ﺗﮏ ﺭﺳﺎﺋﯽ ﺣﺎﺻﻞ ﮐﯽ، ﺍﮔﺮ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﭘﻨﯽ ﺻﻼﺣﯿﺖ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﺍﭼﮭﮯ ﻣﻘﺎﺻﺪ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﮐﺮﺗﺎ ﺗﻮ ﺍٓﺝ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﺷﮩﺮ ﺳﮯ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺩﯾﮩﺎﺕ ﺗﮏ ﮐﻮﺋﯽ ﮔﮭﺮ ﺭﻭﺷﻨﯽ ﺳﮯ ﻣﺤﺮﻭﻡ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﺎ، ﮨﺮ ﮔﮭﺮ ﻣﯿﮟ ﺑﺠﻠﯽ ﮐﯽ ﻭﺍﻓﺮ ﺳﮩﻮﻟﺖ ﻣﮩﯿﺎ ﮨﻮﺗﯽ، ﻟﯿﮑﻦ ﮨﻮﺍ ﯾﮧ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﻧﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﺻﻼﺣﯿﺖ ﮐﻮ ﮨﻼﮐﺖ ﺧﯿﺰ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﺴﺎﻧﯿﺖ ﺳﻮﺯ ﮨﺘﮭﯿﺎﺭﻭﮞ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﻧﺎﮔﺎﺳﺎﮐﯽ ﺍﻭﺭ ﮨﯿﺮﻭﺷﯿﻤﺎ ﺟﯿﺴﮯ ﺣﺎﺩﺛﺎﺕ ﭘﯿﺶ ﺍٓﺋﮯ ﮐﮧ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﺱ ﭘﺮ ﺟﺲ ﻗﺪﺭ ﺍٓﻧﺴﻮ ﺑﮩﺎﺋﮯ ﮐﻢ ﮨﮯ۔
ﺫﺭﺍﺋﻊِ ﺍﺑﻼﻍ ﻣﯿﮟ ﻏﯿﺮ ﻣﻌﻤﻮﻟﯽ ﺗﺮﻗﯽ ﮨﻮﺋﯽ، ﭨﯽ ﻭﯼ، ﺍﻧﭩﺮﻧﯿﭧ ﺍﻭﺭ ﺳﯿﻞ ﻓﻮﻥ ﻧﮯ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﯾﮧ ﻣﻤﮑﻦ ﺑﻨﺎ ﺩﯾﺎ ﮐﮧ ﻭﮦ ﻟﻤﺤﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﺎﺕ ﮨﺰﺍﺭﻭﮞ ﻣﯿﻞ ﺩﻭﺭ ﺗﮏ ﭘﮩﻨﭽﺎ ﺩﮮ، ﻭﮨﺎﮞ ﮐﮯ ﺣﺎﻻﺕ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﯽ ﺍٓﻧﮑﮭﻮﮞ ﺳﮯ ﺩﯾﮑﮭﮯ، ﺍﻥ ﺫﺭﺍﺋﻊ ﮐﻮ ﺑﮩﺘﺮﯾﻦ ﺩﯾﻨﯽ ﺍﻭﺭ ﺩﻧﯿﻮﯼ ﻣﻘﺎﺻﺪ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ، ﺳﻤﺎﺝ ﺗﮏ ﺍﺧﻼﻕ ﻭ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺎ ﭘﯿﻐﺎﻡ ﭘﮩﻨﭽﺎﯾﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ، ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﻋﺎﻡ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ، ﺩﻭﺭ ﺩﺭﺍﺯ ﻋﻼﻗﻮﮞ ﺳﮯ ﻣﻌﻠﻮﻣﺎﺕ ﮐﺎ ﺗﺒﺎﺩﻟﮧ ﮨﻮﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ، ﺗﺠﺎﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﺭﻭﺑﺎﺭ ﮐﻮ ﻓﺮﻭﻍ ﺩﯾﺎ ﺟﺎﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ، ﻣﻈﻠﻮﻣﻮﮞ ﺗﮏ ﺍﭘﻨﯽ ﻣﺪﺩ ﭘﮩﻨﭽﺎﺋﯽ ﺟﺎﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ، ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﻣﯿﮟ ﺷﺒﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮧ ﺍﻥ ﻣﻘﺎﺻﺪ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﻥ ﻭﺳﺎﺋﻞ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﯿﺎ ﺟﺎﺭﮨﺎ ﮨﮯ، ﻟﯿﮑﻦ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﮏ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﻣﯿﮟ ﺑﮯ ﺣﯿﺎﺋﯽ ﺍﻭﺭ ﻋﺮﯾﺎﻧﯿﺖ ﮐﻮ ﺟﻮ ﻓﺮﻭﻍ ﺣﺎﺻﻞ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ، ﺟﺮﺍﺋﻢ ﮐﯽ ﺟﻮ ﮐﺜﺮﺕ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﮯ، ﺳﭻ ﮐﻮ ﺟﮭﻮﭦ ﺍﻭﺭ ﺟﮭﻮﭦ ﮐﻮ ﺳﭻ ﺑﻨﺎﻧﮯ ﮐﯽ ﺟﻮ ﮐﻮﺷﺶ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﮯ، ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﻥ ﺫﺭﺍﺋﻊِ ﺍﺑﻼﻍ ﮐﺎ ﺑﮩﺖ ﺑﮍﺍ ﮐﺮﺩﺍﺭ ﮨﮯ۔
ﮨﻮﻧﺎ ﺗﻮ ﯾﮧ ﭼﺎﮨﯿﮯ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺟﯿﺴﮯ ﺟﯿﺴﮯ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﯽ ﺭﻭﺷﻨﯽ ﭘﮩﻨﭽﺘﯽ، ﻭﯾﺴﮯ ﻭﯾﺴﮯ ﺟﺮﺍﺋﻢ ﮐﻢ ﮨﻮﺗﮯ ﺍﻭﺭ ﺑﺮﺍﺋﯿﺎﮞ ﻣﭩﺘﯽ ﭼﻠﯽ ﺟﺎﺗﯿﮟ، ﻟﯿﮑﻦ ﻋﻤﻠﯽ ﺻﻮﺭﺕِ ﺣﺎﻝ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺑﺎﻟﮑﻞ ﻣﺨﺘﻠﻒ ﮨﮯ۔ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﻣﺠﺮﻣﯿﻦ ﮐﯽ ﺗﻌﺪﺍﺩ ﺭﻭﺯ ﺑﮧ ﺭﻭﺯ ﺑﮍﮬﺘﯽ ﺟﺎﺭﮨﯽ ﮨﮯ۔ ﺍﻣﺮﯾﮑﺎ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﺎ ﺳﭙﺮ ﭘﺎﻭﺭ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻧﮧ ﺻﺮﻑ ﺩﻓﺎﻋﯽ ﻗﻮﺕ ﺍﻭﺭ ﻣﻌﺎﺷﯽ ﺑﺎﻻﺩﺳﺘﯽ ﻣﯿﮟ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻧﻤﻮﻧﮧٔ ﺗﻘﻠﯿﺪ ﺑﻨﺎ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ، ﺑﻞ ﮐﮧ ﺟﺪﯾﺪ ﭨﯿﮑﻨﺎﻟﻮﺟﯽ ﮐﯽ ﺍﯾﺠﺎﺩ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﺳﯽ ﮐﯽ ﺑﺮﺗﺮﯼ ﺗﺴﻠﯿﻢ ﺷﺪﮦ ﮨﮯ، ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﺍﻋﺘﺒﺎﺭ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﻣﺮﯾﮑﺎ ﺍﯾﮏ ﺧﺎﺹ ﺍﮨﻤﯿﺖ ﺭﮐﮭﺘﺎ ﮨﮯ، ﯾﮩﺎﮞ ﺗﮏ ﮐﮧ ﺑﮩﺖ ﺳﮯ ﻣﺴﻠﻢ ﻣﻤﺎﻟﮏ ﻣﯿﮟ ﺟﺲ ﻧﺌﮯ ﻧﻈﺎﻡِ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﻓﺮﻭﻍ ﺩﯾﺎ ﺟﺎﺭﮨﺎ ﮨﮯ، ﺍﺳﯽ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﻣﺮﯾﮑﺎ ﮐﮯ ﻧﻘﻮﺵِ ﻗﺪﻡ ﮐﻮ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﺭﮐﮭﺎ ﮔﯿﺎ ﮨﮯ۔ ﻟﯿﮑﻦ ﺍﻣﺮﯾﮑﺎ ﻣﯿﮟ ﻃﻠﺒﮧ ﻭ ﻃﺎﻟﺒﺎﺕ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﺟﺮﺍﺋﻢ ﮐﯽ ﺷﺮﺡ ﻣﯿﮟ ﺭﻭﺯ ﺍﻓﺰﻭﮞ ﺍﺿﺎﻓﮧ ﮨﻮﺭﮨﺎ ﮨﮯ۔ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﺴﯽ ﮨﻮﻝ ﻧﺎﮎ ﺻﻮﺭﺕ ﺣﺎﻝ ﮨﮯ ﺟﻮ ﮨﻢ ﺫﺭﺍﺋﻊ ﺍﺑﻼﻍ ﻣﯿﮟ ﺩﯾﮑﮫ ﺍﻭﺭ ﭘﮍﮪ ﮨﯽ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ۔
