Hm kyu Jashn-E-Eid Miladunnabi ki Mukhalefat karte hai?
جشن عید میلاد النبی منانے والوں کی ہم کیو مخالفت کرتے ہے
क्यों हमेशा ईद मिलाद की मुखालिफत की जाती है ?
*जानिए एक कड़वा सच*
क्यों हमेशा ईद मिलाद की मुखालिफत की जाती है ? जानिए एक कड़वा सच
एक अरसे तक मुनाफिको ने हमारे नबी (स.) की वफात के दिन १२ रब्बिउल अव्वल को जश्न मनाया, और ये तारीख १२ वफात के नाम से मशहूर हुई, इसी नाम से यहाँ स्कूल और सरकारी छुट्टिया दी जाती रही.
लेकिन जब उम्मत में शऊर आने लगा और लोग सवाल करने लगे के १२ वफात के नाम से जश्न कैसा तो फिर नाम बदल के मिलाद उन नबी, और अब ईद मिलादुन नबी रख दिया गया ,.. यकींन नहीं होता तो अपने घर के बुज्रुगो से पूछना के उन्होंने कभी बचपन में मिलाद का नाम सुना था ?
हाँ इसी बात की हम मुखालिफत करते है, के तुम्हारी जहालत का फायदा उठाकर मफादपरस्त लोग अपनी जेबे भरते है, तुमसे जहालत का इजहार करवा कर , तुम्हारी बद्दअख्लाखी से पुरे मोहल्ले और शहर को परेशांन करते है , तुम्हारी जहालत से लोगो को ये पैगाम दिलाते के यही इस्लाम है, यही आवारगी की ट्रेनिंग कुरान देता है, यही इनके नबी की तालीमात होगी,.. नौज़ुबिल्लाह! जबकि हकीकत तो ये है के तुमसे इस सादगी भरे दिन की तालीमात छुपायी गयी और तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल(स.) की पाकीज़ा शरियत से महरूम रखा गया ,..
याद रहे! वफात के दिन जश्न मनाना ये मोमिनो की नहीं मुनाफिको की सुन्नत है ?,, सिर्फ अकल्मन्द इसपर गौर करे, और अपने नबी (सलाल्लाहू अलेही वसल्लम) के आमद की हकीकी ख़ुशी मनाये जैसा के अल्लाह ने कुरान में हमे हुक्म दिया (यानि इताअत करो अलाल्ह की और इताअत करो रसूलअल्लाह (स.) की) और दिन में नयी चीज़े इजाद करने से परहेज़ करो , ये बिद्दत है और दिन में हर बिद्दत गुमराही है ,.
इसके बावजूद भी कोई अपनी इस्लाह नहीं करना चाहता तो ये एक दिन का जश्न उसे मुबारक हो,. और हकीकी जश्न तो मोमिन मनाते है अपने नबी की तालीमात पर अमल करते हुए ..
१२ रबी उल अव्वल के दिन हकीकत में क्या पसेमंज़र था, ये दिन सहाबा पर कैसे गुजरा, और आज हम क्या कर रहे है इसकी तफ्सीली जानकारी के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करे,.
बहरहाल! १२ वफात के दिन जश्न मनाना एक शराई बिद्दत है जो के सीधे रसूलअल्लाह (सलाल्लाहू अलैहि वसल्लम) की तालीमात में खयानत है, इसकी मुखालिफत करना हर मुसलमान पर लाजिम है, हमने तो अपनी जिम्मेदारी निभाई अब आपकी बारी.
जजाकल्लाहू खैरन कसीरा!
Jis Din Se Quran o Hadees ki baate shuru ki hai khoon ke Rishte hi toot gaye
Saare apne Rooth gaye
Main to khud apne aap ka ek Rishtedar hun
khud se baat karta hun khud se Rishta Nibhata hun
Jab Deen e Islam ki baat aati hai ek Akela ho jata hun
Badi Muddat ho gayi Kisi ko mere sath Haq baat me haami bharte huwe
Kasrat se Bhare huve hai Deen e Islam ke Mukhalif log
Main akela hi Dil o dimagh ki jung karta chala jata hun
Badi Muddat huvi kisi ko Haq baat me haami bharte Huve Badi Muddat huvi
Nishane par main Batil Parasto ke hoo.
Ek Akela hi Teer Chalata hun main
Haar Maanne Wale Wo bhi Nahi hai
Haar Maanne Wala Main Bhi Nahi hoon
Jung Jaari hai
Syed Naushad
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