Musalmano Ka rehnuma aaj kaise log bane hue hai?
Qaum ke Rehnuma aaj Fajir o Fashiq log bane baithe hai.मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने के लायक कौन है तुर्की या सऊदी अरबिया?
मुसलमानों को कैसा रहनुमा की आज जरूरत है?मुसलमानों का रहनुमा आज कैसे कैसे लोग बनने को तैयार है?
मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने के लायक कौन है तुर्की या सऊदी अरबिया?
मुस्लिम दुनिया की कयादत ( लीडरशिप) कौन कर सकता है तुर्की या सऊदी अरबिया?
मस्जिद ए अक्सा से दुनिया भर के मुसलमानों का क्या ताल्लुक है?
मस्जिद ए अक्सा में नमाजियों पर इसराइली पुलिस ने गोलियां चलाई।
" तुम मेरा पानी ले लो, मेरे पेड़ो को जला दो, मेरे घरों को तबाह कर दो, नौकरियां छीन लो, मां बाप की हत्या कर दो, मेरे देश में धमाके करो, हमे भूखा रखो, अपमानित करो लेकिन हमे इन सबके बदले एक रॉकेट दागने के लिए दोषी ठहराओ "
ये आवाज है फिलिस्तीन की, जहां एक बुजुर्ग ने यह बातें कही थी इससे उनके दुःख ओ दर्द, परेशानी और मुसीबत का अंदाजा लगाया जा सकता है के किस कदर उन पर इसराइली सैनिकों द्वारा जुल्म ढाया जा रहा है.
Muslim World Leader |
तकरीबन 100 साल पहले पहली जंग ए अजीम ( प्रथम विश्व युद्ध ) में उस्मानिया सल्तनत की हार हुई उसके बाद फिलिस्तीन पर अंग्रेजो ( इंग्लैंड ) का हुकूमत हुआ। दुनिया के बड़े देशों ने यह फैसला किया के फिलिस्तीन को यहूदियों का देश बना दिया जाए जिसका नतीजा यह हुआ के फिलिस्तीन को यहूदी राष्ट्र बना दिया गया। उस वक्त फिलिस्तीनी नेता ने इस फैसले का विरोध भी किया मगर उनकी आवाजों को दबा दिया गया, अंग्रेज चले गए उसके बाद यहूदी नेताओ ने अपना राष्ट्र बना लिया जिसे आज इजरायल या इसराइल कहते है।
जब एडोल्फ हिटलर ने जर्मनी से यहूदियों को भगाया था तब दुनिया के किसी देश ने इनलोगो को पनाह नहीं दिया था अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन .... वगैरह देशों ने यहूदी शरणार्थियों से भरे जहाजों को वापस लौटा दिया ये देश अपने यहां इन लोगो को शरण देने से इंकार कर दिया आखिर में ये लोग शरणार्थी बनकर पनाह लेने फिलिस्तीन आए और अपने बड़े से जहाज पर बैनर लगाकर अपील की थी दरख्वास्त की थी के " The Germans Destroyed our Families and homes, dont you Destroyed our hopes "
जर्मनों ने हमारे घर और परिवार तबाह कर दिए , आप हमारी उम्मीदों को मत कुचलना।