ﺑﻌﺾ ﺑﺮﺍﺋﯿﺎﮞ ﺗﻮ ﺍﯾﺴﯽ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﺍﻭﺭ ﺍﻋﻠﯽٰ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﻃﺒﻘﮯ ﮨﯽ ﻣﯿﮟ ﭘﺎﺋﯽ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﯿﮟ،
ﺟﯿﺴﮯ ﮐﺮﭘﺸﻦ۔ ﮐﺮﭘﺸﻦ ﮐﮯ ﻧﻮّﮮ ﻓﯽ ﺻﺪ ﻭﺍﻗﻌﺎﺕ ﺍَﻋﻠﯽٰ ﺳﯿﺎﺳﯽ ﻗﺎﺋﺪﯾﻦ، ﺍﻭﻧﭽﮯ ﺩﺭﺟﮯ ﮐﮯ ﺳﺮﮐﺎﺭﯼ ﻭ ﭘﺮﺍﺋﯿﻮﯾﭧ ﻋﮩﺪﮮ ﺩﺍﺭ ﺍﻭﺭ ﺻﻨﻌﺖ ﮐﺎﺭﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﭘﺎﺋﮯ ﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﺟﻨﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﻣﻠﮏ ﮐﻮ ﮐﮭﻮﮐﮭﻼ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺭﮐﮫ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ۔ ﯾﮧ ﺑﯿﻤﺎﺭﯼ ﺍﺱ ﻗﺪﺭ ﺭﻭﺯ ﺍﻓﺰﻭﮞ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺟﻦ ﺷﻌﺒﻮﮞ ﮐﻮ ﺧﺪﻣﺖ ﺧﻠﻖ ﮐﺎ ﺷﻌﺒﮧ ﺳﻤﺠﮭﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ۔
ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﺏ ﯾﮧ ﺑﯿﻤﺎﺭﯼ ﺳﺮﺍﯾﺖ ﮐﺮﭼﮑﯽ ﮨﮯ، ﺍﺳﺎﺗﺬﮦ ﺍﻣﺘﺤﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﭘﯿﺴﮧ ﻟﮯ ﮐﺮ ﻧﻤﺒﺮ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﻣﺎﮨﺮﯾﻦ ﺭﺷﻮﺕ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺍﺳﺎﺗﺬﮦ ﮐﯽ ﺗﻘﺮﺭﯼ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﮈﺍﮐﭩﺮ ﻣﺮﯾﺾ ﺳﮯ ﻓﯿﺲ ﻟﯿﻨﮯ ﮐﮯ ﻋﻼﻭﮦ ﻓﺎﺭﻣﯿﺴﯽ ﺳﮯ، ﭘﯿﺘﮭﺎﻟﻮﺟﺴﭧ ﺳﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﭙﺘﺎﻟﻮﮞ ﺳﮯ ﮐﻤﯿﺸﻦ ﻭﺻﻮﻝ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﺑﻼﻭﺟﮧ ﭨﯿﺴﭧ ﻟﮑﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﺑﻼ ﺳﺒﺐ ﺩﻭﺍﺋﯿﮟ ﺗﺠﻮﯾﺰ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺑﻼ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﺍٓﭘﺮﯾﺸﻦ ﮐﺎ ﮐﯿﺲ ﺑﻨﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ، ﺍﻧﺠﯿﻨﯿﺮﺯ ﺗﻌﻤﯿﺮﯼ ﻣﯿﭩﺮﯾﻞ ﮐﮯ ﺑﺎﺭﮮ ﻣﯿﮟ ﻏﻠﻂ ﺭﭘﻮﺭﭦ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﺟﺲ ﮐﮯ ﻧﺘﯿﺠﮯ ﻣﯿﮟ ﭘُﻠﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﻋﻤﺎﺭﺗﻮﮞ ﮐﮯ ﮔﺮﻧﮯ ﮐﮯ ﺣﺎﺩﺛﺎﺕ ﭘﯿﺶ ﺍٓﺗﮯ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﯾﮧ ﺳﺐ ﺟﺎﮨﻞ ﻭ ﻧﺎﺧﻮﺍﻧﺪﮦ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺳﮯ ﻧﮩﯿﮟ، ﺑﻞ ﮐﮧ ﭘﮍﮬﮯ ﻟﮑﮭﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﻋﻠﯽٰ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﯾﺎﻓﺘﮧ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺳﮯ ﭘﯿﺶ ﺍٓﺗﺎ ﮨﮯ۔
ﭘﺲ ﯾﮧ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮐﺘﻨﺎ ﺑﮭﯽ ﻣﻔﯿﺪ ﻋﻠﻢ ﮨﻮ، ﺍﮔﺮ ﺍﺧﻼﻕ ﺳﮯ ﺍﺱ ﮐﺎ ﺭﺷﺘﮧ ﭨﻮﭦ ﺟﺎﺋﮯ ﺗﻮ ﻭﮦ ﻧﺎﻓﻊ ﮐﮯ ﺑﮧ ﺟﺎﺋﮯ ﻣﻀﺮ ﺍﻭﺭ ﻣﻔﯿﺪ ﮐﮯ ﺑﮧ ﺟﺎﺋﮯ ﻧﻘﺼﺎﻥ ﺩﮦ ﺑﻦ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ۔
ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮯ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﺗﺼﻮﺭ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺻﺮﻑ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﺎ ﻓﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ، ﺑﻞ ﮐﮧ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺗﺮﺑﯿﺖ ﺑﮭﯽ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﮨﮯ۔ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﮧ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﭘﺮ ﺟﺐ ﭘﮩﻠﯽ ﻭﺣﯽ ﻧﺎﺯﻝ ﮨﻮﺋﯽ ﺗﻮ ﺍﺱ ﻣﯿﮟ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﮔﯿﺎ : ﺍﭘﻨﮯ ﭘﺮﻭﺭﺩﮔﺎﺭ ﮐﮯ ﻧﺎﻡ ﺳﮯ ﭘﮍﮬﯿﮯ، ﮔﻮﯾﺎ ﭘﮍﮬﻨﺎ ﮐﺎﻓﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ، ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﮨﮯ ﮐﮧ ﭘﮍﮬﺎﺋﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﻧﺎﻡ ﺳﮯ ﺟُﮍﯼ ﮨﻮﺋﯽ ﮨﻮ، ﮐﯿﻮﮞ ﮐﮧ ﺟﺐ ﭘﮍﮬﻨﮯ ﻭﺍﻻ ﺍﭘﻨﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﻧﺎﻡ ﺳﮯ ﺟﻮﮌﮮ ﺭﮐﮭﮯ ﮔﺎ ﺗﻮ ﺧﺸﯿﺖ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮﮔﯽ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺍﺧﻼﻕ ﺳﮯ ﺍٓﺭﺍﺳﺘﮧ ﮨﻮﮔﺎ۔ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﮧ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﻋﻠﻢ ﮐﯽ ﺩﻋﺎ ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﻓﺮﻣﺎﺋﯽ ﮨﮯ :
