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Un Israel ke Dahshatgardi par Khamosh kyu hai?

Israeli Hamle par European country Khamosh Kyu?



संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीनियों के नरसंहार पर चुप क्यों?

इसराइली सैनिकों द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार पर मानवाधिकार आयोग खामोश क्यों?

उइगर मुसलमानों का मुद्दा उठाने वाला अमेरिका आज फिलिस्तीनी मुसलमानों के कत्लेआम पर चुप क्यों है?

यूरोपियन कंट्री जो हर वक्त मानवाधिकार की बात करता है वह मासूम फिलिस्तीनियों के नरसंहार पर चुप्पी क्यों साधे हुए है?

संयुक्त राष्ट्र की बैठक को अमेरिका बार बार क्यू स्थगित कर रहा है?

अमेरिका के इशारे पर काम करने वाला संयुक्त राष्ट्र आज फिलिस्तीनियों पर हो रहे इसराइली हवाई हमले पर चुप क्यों है?

मानवाधिकार कानूनों के उल्लघंन पर इंटरनेशनल कोर्ट खामोश क्यों?

मुस्लिम दुनिया का नेता कौन? सऊदी या तुर्की
सऊदी अरब के पास इतना हथियार होते हुए भी इजरायल से क्यू डरता है?
इजरायल फिलिस्तीनियों के जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर बना है।

मानवाधिकार का संरक्षक और मुसलमानों का शुभचिंतक कहलाने वाला अमेरिका फिलिस्तीनी मुसलमानों के जुल्म पर खामोश क्यों?

सारे सवालों का एक जवाब है। अमेरिका और यूरोप
अमरीक का उसूल है, यह उसका नियम है. अमेरिकी निति मतलब इसराइली निति है।
हर राष्ट्रपति के लिए यह जरूरी है के वह इजरायल समर्थक हो।
हर यूरोपियन कंट्री के लिए यह वाजिब है के इजरायल का साथ दे, चाहे वह कितना भी अंतराष्ट्रीय कानूनों को हाथ में लेता क्यों न चला जाए।

आज इजरायल फिलिस्तीनियों के जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किए हुआ है और जब चाहता है तब अपनी आत्मरक्षा की दलील देकर फिलिस्तीनियो पर जुल्म ढाहता है मगर मानवाधिकार के मुद्दे पर बोलने वाला अमेरिका फिलिस्तीनियों की जनसंहार पर यह तर्क देता है के इजरायल को अपने आत्मरक्षा का अधिकार है।

  मगर सच तो यह के आत्मरक्षा का अधिकार सिर्फ एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र के बीच संघर्ष में लागू होता है, जबकि ग़ज़ा कोई राष्ट्र नहीं है.

बात मानवाधिकार, धार्मिक आजादी या समानता की नहीं है। अमेरिका के इशारे पे जो देश नही चलता या अमेरिका जिस देश को अपना विरोधी / प्रतिद्वंदी समझता है उस देश में ही हमेशा मानवाधिकार का मुद्दा उठा कर उसे घेरने की कोशिश करता है, मानवाधिकार के मुद्दे को एक हथियार के तौर पर हमेशा अपने विरोधी खेमे के लिए इस्तेमाल करता है। अगर वाकई अमेरिका को मानवाधिकार और समानता की फिक्र होती तो इजरायल में अरबों के लिए नागरिकता का अलग नियम क्यों है और वहां मानवाधिकार का मुद्दा कहां चला जाता है? अमेरिका इजरायल को कभी मानवाधिकार के मामले में कुछ नही कहता ना भेदभाव पर ही कुछ बोलता है क्यों?
जो इज़राइल ने किया अमरीक भी वही किया.

जैसा कि इस वक्त दुनिया की नजर इजरायल और फिलिस्तीन पर टिकी हुई है क्योंकि इजरायल अपने पुराने दोस्त अमेरिका की मदद से फिलिस्तीनियो पे हवाई हमला कर रहा है और यूरोप उसके साथ खरा है, अमेरिका ने तो यहां तक कह दिया के इजरायल को अपने आत्मरक्षा का अधिकार है।
ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने कहा के मै इजरायल और यहूदियों के साथ खड़ा हूं।

अमेरिका ने इजरायल का समर्थन करने की ठान ली है यहां तक कि अमेरिका ने तो साफ कह दिया है कि इसराइल को अपनी रक्षा करने का पूर्ण अधिकार है!

अगर हमास इस इलाके से हट जाए तो क्या इजरायल फिलिस्तीनियों के जमीन को छोड़ देगा जो उसने जबरन कब्जा किया है?

एक या दो नहीं बल्कि सैंकड़ों कानून ऐसे हैं  जो वहाँ रह रहे फिलस्तिनियों के साथ भेदभाव करता हैं।

तो सवाल यह है के अगर हामास वहाँ से ख़त्म भी हो जाए तो भी क्या इज़राइल अपने क़ानून बदलकर फिलस्तिनियों को इज़राइल नागरिकों के बराबर हक़ देगा ? शायद नहीं।

अगर हम हाल फिलहाल (अलविदा जुमा के दिन से शुरू हुई हवाई हमले) के जंग जैसे हालात को भूल भी जाए। हम ये भूल जाए कि हामास ने इजराइल के ऊपर कितने हजार राकेट दागे और इजरायल ने कितनी बार हमास पर बॉम्ब बरसाए और कितने लोगो को मारे और अब कितने लोग विस्थापित हुए (करीब बीस लाख)
तो भी इजराइल की बहुत सारी हरकते ऐसी मिल जाएंगी जो साबित करती है कि उसने वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी में रह रहे फलस्तीनियों का जीना दुस्वार कर रखा है। वह कैसे ?