जिस फिलिस्तीन ने इन यहूदियों को पनाह दी, अपने यहां इन लोगो को रहने के लिए जमीन दिए, नई जिंदगी दी, इंसानियत की खिदमत करते हुए उन्हें घर परिवार बसाने दिए, उनके उम्मीदो पर पानी नहीं फेरा बल्कि उसे अपने जैसा इंसान ही समझा और उसे स्वीकार किया आज वही यहूदी एहसान का बदला फिलिस्तीनियों को मारकर चुका रहा है। आज अपने ही मुल्क में फिलिस्तीनी पराए हो गए, आज खुद के घर में ही बेघर हो गए, मासूम फिलिस्तीनी जिन्होंने हिटलर के कत्लेआम से बचने के लिए यहूदियों को पनाह दी आज वही इसकी सजा भुगत रहे है, इन मासूम फिलिस्तीनियों को कहां पता था के हम जिसे अपना समझ कर यहां पनाह दे रहे है वही हमारा आस्तीन का सांप निकलेगा।
आज इन्ही फिलिस्तीनियों के रहने लिए घर नही, इजरायल जब चाहता है तब मिसाइल, रॉकेट और टैंकों से इन फिलिस्तीनियों पर हवाई हमले करता है और इनके पास अपनी हिफाजत करने के लिए कंकरो और पत्थरों के सिवा कुछ नहीं तब भी आज मीडिया इन्हे चरमपंथी, कट्टरपंथी और आतंकवादी कह रही है।
un (संयुक्त राष्ट्र) जो हर वक्त मानवाधिकार ( इंसानी हुकूक ) के उल्लघन का मुद्दा उठाता है और वक्त बे वक्त जब चाहे तब उसपे पाबंदी लगा दिया जाता है, जैसे ईरान पर कई सालो से अमेरिका ने पाबंदी आयेद किए हुआ है सिर्फ इसलिए के उसने अमेरिका की बात न मानी, गुस्ताख ए रसूल के मुआमला को मानवाधिकार का हनन बोलकर यूरोपीय संसद में पाकिस्तान के खिलाफ भारी बहुमत के साथ एक बिल पास कर दिया गया जबकि उसने एक सबूत भी पेश न कर सका के कहां पर इस कानून का गलत इस्तेमाल हुआ, मगर जब फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया जा रहा है, उसपे ड्रोन, मिसाइल और रॉकेट दागे जा रहे है लाखो करोड़ों लोग बेघर हो गए मगर मानवाधिकार की बात करने वाला मानवाधिकार आयोग एक भी बयान नही दिया और न चिंता ही जाहिर की है।
मानवाधिकार की वकालत करने वाले , अपना धर्म इंसानियत बताने वाले, मानवता की सेवा करने वाले, लिबरल का चोला डाले हुए किधर चले गए जिनको कल तक मुसलमान आतंकवादी नजर आ रहा था, चरमपंथी और कट्टरपंथी लग रहा था आज वही फिलिस्तीनियों के कत्लेआम पर खामोश क्यों?
एक तरफ जहां इजरायल, जिसे अमेरिका यूरोप और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन हासिल, जिसके पास रॉकेट लांचर, मिसाइल और ड्रोन है तो दूसरी तरफ बेघर फिलिस्तीनी जिसके पास कंकर और पत्थर के सिवा कुछ नहीं तब भी लोगो को फिलिस्तीनी आतंकवादी और चरमपंथी ही नजर आ रहा है।
जब अलविदा जुमे (07 मई 2021) की नमाज अदा करने फिलिस्तीनी अल अक्सा मस्जिद में गए तभी इसराइली पुलिस ने उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दी।
क्या अब फिलिस्तीनी अपने मुल्क में इबादत भी नही कर सकते?