’’ ﺍﮮ ﺍﻟﻠﮧ ! ﻣﺠﮭﮯ ﻋﻠﻢ ﮐﯽ ﺩﻭﻟﺖ ﻋﻄﺎ ﻓﺮﻣﺎﺋﯿﮯ، ﺣﻠﻢ ﻭ ﺑﺮﺩﺑﺎﺭﯼ ﺳﮯ ﺍٓﺭﺍﺳﺘﮧ ﻓﺮﻣﺎﺋﯿﮯ، ﺗﻘﻮﯼٰ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻋﺰﺕ ﻋﻄﺎ ﮐﯿﺠﯿﮯ ﺍﻭﺭ ﻋﺎﻓﯿﺖ ﮐﮯ ﺫﺭﯾﻌﮯ ﻣﯿﺮﮮ ﺣﺎﻻﺕ ﮐﻮ ﺑﮩﺘﺮ ﺭﮐﮭﯿﮯ۔ ‘‘
ﺍﺱ ﺩﻋﺎ ﻣﯿﮟ ﺍٓﭖ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﻋﻠﻢ ﮐﯽ ﺩﻋﺎ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺣﻠﻢ ﻭ ﺑﺮﺩﺑﺎﺭﯼ ﮐﺎ ﺫﮐﺮ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﮨﮯ، ﺟﻮ ﺑﮩﺘﺮ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﯽ ﺑﻨﯿﺎﺩ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﺎﺱ ﮨﮯ۔ ﺍٓﭖؐ ﻧﮯ ﻟﮍﮐﯿﻮﮞ ﮐﻮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺩﯾﻨﮯ ﮐﮯ ﺑﺎﺭﮮ ﻣﯿﮟ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﮐﮧ ﺑﺎﭖ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﯿﭩﯽ ﮐﻮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺩﮮ ﺍﻭﺭ ﺑﮩﺘﺮ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺩﮮ ﺍﻭﺭ ﺍﺩﺏ ﻭ ﺍﺧﻼﻕ ﺳﮑﮭﺎﺋﮯ ﺍﻭﺭ ﺑﮩﺘﺮ ﺍﺩﺏ ﻭ ﺍﺧﻼﻕ ﺳﮑﮭﺎﺋﮯ۔ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﮧ ﺻﻠﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻠﯿﮧ ﻭﺳﻠﻢ ﻧﮯ ﺣﺼﻮﻝِ ﻋﻠﻢ ﮐﻮ ﮐﺎﻓﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﺳﻤﺠﮭﺎ، ﺑﻞ ﮐﮧ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﺧﻼﻕ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﻗﺮﺍﺭﺩﯾﺎ۔ ﮐﯿﻮﮞ ﮐﮧ ﺟﺐ ﻋﻠﻢ ﮐﺎ ﺭﺷﺘﮧ ﺍﺧﻼﻕ ﺳﮯ ﭨﻮﭦ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ، ﺗﻮ ﻋﻠﻢ ﺟﯿﺴﯽ ﺩﻭﻟﺖ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﺍﺻﻼﺡ ﮐﮯ ﺑﮧ ﺟﺎﺋﮯ ﻓﺴﺎﺩ ﺍﻭﺭ ﺑﻨﺎﻭٔ ﮐﮯ ﺑﮧ ﺟﺎﺋﮯ ﺑﮕﺎﮌ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﮨﻮﻧﮯ ﻟﮕﺘﺎ ﮨﮯ۔
ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﯾﻘﯿﻨﺎ ﺑﺎﻋﺚ ﻣﺴﺮﺕ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺗﻮﺟﮧ ﺑﮍﮪ ﺭﮨﯽ ﮨﮯ، ﻗﺎﻧﻮﻧﯽ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﺑﮭﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﮐﻮ ﮨﺮ ﺑﭽﮯ ﮐﺎ ﺑﻨﯿﺎﺩﯼ ﺣﻖ ﺗﺴﻠﯿﻢ ﮐﺮﻟﯿﺎ ﮔﯿﺎ ﮨﮯ، ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﺗﺮﻗﯽ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﺳﮯ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻣﻠﮏ ﮐﮯ ﮨﻨﺮﻣﻨﺪﻭﮞ ﮐﻮ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﺧﺮﺍﺝِ ﺗﺤﺴﯿﻦ ﭘﯿﺶ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﮯ، ﻟﯿﮑﻦ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺍﺳﯽ ﻗﺪﺭ ﺍﻓﺴﻮﺱ ﻧﺎﮎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﯾﮩﺎﮞ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﺳﮯ ﺧﺎﻟﯽ ﮨﻮﺗﯽ ﺟﺎﺭﮨﯽ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﭘﺮ ﺣﮑﻮﻣﺖ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺗﻮﺟﮧ ﺩﯾﻨﮯ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﮨﮯ، ﻧﺠﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﺍﺩﺍﺭﻭﮞ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺍﻭﺭ ﺧﺎﺹ ﮐﺮ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺯﯾﺮِ ﺍﻧﺘﻈﺎﻡ ﺍﺩﺍﺭﻭﮞ ﮐﻮ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺗﻌﻠﯿﻤﯽ ﺗﺮﻗﯽ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﺩﺍﺭﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﺧﻼﻗﯽ ﺍﻗﺪﺍﺭ ﮐﻮ ﻓﺮﻭﻍ ﺩﯾﻨﮯ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺗﻮﺟﮧ ﺩﯾﮟ۔
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Allah Apne Bando ke Guman ke Sath hai kaise?