वेस्ट बैंक में फलस्तीनियों को मकान बनाने की इजाजत मुश्किल से मिलता है, जबकि दुनियाभर से यहूदियों को लाकर यहां  बसाया जा रहा है।

ओस्लो के समझौते के हिसाब से वेस्ट बैंक तीन हिस्सों में बंटा हुआ है-

एरिया A -फलस्तीनियों के नियंत्रण में। बाहरी सिक्योरिटी कंट्रोल इज़राएल का

एरिया B- फलस्तीनियों का प्रशासनिक नियंत्रण और इजरायल के सिक्योरिटी कंट्रोल।

एरिया C- इजराइली नियंत्रण में।

एरिया C (वेस्ट बैंक का सबसे बड़ा हिस्सा) जो पूरी तरह इजराइली नियंत्रण में है वहाँ इजराइली अथॉरिटीज फलस्तीनियों को मुश्किल से ही निर्माण कार्य करने देते हैं। साल 2016 और 2018 के बीच आई तकरीबन डेढ़ हजार एप्लीकेशन (फलस्तीनियों द्वारा) में से सिर्फ 21 को अप्रूवल मिली।

आए दिन आपको ऐसे मंजर दिखाई देंगे जहाँ आपको इजराइली अथॉरिटीज आपको फलस्तीनियों के मकानों को तोड़ती मिल जायेगी, लोग अपने समानी को इधर उधर रखते मिल जायेंगे, मगर आपको बिकाऊ मीडिया यह नहीं दिखाएगी।

जो जमीन कभी फलस्तीनियों के पास 90% से भी ज्यादा थी वो आज सिकुड़कर 12 प्रतिशत हो गई है और इजरायल को अभी भी चैन नही है ।
वो चाहता है कि उस 12 प्रतिशत जमीन पर भी उनके पैर ना जमे। वेस्ट बैंक में इज़राइल ने ज़मीन के काफ़ी बड़े हिस्से को किसी को स्टेट की ज़मीन कहकर,किसी को सर्वे ज़मीन  (survey land) कहकर, किसी को नैचरल रिज़र्व और किसी हिस्से को नैशनल पार्क कहकर फिलस्तिनियों द्वारा निर्माण कार्य पड़ पाबंदी लगाया हुआ है।
साल 2003 में एक कानून बनाया गया के अगर शौहर या बीवी में से कोई एक इज़राइली नागरिक है और दूसरा वेस्ट बैंक या गाजा पट्टी से है तो वो आपस में नहीं मिल सकते ।

नागरिकता (शहरियत) का अधिकार कभी भी छीना जा सकता है फिलिस्तीनियों से।

येरूसलम में रहने वाले फलस्तिनियों को permanent residency status मिला हुआ है लेकिन वो कभी भी छीना जा सकता है ।
फ़िलिस्तीनी को साबित करना होता है कि जेरूसलम उसका centre of life है। अगर वो ज़्यादा समय जेरूसलम से दूर रहा तो रेज़िडेन्सी छीन ली जाती है।

गाजा पट्टी में रहने वाले फिलस्तिनियों के जीने के अधिकार पर प्रश्न चिन्ह?

हालाँकि इज़राइल गाजा पट्टी से साल 2005 में पीछे हट गया था लेकिन इसकी घेराबंदी ज़्यादा कड़ी है।

अगर कन्स्ट्रक्शन के लिए कोई गाजा पट्टी में समान ले जाना चाहता है तो इज़राइल कहता है कि हो सकता है हामास सुरंग बना रहे हो इसलिए सामान अंदर नही जाएगा। जरूरी दवाइयाँ की भी बड़ी मुश्किल से एंट्री की इजाज़त मिलती है।

बिजली का कटना तो वहां आम बात है, साल 2018 में एक दिन में सिर्फ़ दो घंटे की बिजली उनको मिलती थी।

और यह सब अमेरिका और यूरोप की मदद से इसराइल कर रहा है, जो यूरोप वक्त बे वक्त दूसरो के अंदरूनी मामले में मानवाधिकार के हनन का मुद्दा उठाकर उसको लोकतंत्र का पाठ पढ़ाता है, अभिव्यक्ति की आजादी के नारे लगवाकर सरकार के खिलाफ बगावत करवाता है, समानता का ज्ञान देता वही इसराइल में फिलिस्तोनियों के जनसंहार पे खामोश है।
बिकाऊ मीडिया कभी इस मामले पर रिपोर्टिंग नही करती, उसे सिर्फ मुसलमान   आतंकवादी, कट्टरपंथी, और रूढ़िवादी नजर आता है, बाकी यूरोप से जो इशारा होता है वही टाइप होता है।
यह है असल हकीकत यूरोप का, जहां समानता का पाखंड, और ढोंग किया जाता है।

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