वही फिलिस्तीनी जिन्होंने यहूदियों को अपने यहां पनाह दी आज वही खुदा की इबादत करने पर मजबूर है।
उस्मानिया सल्तनत की हार और फिलिस्तीनियों का नरसंहार
प्रथम विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत बिखर गया, सऊदी अरब उस्मानिया सल्तनत के साथ खड़ा न होकर ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया।
सऊदी अरब और उस्मानिया सल्तनत दोनो में पुरानी दुश्मनी थी इसलिए सऊदी अरब ब्रिटिश उपनिवेश का एक हिस्सा था जिससे इंग्लैंड को और ताकत मिल गया उस्मानिया सल्तनत को तबाह करने में। ब्रिटेन हमेशा उस्मानिया सल्तनत को अपना प्रतिद्वंदी ( हरिफ ) समझता था इसलिए वह नही चाहता था की इतना विशाल साम्राज्य हमारे लिए चुनौती बने जिसका नतीजा यह हुआ के अंग्रेजो ने यहां भी " डिवाइड एंड रूल " वाली पॉलिसी अपनाई और मुसलमानों को आपस में लड़ा दिया ताकि मुस्लिम मुमालिक कभी एक न रहे और उसकी जगह हमेशा के लिए इंग्लैंड को मिल जाए।
फिर क्या था उस्मानिया सल्तनत की हार हुई और फिलिस्तीन यहूदी राष्ट्र बन गया, अहले अरब खामोश तमाशा देखते रह गए।
क्या सऊदी अरब की इतनी बड़ी दुश्मनी थी उस्मानिया सल्तनत से, के यहूदियों को फिलिस्तीनियों के नरसंहार के लिए यहूदी राष्ट्र बनने दिया?
क्या यह कहना गलत होगा के सऊदी अरब अपनी खुदगर्जी के लिए फिलिस्तीन को यहूदी राष्ट्र बना दिया?
मुख्तसर कहा जाए तो सऊदी अरब ने अपने निजी फायदे के लिए फिलिस्तीनियों को बली का बकरा बनाया जो आज तक बनाया जा रहा है।
जरा सोचे अगर उस्मानिया सल्तनत की हार न हुई होती तो फिलिस्तीन और फिलिस्तीनी कैसे होते?
अगर इंग्लैंड फिलिस्तीन को यहूदी राष्ट्र ना बनाकर मुस्लिम राष्ट्र बनाया होता तो कैसा होता?, क्युकी मुसलमान वहां बहुसंख्यक (अक्सरियत) थे और यहूदी अल्पसंख्यक (अकलियत).
सऊदी अरब तब भी अंग्रेजो ( ब्रिटेन ) से मदद लिया था और आज भी अमेरिका और यूरोप की तरफ ही हाथ फैलाता है अपनी हिफाजत के लिए, लेकिन उस्मानिया सल्तनत अपने दौड़ का सबसे ताकतवर और बड़ा सल्तनत था और आज भी उसका एक छोटा सा हिस्सा तुर्की जदीद असलहा से लैस।
अहले अरब को चाहिए के अमेरिका और यूरोप का मोहताज बनने के बजाए खुद के पैरो पर खड़ा होना सीखे, अपना इंटिलिजेंस एजेंसी, मिलिट्री पावर , डिफेंस सिस्टम और साइंटिस्ट बनाए। दीनी तालीम के साथ साथ दुनियावी तालीम भी हासिल करे नही तो इसी कमजोरी का फायदा अहले यूरोप हमेशा उठाएगा।
अपनी गलतियों को सुधारें, दीन के मुआमले में भी अपनी दिलचस्पी रखे और इसके साथ सियासत में भी।
अपनी कमजोरी की सजा गरीब मुस्लिम देशों पर दबाव डालकर और अमेरिका से धमकी दिलवाकर ना दें, आज फिलिस्तीनियों पर इसराइली सैनिकों द्वारा रॉकेट हमले किए जा रहे है और अहले अरब हमेशा की तरह निंदा करके रस्म अदा कर रहे है।
ओ आई सी (O I C) वही करता है जो सऊदी अरबिया चाहता है, oic सउदी अरब के फायदे वाली तंजीम (संस्था) है ना के मुसलमानों के हुकूक की आवाज उठाने वाली तंजीम।
जब कश्मीर से 370 की धारा खतम की गई तो खुद को मुसलमानों का रहनुमा समझने वाले अहले अरब ने इसे अंदुरूनी मामला बोलकर खारिज कर दिया, कुछ सालो बाद यहां भी कश्मीरियों का वही अंजाम होगा जैसा फिलिस्तीन में हो रहा है, मगर वक्त रहते हुए अपनी जिम्मेदारी न समझने वाला नकारा, ना अहेल अहले अरब भला मुसलमानों का रहनुमा कैसे बन सकता है?