Allah Apne bando Pe kitna Raham karne wala hai?
🍂🍃ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🍂🍃

🌺‏‏‏‏ حَدَّثَنَا عُمَرُ بْنُ حَفْصٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا أَبِي، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ، ‏‏‏‏‏‏سَمِعْتُ أَبَا صَالِحٍ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ اللَّهُ تَعَالَى:‏‏‏‏ ""أَنَا عِنْدَ ظَنِّ عَبْدِي بِي، ‏‏‏‏‏‏وَأَنَا مَعَهُ إِذَا ذَكَرَنِي، ‏‏‏‏‏‏فَإِنْ ذَكَرَنِي فِي نَفْسِهِ ذَكَرْتُهُ فِي نَفْسِي، ‏‏‏‏‏‏وَإِنْ ذَكَرَنِي فِي مَلَإٍ ذَكَرْتُهُ فِي مَلَإٍ خَيْرٍ مِنْهُمْ، ‏‏‏‏‏‏وَإِنْ تَقَرَّبَ إِلَيَّ بِشِبْرٍ تَقَرَّبْتُ إِلَيْهِ ذِرَاعًا، ‏‏‏‏‏‏وَإِنْ تَقَرَّبَ إِلَيَّ ذِرَاعًا تَقَرَّبْتُ إِلَيْهِ بَاعًا، ‏‏‏‏‏‏وَإِنْ أَتَانِي يَمْشِي أَتَيْتُهُ هَرْوَلَةً"".

