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Masjid-E-Aqsa (Palestine) Se Musalmano ka Kya Talluq hai?

Aaj Sari Duniya ke Human rights commission wale Khamosh kyu hai?

अगर आपका बच्चा यह नहीं जानता के मस्जिद ए अक्सा कहां पर है और इससे मुसलमानों का क्या ताल्लुक है तो याद रखे एक दिन वही अंजाम आपका भी होगा जैसा आज फिलिस्तीन में मुसलमानों का हो रहा है, इसलिए वक्त रहते हुए अपने बच्चे और बच्चियों को जरूर बताएं के हमारा फिलिस्तीन से क्या ताल्लुक है?
हमे क्यों फिलिस्तीनियों से इतनी हमदर्दी है?
फिलिस्तीनी हमारे कौन है हमारा उनसे किस तरह का ताल्लुक है?
अपने बच्चो को इस्लामी तारीख के बारे में जरूर बताएं।

मस्जिदे अक्सा कल भी मुसलमानों के सजदों से आबाद थी,
आज भी आबाद है और इंशाल्लाह कयामत तक आबाद रहेगी.

फिलिस्तीनियो के नरसंहार पर दुनिया भर के मानवाधिकार आयोग खामोश क्यों है?
मजहबी आजादी की बात करने वाले और सेक्युलरिज्म की वकालत करने वाले, फिलिस्तीनी मुसलमानों के जुल्म पर खामोश क्यों?

#फलिस्तीन दुनियाभर के 2 अरब मुसलमानों का धड़कता हुआ दिल है, बैत-उल-मुक़द्दस मुसलमानों का किब्ला-ए-अव्वल है इंशा अल्लाह अनक़रीब वो वक़्त भी आएगा जब दुनिया अपनी आंखों से देखेगी "मस्जिद-ए-अक़्सा" को ज़ालिमों के चंगुल से आज़ाद होते हुए।
फ़तह इस्लाम का मुक़द्दर है....