UAE (United Arab Emirates) , जॉर्डन वगैरह अरब देशों ने पिछले साल (2020) में इजरायल से राजनयिक संबंध भी कायम किया इससे यही जाहिर होता है के इन देशों ने इनडायरेक्ट तरीके से इजरायल को मदद पहुंचाना शुरू कर दिया।
बेगाना के शादी में अब्दुल्ला दीवाना
पिछले साल (2020) में जब अजरबैजान ने तुर्की की मदद से जबरदस्ती कब्जे किए इलाके ( नारागोना काराबाख ) को आर्मीनिया से छुड़ाने में कामयाब रहा तो कई यूरोपीय देशों से यह बर्दास्त ना हुआ। इसलिए यूपियन कंट्री ने तुर्की पे तरह तरह की पाबंदियां लगाई, तुर्की ने जब साइपर्स में तेल का भंडार खोज निकाला
तो ग्रीस ने साइप्रस पर अपना दावा किया जिसकी वजह ने इन दोनो देशों में तनाव बढ़ गया।
ग्रीस जो के ईसाई देश है इसके हिमायत में यूरोपीय देश खड़ा था तो दूसरी तरफ तुर्की खुद तन्हा मैदान में था।
अरब देशों ( UAE ) ने ग्रीस को मदद के लिए कई हथियार भी भेजे ताकि तुर्की को सबक सिखाया जाए।
फिर ये अरब देश कैसे मुसलमानों के हक की बात कर सकता है जो अपनी निजी फायदे के लिए मुस्लिम देश ( तुर्की ) के खिलाफ ग्रीस को मदद पहुंचा रहा हो?
अगर वाकई ये मुसलमानों के नेतृत्व के काबिल होते तो आपसी गीले शिकवे को भुला कर तुर्की की मदद के लिए जान की बाजी लगा दिए होते।
और आज जब फिलिस्तीनियों पर हवाई हमले किए जा रहे है तो अहले अरब खामोश क्यों?
इनको सिर्फ मुस्लिम देशों से ही दुश्मनी निभाने आती है बाकी तो सब इनके वफादार दोस्त है।
हमे रहजनों से गीला नही तेरी रहबरी का सवाल है।
कुछ ऐसा ही समझे, यह मामला दो देशों के बीच का है तुर्की और ग्रीस। ईसाई देशों ने ग्रीस का साथ दिया कूटनीतिज्ञ, पैसे और हथियार से तो दूसरी तरफ अहले अरब जो खुद को मुस्लिम दुनिया का कयादत ( नेतृत्व ) करना चाहता है इन्होंने ईसाइयों का साथ दिया अपने निजी स्वार्थ के लिए। अगर इन देशों को वाकई मुसलमानों की फिक्र होती तो तुर्की के साथ खड़े होते या ग्रीस के साथ?
जो मुसलमान अहले अरब को अपना रहनुमा और मददगार समझते है वह खुदको धोखे में डाल रहे उसी तरह जैसे फिलिस्तीनियों ने यहूदियों को अपने यहां पनाह दी और आज इसी का बदला इनसे चुकाया जा रहा है।
तकरीबन 60 लाख यहूदियों को मारकर एक तिहाई ( 1/3 ) आबादी खतम करने वाला एडोल्फ हिटलर ने कहा था के मै कुछ यहूदियों को जिंदा छोड़ रहा हूं ताकि दुनिया देखे मैंने उन्हें क्यों मारा? वाकई आज दुनिया देख रही है।
हिटलर ने यह भी कहा था के यहूदी पीठ में छुरा मारने वाली कौम है
अरब देश मुस्लिम दुनिया का कयादत करने के लायक नही है , क्योंकि वह ऐसे अपाहिज है जो लाठी और डंडे के सहारे चल रहे है या फिर दूसरों की टांगो के सहारे।
अब कोई बेवकूफ ही होगा जो अहले अरब को अपना रहनुमा समझेगा।
जो देश खुद दूसरों के मिलिट्री पावर पे टिका हो वह क्या खाक मुसलमानों के हक की बात करेगा?