🌺नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: "अल्लाह ताला फ़रमाता है की मैं अपने बंदे के गुमान के साथ हूँ और जब वो मुझे अपने दिल में याद करता है तो में भी उसे अपने दिल में याद करता हूँ और जब वो मुझे मजलिस में याद करता है तो मैं उसे इस से बेहतर फ़रिश्तों की मजलिस में उसे याद करता हूँ और अगर वो मुझसे एक बालिशत क़रीब आता है तो में इस से एक हाथ क़रीब हो जाता हूँ और अगर वो मुझसे एक हाथ क़रीब आता है तो में इस से दो हाथ क़रीब हो जाता हूँ और अगर वो मेरी तरफ़ चल कर आता है तो में इस के पास दौड़ कर आ जाता हूँ।

🌺Nabi kareem ﷺ ne farmaya: "Allah taala farmata hai ke main apne bande ke gumaan ke sath hun aur jab woh mujhe apne dil mein yaad karta hai to main bhi usay apne dil mein yaad karta hun aur jab woh mujhe majlis mein yaad karta hai to main usay is se behtar firshton ki majlis mein usay yaad karta hun aur agar woh mujh se ek balisht qareeb aata hai to main is se ek haath qareeb ho jata hon aur agar woh mujh se ek haath qareeb aata hai to mein is se do haath qareeb ho jata hun aur agar woh meri taraf chal kar aata hai to main iske paas daud kar aa jata hun."

🌺نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا، ”اللہ تعالیٰ فرماتا ہے کہ میں اپنے بندے کے گمان کے ساتھ ہوں اور جب وہ مجھے اپنے دل میں یاد کرتا ہے تو میں بھی اسے اپنے دل میں یاد کرتا ہوں اور جب وہ مجھے مجلس میں یاد کرتا ہے تو میں اسے اس سے بہتر فرشتوں کی مجلس میں اسے یاد کرتا ہوں اور اگر وہ مجھ سے ایک بالشت قریب آتا ہے تو میں اس سے ایک ہاتھ قریب ہو جاتا ہوں اور اگر وہ مجھ سے ایک ہاتھ قریب آتا ہے تو میں اس سے دو ہاتھ قریب ہو جاتا ہوں اور اگر وہ میری طرف چل کر آتا ہے تو میں اس کے پاس دوڑ کر آ جاتا ہوں۔“

🌺The Messenger of Allah ﷺ said: '‘Allah says: 'I am just as My slave thinks I am, (i.e. I am able to do for him what he thinks I can do for him) and I am with him if He remembers Me. If he remembers Me in himself, I too, remember him in Myself; and if he remembers Me in a group of people, I remember him in a group that is better than they; and if he comes one span nearer to Me, I go one cubit nearer to him; and if he comes one cubit nearer to Me, I go a distance of two outstretched arms nearer to him; and if he comes to Me walking, I go to him running.'

📚Sahih Bukhari: jild 9, kitab At Tawheed 97, hadith no. 7405
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Allah ka Zikr Karne ki Fazilat.

Sabse acha Amal Kaun Sa hai?
BismillahirRahmanNirRaheem
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                 *Mission Tauheed*
                 *Hisnul Muslim Series*            
                 *Part : 06*
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🍃ZIKR KI FAZEELAT
Nabi Kareem SALLALLAH ALAIHI WA SALLAM ne farmaya: Kya mein tumhen tumhare aamaal mein se behtereen (amal) ke bare na bataon,jo tumhare maalik ke nazdeek pakeezah tareen,tumhare darjaat mein buland tareen,tumhare liye sona chandi kharch karne se bhi behtar ke tum apne dushman se aamna saamna karo to tum un ki gardanen mardo aur woh tumhari gardanen mar den.Sahabah RADHIALLAH ANHUM ne kaya: Kyon Nahi! Aap SALLALLAH ALAIHI WA SALLAM ne farmaya:Allah Taalaa ka zikr

*📚 : [At-Tirmidhi 5/459, Ibn Maajah 2/1245. See Sahih Ibn Maajah 2/316 and Sahih At-Tirmidhi 3/139]*
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Sham ke waqt Apne Bache ko Ander kyu rakhe?

Bismilahirrahmanirrahim
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Sham ke Wakt (Time) Apne Bacho ko Apne pas hi rakha kre, Kyuki es Wakt "Jin" Failta hai.
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Rasoolullah ﷺ ne Farmaya:-
*Esha ke waqt Apne bachho ko apne paas hi rakho ( or musdad ki rawayat me hai ki Sham ke waqt apne bachhho ko Apne paas rakho, kyuke ye jino ke failne or bachho ko uchk (उचक)  lene ka waqt hai.
(Abu Dawood # 3733)
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Jab Badshah ko Apne Naukar ki biwi Pe Dil Aagya.

Jab Basshah ne Apne Naukar ki biwi ko dekha.

Kisi Badshah ne jab Apne Naukar ki Nihayat hi khubsurat Biwi ko dekha aur fir wo usse Apni Hajit pura karne ki Jaddo jehad kiya.