#FreePalestine
#boycottisrael
#voice_of_palestine

आपके बच्चे आपसे पूछे या ना पूछे, आप उन्हें ज़रूर ये बताया कीजिए कि हम "फलस्तीन" से इसलिए मोहब्बत करते हैं कि!.....
* ये फलस्तीन नबियों का मसकन और सरजमीं रही है।
* हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फ़लस्तीन की तरफ हिजरत फ़रमाई।
* अल्लाह ने हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को उस अज़ाब से निजात दी जो उनकी क़ौम पर इस जगह नाज़िल हुआ था।
*हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने इस सरजमीं पर सकूनत रखी और यहां अपना एक मेहराब भी तामीर फ़रमाया।
* हज़रत सुलेमान (अलै०हिस०) इस मुल्क में बैठ कर सारी दुनिया पर हूकूमत करते थे।
* कुर‌आन में चींटी का वह मशहूर किस्सा जिसमें एक चींटी ने बाकी साथियों से कहा था " ऐ चींटियों! अपने बिलों में घुस जाओ" ये किस्सा यहिं फलस्तीन के "असक़लान" शहर की वादी में पेश आया था।
* हज़रत ज़करिया अलै०हिस० का मेहराब भी इसी शहर में है।
* हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने इस मुल्क के बारे में अपने साथियों से कहा था, इस मुकद्दस शहर में दाखिल हो जाओ! उन्होंने इस शहर को मुकद्दस इसलिए कहा था कि ये शिर्क से पाक और नबियों की सरजमीं है।
* इस शहर में क‌ई मोअज़्ज़े हुए है जिनमें एक कुंवारी बीबी हज़रत मरयम के बुतन से ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई।
* हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को जब उनकी क़ौम ने क़त्ल करना चाहा तो अल्लाह ने उन्हें इसी शहर से आसमां पर उठा लिया था।
* क़यामत की अलामत में से एक हज़रत ईसा की वापसी इस शहर के मुकाम सफेद मीनार के पास होगा।
* इस शहर के मुकाम " बाब ए लुद" पर ईसा अलैहिस्सलाम दज्जाल को क़त्ल करेंगे।
* फलस्तीन ही अरज़े महशर है।
* इसी शहर से ही याजूज माजूज का क़िताल और फसाद शुरू होगा।
* फलस्तीन को नमाज़ के फ़र्ज़ होने के बाद "क़िब्ला ए अव्वल" होने का एजाज़ भी हासिल है। हिजरत के बाद जिबरील अलैहि० अल्लाह के हुक्म से नमाज के दौरान ही मुहम्मद स०अ० को मस्जिद ए अक्सा से बैतुल्लाह (काबा) की तरफ़ रुख़ करा ग‌ए थे, जिस मस्जिद में ये वाकिया पेश आया था वह मस्जिद आज भी मस्जिद ए क़िब्लातैन कहलाती है।
* हुजूर अकरम (स०अ०) मे'अराज की रात आसमान पर ले जाने से पहले मक्का मुकर्रमा से बैतुल मुकद्दस (फलस्तीन) लाए गए।
* अल्लाह के रसूल स०अ० की इक़्तेदा में सारे नबियों ने यहां नमाज़ अदा फरमाई।
* इस्लाम का सुनहरी दौर फारूकी में दुनिया भर के फतह को छोड़ कर महज़ फ़लस्तीन की फ़तह के लिए खूद उमर (रजि०अ०) जाना और यहां पर जाकर नमाज़ अदा करना, इस शहर की अज़मत को बताता है।
* दुसरी बार यानि 27 रजब 583 हिजरी जुमा के दिन को सलाउद्दीन अय्युबी के हाथों इस शहर का दोबारा फ़तह होना।
* बैतूल मुकद्दस का नाम "कुदुस" कूरान से पहले तक हुआ करता था, कूरान नाजिल हुआ तो इसका नाम " मस्जिद ए अक्सा" रखा गया, इस शहर के हुसूल और रूमियो के जबर वह सितम से बचाने के लिए 5000 से ज्यादा सहाबा किराम रजि०अ० ने जामे शहादत नोश किया, और शहादत का बाब आज तक बंद नही हुआ, सिलसिला अभी तक चल रहा है, ये शहर इस तरह शहीदों का शहर है।
* मस्जिद ए अक्सा और शाम की की अहमियत हरमैन की तरह है, जब कूरान पाक की ये आयत
* उम्मत ए मोहम्मदी हकीकत में इस मुकद्दस सरजमीं की वारिस है।
* फलस्तीन की अज़मत का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां पर पढ़ी जाने वाली हर नमाज़ का अज्र 500 गुना बढ़ा कर दिया जाता है.

" निगाहें मुन्तज़िर है बैतूल मुकद्दस की फ़तह के लिए या रब,
फिर किसी सलाउद्दीन अय्युबी को भेज दे"......
आमीन

*میری مسجدِ اقصیٰ سے محبت بڑھا دینے والی آیت*

(سورة بنی اسراءیل آیت نمبر 1)

سُبۡحٰنَ الَّذِیۡۤ  اَسۡرٰی بِعَبۡدِہٖ لَیۡلًا مِّنَ الۡمَسۡجِدِ الۡحَرَامِ  اِلَی الۡمَسۡجِدِ الۡاَقۡصَا الَّذِیۡ بٰرَکۡنَا حَوۡلَہٗ  لِنُرِیَہٗ مِنۡ اٰیٰتِنَا ؕ اِنَّہٗ  ہُوَ  السَّمِیۡعُ  الۡبَصِیۡرُ ﴿۱﴾

وہ ذات "ہر نقص اور کمزوری سے" پاک ہے جو رات کے تھوڑے سے حصہ میں اپنے "محبوب اور مقرّب" بندے کو مسجدِ حرام سے "اُس" مسجدِ اقصٰی تک لے گئی جس کے گرد و نواح کو ہم نے بابرکت بنا دیا ہے تاکہ ہم اُس "بندۂ کامل" کو اپنی نشانیاں دکھائیں ،  بیشک وہی خوب سننے والا خوب دیکھنے والا ہے۔

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