जो देश अमेरिका के इशारे पे काम करता हो, मुस्लिम देशों के खिलाफ हथियार भेजकर उसे तबाह करने की चाहत रखता हो वह मुसलमानों का कभी हमदर्द नही हो सकता है?
अरब देश अमेरिका का कठपुतली है , वह जैसे चाहता है नचाता है।
मुस्लिम कंट्री के खिलाफ गैरो की मदद करने वाला कभी मुसलमानों का वफादार नही हो सकता।
जिस तरह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के इशारे पे चलता है उसी तरह oic ( Organization of Islamic Co-operation ) सउदी अरब के इशारे पर।
तुर्की अगर अत्याधुनिक हथियारों से लैस है तब भी वह मुसलमानों का रहनुमा बनने के लायक नही, क्योके वह दिन के मामले में बहुत ही पीछे है, गैरो के तहजीब को अपनाकर खुद को फूले नहीं समाते। बुराइयां आम है, फाजिर वा फाशिको की कमी नहीं, फहाशी आम है वहां, इस्लामिक तरीको से उसका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं।
बे गैरती की हद है वहां , तो ऐसे में वह हमारा कैसे कयादत कर सकता है?
मुसलमानों को कैसा रहनुमा चाहिए?
हमे ऐसा रहनुमा चाहिए जो दीन के साथ साथ दुनियावी मामले में भी हमारी रहनुमाई कर सके, जो हमे शरीयत के मुताबिक जीने की नसीहत करे।
चीन उइगर मुसलमानों को मार रहा है,
इंडिया में कश्मीरी मुसलमानों पर जुल्म ढाए जा रहे है,
म्यांमार में रोहिग्या मुसलमानों का कत्ल किया जा रहा है,
इजरायल फिलिस्तीनी मुसलमानों को मार रहा है तब भी दुनिया इसलाम को आतंकवाद का धर्म कहती है और मीडिया मुसलमानों को कट्टरपंथी और आतंकवादी कहती है।
हमे ऐसा कायेदिन चाहिए जो #इस्लामोफोबिया और #हिजाबोफोबिया से लड़ सके, दुनिया को इसका जवाब दे सके, मुसलमानों की आवाज उठा सके और मुसलमानों पर हो रहे जुल्म के लिए अगर जरूरत पड़े तो फौजी करवाई भी कर सके है।
वैसा रहनुमा चाहिए जो विगर मुसलमानों की आवाज को आलमी सतह पर उठाए, फिलिस्तीनी मुसलमानों के कत्लेआम पर सिर्फ निंदा करके ही खामोश न रहे बल्कि फिलिस्तीनियों पे हो रहे हवाई हमले का बदला हवाई हमले से ही दे। अपनी निजी स्वार्थ के खातिर मुसलमानों को बली का बकरा बनाने वाला गद्दार हमारा कभी रहनुमा नही बन सकता है।
इंसानियत के सब दर्स हवा कर दिए तुमने
ये घर के घर बमों से तबाह कर दिए तुमने
यमन के जमीं कौमी जंगो के हवाले करके
क्या अपने अपने हक अदा कर दिए तुमने
अजदहो के मानिंद मुल्क ए शाम निगल कर
नन्हे मासूम बच्चे भी जबह कर दिए तुमने
बमों की बू अभी भी फैली है गलियारों में
ये गांव गांव , शहर शहर वबा कर दिए तुमने
यकीनन ये कश्तियां अब मझधार में डूबेंगी
समुंदरो के हवाले ना खुदा कर दिए तुमने।
Musalmano ki yahi kamjori hai
ReplyDeleteAllah musalmano ko mutahhid kar de.
ReplyDelete