एक बादशाह महल की छत पर टहलने चला गया- टहलते टहलते उसकी नज़र महल के नज़दीक घर की छत पर पड़ी जिस पर एक बहुत खूबसूरत औरत कपड़े सुखा रही थी-
बादशाह ने अपनी एक कनिज को बुला कर पूछा: किसकी बीवी है ये??
कानिज ने कहा: बादशाह सलामत ये आपके गुलाम फीरोज़ की बीवी है-
बादशाह नीचे उतरा, बादशाह पर उस औरत के हुस्नो जमाल का सहर सा छा गया था-
उसने फीरोज़ को बुलाया-
फीरोज़ हाज़िर हुआ तो बादशाह ने कहा: फीरोज़ हमारा एक काम है- हमारा ये खत फलां मुल्क के बादशाह को दे आओ और मुझे इसका जवाब भी उनसे ले आना-
फीरोज़: बादशाह का हुक्म सर आंखों पर, और वो उस खत को लेकर घर वापस आ गया खत को अपने तकिए के नीचे रख दिया,सफर का सामान तैयार किया,रात घर में गुज़री और सुबह मंज़िले मक़सूद पर रवाना हो गया इस बात से ला इल्म कि बादशाह ने उसके साथ क्या चाल चली है-
इधर फीरोज़ जैसे ही नज़रों से ओझल हो गया बादशाह चुपके से फीरोज़ के घर पहुंचा और आहिस्ता से फीरोज़ के घर का दरवाज़ा खटखटाया-
फीरोज़ की बीवी ने पूछा कौन है ??
बादशाह ने कहा: मैं बादशाह ! तुम्हारे शौहर का मालिक-
तो उसने दरवाज़ा खोला- बादशाह अंदर आकर बैठ गया-
फीरोज़ की बीवी ने हैरान होकर कहा: आज बादशाह सलामत यहां हमारे गरीब खाने में-
बादशाह ने कहा: मैं यहां मेहमान बनकर आया हूं-
फीरोज़ की बीवी ने बादशाह का मतलब समझ कर कहा:
मैं अल्लाह की पनाह चाहती हूं आपके इस तरह आने से जिसमें मुझे कोई खैर नज़र नहीं आ रहा-
बादशाह ने गुस्से में कहा: ऐ लड़की क्या कह रही हो तुम ?
  शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं मैं बादशाह हूं तुम्हारे शौहर का मालिक-
फीरोज़ की बीवी ने कहा: बादशाह सलामत मैं जानती हूं कि आप ही बादशाह हैं लेकिन बुज़ुर्ग कह गए हैं कि
अगर मच्छर गिर जाए खाने में
तो मैं हाथ उठा देता हूं अगरचा कि मेरा दिल करता है खाने को,
मैं तुम्हारे पानी में कोई फूल नहीं छोड़ूंगा
लोगों के ब कसरत यहां आने जाने की वजह से,
शेर को अगरचा जितनी भी तेज़ भूख लगी हो लेकिन वो मुर्दार तो नहीं खाना शुरू कर देता,
और कहा: बादशाह सलामत ! आप उस कटोरे में पानी पीने आ गए हो जिसमें तुम्हारे कुत्ते ने पानी पिया है-
बादशाह उस औरत की बातों से बड़ा शर्मसार हुआ और उसको छोड़ कर वापस चला गया लेकिन अपनी चप्पल वहीं भूल गया-
ये सब तो बादशाह की तरफ से हुआ-
अब फीरोज़ को आधे रास्ते में याद आया कि जो खत बादशाह ने उसे दिया था वो तो घर पर ही छोड़ आया है-उसने घोड़े को तेज़ी से वापस मोड़ा और अपने घर की तरफ लपका- फीरोज़ अपने घर पहुंचा तो तकिए के नीचे से खत निकालते वक़्त उसकी नज़र पलंग के नीचे पड़ी बादशाह की चप्पल पर पड़ी जो वो जल्दी में भूल गया था-
फीरोज़ का सर चकरा कर रह गया और वो समझ गया कि बादशाह ने उसको सफर पर सिर्फ इसलिए भेजा ताकि वो अपना मतलब पूरा कर सके- फीरोज़ किसी को कुछ बताए बगैर चुपचाप घर से निकला- खत लेकर वो चल पड़ा और काम ख़त्म करने के बाद बादशाह के पास वापस आया तो बादशाह ने इनआम के तौर पर उसे सौ दीनार दिए- फीरोज़ दीनार लेकर बाज़ार गया और औरतों के इस्तेमाल के क़ीमती कपड़े और कुछ तहाइफ भी खरीद लिए- घर पहुंच कर बीवी को सलाम किया और कहा: चलो तुम्हारे मैके चलते हैं-
बीवी ने पूछा: ये क्या है ?
कहा : बादशाह ने इनआम दिया है और मैं चाहता हूं कि ये पहन कर अपने घरवालों को भी दिखाओ-
बीवी: जैसे आप चाहें, बीवी तैयार हुई और अपने वालिदैन के घर अपने शौहर के साथ रवाना हुई दामाद और बेटी और उनके लिए लाए गए तोहफों को देखकर वो लोग बहुत खुश हुए-
फीरोज़ बीवी को छोड़ कर वापस आ गया और एक महीना गुज़रने के बावजूद ना बीवी का पूछा और ना उसको वापस बुलाया-
फिर कुछ दिन बाद उसके साले उससे मिलने आए और उससे पूछा: फीरोज़ आप हमें हमारी बहन से गुस्से और नाराज़गी की वजह बताएं या फिर हम आपको क़ाज़ी के सामने पेश करेंगे-
तो उसने कहा: अगर तुम चाहो तो कर लो लेकिन मेरे ज़िम्मे इसका ऐसा कोई हक़ नहीं जो मैंने अदा ना किया हो-
वो लोग अपना केस क़ाज़ी के पास ले गए तो क़ाज़ी ने फीरोज़ को बुलाया-
क़ाज़ी उस वक़्त बादशाह के पास बैठा हुआ था- लड़की के भाइयों ने कहा: अल्लाह बादशाह सलामत और क़ाज़ी उल क़ज़्ज़ाह को क़ायमो दायम रखे- क़ाज़ी साहब हमने एक सर सब्ज़ बाग़, दरख्त फलों से भरे हुए और साथ में मीठे पानी का कुंआ इस शख्स के हवाले किया था- तो इस शख्स ने हमारा बाग़ उजाड़ दिया सारे फल खा लिए, दरख्त काट लिए और कुंए को खराब करके बंद कर दिया-
क़ाज़ी ने फीरोज़ की तरफ मुतावज्जेह होकर पूछा: हां तो लड़के तुम क्या कहते हो इस बारे में ?
फीरोज़ ने कहा: क़ाज़ी साहब जो बाग़ मुझे दिया गया था वो उससे बेहतर हालत में इन्हे वापस किया है-
क़ाज़ी ने पूछा: क्या इसने बाग़ तुम्हारे हवाले वैसी ही हालत में वापस किया है जैसे पहले था ?
उन्होंने कहा:
                  हां वैसी ही हालत में वापस किया है लेकिन हम इससे बाग़ वापस करने की वजह पूछना चाहते हैं-
क़ाज़ी : हां फीरोज़ तुम क्या कहना चाहते हो इस बारे में ?
फीरोज़ ने कहा: क़ाज़ी साहब मैं बाग़ किसी बुग़्ज़ या नफरत की वजह से नहीं छोड़ा बल्कि इसलिए छोड़ा कि एक दिन मैं बाग़ में आया तो उसमें, मैंने शेर के पंजों के निशान देखे- तो मुझे खौफ हुआ कि शेर मुझे खा जाएगा इसलिए शेर के इकराम की वजह से मैंने बाग़ में जाना बंद कर दिया-
बादशाह जो टेक लगाए ये सब कुछ सुन रहा था,उठ कर बैठ गया और कहा: फीरोज़ अपने बाग़ की तरफ अमन और मुतमइन होकर जाओ- वल्लाह इसमें कोई शक नहीं कि शेर तुम्हारे बाग़ में आया था लेकिन वो वहां पर ना तो कोई असर छोड़ सका,ना कोई पत्ता तोड़ सका और ना ही कोई फल खा सका वो वहां पर थोड़ी देर रहा और मायूस होकर लौट गया और खुदा की क़सम मैंने कभी तुम्हारे जैसे बाग़ के गिर्द लगी मज़बूत दीवार नहीं देखी-
तो फीरोज़ अपने घर लौट आया और अपनी बीवी को भी वापस ले आया- ना तो क़ाज़ी को पता चला और ना ही किसी और को कि माजरा क्या था!!!
क्या खूब बेहतर है अपने अहलो अयाल के राज़ छुपाना ताकि लोगों को पता ना चले......
अपने घरों के मसले किसी पर ज़ाहिर ना होने दो-
अल्लाह आप लोगों के शबो रोज़ खुशियों से भर दे
आपको, आपके अहलो अयाल को और आपके माल को अपने हिफ्ज़ो अमान में रखे...!!!
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Shauhar Ka kharab Rawaiya Dekh kar Biwi ko Kya Karni Chahiye?

Ager khawind Biwi ke Sath Acha Suluk nahi kar raha ho to Biwi ko Kya Karni chahiye?

Shauhar ko Apni Jimmedari aur Biwi ke huqooq ko samajhna Chahiye apne apne Farz ko samajhna chahiye.
शोहर का ख़राब रवैया देखकर हर बीवी के सामने तीन रास्ते होते है, और हर बीवी इन तीन रास्तों मे से एक रास्ता ज़रूर चुनती है, अगर शोहर बीवी के साथ अच्छा सुलूक नही करता, उसे वक़्त नही देता, मोबाइल टीवी और दोस्तों मे मसरूफ़ रहता है, उसे इज़्ज़त व प्यार नही देता, हर वक़्त झगड़ा करता है, गालिया देता है, मां बहन की बातों मे आकार बे इज़्ज़त करता है, मतलब किसी भी ऐतबार से बीवी को राहत के बजाय तकलीफ़ पहुंचाता है, तो उस गलीज़ इंसान की बीवी तीन रास्तों मे से एक रास्ता चुनती है।

पहला रास्ता –
कुछ बीवीयां जो इमान की कमज़ोर होती है, वो शोहर के ख़राब रवैये को देखकर गैर मेहरम से राब्ता बना लेती है, फिर उसके साथ अपने सुख दुख शेयर करने लगती है, और वो शख़्स भी उसके साथ बहुत हमदर्दी से पेश आता है, हमदर्दी वाला ये ताल्लुक पहले दोस्ती मे तब्दील होकर बड़े गुनाहों की तरफ ले जाता है, ऐसी सुरत मे शोहर बीवी और उसका हमदर्द तीनो ही गुनाहगार ठहरेंगे।

दुसरा रास्ता –
कुछ बीवीयां इमान की मज़बूत होती है, लेकिन हिम्मत की कमज़ोर होती है, अगर उनका शोहर उनके साथ ख़राब रवैया रखता है, जैसा कि उपर लिखा है, तो ये बीवीयां अपनी इज़्ज़त आबरू की तो हर दम हिफाज़त करती है, लेकिन अंदर से मुकम्मल टूट जाती है, उनका हंसना रस्मी होता है, उनकी मुस्कुराहटे रस्मी होती है, उनकी बोलचाल रस्मी होती है, उनका लोगों से मिलना और बोलचाल करना रस्मी होता है, ये दिन की रोशनी मे अंदर ही अंदर घुटती है, और रात के अंधेरे मे खुन के आंसू रोती है, ये बीवीयां ज़िन्दा लाश बनकर ज़िंदगी गुज़ारती है, और बरोज़ महशर बीवी का शोहर उस वक़्त तक जन्नत मे दाखिल ना हो सकेगा जब तक बीवी के आंसूओं का हिसाब ना दे दे, क्योंकि अल्लाह तआला अपने हुकूक तो माफ़ कर देगा लेकिन अपने बंदो के हुकूक तब तक माफ़ नही करेगा जब तक सामने वाला माफ़ ना करे दे।

तीसरा रास्ता –
इस तीसरे किस्म के रास्ते पर चलने वाली बीवीयों का इमान मज़बूत तो होता ही है साथ मे ये हिम्मत और इस्तक़लाल की पहाड़ भी साबित होती है, ये मायूस नही होती बल्कि फ़िक्र करती है, ये शोहर के ख़राब रवैये को खुद के लिए चेलेंज तसव्वुर करती है, के किस तरह शोहर को अपने तरफ माइल किया जाए।

ये शोहर के गुस्से पर सामने जवाब नही देती, सब्र करके बरदाश्त करती है, ये शोहर के साथ बहुत ज़्यादा नर्म और प्यार भरा रवैया रखती है, शोहर के आने से पहले खुद को दुल्हन की तरह तैयार कर लेती है के शोहर का ध्यान कही और ना जाए, ये जानती है कि शोहर के वालिदेन की ख़िदमत फर्ज़ नही, लेकिन फिर भी खुद से सास ससुर की ख़िदमत करती है, के बुजुर्गो की दुआओं से उनका घर बसा रहे, ये तकियो मे मुहं छिपाकर रोने की बजाय सजदों मे रोने को तरजीह देती है, ये सजदों मे आंसू बहाकर रब के हुजूर शोहर की वापसी मांगती है, ये तहज्जुद मे उठकर रब की बरागाह मे हाजिरी लगाती है, और आंखे नम किए अपनी आह उस रब के सामने रखकर अपनी खुशीयां मांगती है।
अल्लाह तआला उनकी हिम्मत और मदद के लिए पुकारने पर उन्हे मायूस नही करता, उनकी हिम्मत, सब्र, कुरबानीयों का फल देते हुए उनके शोहर का दिल उनके तरफ फेर देता है।
✦ अब अकल्मन्द बीवी कौनसा रास्ता चुने ?
अगर बीवी पहला रास्ता चुनती है तो दुनिया मे ज़िल्लत व रुसवाई और आख़िरत मे शोहर और हमदर्द समेत सख़्त अज़ाब के हकदार ठहरेंगे।

अगर बीवी दुसरा रास्ता चुनती है तो गलीज़ शोहर की वजह से अपना ही दिल जलाती है, अपना ही खुन जलाती है, अपने को तकलीफ़ देने के सिवा कुछ हासिल नही होगा, लेकिन उसको अल्लाह तआला के यहां इस सब्र और इज़्ज़त आबरू की हिफाज़त करने पर बे तहाशा अज्र व सवाब मिलेगा।
और अगर बीवी तीसरा रास्ता चुनती है, शोहर की बेगैरती को खुद के लिए चेलेंज तसव्वुर किए हिम्मत और गौर फ़िक्र से काम लेती है जैसा कि उपर लिखा है तो 80% बीवीयां अल्लाह तआला के हुक्म से अपने मकसद मे कामयाब होकर एक खुशगवार अज़्दवाजी ज़िंदगी गुज़ारती है। अपनी दुनिया और आख़िरत दोनों में कामियाब हो जाती है।
हम यहा कहना चाहते है के शोहर के ख़राब रवैये पर हर बीवी को तीसरा रास्ता चुनना चाहिए , इन शा अल्लाह! अल्लाह तआला उसे मायूस नही करेगा।
यहां एक और बात कहना चाहेंगे के अगर किसी भी औरत के आंख मे शोहर की वजह से एक भी आंसू आ जाए तो जन्नत मे उस वक़्त तक ना जा सकेगा जब तक बीवी उसे माफ़ ना कर दे। आप कहेंगे के हम ऐसा फ़तवा लगा रहे है, तो याद रखे के ये फ़तवा नही दीन-ए-इस्लाम है, अहादीस का मफ़हूम है के जहां किसी एक इंसान के दिल दुखाने पर रोज़ा नमाज़ सारी इबादतें उस वक़्त तक काम नही आएगी जब तक सामने वाला माफ़ ना कर दे। यानि हुकूक अल इबाद की कोताही से बचे। और कोशिश करना चाहिए के शोहर की वजह से बीवी की आंखो मे आंसू ना आए।
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Hmare Ander Dikhawa Kitna Badh gya hai?

Allah ne Jab Hme Maal O Daulat diya hai hme use kis Tarah istemal karni chahiye?
जैसे जैसे मेरी उम्र में इजाफा होता गया, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs.3000 की घड़ी पहनू या Rs.30000 की दोनों टाईम एक जैसा ही बताएगी।
मेरे पास Rs.3000 का बैग हो या Rs.30000 का, इसके अंदर के सामान मे कोई बदलाव नहीं होंगा..!!
मैं 300 स्क्वेयर फीट के मकान में रहूं या 3000 स्क्वेयर फीट के मकान में-
"तन्हाई का एहसास" एक जैसा ही होगा।
आखिर मे मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास / Ist क्लास में यात्रा करूँ या इकाँनामी क्लास / 2nd क्लास, मै अपनी मंजिल पर उसी बक्त पर ही पहुँचूँगी !
इसलिए अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं..!!
फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था
" ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा फरेब होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.....!"
क्या यह जरुरी है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे अमीर बुद्धिमान और समझदार मानें ?
क्या यह जरुरी है कि मैं रोजाना Mac Donald या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ ?
क्या यह जरुरी है कि मैं प्रतिदिन सहेलियों के साथ indian coffee house / बडे रेस्टोरेन्ट पर जाया करूँ ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ ?
क्या यह जरुरी है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के कपड़े पहनूं ताकि जेंटलवूमेन कहलायी जाऊँ ?
क्या यह जरुरी है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं ?
नहीं दोस्तों
मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं,
भुख लगे तो किसी ठेले से लेकर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझती,
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलती हूँ। चाहूँ तो वह सब कर सकती हूँ जो ऊपर लिखा है
लेकिन ...
मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो मेरी Adidas से खरीदी गई एक कमीज की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।
मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।
बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है जो लोग किसी के बाहरी हालात से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना दिमागी इलाज किसी अच्छे मनोचिकित्सक से करवाएं |
मानव की असली कीमत उसकी _नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सहानुभूति और भाईचारा है_। ना कि उसकी शक्ल सूरत और ऊपरी दिखावा ... !!!
अगर खुदा ने तुम्हे ज्यादा दौलत से नबाजा है तो आप गरीबो को सदका दे। बेबा, यतीम बच्चों की मदद करे। नाकि इन चीजो मे अपना पैसा फिजूल में बर्बाद करे। इन सब चीजों को हमे गहराई से सोचने समझने की आज बहुत जरूरत है।
जो भी मेरी बात से सहमत हो वो पोस्ट शेयर जरुर करे।।

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